हवन
फिर कुश द्वारा ब्रह्मा से अन्वारब्ध करके पातितदक्षिणजानु होकर प्रज्वलित अग्नि में स्रुवा से आज्याहुति दे। आहुति के पश्चात् शेष प्रोक्षणी में प्रक्षेप करे :-
- ॐ प्रजापतये स्वाहा, इदं प्रजापतये। (मानसिक मात्र) प्रजापति का स्वाहाकार मंत्र बिना बोले आहुति दे, इदं प्रजापतये भी बिना बोले शेष प्रोक्षणीपात्र में प्रक्षेप करे।
- ॐ इन्द्राय स्वाहा, इदं इन्द्राय।
- ॐ अग्नये स्वाहा, इदं अग्नये।
- ॐ सोमाय स्वाहा, इदं सोमाय।
- पुनः ३ आहुति और दे – १. ॐ भूः स्वाहा, इदं भूः॥ २. ॐ भुवः स्वाहा, इदं भुवः॥ ३. ॐ स्वः स्वहा, इदं स्वः ॥

तदुत्तर ब्रह्मा से कुशात्मक सम्बन्ध रहित होकर अगली आहुतियां आज्य से दे और हुतशेष प्रोक्षणी में प्रक्षेप करे :
- ॐ अग्ने प्रायश्चित्ते त्वं देवानां प्रायश्चित्तिरसि ब्राह्मणस्त्वा नाथकाम उपधावामि याऽस्यै पतिघ्नी तनूस्तामस्यै नाशय स्वाहा, इदमग्नये ॥१॥
- ॐ वायो प्रायश्चित्ते त्वं देवानां प्रायश्चित्तिरसि ब्राह्मणस्त्वा नाथकाम उपधावामि याऽस्यै प्रजाघ्नी तनुस्तामस्यै नाशय स्वाहा, इदं व्वायवे ॥२॥
- ॐ सूर्य प्रायश्चित्ते त्वं देवानां प्रायश्चित्तिरसि ब्राह्मणस्त्वा नाथकाम उपधावामि याऽस्यै पशुघ्नी तनूस्तामस्यै नाशय स्वाहा, इदं सूर्याय ॥३॥
- ॐ चन्द्र प्रायश्चित्ते त्वं देवानां प्रायश्चित्तिरसि ब्राह्मणस्त्वा नाथकाम उपधावामि याऽस्यै गृहघ्नी तनूस्तामस्यै नाशय स्वाहा, इदं चन्द्राय ॥४॥
- ॐ गन्धर्व प्रायश्चित्ते त्वं देवानां प्रायश्चित्तिरसि ब्राह्मणस्त्वा नाथकाम उपधावामि याऽस्यै यशोघ्नी तनूस्तामस्यै नाशय स्वाहा, इदं गन्धर्वाय ॥५॥
ब्रह्मणाऽन्वारब्ध करके चरुहोम (घृतमिश्रित) करे। प्रथम आहूति प्रजापति का स्मरण मात्र करके दे :- ॐ प्रजापतये स्वाहा, इदं प्रजापतये ॥
स्विष्टकृद्धोम : फिर घृतमिश्रित चरु से आहुति दे – ॐ अग्नये स्विष्टकृते स्वाहा, इदं अग्नयेस्विष्टकृते॥
व्याहृति होम : पुनः आज्याहुति दे
- ॐ भूः स्वाहा, इदं भूः॥
- ॐ भुवः स्वाहा, इदं भुवः॥
- ॐ स्वः स्वहा, इदं स्वः ॥
फिर प्रायश्चित्तसंज्ञक ये पञ्चमहावारुणी होम करे :
- ॐ त्वन्नोऽअग्ने वरुणस्य विद्वान् देवस्य हेडो अवयासि सीष्ठाः। यजिष्ठो वह्नितमः शोशुचानो विश्वा द्वेषाᳪसि प्रमुमुग्ध्यस्मत् स्वाहा, इदमग्मीवरुणाभ्याम् ॥
- ॐ स त्वन्नो अग्नेऽवमो भवोती नेदिष्ठो अस्या उषसो व्युष्टौ। अवयक्ष्व नो वरुणᳪरराणो वीहि मृडीकᳪसुहवो न एधि स्वाहा, इदमग्नीवरुणाभ्याम् ॥
- ॐ अयाश्चाग्नेऽस्य नभिशस्तिपाश्च सत्यमित्त्वमया असि । अया नो यज्ञ ᳪ वहास्ययानो धेहि भेषज ᳪ स्वाहा, इदमग्नये॥
- ॐ ये ते शतँवरुण ये सहस्रं यज्ञियाः पाशा वितता महान्तः। तेभिर्न्नो अद्य सवितोत विष्णुर्विश्वे मुञ्चन्तु मरुतः स्वर्काः स्वाहा, इदं वरुणाय सवित्रे विष्णवे विश्वेभ्यो देवेभ्यो मरुद्भ्यः स्वर्केभ्यः॥
- ॐ उदुत्तमँव्वरुण पाशमस्मदवाधमं विमध्यम ᳪ श्रथाय । अथा व्वयमादित्य व्रते तवानागसो अदितये स्याम स्वाहा, इदं वरुणाय ॥
- ॐ प्रजापतये स्वाहा, इदं प्रजापतये ॥ (मानसिक मात्र) प्रजापति का स्वाहाकार मंत्र बिना बोले आहुति दे, इदं प्रजापतये भी बिना बोले शेष प्रोक्षणीपात्र में प्रक्षेप करे।
ब्रह्म दक्षिणा (पूर्णपात्र) : ॐ अस्यां रात्रौ कृतैतत् चतुर्थी होमकर्मणि कृताकृतावेक्षणरूप ब्रह्मकर्मप्रतिष्ठार्थमिदं पूर्णपात्रं प्रजापति दैवतम् …..गोत्राय ……शर्मणे ब्राह्मणाय ब्रह्मणे दक्षिणां तुभ्यमहं सम्प्रददे ॥ ब्रह्मा को पूर्णपात्र प्रदान करे, ब्रह्मा “ॐ स्वस्ति” कहकर ग्रहण करे । फिर दाहिना हाथ पकरकर ब्रह्मा को प्रदक्षिणक्रम से उठाए । यदि कुशात्मक ब्रह्मा हों तो यह मंत्र पढे – ॐ अस्यां रात्रौ कृतैतत् चतुर्थी होमकर्मणि कृताऽकृताऽवेक्षणरूप ब्रह्मकर्मप्रतिष्ठार्थमिदं पूर्णपात्रं प्रजापतिदैवतं ब्रह्मणे दक्षिणा नमः ॥ पूर्णपात्र दक्षिणा देकर कुशात्मक ब्रह्मा की ग्रंथि खोल दे ।
प्रणीताविमोक : प्रणीता को अपने आगे अग्नि के पश्चिमभाग में रखकर पवित्री-उपयमन कुशादि धारणपूर्वक इस मंत्र द्वारा सिर को सिक्त करे – ॐ सुमित्रिया न आप ओषधयः सन्तु ॐ आपः शिवाः शिवतमा: शान्ताः शान्ततमास्तास्ते कृण्वन्तु भेषजम् ॥ फिर इस मंत्र से प्रणीता को ईशानकोण में न्युब्ज कर केवल जल गिराए, प्रणीता को पृथ्वी पर उल्टा न रखे केवल जल गिराकर सीधा ही रखे ।
बर्हिहोम : परिस्तरण वाले कुशाओं को उठाकर मोड़ते हुए छोटा गट्ठर (पुल्ली) बनाकर घृताक्त करके इस मंत्र से अग्नि में त्याग करे – ॐ देवा गातु विदो गातु वित्वा गातुमित मनसस्पत इमं देव यज्ञ स्वाहा वातेधाः स्वाहा ॥
तत्पश्चात् आम्रपल्लव लेकर प्रोक्षणी के जल से वधू को सिक्त करे : ॐ या ते पतिघ्नी प्रजाघ्नी पशुघ्नी गृहघ्नी यशोघ्नी निन्दिता तनूर्जारघ्नीं तत एनां करोमि सा जीर्यत्वं मया सह श्री “…….. (पत्नी का नाम) देवि” ॥
फिर वर अगले चारों मंत्रों को पढे और वधू प्रत्येक बार हुतशेष चरु का प्राशन करे :
- ॐ प्राणैस्ते प्राणान् सन्दधामि ॥१॥
- ॐ अस्थिभिस्ते ऽअस्थीनि सन्दधामि ॥२॥
- ॐ मा ᳪ सैस्ते मा ᳪ सानि सन्दधामि ॥३॥
- ॐ त्वचा ते त्वच ᳪ सन्दधामि ॥४॥
तदूत्तर वर किसी अपना हाथ भी धो और वधू का भी हाथ धुला दे । फिर वर दो बार आचमन करके पुनः हाथ धो ले । फिर वधू के कंधे की ओर से हाथ आगे करके वधू के हृदय का स्पर्श करे और अगले मंत्र को पढे : ॐ यत्ते सुसीमे हृदयं दिवि चन्द्रमसि श्रितम् । वेदाहं तन्मां तद्विद्यात् पश्येम शरदः शतं जीवेम शरदः शत शृणुयाम शरदः शतम् ॥
तत्पश्चात आचार्य वर-वधू के कङ्गन और जन्मग्रंथि खोल दे। व्यवहार में विवाह का ग्रंथि खोलकर दुबारा वस्तु बदल कर ग्रंथि देते देखा जाता है।
पूर्णाहुति मंत्र : ॐ मूर्द्धानन्दिवो ऽअरतिम्पृथिव्या वैश्वानरमृत ऽआजातमग्निम् ॥ कवि ᳪ सम्म्राजमतिथिं जनानामासन्ना पात्रञ्जनयन्त देवाः स्वाहा ॥
भस्म धारण : स्रुव के पृष्ठभाग में ईशान कोण से भस्म ग्रहण कर पवित्री द्वारा प्रणीतोदक से सिक्त करके क्रमशः ललाट, कण्ठ, दक्षिणबाहु और हृदय पर लगाए – ॐ त्र्यायुषम्जमदग्नेः (ललाट पर) । ॐ कश्यपस्य त्र्यायुषं (कंठ में) । ॐ यद्देवेषु त्र्यायुषं (दक्षिण बाहु पर) । ॐ तन्नोऽअस्तु त्र्यायुषं (हृदय में) । पुनः वधू को भी भस्म लगाये : ॐ त्र्यायुषम्जमदग्नेः (ललाट पर) । ॐ कश्यपस्य त्र्यायुषं (कंठ में) । ॐ यद्देवेषु त्र्यायुषं (दक्षिण बाहु पर) । ॐ तत्तेऽअस्तु त्र्यायुषं (हृदय में) ।
पुनः व्यवहार से सिंदूरदान करे।
दक्षिणा : त्रिकुशहस्त वर तिल, जल, दक्षिणा द्रव्य लेकर पढ़े : ॐ अस्यां रात्रौ कृतैतत् चतुर्थी होमकर्म प्रतिष्ठार्थं एतावद्द्रव्यमूल्यक हिरण्यं अग्निदैवतं यथानामगोत्रायब्राह्मणाय दक्षिणामहं ददे ॥
दूर्वाक्षत मंत्र : ॐ आब्रह्मन ब्राह्मणो ब्रह्मवर्चसी जायतामाराष्ट्रे राजन्यः शूर इषव्यौऽतिव्याधि महारथो जायताम दोघ्री धेनुर्वोढा नड्वानाशुः सप्ति पुरन्ध्रिर्योषा जिष्णू रथेष्ठाः सभेयो युवाऽस्य यजमानस्य वीरोजायाताम। निकामे निकामे नः पर्जन्यो वर्षतु फलवत्यो न औषधयः पच्यन्ताम योगक्षेमोनः कल्पताम् ॥ मंत्रार्था: सिद्धयः सन्तु पूर्णाः सन्तु मनोरथाः। शत्रुणां बुद्धिनाशोऽस्तु मित्राणामुदयस्तव ॥
॥ इति पं० दिगम्बर झा सुसम्पादितं “करुणामयीटीकाऽलंकृतं” वाजसनेयिनां चतुर्थीकर्मविधिः ॥
कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।