अनुशासन
अन्वारब्ध आज्याहुतीर्हुत्वा प्राशनान्तेऽथैनं संशास्ति ब्रह्मचार्यस्यपोशान कर्म कुरु मा दिवा सुषुप्था वाचं यच्छ समिधमाधेह्यपोशानेति : तदुत्तर आचार्य बरुआ अनुशासित करें अर्थात अनुशासन सिखायें –
- आचार्य कहें : “ॐ ब्रह्मचार्यसि” प्रत्युत्तर में बरुआ कहे : “ॐ असानि”
- आचार्य कहें : “ॐ अपोऽशान” प्रत्युत्तर में बरुआ कहे : “ॐ अश्नानि”
- आचार्य कहें : “ॐ मा दिवा सुषुप्थाः” प्रत्युत्तर में बरुआ कहे : “ॐ न स्वपानि”
- आचार्य कहें : “ॐ वाचं यच्छ” प्रत्युत्तर में बरुआ कहे : “ॐ यच्छानि”
- आचार्य कहें : “ॐ समिधमाधेहि” प्रत्युत्तर में बरुआ कहे : “ॐ आदधानि”
- आचार्य कहें : “ॐ अपोऽशान” प्रत्युत्तर में बरुआ कहे : “ॐ अश्नानि”
मंत्र दीक्षा
अथाऽस्मै सावित्रीममन्वाहोत्तरतोऽग्नेः प्रत्यङ्मुखायोपविष्टायोपसन्नाय समीक्षमाणाय समीक्षिताय : तदुत्तर बरुआ अग्नि के उत्तर भाग में अथवा यथास्थान पश्चिमाभिमुख होकर बैठ जाये, दोनों हाथों से प्रणाम करते हुये आचार्य के चरणों को पकड़कर आचार्य को एकाग्रचित्त देखे, फिर आचार्य सभी प्रकार के वाद्ययंत्रों, नृत्यादि की निवृत्ति करें अर्थात शांति सुनिश्चत करें जिससे बरुआ को मंत्रग्रहण करने में विघ्न न हो, फिर बरुआ को तीन बार तीन अलग-अलग प्रकार (पच्छोर्द्धर्चशः सर्वां च तृतीयेन सहानुवर्तयन्) से सावित्री उपदेश करें :
- प्रथम बार में तीनों पाद अलग-अलग करके यथा – “ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं”, “भर्गोदेवस्य धीमहि”, “धियो यो नः प्रचोदयात् (ॐ)“
- द्वितीय बार में दो पाद करके पढायें : “ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गोदेवस्य धीमहि“, “धियो यो नः प्रचोदयात् (ॐ)”
- तदुत्तर एक बार में पढायें (यदि बरुआ साथ-साथ पढ़े तो उत्तम) : “ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गोदेवस्य धीमहि।धियो यो नः प्रचोदयात् (ॐ)”
समिधा होम
अत्र समिदाधानम् : तदुत्तर बरुआ आचार्य के दाहिने पूर्वाभिमुख होकर अगले पांच मंत्रों से घृताक्त पांच समिधाओं की आहुति प्रदान करे :
- ॐ अग्ने सुश्रवः सुश्रवसं मा कुरु ॥
- ॐ यथा त्वमग्ने सुश्रवः सुश्रवा असि ॥
- ॐ एवं मा ᳪ सुश्रवः सौश्रवसं कुरु ॥
- ॐ यथा त्वमग्ने देवानां यज्ञस्य निधिपा असि ॥
- ॐ एवमहं मनुष्याणां वेदस्य निधिपो भूयासम् ॥
प्रदक्षिणमग्निं पर्युक्ष्योत्तिष्ठन्त्समिधमादधाति : फिर बरुआ दाहिने हाथ में जल लेकर प्रदक्षिण क्रम से अग्नि का पर्युक्षण करे, फिर खड़ा हो जाये, एक प्रादेशप्रमाण (बरुआ का प्रादेशप्रमाण) घृताक्त पलाश समिधा लेकर अगले मंत्र से अग्नि में दे : ॐ अग्नये समिधमहार्षं बृहते जातवेदसे । यथा त्वमग्ने समिधा समिध्यस एवमहमायुषा मेधया वर्च्चसा प्रजया पशुभिर्ब्रह्मवर्चसेन समिन्धे जीवपुत्रो ममाचार्यो मेधाव्यहमसान्यनिराकारिष्णुर्यशस्वी तेजस्वी ब्रह्मवर्चस्यन्नादो भूयास ᳪ स्वाहा ॥ पुनः इसी मंत्र से एक-एक समिधा और दे।