उपनयन संस्कार विधि – वाजसनेयी

उपनयन संस्कार विधि – वाजसनेयी

पुनः बरुआ बैठ जाये और पूर्ववत ही पांच घृताक्त समिधा अग्नि में दे :

  1. ॐ अग्ने सुश्रवः सुश्रवसं मा कुरु ॥
  2. ॐ यथा त्वमग्ने सुश्रवः सुश्रवा असि ॥
  3. ॐ एवं मा ᳪ सुश्रवः सौश्रवसं कुरु ॥
  4. ॐ यथा त्वमग्ने देवानां यज्ञस्य निधिपा असि ॥
  5. ॐ एवमहं मनुष्याणां वेदस्य निधिपो भूयासम् ॥

अग्नि प्रतपन

पाणी प्रतप्य मुख विमृष्टे : तत्पश्चात बरुआ पुनः अग्नि का पर्युक्षण करे। तत्पश्चात क्रमशः पहले चुपचाप अग्नि में दोनों हाथों को तप्त करे फिर मंत्र पढ़कर दोनों हाथों से मुख (मुखमण्डल) का स्पर्श करे अर्थात सेंके :

  1. ॐ तनूपा अग्नेऽसि तन्वं मे पाहि
  2. ॐ आयुर्दा अग्नेऽस्यायुर्मे देहि
  3. ॐ व्वर्चोदा अग्नेऽसि व्वर्चो मे देहि
  4. ॐ अग्ने यन्मे तन्वा ऊनं तन्म आपृण
  5. ॐ मेधां मे देवः सविता आदधातु
  6. ॐ मेधां मे देवी सरस्वती आदधातु
  7. ॐ मेधां मे अश्विनौ देवावाधत्तां पुष्करस्रजौ
उपनयन पद्धति
उपनयन पद्धति

अङ्गालंभन

  1. ॐ अङ्गानि च म आप्यायन्तां ॥ शिर से पैर तक सभी अङ्गों का स्पर्श करे।
  2. ॐ वाक् च म आप्यायतां ॥ मुख का स्पर्श करे।
  3. ॐ प्राणश्च म आप्यायतां ॥ नासापुटों का स्पर्श करे।
  4. ॐ चक्षुश्च म आप्यायतां ॥ दोनों नेत्रों का स्पर्श करे।
  5. ॐ श्रोत्रं च म आप्यायतां ॥ दोनों कर्णों का स्पर्श करे।
  6. ॐ यशोबलञ्च म आप्यायतां ॥ पाठ मात्र ।

भस्म धारण

त्र्यायुषमिति प्रतिमन्त्रम् : फिर दाहिने अनामिका से त्र्यायुषं मंत्रों को पढ़ते हुये क्रमशः आगे बताई गये अंगों में भस्म लगाये : ॐ त्र्यायुषम्जमदग्नेः (ललाट पर) । ॐ कश्यपस्य त्र्यायुषं (कंठ में) । ॐ यद्देवेषु त्र्यायुषं (दक्षिण बाहु पर) । ॐ तन्नोऽअस्तु त्र्यायुषं (हृदय में) ।

  1. वैश्वानर: ॐ अमुक गोत्रोऽहं अमुक प्रवरोऽहं अमुक शर्माऽहं भो वैश्वानर अभिवादये ॥
  2. वरुण : ॐ अमुक गोत्रोऽहं अमुक प्रवरोऽहं अमुक शर्माऽहं भो वरुण अभिवादये ॥
  3. आचार्य : ॐ अमुक गोत्रोऽहं अमुक प्रवरोऽहं अमुक शर्माऽहं भो आचार्य अभिवादये ॥

अभिवादन के बाद आचार्य आशीर्वाद प्रदान करें : ॐ आयुष्मान् भव सौम्य ॥

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