दण्ड धारण
तत्पश्चात पूर्व निर्मित दण्ड जो पलाश अथवा अभाव में बेल का हो; केशसंमितो ब्राह्मणस्य ललाटसंमितः क्षत्रियस्य घ्राणसंमितो वैश्यस्य सर्वे वा सर्वेषाम् – ब्राह्मण के लिये केश पर्यन्त, क्षत्रिय के लिये ललाट पर्यन्त और वैश्य के लिये नासिकापर्यन्त माप का हो, यह माप बरुआ के शरीर से ही लिया जाय। दण्डधारण मंत्र : ॐ यो मे दण्डः परापतद्वैहायसोऽधिभूम्यां। तमहं पुनरादद आयुषे ब्रह्मणे ब्रह्मवर्चसाय ॥ दण्डधारण मंत्र बरुआ पढ़े। पालाशो ब्राह्मणस्य दण्डः – ब्राह्मण हेतु पलाश दण्ड, बैल्वो राजन्यस्य – क्षत्रिय हेतु बिल्व दण्ड और औदुम्बरो वैश्यस्य – वैश्य हेतु गूलर दण्ड।
दण्ड विकल्प : तीनों वर्णों के लिये पलाश दण्ड हेतु पलाश की अनुपलब्धता में विकल्प –
- ब्राह्मण हेतु : बेल “पलाशं बैल्वं वा ब्राह्मणस्य”
- क्षत्रिय हेतु : वट या रोहेड़ा “नैयग्रोधं स्कन्धजमवाङग्रं रौहीतकं वा राजन्यस्य”
- वैश्य हेतु : बेर या गूलर “बादरमौदुम्बरं वा वैश्यस्य”
- गोभिल गृह्यसूत्र में ये विकल्प बताया गया है – “पार्णवैल्वाश्वत्था दण्डाः”
अंजलि पूरन
अथास्याद्भिरञ्चलिनाऽञ्जलिं पूरयति आपोहिष्ठेति तिसृभिः : तत्पश्चात बरुआ हाथों से अञ्जलि बांधे (यहां अंजलि का तात्पर्य प्रणाम करना नहीं है, जल ग्रहण करने हेतु है) आचार्य अपने अंजलि में जल भर ले और अगले मंत्रों को पढ़ते हुये बरुआ के अंजलि को जल से भरे :
- ॐ आपोहिष्ठामयोभुवस्तान ऽऊर्जेदधातन । महेरणाय चक्षसे ॥१॥
- ॐ यो वः शिवतमो रसस्तस्य भाजयतेहनः । उशतीरिव मातरः ॥२॥
- ॐ तस्मा ऽअरंगमामवो यस्यऽक्षयाय जिन्वथा । आपोजनयथा च नः ॥३॥
सूर्य दर्शन
अथैनं सूर्यमुदीक्षयति तच्चक्षुरिति : तदुत्तर आचार्य बरुआ को कहें – “ॐ सूर्यमुदीक्षस्व”
सूर्य दर्शन (बरुआ सूर्यदर्शन करके पढ़े) : ॐ तच्चक्षुर्द्देवहितं पुरस्ता च्छुक्रमुच्चरत्। पश्येम शरदः शतं जीवेम शरदः शत ᳪ शृणुयाम शरदः शत प्रब्रवाम शरदः शतमदीनाः स्याम शरदः शतं भूयश्च शरदः शतात् ॥
हृदयालम्भन
अथास्य दक्षिणां समधि हृदयमालभते : तत्पश्चात आचार्य बरुआ के पीछे से कंधे पर हाथ घुमाकर बरुआ के हृदय का स्पर्श करके अगला मंत्र पढ़ें : ॐ मम व्रते ते हृदयं दधामि । मम चित्तमनुचित्तं ते अस्तु। मम वाचमेकमना जुषस्व बृहस्पतिष्ट्वा नियुनक्तु मह्यम् ॥
शिष्यत्व धारण
- तत्पश्चात आचार्य बरुआ का पकड़कर पूछे : ॐ को नामाऽसि ॥
- बरुआ उत्तर दे : श्री अमुक (अपना नाम) शर्माऽहं भोः ॥
- आचार्य पुनः पूछें : ॐ कस्य ब्रह्मचार्यसि ॥
- बरुआ उत्तर दे : भवतः ॥
- तदुत्तर आचार्य पुनः कहें : ॐ इन्द्रस्य ब्रह्मचार्यस्यग्निराचार्यस्तवाऽहमाचार्यस्तव श्री अमुक (बरुआ का नाम) शर्मन् ॥
उपस्थान
तत्पश्चात बरुआ को खड़ा करें और करबद्ध कराकर चारों दिशाओं में घुमाते हुये उपस्थान (स्तुति) करायें (मंत्र आचार्य ही पढ़ें) :
- पूर्व : ॐ प्रजापतये त्वा परिददामि ॥
- दक्षिण : ॐ देवाय त्वा सवित्रे परिददामि ॥
- पश्चिम : ॐ अद्भ्यस्त्वौषधीभ्यः परिददामि ॥
- उत्तर : ॐ द्यावापृथिवीभ्यां त्वा परिददामि ॥
- नीचे : ॐ विश्वेभ्यस्त्वा देवेभ्यः परिददामि ॥
- ऊपर : ॐ सर्वेभ्यस्त्वा भूतेभ्यः परिददाम्यरिष्ट्यै ॥