उपनयन संस्कार विधि – वाजसनेयी

उपनयन संस्कार विधि – वाजसनेयी

दण्ड विकल्प : तीनों वर्णों के लिये पलाश दण्ड हेतु पलाश की अनुपलब्धता में विकल्प –

  1. ब्राह्मण हेतु : बेल “पलाशं बैल्वं वा ब्राह्मणस्य”
  2. क्षत्रिय हेतु : वट या रोहेड़ा “नैयग्रोधं स्कन्धजमवाङग्रं रौहीतकं वा राजन्यस्य”
  3. वैश्य हेतु : बेर या गूलर “बादरमौदुम्बरं वा वैश्यस्य”
  4. गोभिल गृह्यसूत्र में ये विकल्प बताया गया है – “पार्णवैल्वाश्वत्था दण्डाः”

अंजलि पूरन

  1. ॐ आपोहिष्ठामयोभुवस्तान ऽऊर्जेदधातन । महेरणाय चक्षसे ॥१॥
  2. ॐ यो वः शिवतमो रसस्तस्य भाजयतेहनः । उशतीरिव मातरः ॥२॥
  3. ॐ तस्मा ऽअरंगमामवो यस्यऽक्षयाय जिन्वथा । आपोजनयथा च नः ॥३॥

सूर्य दर्शन

अथैनं सूर्यमुदीक्षयति तच्चक्षुरिति : तदुत्तर आचार्य बरुआ को कहें – “ॐ सूर्यमुदीक्षस्व”

सूर्य दर्शन (बरुआ सूर्यदर्शन करके पढ़े) : ॐ तच्चक्षुर्द्देवहितं पुरस्ता च्छुक्रमुच्चरत्। पश्येम शरदः शतं जीवेम शरदः शत ᳪ शृणुयाम शरदः शत प्रब्रवाम शरदः शतमदीनाः स्याम शरदः शतं भूयश्च शरदः शतात् ॥

हृदयालम्भन

अथास्य दक्षिणां समधि हृदयमालभते : तत्पश्चात आचार्य बरुआ के पीछे से कंधे पर हाथ घुमाकर बरुआ के हृदय का स्पर्श करके अगला मंत्र पढ़ें : ॐ मम व्रते ते हृदयं दधामि । मम चित्तमनुचित्तं ते अस्तु। मम वाचमेकमना जुषस्व बृहस्पतिष्ट्वा नियुनक्तु मह्यम् ॥

शिष्यत्व धारण

  • तत्पश्चात आचार्य बरुआ का पकड़कर पूछे : ॐ को नामाऽसि ॥
  • बरुआ उत्तर दे : श्री अमुक (अपना नाम) शर्माऽहं भोः ॥
  • आचार्य पुनः पूछें : ॐ कस्य ब्रह्मचार्यसि ॥
  • बरुआ उत्तर दे : भवतः ॥
  • तदुत्तर आचार्य पुनः कहें : ॐ इन्द्रस्य ब्रह्मचार्यस्यग्निराचार्यस्तवाऽहमाचार्यस्तव श्री अमुक (बरुआ का नाम) शर्मन् ॥

उपस्थान

तत्पश्चात बरुआ को खड़ा करें और करबद्ध कराकर चारों दिशाओं में घुमाते हुये उपस्थान (स्तुति) करायें (मंत्र आचार्य ही पढ़ें) :

  1. पूर्व : ॐ प्रजापतये त्वा परिददामि ॥
  2. दक्षिण : ॐ देवाय त्वा सवित्रे परिददामि ॥
  3. पश्चिम : ॐ अद्भ्यस्त्वौषधीभ्यः परिददामि ॥
  4. उत्तर : ॐ द्यावापृथिवीभ्यां त्वा परिददामि ॥
  5. नीचे : ॐ विश्वेभ्यस्त्वा देवेभ्यः परिददामि ॥
  6. ऊपर : ॐ सर्वेभ्यस्त्वा भूतेभ्यः परिददाम्यरिष्ट्यै ॥

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