
ब्रह्मसूक्तं – brahm suktam
ॐ तेजोऽसि शुक्रममृतमायुष्पाऽआयुर्मेपाहि । देवस्य त्वा सवितुः प्रसवेऽश्विनोर्बाहुभ्याम्पूष्णोहस्ताभ्यामाददे ॥१॥ इमामगृभ्णन्रशनामृतस्य पूर्व ऽआयुषिव्विदथेषुकव्या । सा नो ऽअस्मिन्सुत ऽआ बभूवऽऋतस्य सामन्त्सरमारपन्ती ॥२॥
ॐ तेजोऽसि शुक्रममृतमायुष्पाऽआयुर्मेपाहि । देवस्य त्वा सवितुः प्रसवेऽश्विनोर्बाहुभ्याम्पूष्णोहस्ताभ्यामाददे ॥१॥ इमामगृभ्णन्रशनामृतस्य पूर्व ऽआयुषिव्विदथेषुकव्या । सा नो ऽअस्मिन्सुत ऽआ बभूवऽऋतस्य सामन्त्सरमारपन्ती ॥२॥
नारायण सूक्त में ब्रह्मज्ञान विषयक गूढ़ार्थ सन्निहित है।
इसे पुरुष सूक्त का परभाग भी कहा जा सकता है।
यह ब्रह्म ज्ञान के महत्व को भी बताता है।
देवता ब्रह्मज्ञानियों के वश में होते हैं इसमें ऐसा भी बताया गया है।
इसमें परमात्मा के विषय में यह बताया गया है की वह सर्वव्यापी तो है ही अर्थात उसे बाहर भी देखा जा सकता है किन्तु वह सबके भीतर भी है और उसे भीतर भी पाया या जाना जा सकता है।
इसमें यह भी बताया गया है कि परमात्मा को जाने बिना कल्याण अर्थात मोक्ष का कोई अन्य उपाय नहीं है।
प्रायः ऐसा देखा जाता है कि सामवेदीय सूक्तों के पाठ क्रम में शुक्ल यजुर्वेदी मात्र ᳪ (ग्गूं) का उच्चारण अनुस्वार कर देते हैं। परन्तु बात इतनी नहीं है; सामवेदीय सूक्तों में अन्य परिवर्तन भी होते हैं जो यहाँ दिये गये सामवेदीय पुरुष सूक्त से स्पष्ट हो जाता है।
जिस तरह से विभिन्न देवताओं के सूक्त होते हैं उसी तरह पितरों के लिये भी विभिन्न वेदों में सूक्त हैं जिसे पितृसूक्त कहा जाता है। जिसमें से अन्य सभी सूक्तों की तरह ही शुक्ल यजुर्वेदोक्त पितृसूक्त ही मुख्य रूप से प्रयुक्त होता है।
सरल रुद्राष्टाध्यायी – रुद्री पाठ संस्कृत : यहां संपूर्ण रुद्राष्टाध्यायी सरल करके प्रस्तुत किया गया है। लेकिन प्रायः ऐसा देखा गया है कि सरल करने के क्रम में विसंगतियां या असंगतियां उत्पन्न हो जाती है। यहां सरल पाठ के साथ-साथ त्रुटियों को दूर करके सर्वाधिक शुद्ध पाठ देने का प्रयास किया गया है, जिस कारण रुद्राभिषेक में यह विशेष उपयोगी हो जाता है।
इसके साथ ही एक और महत्वपूर्ण समस्या को दूर करने का भी प्रयास किया गया है। प्रायः मंत्रों के बीच में भी विज्ञापन आते हैं यहां इसका भी निवारण किया गया है।
इस लेख में हम सर्प सूक्त के बारे में जानेंगे साथ ही शुद्ध सर्पसूक्त भी देखेंगे। सर्पों के लिये जो स्तुति हो उसे सर्प सूक्त कहते हैं। सर्प सूक्त पाठ करने के कई लाभ भी होते हैं।
ऋग्वेद के पांचवें मंडल के अंत में माता लक्ष्मी का श्री सूक्त के १६ मंत्रों से होम किया जाता है। यहाँ सस्वर और स्वररहित दोनों प्रकार से श्री सूक्त दिया गया है। इससे धन, संपत्ति, ऐश्वर्य की वृद्धि होती है और दुःख-दरिद्रता का नाश होता है।
यह आलेख शुक्ल यजुर्वेद के रुद्रसूक्त का महत्वपूर्ण वर्णन करता है। यह पूजा और हवन के लिए उपयुक्त है और दुःख, पाप, ताप का नाश करता है। इसमें रुद्र की स्तुति की गई है और इससे विशेष लाभ होता है। “शुक्ल यजुर्वेद अध्याय १६” के पीडीऍफ़ डाउनलोड के लिए भी लिंक दिया गया है।
-मित्र भगवान सूर्य का नाम है, और भगवान सूर्य के सूक्त का नाम ही मैत्रसूक्त है।
-भगवान सूर्य की स्तुतियों वाली वैदिक ऋचाओं का समूह मैत्र सूक्त कहलाता है।
-रुद्राष्टाध्यायी का चतुर्थ अध्याय ही मैत्र सूक्त है।
-मैत्रसूक्त भी विशेष महत्वपूर्ण सूक्त है और इसलिए इसे भी रुद्राष्टाध्यायी में संग्रहित किया गया है।
यजुर्वेद के सत्रहवें अध्याय में ऋचा ३३ से लेकर ४९ तक जो १७ ऋचायें हैं वो इंद्र की विशेष स्तुति है।
इंद्र की स्तुति वाली इस ऋचा का नाम अप्रतिरथ सूक्त है।
अर्थात वेद में मिलने वाला इंद्र स्तोत्र अप्रतिरथ सूक्त ही है।
रुद्राष्टाध्यायी में तीसरा अध्याय अप्रतिरथ सूक्त ही है।