महामृत्युंजय जप करने की सम्पूर्ण विधि और जानकारी – mahamrityunjay jaap

महामृत्युंजय जप करने की सम्पूर्ण विधि और जानकारी – mahamrityunjay jaap

महामृत्युंजय मंत्र का अर्थ

किसी भी स्तोत्र पाठ, मंत्र जप में पूर्णफल की प्राप्ति हेतु उसके अर्थ को जानना आवश्यक कहा गया है। महामृत्युंजय जप के लिये भी अर्थ का चिंतन करते हुये जप करना विशेष लाभकारी बताया गया है। नीचे महामृत्युंजय मंत्र का अर्थ भी दिया गया है :

मूल अर्थ : हम त्रिनेत्र (महामृत्युंजय) का चिंतन-पूजन करते हैं जो जीवन को सुगन्धित, परिपूर्ण व को पोषित करता है और वृद्धि करता है। ककड़ी की तरह हम इसके तने से अलग (मुक्त) हों, अमरत्व से नहीं बल्कि मृत्यु से मुक्त हों।

  • त्र्यंबकं : त्रिनेत्रों वाला या जिनके तीन नेत्र हैं।
  • यजामहे : हम उनकी पूजा करते हैं, सम्मान करते हैं ।
  • सुगंधिम् : सुगन्ध युक्त या सुगंधित।
  • पुष्टि : एक सुपोषित स्थिति, फलने-फूलने वाली, समृद्ध जीवन की परिपूर्णता।
  • वर्धनम् : वह जो पोषण करता है, शक्ति देता है, स्वास्थ्य,धन,सुख आदि का वृद्धिकारक, जो हर्षित करता है, आनन्दित करता है और स्वास्थ्य प्रदान करता है ।
  • उर्वारुकम् : ककड़ी एक फल विशेष ।
  • इव : जैसे, इस तरह, की तरह से ।
  • बंधनान् : तना (लौकी का); “तने से” , बंधन से ।
  • मृत्युः : मृत्यु से।
  • मुक्षीय : हमें स्वतंत्र करें, मुक्ति दें।
  • मा : न, नहीं, न कि ।
  • अमृतात् : अमरता, मोक्ष से।

महामृत्युंजय मंत्र जाप के फायदे (लाभ) :

महामृत्युंजय जप मुख्य रूप से आरोग्य लाभ और अरिष्ट निवारण पूर्वक दीर्घायु प्राप्त करने के लिये किया जाता है। लेकिन किसी भी पूजा, अनुष्ठान आदि में मुख्य फल के अतिरिक्त अन्य भी कई फल होते हैं। महामृत्युंजय जप से होने वाले कई लाभों को बिन्दुबार इस प्रकार समझा जा सकता है :

  • रोग से मुक्ति
  • मारक ग्रह दशा के अशुभ फल का निवारण
  • मानसिक शान्ति की प्राप्ति
  • विभिन्न प्रकार के उपद्रवों की शांति
  • दृष्टिदोष का निवारण (नजर दोष)
  • वास्तु दोष जनित अनिष्ट निवारण
  • मंगली दोष जन्य दाम्पत्य असुख का निवारण
  • अपशकुन की शान्ति
  • राजभय का निवारण
  • दुःस्वप्न की शान्ति
  • मारणादि दुष्प्रयोगों का निवारण
  • षड्यंत्रों के कुचक्र का निवारण
महामृत्युंजय जप
महामृत्युंजय जप

महामृत्युंजय मंत्र जप के नियम

महामृत्युंजय जप एक बृहद् अनुष्ठान है एवं इसके लिये कुछ सामान्य नियम व कुछ विशेष नियम भी होते हैं। महामृत्युंजय मंत्र जप के नियमों को बिन्दुबार इस प्रकार समझा जा सकता है :-

  • प्रथम दिन शुभ मुहूर्त देखकर जप आरम्भ करे । भद्रा, अर्द्धप्रहरा आदि रहित काल में आरम्भ करे ।
  • जप का आरम्भ प्रातः काल करना चाहिये।
  • प्रतिदिन जप का समय समान रखे ।
  • प्रतिदिन जप की संख्या समान रखे ।
  • फलाहार में शारीरिक अशुद्धि नहीं होती अतः पूजा का वस्त्र बदले बिना ही करे और स्नान की आवश्यकता नहीं होती।
  • धारित वस्त्र उतारने के बाद अशुद्ध हो जाता है, अतः प्रतिदिन वस्त्र धोये । यदि दिन में भी वस्त्र उतारना परे तो धोकर ही दुबारा धारण करे ।
  • पूजा-जप आदि में धोती पहने व गमछा रखे, सिला वस्त्र न पहने।
  • कई लोग पूजा-जप आदि में सिर पर वस्त्र रखते हैं जो शास्त्राज्ञा के विरुद्ध है अतः ऐसा न करे ।
  • घर में भी जप करना हो तो नर्मदेश्वर अवश्य रखे । शिव सन्निधि में किया गया जप अनन्त फलदायी होता है। यदि प्रतिदिन रुद्राभिषेक करे तो अत्युत्तम।
  • एक दीपक जलाकर कलश के ऊपर भी रखे ।
  • जप से पहले पवित्रीकरण, प्राणायाम, न्यास और ध्यान करे।
  • जप पूर्वाभिमुख या उत्तराभिमुख होकर करे ।
  • जप माला पर ही करे, जप से पहले माला की भी पूजा करे ।
  • पञ्च मुद्रा – मुष्टि, मृगी, शक्ति, लिङ्ग और पञ्चमुख। महामृत्युंजय जप करने से पूर्व इन पंचमुद्राओं का प्रदर्शन करे।
  • जप काल में दीपक जलाकर रखे । यदि संभव हो तो अखण्ड दीपक भी जलाये ।
  • जप मौन रहकर ही करे, होंठ हिलाये बिना जप उत्तम, होठ हिलने पर मध्यम और मंत्रध्वनि सुनाई देने पर निम्न श्रेणी का होता है।
  • जप करते समय महामृत्युंजय भगवान के स्वरूप का ध्यान और मंत्र के अर्थ का चिंतन करते रहे। अन्य कोई बात न सोचे-विचारे ।
  • जप सम्पन्न होने के बाद भगवान को अर्पित कर दे और पुनः न्यास करके ही उठे ।
  • भोजन सायंकाल की आरति के उपरांत करे। भोजन में सैंधव नमक का प्रयोग करे । दिन में फलाहार मात्र करे ।

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