समावर्तन संस्कार – samavartan sanskar

समावर्तन संस्कार – samavartan sanskar

उपसंगृह्य गुरुं समिधोऽभ्याधाय परिश्रितस्योत्तरतः कुशेषु प्रागग्रेषु पुरस्तात्स्थित्वाऽष्टानामुदकुम्भानाम् – तदुत्तर अग्नि के पश्चिमभाग में पूर्वाग्र तीन कुशायें रखकर ब्रह्मचारी उस पर खड़ा हो जाये। फिर अग्नि के उत्तर भाग में पूर्वाग्र कुशाओं पर पहले से जलपूर्ण व आम्रपल्लवयुक्त 8 कलश; जो पहले से दक्षिणोत्तर क्रम में रखे हुये हो, क्रमशः प्रत्येक कलश के पल्लव से कलश जल लेते हुये स्वयं को (शिर) सिक्त करे :

जल ग्रहण मंत्र : प्रत्येक कलश का जल अगले मंत्र से ही ग्रहण करे अर्थात आम्रपल्लव द्वारा आठों कलश का जल ग्रहण करते समय यही मंत्र पढ़े – ॐ ये अप्स्वन्तरग्नयः प्रविष्टा गोह्य उपगोह्यो मयूषो मनोहास्खलो विरुजस्तनूदूषुरिन्द्रियहा तान्विजहामि यो रोचनस्तमिह गृह्णामि ॥

सिक्त करना : आठों कलश के जल से सिक्त करने का मंत्र अलग-अलग है पांच कलशों के जल से मंत्र पढ़कर सिक्त करना है और छठे, सातवें व आठवें तीन कलशों के जल से बिना मंत्र के ही अर्थात चुपचाप सिक्त करे (त्रिभिस्तूष्णीमितरैः) :

  1. प्रथम कलश : जलग्रहण करे – ॐ ये अप्स्वन्तरग्नयः…, मंत्र से कलश के पल्लव से जल ग्रहण करके अगले मंत्र से सिक्त करे : ॐ तेन मामभिषिञ्चामि श्रियै यशसे ब्रह्मणे ब्रह्मवर्चसाय ॥
  2. द्वितीय कलश : जलग्रहण करे – ॐ ये अप्स्वन्तरग्नयः…, मंत्र से कलश के पल्लव से जल ग्रहण करके अगले मंत्र से सिक्त करे : ॐ येन श्रियमकृणुतां येनावमृशता ᳪ सुराम् । येनाक्ष्यावभ्यषिञ्चतां यद्वां तदश्विना यशः ॥
  3. तृतीय कलश : जलग्रहण करे – ॐ ये अप्स्वन्तरग्नयः, मंत्र से कलश के पल्लव से जल ग्रहण करके अगले मंत्र से सिक्त करे : ॐ आपोहिष्ठामयोभुवस्तान ऽऊर्जेदधातन । महेरणाय चक्षसे ॥
  4. चतुर्थ कलश : जलग्रहण करे – ॐ ये अप्स्वन्तरग्नयः, मंत्र से कलश के पल्लव से जल ग्रहण करके अगले मंत्र से सिक्त करे : ॐ यो वः शिवतमो रसस्तस्य भाजयतेहनः । उशतीरिव मातरः ॥
  5. पंचम कलश : जलग्रहण करे – ॐ ये अप्स्वन्तरग्नयः…, मंत्र से कलश के पल्लव से जल ग्रहण करके अगले मंत्र से सिक्त करे : ॐ तस्मा ऽअरंगमामवो यस्यऽक्षयाय जिन्वथा । आपोजनयथा च नः ॥
  6. षष्ठ कलश : जलग्रहण करे – ॐ ये अप्स्वन्तरग्नयः…, मंत्र से कलश के पल्लव से जल ग्रहण करके त्रिभिस्तूष्णीमितरैः चुपचाप सिक्त करे।
  7. सप्तम कलश : जलग्रहण करे – ॐ ये अप्स्वन्तरग्नयः…, मंत्र से कलश के पल्लव से जल ग्रहण करके त्रिभिस्तूष्णीमितरैः चुपचाप सिक्त करे।
  8. अष्टम कलश : जलग्रहण करे – ॐ ये अप्स्वन्तरग्नयः…, मंत्र से कलश के पल्लव से जल ग्रहण करके अगले त्रिभिस्तूष्णीमितरैः चुपचाप सिक्त करे।

उदुत्तममिति मेखलामुन्मुच्य : तदुत्तर ब्रह्मचारी शिर भाग से मेखला को उतारे – ॐ उदुत्तमँव्वरुण पाशमस्मदवाधमं विमध्यम ᳪ श्रथाय । अथा व्वयमादित्य व्रते तवानागसो अदितये स्याम ॥

तत्पश्चात दण्ड और मृगचर्म अथवा मृगचर्म जिस प्रकार भी धारण किया गया हो; उसे चुपचाप उतारे, भूमि पर रखे। कौपीन परिवर्तन करे, अर्थात जिस कौपीन को पहन रखा हो उसका त्याग करके दूसरा कौपीन धारण करे। फिर द्वितीय वस्त्र धारण करके दो बार आचमन करे।

फिर सूर्य को प्रणाम करे और अगला मंत्र पढ़े : ॐ उद्यन्भ्राजभृष्णुरिन्द्रो मरुद्भिरस्थात्प्रातर्यावभिरस्थाद् दशसनिरसि दशसनिं मा कुर्वाविदन् मा गमय । उद्यन्भ्राजभृष्णुरिन्द्रो मरुद्भिरस्थाद्दिवा यावभिरस्थाच्छतसनिरसि शतसनिं मा कुर्वाविदन् मा गमय । उद्यन्भ्राजभृष्णुरिन्द्रो मरुद्भिरस्थात्सायंयावभिरस्थात् सहस्रसनिरसि सहस्रसनिं मा कुर्वाविदन् मा गमय ॥

दधितिलान्वा प्राश्य जटालोमनखानि संहृत्यौदुम्बरेण दन्तान्धावेत – तदुत्तर दधि-तिल प्राशन (भक्षण) करे, फिर आचमन करके केश, लोम और नख कटा ले। तदुपरांत औदुम्बर (गूलर) का द्वादशाङ्गुल दातुन लेकर अगला मंत्र पढ़े : ॐ अन्नाद्याय व्यूहध्व ᳪ सोमो राजाऽयमागमत् । स मे मुखं प्रमार्क्ष्यते यशसा च भगेन च ॥

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