विनायक शांति पूजा विधि | vinayak shanti

विनायक शांति पूजा विधि | vinayak shanti

स्विष्टकृद्धोम : ॐ अग्नये स्विष्टकृते स्वाहा, इदं अग्नयेस्विष्टकृते ॥

  • ॐ प्रजापतये स्वाहा, इदं प्रजापतये ॥ (मानसिक मात्र) प्रजापति का स्वाहाकार मंत्र बिना बोले आहुति दे, इदं प्रजापतये भी बिना बोले शेष प्रोक्षणीपात्र में प्रक्षेप करे।
  • ॐ इन्द्राय स्वाहा, इदं इन्द्राय ॥
  • ॐ अग्नये स्वाहा, इदं अग्नये ॥
  • ॐ सोमाय स्वाहा, इदं सोमाय ॥

पञ्चमहावारुणी होम :

  1. ॐ त्वन्नोऽअग्ने वरुणस्य विद्वान् देवस्य हेडो अवयासि सीष्ठाः। यजिष्ठो वह्नितमः शोशुचानो विश्वा द्वेषाᳪसि प्रमुमुग्ध्यस्मत् स्वाहा ॥ इदमग्मीवरुणाभ्याम् ॥
  2. ॐ स त्वन्नो अग्नेऽवमो भवोती नेदिष्ठो अस्या उषसो व्युष्टौ। अवयक्ष्व नो वरुणᳪरराणो वीहि मृडीकᳪसुहवो न एधि स्वाहा ॥ इदमग्नीवरुणाभ्याम् ॥
  3. ॐ अयाश्चाग्नेऽस्य नभिशस्तिपाश्च सत्यमित्त्वमया असि । अया नो यज्ञᳪवहास्ययानो धेहि भेषज ᳪ स्वाहा ॥ इदमग्नये॥
  4. ॐ ये ते शतँवरुण ये सहस्रं यज्ञियाः पाशा वितता महान्तः। तेभिर्न्नो अद्य सवितोत विष्णुर्विश्वे मुञ्चन्तु मरुतः स्वर्काः स्वाहा ॥ इदं वरुणाय सवित्रे विष्णवे विश्वेभ्यो देवेभ्यो मरुद्भ्यः स्वर्केभ्यः॥
  5. ॐ उदुत्तमँव्वरुण पाशमस्मदवाधमं विमध्यमᳪश्रथाय । अथा व्वयमादित्य व्रते तवानागसो अदितये स्याम स्वाहा ॥ इदं वरुणाय ॥
  6. ॐ प्रजापतये स्वाहा ॥ इदं प्रजापतये॥ (मानसिक मात्र)

बलिदान :

इन्द्रादि दशदिक्पाल – (सर्वोपचार पूजन) सर्वोपचारार्थे गन्धाक्षतपुष्पं ॐ इन्द्रादि दशदिक्पालेभ्यो नमः। पुष्पाक्षत जल लेकर बलिद्रव्य प्रदान करे – ॐ इन्द्रादि दशदिक्पालेभ्यः साङ्गेभ्यः सपरिवारेभ्यः सायुद्धेभ्यः सशक्तिकेभ्यः एतान् सदीपान् दधिमाष बलीन् समर्पयामि। प्रार्थना करे – भो भो इन्द्रादि दशदिक्पालाः कृपां वितरत मम सपरिवारस्य सबांधवस्य सपरिवारस्य आयुः कर्तारः क्षेमकर्तारः शान्तिकर्तारः पुष्टिकर्तारः तुष्टिकर्तारः स्वां स्वां दिशं रक्षत बलिं भक्षत वरदा भवत। पुनः प्रणाम करके जल अर्पित करे – एभिर्बलिदानैः इन्द्रादि दशदिक्पालाः प्रियन्ताम्।

फिर यजमान शुद्धोदक स्नान करे। ऐसा प्रतीत होता है कि यजमान को धारित वस्त्र का त्याग भी करना चाहिये, तदपि पद्धति में वर्णित नहीं है। स्वच्छ वस्त्रादि धारण करके, चंदन आदि लगाकर यजमान विनायक के निकट बैठे। दो बार आचमन कर ले।

गणेशाम्बिका ध्यान : ॐ तत्पुरुषाय विद्महै वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दंतिः प्रचोदयात् ॥ ॐ सुभगायैविद्महे काममालिन्यैधीमहि ॥ तन्नो गौरी प्रचोदयात् ॥ ध्यान करके षोडशोपचार पूजन करे।

तत्पश्चात चूड़ा, तिलयुक्त भात, सुरा स्थान पर गुड़युक्त दुग्ध, मांस स्थान पर लवणयुक्त पायस, मूल, पूप, पूरी, दग्धान्न, मोदक, कूष्माण्ड (कुम्हर) आदि एक पात्र में लेकर अर्पित करे :

कृताकृत उपहार : ॐ तत्पुरुषाय विद्महै वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दंतिः प्रचोदयात् ॥ ॐ सुभगायैविद्महे काममालिन्यैधीमहि ॥ तन्नो गौरी प्रचोदयात् ॥ इमं उपहारं विनायकाम्बिकाभ्यां नमः ॥

Vinayak Shanti
Vinayak Shanti

अर्घ्य : अञ्जलि में कुंकुम, चन्दन, दूर्वा, पीली सरसों युक्त जल लेकर अर्घ्य दे : ॐ तत्पुरुषाय विद्महै वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दंतिः प्रचोदयात् ॥ ॐ सुभगायैविद्महे काममालिन्यैधीमहि ॥ तन्नो गौरी प्रचोदयात् ॥ इदं अर्घ्यं विनायकाम्बिकाभ्यां नमः ॥

फिर प्रणत होकर (भूमि में शिर स्पर्श करके प्रणाम करे) : रूपं देहि जयं देहि भगवन्देहि मे भगम् ॥ पुत्रान्देहि धनन्देहि सर्वान्कामांश्च देहि मे ॥ रूपं देहि जयं देहि भगम् भगवति देहि मे ॥ पुत्रान्देहि धनन्देहि सर्वान्कामांश्च देहि मे ॥

गौरी प्रार्थना : पुनः बैठकर प्रार्थना करे – सोभाग्यमम्बिके देहि रूपभाग्य यशोऽपि च ॥ श्रियं पुत्रांश्चकामांश्च तथासौख्यं च देहि मे ॥ गणेशमातरवालेयत्किञ्चिन्मदभीप्सितम् ॥ एकनाम्नै वतद्देहि देहि गौरिवरानने ॥

बलि : फिर आचार्य एक सूर्प में कुशा असादित करके, कृताकृत उपहार को लेकर क्षेत्रपाल बलि हेतु उत्सर्ग करे – ॐ आदित्यादिमंत्रोक्त देवताभ्यो नमः ॥

ॐ बलिंगृह्णत्विमे देवा ह्यादित्यावसवस्तथा। मरुतश्चाश्विनोदेवा सुपर्णा पन्नगाग्रहा ॥
असुरायातुधानाश्च पिशाचा मातरोगणा। शाकिन्यो यक्षवेताला योगिन्य पूतनाग्रहा ॥
जृम्भका सिद्धगधर्वा नागा विद्याधरा नगा। दिक्पाला लोकपालाश्च ये च विघ्नविनायकाः ॥
जगतांशान्तिकर्तारो ब्रह्माद्याश्चमहर्षयः। माविघ्नंमाचमे पापं मा सन्तुपरिपंथिनः॥
सौम्याभवन्तु तृप्ताश्च भूतप्रेताः सुखावहाः॥

फिर किसी प्रतिनिधि द्वारा बलि द्रव्य को चतुष्पथ पर भिजवा दे। बलि त्याग करने वाला प्रतिनिधि चतुष्पथ पर बलि रखकर जल प्रदान करे। फिर बिना पीछे की ओर देखे वापस आये, घर से बाहर ही हाथ-पैर धो ले।

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