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क्या आप उपनयन संस्कार के इन महत्वपूर्ण तथ्यों को जानते हैं – upnayan sanskar

क्या आप उपनयन संस्कार के इन महत्वपूर्ण तथ्यों को जानते हैं – upnayan sanskar

कितने संस्कार और कितने बरुआ

पद्धतियों में एक साथ ही चार संस्कार दिये गये हैं, और धर्मजागारुक न होने के कारण भी एक साथ ही चारों संस्कार करते हुये देखे जाते हैं कई बार तो विवाह भी उसी दिन किये जाते हैं। साथ ही एक साथ कई भाइयों के भी उपनयन भी किये जाते हैं। इस सम्बन्ध में शास्त्र वचन को समझना भी अत्यावश्यक है।

एकोदर और भिन्नोदर का तात्पर्य : एकोदर का तात्पर्य है एक माता से जन्म लेने वाले बच्चे। भिन्नोदर से तात्पर्य है पिता तो एक हो किन्तु मातायें एक न हो। अर्थात सौतेला भाई भिन्नोदर कहलायेगा। चचेरा भाई भिन्नोदर संज्ञक नहीं होता क्योंकि वहां पिता एक नहीं है पिता भी भिन्न है। भिन्नोदर में यह भी आवश्यक है कि पिता एक ही हो, मातायें भिन्न हो। जैसे राम, भरत, लक्ष्मण-शत्रुघ्न परस्पर भिन्नोदर। किन्तु लक्ष्मण और शत्रुघ्न परस्पर भिन्नोदर नहीं।

किन्तु एकोदर का भी एक साथ करने के भी प्रमाण उपलब्ध हैं, वशिष्ठ जी का ही वचन है – द्विशोभनं त्वेकगृहेऽपि नेष्टं शुभं तु पश्चान्नवभिर्दिनैस्तु। आवश्यकं शोभनमुत्सवो वा द्वारेऽथवाऽचार्य विभेदतो वा ॥ एक घर (मण्डप) और एक दिन में दो कर्म इष्ट नहीं होता अर्थात अनिष्टकारक होता है, किन्तु नौ दिनों के पश्चात् शुभद होता है। आवश्यक हो तो द्वारभेद अथवा आचार्यभेद से करे। अर्थात इस वचन में उपरोक्त निषेध का विकल्प प्राप्त होता है कि मण्डप में द्वारभेद करके अथवा आचार्य भेद करके किया जा सकता है।

किन्तु दो का भी निषेध है, यदि आचार्य भेद करके कई उपनयन करना हो तो एक आचार्य एक ही बरुआ का करे दो बरुआ का भी एक आचार्य न करे। युगव्यवस्थानुसार अलग-अलग करना तो संभव ही प्रतीत नहीं होता (तथापि कुछ क्षेत्रों के ब्राह्मण अभी भी पालन करते हैं) एक साथ करे तो करे किन्तु ससमय अवश्य करे। आचार्यभेद का तात्पर्य तो स्पष्ट हो गया किन्तु द्वारभेद का तात्पर्य अभी स्पष्ट नहीं हुआ है। द्वारभेद पर कुछ और प्रकाश डालना आवश्यक है।

तथापि दो के एक बरुआ के दो अग्निकार्य अर्थात एक दिन में दो संस्कार के निषेध की सिद्धि नहीं होती क्योंकि उपनयन के साथ चूडाकरण करने की भी अनुमति प्राप्त होती है। नामकरण के साथ ही सीमन्तोन्नयन करने का विधान प्राप्त होता है।

निवारण

द्वारभेद : एक दिन में एक बरुआ के लिये भी तीन अग्निकार्य निषिद्ध है, कई प्रमाणों में 2 का भी निषेध प्राप्त होता है। वर्त्तमान में 3 अग्निकार्य ही नहीं 4 अग्निकार्य चूड़ाकरण, उपनयन, वेदारम्भ और समावर्तन (कुल चार) एक दिन और एक मण्डप में एक आचार्य द्वारा ही किये जाते हैं। ऐसी अवस्था में द्वारभेद का विकल्प ग्रहण करना चाहिये।

द्वारभेद हेतु न्यूनतम अष्टहस्त प्रमाण मण्डप के पश्चिम भाग में 2-2 हस्तप्रमाण के 4 द्वार बनाये। यह एक बरुआ और एक आचार्य के लिये समझे। और एक-एक द्वार से प्रवेश करके क्रमशः एक-एक कर्म करे।

क्या आप उपनयन संस्कार के इन महत्वपूर्ण तथ्यों को जानते हैं ? - upnayan sanskar
क्या आप उपनयन संस्कार के इन महत्वपूर्ण तथ्यों को जानते हैं ?

ससमय संस्कार नहीं होने में समस्या क्या है ?

एक अन्य कारण भी है उचित काल में संस्कार करने हेतु विद्वान दैवज्ञ द्वारा शोधित मुहूर्त बनवाया जाना आवश्यक होता है। वहीं उचित काल व्यतीत हो जाने पर विशेष मुहूर्त शोधन की आवश्यकता नहीं होती। ये तो मूर्खता के अतिरिक्त और कुछ नहीं कहा जा सकता कि मुहूर्त शोधन न करना पड़े इस लिये उचित काल का त्याग कर दिया जाय।

चूड़ाकरण (मुण्डन) अलग से ही करे किया भी जाता है किन्तु चूडाकरण विधि से न करके एक स्वतंत्र मुण्डन विधि से किया जाता है। यदि उसे ही चूडाकरण विधि से संपन्न करे तो शेष 3 कर्म बचेंगे। उनमें भी विशेष रूप से 3 का निषेध है तो 2 कर्म उपनयन और वेदारम्भ एक साथ करके यथाव्यवहार भोज आदि भी करे। एवं चतुर्थ कर्म समावर्तन विवाह काल में करे इससे अनाश्रमी होने का दोष भी नहीं होगा।

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