उत्साद्य पुनः स्नात्वाऽनुलेपनं नासिकयोर्मुखस्य चोपगृह्णीते : फिर दातुन करके गण्डूष (कुल्ला) कर ले। फिर तेल, उबटन आदि लगाकर स्नान करे। एक दिन में घर में उपनयन के साथ ही समावर्तन किया जाता है तो इसी काल में नवीन (अहत) वस्त्र भी धारण कराये यद्यपि वस्त्र धारण करने का मंत्र आगे बताया गया है अतः उक्त काल में वस्त्र स्पर्श करके मंत्र को पढ़ ले । वस्त्र धारण करके मंडप में पुनः बैठकर दो बार आचमन करे। फिर कुंकुमादि सुगन्धित (उपर्युक्त) द्रव्य मुख, नाक, आंख, कान में लगाये : ॐ प्राणापानौ मे तर्पय ॥ ॐ चक्षुर्मे तर्पय ॥ ॐ श्रोत्रं मे तर्पय ॥
तदुत्तर दक्षिणाभिमुख, अपसव्य, पातितवामजानु होकर भूमि पर एक त्रिकुशा रखे और उसी पितृतीर्थ से तर्पण करे : ॐ पितरः शुन्धध्वं ॥
पुनः पूर्वाभिमुख सव्य होकर आचमन कर ले। पुनः गुलाबजल, इत्रादि सुगन्धितद्रव्य लगाये : ॐ सुचक्षा अहमक्षीभ्यां भूयास ᳪ सुवर्चा मुखेन । सुश्रुत्कर्णाभ्यां भूयासम् ॥
वस्त्र (धोती) धारण : पहले धारण किया हो तो स्पर्शमात्र करके अगला मंत्र पढ़े : ॐ परिधास्यै यशोधास्यै दीर्घायुत्वाय जरदष्टिरस्मि । शतं च जीवामि शरदः पुरूचीरायस्पोषमभिसंव्ययिष्ये ॥
यज्ञोपवीत धारण : तदुत्तर धारित यज्ञोपवीत का त्याग करते हुये नये यज्ञोपवीत (जोड़ा) को धारण करे, (यहां अन्य कई वृद्ध-प्रतिष्ठित जन व्यावहारिक रूप से यज्ञोपवीत पहनाते हैं) अर्थात अन्य ब्राह्मण जन यज्ञोपवीत पहनाये तो भी ब्रह्मचारी स्वयं यज्ञोपवीत को पकड़े रहे : ॐ यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात्। आयुष्यमग्र्यं प्रतिमुञ्च शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः ॥
अथोत्तरीयम् – फिर द्वितीय वस्त्र धारण करे : ॐ यशसा मा द्यावापृथिवी यशसेन्द्राबृहस्पती । यशो भगश्च माऽविन्दद्यशो मा प्रतिपद्यताम् ॥ फिर दो बार आचमन कर ले।
सुमनसः प्रतिगृह्णाति – फिर अगले मंत्र से पुष्पमाला को ग्रहण करे : ॐ या आहरज्जमदग्निः श्रद्धायै मेधायै कामायेन्द्रियाय । ता अहं प्रतिगृह्णामि यशसा च भगेन च ॥
अथावबध्नीते : अगले मंत्र को पढते हुये पुष्पमाला पहने : ॐ यद्यशोऽप्सरसामिन्द्रश्चकार विपुलं पृथु । तेन सङ्ग्रथिताः सुमनस आबध्नामि यशोमयि ॥
उष्णीषेण शिरो वेष्टयते युवा सुवासा इति : तदुत्तर अगले मंत्र से स्वकुलानुसार पाग (पगड़ी-अठमी फेंटा) धारण करे : ॐ युवा सुवासाः परिवीत आगात् स उ श्रेयान् भवति जायमानः। तं धीरासः कवयः उन्नयन्ति स्वाध्यो मनसा देवयन्तः॥
कर्णवेष्टकौ – अगले मंत्र से कुण्डल व अन्य अलंकरण (स्वर्णाभूषण) धारण करे, प्रायः कुटुंब जन भी स्वर्णाभूषण पहनाते हैं अतः सब पहना दें और तत्पश्चात आभूषणों का स्पर्श करके अगला मंत्र पढ़े : ॐ अलङ्करणमसि भूयोऽलङ्करणं भूयात् ॥
वृत्रस्येत्यङ्क्तेऽक्षिणी – अगले मंत्र से नेत्रों में अञ्जन लगाये, प्रायः विधकरी आदि द्वारा काजल लगाया जाता है – ॐ वृत्रस्यासि कनीनिकाश्चक्षुर्द्दा असि चक्षुर्मे देहि॥
रोचिष्णुरसीत्यात्मानमादर्शे प्रेक्षते – दर्पण में मुख देखे और पढ़े : ॐ रोचिष्णुरसि॥
छत्रं प्रतिगृह्णाति – फिर अगले मंत्र से छत्र धारण धारण करे : ॐ बृहस्पतेश्छदिरसि पाप्मनो मा मन्तर्धेहि तेजसो यशसो माऽन्तर्धेहि ॥
प्रतिष्ठेस्थो विश्वतो मा पातमित्युपानहौ प्रतिमुञ्चते : फिर अगले मंत्र से खड़ाऊं धारण करे : ॐ प्रतिष्ठेस्थो विश्वतो मा पातम् ॥
विश्वाभ्यो मा नाष्ट्राभ्यस्परिपाहि सर्वत इति वैणवं दण्डमादत्ते : अगले मंत्र को पढ़कर दण्ड (बांस का दण्ड) धारण करे : ॐ विश्वाभ्यो मा नाष्ट्राभ्यस्परिपाहि सर्वतः ॥
आचार्य दक्षिणा : तदुत्तर आचार्य को दक्षिणा प्रदान करे, गो अथवा गोमूल्य। पिता-पितामहादि आचार्य के अतिरिक्त हों तो। पितादि के आचार्य होने पर धन का स्वामित्व भी पिता का ही होने से आचार्य दक्षिणा सिद्धि नहीं होती।
प्रतीकात्मक समावर्तन : समावर्तन हेतु प्रतीकात्मक रूप से भी कुछ विशेष वचन पूर्वक अध्ययन हेतु जाना और आना (वेदारम्भ और समावर्तन) दोनों किया जाता है। देशाचार से प्राप्त वचनों द्वारा प्रतीकात्मक समावर्तन संपन्न करें।
- पूर्णाहुति मंत्र : आचार्य खड़ा होकर थोड़ा झुकते हुये पूर्णाहुति करे, बटुक दाहिने हाथ से आचार्य के दाहिने हाथ को पकड़े रहे या स्पर्श करे : ॐ मूर्द्धानन्दिवो ऽअरतिम्पृथिव्या वैश्वानरमृत ऽआजातमग्निम् ॥ कवि ᳪ सम्म्राजमतिथिं जनानामासन्ना पात्रञ्जनयन्त देवाः स्वाहा ॥
- भस्म धारण : स्रुव के पृष्ठभाग में ईशान कोण से भस्म ग्रहण कर पवित्री द्वारा प्रणीतोदक से सिक्त करके क्रमशः ललाट, कण्ठ, दक्षिणबाहु और हृदय पर लगाए – ॐ त्र्यायुषम्जमदग्नेः (ललाट पर) । ॐ कश्यपस्य त्र्यायुषं (कंठ में) । ॐ यद्देवेषु त्र्यायुषं (दक्षिण बाहु पर) । ॐ तन्नोऽअस्तु त्र्यायुषं (हृदय में) । पुनः बटुक को भी भस्म लगाये : ॐ त्र्यायुषम्जमदग्नेः (ललाट पर) । ॐ कश्यपस्य त्र्यायुषं (कंठ में) । ॐ यद्देवेषु त्र्यायुषं (दक्षिण बाहु पर) । ॐ तत्तेऽअस्तु त्र्यायुषं (हृदय में) ।
दूर्वाक्षत मंत्र
ॐ आब्रह्मन ब्राह्मणो ब्रह्मवर्चसी जायतामाराष्ट्रे राजन्यः शूर इषव्यौऽतिव्याधि महारथो जायताम दोघ्री धेनुर्वोढा नड्वानाशुः सप्ति पुरन्ध्रिर्योषा जिष्णू रथेष्ठाः सभेयो युवाऽस्य यजमानस्य वीरोजायाताम। निकामे निकामे नः पर्जन्यो वर्षतु फलवत्यो न औषधयः पच्यन्ताम योगक्षेमोनः कल्पताम् ॥ मंत्रार्था: सिद्धयः सन्तु पूर्णाः सन्तु मनोरथाः। शत्रुणां बुद्धिनाशोऽस्तु मित्राणामुदयस्तव ॥
॥ इति पं० दिगम्बर झा सुसम्पादितं “करुणामयीटीकाऽलंकृतं” वाजसनेयिनां समावर्तनविधिः ॥
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कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।