तत्पश्चात मृत्तिकादि पंक्ति वाले कलशों (वेदी से प्रथम पंक्ति) और शुद्धोदक कलशों (वेदी से द्वितीय पंक्ति) से क्रमशः स्नान कराये और प्रत्येक स्नान के बाद शुद्धोदक कलश से भी स्नान कराये।
- मृत्तिका कलश (प्रथम पंक्ति प्रथम कलश अष्टपल मृत्तिका) : ॐ अग्निर्मूर्धा दिवः ककुत्पतिः पृथिव्या अयम् । अपाᳪ रेताᳪ सि जिन्वति ॥
- शुद्धोदक कलश (द्वितीय पंक्ति) : ॐ वरुणस्योत्तम्भनमसि वरुणस्य स्कम्भसर्जनी स्त्थो वरुण्स्य ऽऋतसदन्न्यसि वरुणस्य ऽऋतसदनमसि वरुणस्यऽऋत सदनमासीद् ॥
- गोमय कलश (प्रथम पंक्ति द्वितीय कलश सप्त पल गोमय) – ॐ गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम्। ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम्॥
- शुद्धोदक कलश (द्वितीय पंक्ति) – ॐ देवीरापो ऽअपान्नपाद्योव ऽऊर्मिर्हविष्य ऽइन्द्रियावान्मदिन्तम: । तं देवेभ्यो देवत्रा दत्तशुक्रपेभ्यो येषां भागस्थ स्वाहा ॥
- गोमूत्र कलश (प्रथम पंक्ति तृतीय कलश द्वादशपल गोमूत्र) : ॐ तत्त्सवितुर्व ….
- शुद्धोदक कलश (द्वितीय पंक्ति) – ॐ आपो हि ष्ठा मयोभुवस्ता न ऽऊर्जे दधातन । महे रणाय चक्षसे ॥
- भस्म कलश (प्रथम पंक्ति चतुर्थ कलश मुष्टिपरिमित भस्म) – ॐ प्रसद्य भस्मना योनिमपश्च पृथिवीमग्ने । स सृज्य मातृभिष्टवं ज्योतिष्मान् पुनरासद: ॥
- शुद्धोदक कलश (द्वितीय पंक्ति) – ॐ शं नो देवीरभिष्ट्य आपो भवन्तु पीतये । शं योरभि स्रवन्तु नः ॥
- पञ्चगव्य कलश (प्रथम पंक्ति पञ्चगव्य कलश तीन पल पञ्चगव्य) – ॐ पयः पृथिव्यां पय ऽओषधीषु पयो दिव्यऽन्तरिक्षे पयोधाः। पयस्वतीः प्रदिशः सन्तु मह्यम् ॥
- शुद्धोदक कलश (द्वितीय पंक्ति) – ॐ यो वः शिवतमो रसस्तस्य भाजयतेह नः । उशतीरिव मातरः ॥
- क्षीर कलश (प्रथम पंक्ति षष्ठ कलश षोडश पल क्षीर) – ॐ आप्यायस्वसमेतुतेविश्वत: सोमवृष्ण्यम् । भवावाजस्य सङ्गथे ॥
- शुद्धोदक कलश (द्वितीय पंक्ति) – ॐ तस्मा ऽअरङ्गमाम वो यस्य क्षयाय जिन्वथ । आपो जनयथा च नः ॥
- दधि कलश (प्रथम पंक्ति सप्तम कलश बीस पल दधि) – ॐ दधिक्राव्णो ऽअकारिषं जिष्णोरश्वस्य वाजिनः। सुरभि नो मुखा करत्प्रण ऽआयू ᳪ षि तारिषत् ॥
- शुद्धोदक कलश (द्वितीय पंक्ति) – ॐ युञ्जान: प्रथमम्मनस्तत्वाय सविता धिय: । अग्नेर्ज्योतिर्निचाय्य पृथिव्याऽअध्याभरतः ॥
- घृत कलश (प्रथम पंक्ति अष्टम कलश सप्त पल घृत) – ॐ घृतवती भुवनानामभिश्रियोर्वी पृथ्वी मधु दुधे सुपेशसा । द्यावापृथिवी वरुणस्य धर्मणा विष्कभितेऽअजरे भूरिरेतसा ॥
- शुद्धोदक कलश (द्वितीय पंक्ति) – ॐ देवस्य त्वा सवितुः प्रसवेऽश्विनोर्बाहुभ्यां पूष्णो हस्ताभ्याम् ॥
- मधु कलश (प्रथम पंक्ति नवम कलश तीन पल मधु) – ॐ मधुव्वाता ऽऋतायते मधुक्षरन्ति सिंधवः। माधवीर्नः सन्त्वौषधिः॥ मधु नक्तमुतोषसो मधुमत्पार्थिव ᳪ रजः। मधुद्यौरस्तु न पिता॥ मधुमान्नो वनस्पतिर्मधुमाँ ऽअस्तु सूर्यः । माध्वीर्गावो भवन्तु नः ॥
- शुद्धोदक कलश (द्वितीय पंक्ति) – ॐ आपो ऽअस्मान्मातर: शुन्धयन्तु घृतेन नो घृतप्व: पुनन्तु । विश्व ᳪ हि रिप्रं प्रवहन्ति देवीरुदिदाभ्य: शुचिरा पूतऽएमि ॥
- शर्करा कलश (प्रथम पंक्ति दशम कलश तीन पल शर्करा) – ॐ आयङ्गौ: पृश्निरक्रमीदसदम्मातरम्पुर: । पितरञ्च प्रयंत्स्व: ॥
- शुद्धोदक कलश (द्वितीय पंक्ति) – आपोहयद्बृहतीर्विश्वमायन् गर्भं दधाना जनयन्तीरग्निम् । ततो देवाना ᳪ समवर्ततासुरेक: कस्मैदेवायहविषा विधेम ॥
प्रतिमा का वस्त्र से संमार्जन करे : ॐ यज्ञा यज्ञा वो ऽअग्नये गिरा गिरा च दक्षसे । प्रप्रवयममृतञ्जातवेदस ᳪ प्रियं मित्रं न श सिषम् ॥
- सुगन्धित तैल से लगाये : ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् | उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् ॥
- यवशालि गोधूम मसूर बिल्वचूर्ण से उद्वर्तन : ॐ द्रुपदादिव मुमुचान: स्विन्न: स्नातो मलादिव । पूतं पवित्रेणेवाज्यमाप: शुन्धन्तु मैनस: ॥
- आमलकचूर्ण : ॐ या ते रुद्र शिवा तनूरघोराऽपापकाशिनी । तया नस्तन्वा शन्तमया गिरिशन्ताभि चाकशीहि ॥
- यक्ष्मकर्दम (दो भाग कस्तूरी, दो भाग कुंकुम (केशर), तीन भाग चंदन, एक भाग कपूर का मिश्रण) का लेप करे : ॐ कर्दमेन प्रजाभूता मयि सम्भव कर्दम । श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम् ॥
- जटामसि चूर्ण का लेप करे : ॐ या ओषधी पूर्वा जाता देवेभ्यस्त्रियुगं पुरा। मनेन बभ्रूणा मह ᳪ शतं धामानि सप्त च ॥
फिर वेदी से तृतीय पंक्ति के दो शुद्धोदक कलशों से स्नान कराये :
- प्रथम कलश : ॐ मानस्तोके तनयेमानऽआयुषिमानो गोषुमानोऽअश्वेषुरीरिष: । मानो विरान्रुद्रभामिनो वधीर्हष्मन्तः सदमित्वा हवामहे ॥
- द्वितीय कलश : ॐ प्रतद्विष्णुस्तवते वीर्येण मृगो न भीम: कुचरो गिरिष्ठा: । यस्यो रुषु त्रिषु विक्रमणेष्वधि क्षियन्ति भुवनानि विश्वा ॥
पुनः वेदी से तृतीय पंक्ति स्थित पञ्चामृत व 5 शुद्धोदक कलशों से स्नान कराये :
- पञ्चामृत कलश : ॐ आप्यायस्वसमेतुतेविश्वत: सोमवृष्ण्यम् । भवावाजस्य सङ्गथे ॥
- प्रथम शुद्धोदक कलश : ॐ तदयं राजा वरुणोऽनुमन्यतां यथेयं स्त्री पौत्रमधं न रोदात् ॥
- द्वितीय शुद्धोदक कलश : ॐ सन्ते पया ᳪ सि समु यन्तु वाज: सं वृष्ण्यान्यभिमाति षाह: । आप्यायमानो अमृतायसोम दिवि श्रवा ᳪ स्युत्तमानि धिष्व ॥
- तृतीय शुद्धोदक कलश : ॐ आप्यायस्व मदिन्तम सोम विश्वेभिर ᳪ शुभि: । भवा नः सप्रथस्तम: सखा वृधे ॥
- चतुर्थ शुद्धोदक कलश : ॐ अप्स्वग्ने सधिष्टवसौषधीरनुरुद्धयसे । गर्भे सञ्जायसे पुन: ॥
- पंचम शुद्धोदक कलश : ॐ अपा ᳪ रसमुद्वयस ᳪ सूर्ये सन्त ᳪ समाहितम् । अपा ᳪ रसस्य यो रसस्तं वो गृह्याम्युत्तममुपयामगृहीतोसीन्द्राय त्वा जुष्टं गृह्णाम्येष ते योनिरिन्द्राय त्वा जुष्टतमम् ॥
फिर तृतीय पंक्ति के ही शेष तीन कलश (गंधोदक, पञ्चपल्लव कषाय और सर्वौषधी) से स्नान कराये :
- गंधोदक कलश से स्नान कराये : ॐ गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम्। ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम्॥
- पञ्चपल्लव कषाय कलश से स्नान कराये : ॐ यज्ञा यज्ञा वो ऽअग्नये गिरा गिरा च दक्षसे । प्रप्रवयममृतञ्जातवेदस ᳪ प्रियं मित्रं न श सिषम् ॥
- सर्वौषधी कलश से स्नान कराये : ॐ या ओषधी पूर्वा जाता देवेभ्यस्त्रियुगं पुरा। मनेन बभ्रूणा मह ᳪ शतं धामानि सप्त च ॥
फिर चतुर्थ पंक्ति के पुष्पादिक दश कलशों से स्नान करे :