ये कौन लोग मंदिरों में जमे हुये हैं जब-जैसे जो करे पूजा करा देते हैं

गृहमंत्री अमित शाह ने काशी विश्वनाथ की पूजा-अर्चना किया। ये सुख की घड़ी दशकों बाद देखी जा रही है जब सत्ता में बैठने वाला व्यक्ति स्वयं को सनातनी कहने में लज्जित नहीं होता, अज्ञात भय से भयाक्रांत नहीं रहता कि दुनियां क्या कहेगी ? ऐसे जो भी दृश्य मिलते हैं निःसंदेह मन में हर्ष उत्पन्न करते हैं कि सनातन भारत के सत्ताधीश अब तुष्टिकरण की नीति पर चलने वाले नहीं हैं और अपनी संस्कृति-परम्परा, आदि को गढ़े में दबाने वाले नहीं हैं।

ये कौन लोग मंदिरों में जमे हुये हैं जब-जैसे जो करे पूजा करा देते हैं

आज गृहमंत्री अमित शाह ने पत्नी के साथ काशी विश्वनाथ की पूजा-अर्चना किया। एक समय था जब देश को सभी मंत्री/नेता टोपी पहनकर इफ्तार पार्टी करते और दरगाहों पर चादर चढ़ाते ही दिखाई देते थे। ऐसा प्रतीत होता था मानों पूर्वी-पश्चिमी पाकिस्तान बनने के बाद भी हिंदुस्तान हिन्दुओं का है ही नहीं।

अभी भी दस वर्षों तक मोदी के दो कार्यकाल पूरा होने के बाद भी खान मार्केट गैंग देश को छल-बल से यही समझाने का प्रयास करते हैं भारत की संस्कृति सनातन नहीं है मिली-जुली संस्कृति है, लेकिन यही गैंग तब गुणगान करते रहता था जब टोपी पहनकर मंत्री/नेता इफ्तार पार्टी में सम्मिलित हुआ करते थे, और जब पूजा-आरती-ध्यान-योग-गीता आदि की बात आती है तो चिल्लाने लगते हैं भारत धर्मनिरपेक्ष देश है।

किन्तु वर्त्तमान भाजपा सरकार देश और दुनियां को बारम्बार यह सन्देश देती रही है कि भारत सनातन देश है और एक मात्र सनातन ही है जो सर्वपंथ समभाव भी रखता है।

देश ने काशी में मोदी के नामांकन वाले दिन भी गंगा पूजन देखा था और हर्षित हुआ था। ऊपर अमित शाह का भी वो विडियो दिया गया है जिसमें अमित शाह पत्नी के साथ काशी विश्वनाथ की पूजा-आरती कर रहे हैं। यह हर भारतीय को आनंदित करने वाला है। किन्तु एक समस्या अभी भी बारम्बार देखी जाती है, और वो समस्या है आर्य समाज व RSS का गढ़ा हुआ सनातन। भाजपा नेता जब सनातन कर्मकांड करते दिखते हैं तो कई शास्त्र के नियम भंग होते दिखाई पड़ते हैं।

आर्य समाज, RSS व ऐसी ही अन्य कई संस्थायें हैं जो नाना प्रकार की तार्किक व्याख्या तो करते है और यह भी सिद्ध करते हैं कि ब्राह्मणों को सनातन का ज्ञान नहीं है, शास्त्रों में भी मात्र कुछ शास्त्र ही सही हैं और अधिकतम कपोल कल्पना मात्र हैं। ये लोग गीता को तो स्वीकार करते हैं किन्तु महाभारत को अस्वीकार कर देते हैं। वास्तव में ये संस्थायें भी सनातन के विरुद्ध ही कार्य करते हैं। भाजपा वास्तव में इन्हीं संस्थाओं द्वारा बताये गए सनातन को समझती है।

इस कारण इन्हीं संस्थाओं के बताये मार्ग का अवलम्बन करती है और दुर्भाग्य यह भी है कि काशी विश्वनाथ मंदिरों में भी ऐसे ब्राह्मण स्थापित हो गये हैं जो सनातन शास्त्रों का आधार नहीं रखते। पिछली बार मोदी के गंगा पूजन प्रसंग में भी कुछ प्रश्न कर्मकांड विधि द्वारा उठाया गया था। जैसे बिना धोती पहने पूजा करना, खड़े-खड़े पूजा करना, ब्राह्मणों को प्रणाम नहीं करना, ब्राह्मणों का करबद्ध होकर खड़ा रहना। आलेख का लिंक नीचे दिया गया है जिसमें उक्त विषय की विस्तृत चर्चा की गयी थी।

आज जब अमित शाह ने काशी विश्वनाथ की पूजा करते समय पैजामा ही पहने हुये थे और ये जो ब्राह्मण पूजा करा रहे थे उनके प्रति भी प्रश्नचिह्न उत्पन्न करता है कि उचित तथ्य रखने में असफल क्यों रहते हैं, ये क्यों नहीं बता पाते की धोती पहनकर ही पूजा या कोई कर्मकांड करना चाहिये। अथवा क्या मंत्री-नेताओं का डर रहता है जो शास्त्रोचित बातें बोल भी नहीं पाते।

एक अन्य उचित विषय ये तो दिखा कि आज उपस्थित ब्राह्मण करबद्ध नहीं थे, अमित शाह ने प्रणाम किया और ब्राह्मण ने आशीर्वाद प्रदान किया। तथापि एक भूल पुनः करते दिखे और वो ये कि एक हाथ से ही प्रणाम किया और ब्राह्मणों ने कहा भी नहीं की दोनों हाथ से प्रणाम करें।

इस सन्दर्भ में पुनः यह तथ्य समझना-समझाना आवश्यक है कि जब मोदी या कोई अन्य मंत्री, बड़े नेता पूजा आदि कर रहे होते हैं तो वह अंतरराष्ट्रीय समाचार भी होता है। दुनियां उसे देखती भी है। आप लोग किसी भी तरह से कुछ भी करके नहीं दिखा सकते। आप लोगों को जो भी करना हो उसके विषय में पहले पूर्ण जानकारी प्राप्त कर लिया करें और इस प्रकार से संपादन करें कि किसी भी प्रकार से शास्त्र वचन का उल्लंघन न हो।

आप लोग जो करते हैं वह दुनियां देखती है और वैसा ही अनुकरण करने का प्रयास करती है। आपने पैजामा पहनकर पूजा किया तो दुनियां यह समझेगी की पैजामा पहनकर भी पूजा आदि किया जा सकता है, जो कि अनुचित है। आप यदि धोती धारण करते तो दुनियां को सन्देश मिलता कि धोती पहनना आवश्यक होता है। प्रायः देखा जाता है कि विवाह में भी वर धोती पहनने से मना करते रहता है। इसी प्रकार यदि दोनों हाथों से प्रणाम करते तो वह भी दुनियां के लिये सन्देश देता कि दोनों हाथों से प्रणाम करना चाहिये। आप लोग ऐसी त्रुटि कैसे कर सकते हैं।

एक बात पुन्ह स्पष्ट करना आवश्यक है कि ये सनातनियों का विषय है। जो विपक्षी घनघोर सनातन द्रोही हैं उनका विषय नहीं है और उनको इस सम्बन्ध में किसी प्रकार का प्रश्न करने का भी अधिकार नहीं है।

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