पूर्णाहुति : स्रुचि में सूखा वस्त्रावेष्टित घृताक्त नारियल या गरिगोला, पान, सुपारी, द्रव्यादि लेकर खड़ा होकर स्रुचि को दोनों हाथों से पकड़ते हुए प्रदान करे –
- पूर्णाहुति मंत्र : ॐ मूर्द्धानन्दिवो ऽअरतिम्पृथिव्या वैश्वानरमृत ऽआजातमग्निम् ॥ कवि ᳪ सम्म्राजमतिथिं जनानामासन्ना पात्रञ्जनयन्त देवाः स्वाहा ॥
- वसोर्धारा : स्रुचि से घृत की अविच्छन्न धारा अग्नि में इस मंत्र से करे – ॐ वसोः पवित्रमसि शतधारं वसोः पवित्रमसि सहस्रधारम्। देवस्त्वा सविता पुनातु वसोः पवित्रेण शतधारेण सुप्वा कामधुक्षः स्वाहा ॥
- अग्निप्रार्थना : ॐ श्रद्धां मेधां यशः प्रज्ञां विद्यां पुष्टिं श्रियं बलम् । तेज आयुष्यमारोग्यं देहि मे हव्यवाहन ॥ १ ॥ भो भो अग्ने ! महाशक्ते सर्वकर्मप्रसाधन । कर्मान्तरेऽपि सम्प्राप्ते सान्निध्यं कुरु सर्वदा ॥
- भस्म धारण : स्रुव के पृष्ठभाग में ईशान कोण से भस्म ग्रहण कर पवित्री द्वारा प्रणीतोदक से सिक्त करके क्रमशः ललाट, कण्ठ, दक्षिणबाहु और हृदय पर लगाए – ॐ त्र्यायुषम्जमदग्नेः (ललाट पर) । ॐ कश्यपस्य त्र्यायुषं (कंठ में) । ॐ यद्देवेषु त्र्यायुषं (दक्षिण बाहु पर) । ॐ तन्नोऽअस्तु त्र्यायुषं (हृदय में) यदि किसी अन्य को लगाये तो ॐ तत्तेऽअस्तु त्र्यायुषं। और फिर बांये बांह पर भी लगा ले ।
- संसव प्राशन : प्रोक्षणी में प्रक्षिप्त आहुति अवशेष आज्याहुति का अनामिका और अंगुष्ठ से प्राशन करे – ॐ यस्माद्यज्ञपुरोडाशाद्यज्वानो ब्रह्मरूपिणः । तं संस्रवपुरोडाशं प्राश्नामि सुखपुण्यदम् ।।
- फिर २ आचमन करके प्रणीता से पवित्री लेकर उसकी गांठ खोलकर उससे सिर का मार्जन करके अग्नि में त्याग दे ।
- ब्रह्म दक्षिणा (पूर्णपात्र) : ॐ अद्य कृतैतत् ……. होमकर्मणि कृताकृतावेक्षणरूप ब्रह्मकर्मप्रतिष्ठार्थमिदं पूर्णपात्रं प्रजापति दैवतम् …..गोत्राय ……शर्मणे ब्राह्मणाय ब्रह्मणे दक्षिणां तुभ्यमहं सम्प्रददे । ब्रह्मा को पूर्णपात्र प्रदान करे, ब्रह्मा ॐ स्वस्ति कहकर ग्रहण करे । फिर दाहिना हाथ पकरकर ब्रह्मा को प्रदक्षिणक्रम से उठाए । यदि कुशात्मक ब्रह्मा हों तो यह मंत्र पढे – ॐ अद्य कृतैतत् …… होमकर्मणि कृताऽकृताऽवेक्षणरूप ब्रह्मकर्मप्रतिष्ठार्थमिदं पूर्णपात्रं प्रजापतिदैवतं ब्रह्मणे दक्षिणा नमः ॥ पूर्णपात्र दक्षिणा देकर कुशात्मक ब्रह्मा की ग्रंथि खोल दे ।
- प्रणीताविमोक : प्रणीता को अपने आगे अग्नि के पश्चिमभाग में रखकर पवित्री-उपयमन कुशादि धारणपूर्वक इस मंत्र द्वारा सिर को सिक्त करे – ॐ सुमित्रिया न आप ओषधयः सन्तु ॐ आपः शिवाः शिवतमा: शान्ताः शान्ततमास्तास्ते कृण्वन्तु भेषजम् ॥ फिर इस मंत्र से प्रणीता को पश्चिम (नैर्ऋत्य) या ईशानकोण में न्युब्ज कर केवल जल गिराए, प्रणीता को पृथ्वी पर उल्टा न रखे केवल जल गिराकर सीधा ही रखे ।
- बर्हिहोम : परिस्तरण वाले कुशाओं को उठाकर मोड़ते हुए छोटा गट्ठर (पुल्ली) बनाकर घृताक्त करके इस मंत्र से अग्नि में त्याग करे – ॐ देवा गातु विदो गातु वित्वा गातुमित मनसस्पत इमं देव यज्ञ स्वाहा वातेधाः स्वाहा ॥
- दक्षिणा : ॐ अद्य कृतैतत् सग्रहमखविनायकशान्त्याख्यस्यकर्मणः प्रतिष्ठार्थं एतावद्द्रव्यमूल्यक हिरण्यं अग्निदैवतं यथानामगोत्रायब्राह्मणाय दक्षिणां दातुमहमुत्सृजे ॥
- छायापात्र दान विधि – तिलपुञ्ज पर छायापात्र (कांस्यपात्र) स्थापित करके गोघृत (द्रवित) भरे फिर उसमें मुखावलोकन करे – ॐ आज्यं सुराणामाहारमाज्यं पापहरं परम् । आज्यमध्ये मुखं दृष्ट्वा सर्वपापैः प्रमुच्यते ॥ घृतं नाशयते व्याधि घृतञ्च हरते रुजम् । घृतं तेजोऽधिकरणं घृतमायुः प्रवर्द्धते ॥ इस प्रकार मुखावलोकन करके स्वर्ण या पञ्चरत्न प्रक्षेप करे । छायापात्र पर ३ बार पुष्पाक्षत छिड़के – ॐ छायापात्राय नमः ॥३॥ फिर ३ बार उत्तराग्र कुशा (त्रिकुशा) पर छिड़के – ॐ ब्राह्मणाय नमः ।।३।। जल से सिक्त करे। तिल-जल लेकर उत्सर्ग करे – ॐ अद्य …….. गोत्रोत्पन्नः ……… शर्माऽहं आयुरारोग्यप्राप्त्यर्थं श्री …….. देवताप्रीत्यर्थं च इदं स्वछायावलोकितंघृतपूरितंकांस्यपात्रं चन्द्रप्रजापतिबृहस्पति दैवतं यथानाम गोत्राय ब्राह्मणाय अहं ददे॥ पूर्वपूजित त्रिकुशा पर छोड़ दे । दक्षिणा – ॐ अद्य कृतैतच्छायापात्र दान प्रतिष्ठार्थं एतावद्द्रव्यमूल्यकहिरण्यं अग्निदैवतं यथानामगोत्रायब्राह्मणाय दक्षिणां दातुमहमुत्सृजे ॥
- अभिषेक : फिर यांतुदेवगणा मंत्र से विसर्जन करके आचार्य यजमान का (सपरिवार) विनायक कलश जल से अभिषिक्त करें – ॐ द्यौः शान्तिरन्तरिक्ष ᳪ शान्तिः पृथिवी शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिर्व्वनस्पतयः शान्तिर्विश्वेदेवाः शान्तिर्ब्रह्म शान्तिः सर्व ᳪ शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः सा मा शान्तिरेधि ॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः। सुशान्तिर्भवतु । सर्वारिष्ट शान्तिर्भवतु ॥ अभिषेक के विस्तृत मंत्र अलग से दिया गया है।
- अन्य अभिषेक मंत्र – ॐ आपो हिष्ठामयो भुवस्तान ऊर्जे दधातन महेरणाय चक्षसे । यो वः शिवतमो रसस्तस्य भाजयतेह नः । उशतीरिव मातरः । तस्मा अरङ्गमाम वो यस्य क्षयाय जिन्वथ । आपो जनयथा चनः ॥ ॐ वरुणस्योत्तम्भनमसि व्वरुणस्य स्कम्भसर्जनीस्थो वरुणस्य ऋतसदन्यसि वरुणस्य ऋतसदनमसि वरुणस्य ऋतसदनमासीद ॥ ॐ पुनन्तु मा देवजनाः पुनन्तु मनसा घियः पुनन्तु विश्वा भूतानि जातवेदः पुनीहि माम् ॥ ॐ पयः पृथिव्यां पय ओषधीषु पयो दिव्यन्तरिक्षे पयोधाः । पयस्वतीः प्रदिशः सन्तु मह्यम् ॥ ॐ देवस्य त्वा सवितुः प्रसवेश्विनोर्बाहुभ्याम्पूष्णोर्हस्ताम्याम् । सरस्वत्यै वाचो यन्तु यन्त्रिये दधामि बृहस्पतेष्ट्वा साम्राज्येनाभिषिञ्चामि ॥ ॐ द्यौः शान्तिरन्तरिक्ष ᳪ शान्तिः पृथिवी शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिर्वनस्पतयः शान्तिर्विश्वेदेवाः शान्तिर्ब्रह्म शान्तिः सर्व ᳪ शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः सा मा शान्तिरेधि ॥
तत्पश्चात भूयसी दक्षिणा (यथाशक्ति) करे। ब्राह्मण भोजनादि कराये।
॥ इति पं० दिगम्बर झा सुसम्पादितं “करुणामयीटीकाऽलंकृतं” वाजसनेयिनां विनायक शान्तिविधिः ॥
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कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।