मंगल अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र - Mangal 108 names

मंगल अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र – Mangal 108 names

मंगल अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र – Mangal 108 names : मंगल शब्द का अर्थ तो शुभ होता है किन्तु ज्योतिष में जिस ग्रह का नाम मंगल है उसे अशुभ अर्थात पाप या क्रूर ग्रह कहा गया है। मंगल से संबंधित एक और विशेष दोष है जिसका विवाह और दाम्पत्य जीवन पर प्रभाव होता है उसका नाम है मंगली दोष। स्वभावतः मंगल क्रूर ग्रह ही कहा गया है किन्तु कुंडली में परिस्थितिवश शुभ भी हो सकता है।

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चन्द्र अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र - चन्द्र देव के 108 नाम | Chandra 108 names

चन्द्र अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र – चन्द्र देव के 108 नाम : Chandra 108 names

चन्द्र अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र – चन्द्र देव के 108 नाम | Chandra 108 names : पृथ्वी व पृथ्वीवासियों पर चन्द्रमा का प्रत्यक्ष प्रभाव देखा जाता है। यद्यपि ज्योतिष में चन्द्रमा को रानी भी कहा जाता है किन्तु अन्य शास्त्रों में चन्द्रमा पुरुष वर्ग से देव ही बताये गये हैं देवी नहीं। स्तोत्रों में देवताओं के 108 नाम अर्थात अष्टोत्तरशत नामों का भी विशेष होता है।

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सूर्य अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र | surya 108 naam stotra

सूर्य अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र | surya 108 naam stotra

सूर्य अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र | surya 108 naam stotra : किसी को भी प्रसन्न करने के लिये स्तोत्र का विशेष महत्व बताया गया है। स्तोत्रों में देवताओं के 108 नाम अर्थात अष्टोत्तरशत नामों का भी विशेष होता है। यहां सूर्य का अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र (surya 108 naam stotra) दिया गया है।

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केतु शांति विधि

केतु शांति के उपाय | केतु शांति पूजा : ketu shanti ke upay 11th

केतु शांति के उपाय | केतु शांति पूजा : ketu shanti ke upay : केतु को क्रूर, पाप ग्रह कहा जाता है और जिससे संपर्क या दृष्टि आदि युति करे उसे भी अशुभ कर देता है। केतु को छायाग्रह भी कहा जाता है क्योंकि इसका कोई पिंड नहीं है यह वास्तव में एक बिंदु है, जिस प्रकार सूर्य और चंद्र मार्ग का एक संक्रमण बिंदु राहु है उसी प्रकार दूसरा संक्रमण बिंदु केतु है। इस आलेख में केतु शांति विधि दी गयी है।

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राहु शांति विधि

राहु शांति के उपाय | राहु शांति पूजा : Rahu shanti ke upay 10th

राहु शांति के उपाय | राहु शांति पूजा : Rahu shanti ke upay : राहु को क्रूर, पाप ग्रह कहा जाता है और जिससे संपर्क या दृष्टि आदि युति करे उसे भी अशुभ कर देता है। राहु को छायाग्रह भी कहा जाता है क्योंकि इसका कोई पिंड नहीं है यह वास्तव में एक बिंदु है जो सूर्य और चंद्र मार्ग का संक्रमण स्थल है।

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शनि शांति के उपाय | शनि शांति मंत्र : Shani shanti ke upay

शनि शांति के उपाय | शनि शांति मंत्र : Shani shanti ke upay – 9th

शनि शांति के उपाय | शनि शांति मंत्र : Shani shanti ke upay : शनि को क्रूर, पाप ग्रह कहा जाता है और जिससे संपर्क या दृष्टि आदि युति करे उसे भी अशुभ कर देता है। तथापि शनि की जिस भाव में स्थिति होती है उस भाव संबंधी फल के लिये शुभद माना जाता है। शनि की दृष्टि में ही वास्तविक अशुभ फल का प्रभाव बताया गया है।

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शुक्र शांति विधि

शुक्र शांति के उपाय | शुक्र शांति मंत्र : Shukra shanti ke upay 8th

शुक्र शांति के उपाय | शुक्र शांति मंत्र : Shukra shanti ke upay – शुक्र को सौम्य, शुभ ग्रह कहा जाता है और जिससे संपर्क या दृष्टि आदि युति करे उसे भी शुभद कर देता है। तथापि असुर गुरु होने के कारण शुक्र विलासिता के कारक होते है, सर्वाधिक पाप विलासिता हेतु ही किये जाते हैं। इस आलेख में शुक्र शांति विधि दी गयी है। शुक्र शांति विधि का तात्पर्य शास्त्रोक्त विधान से शुक्र के अशुभ फलों की शांति करना है।

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गुरु शांति विधि

गुरु शांति के उपाय | गुरु शांति मंत्र : Guru Shanti Mantra – 7th

गुरु शांति के उपाय (Guru Shanti) : गुरु को सौम्य, शुभ ग्रह कहा जाता और जिससे संपर्क या दृष्टि आदि युति करे उसे भी शुभद कर देता है। गुरु की दृष्टि शुभद है किन्तु उपस्थिति अशुभ है, जिस भाव में गुरु स्थित होता है उस भाव संबंधी फलों का ह्रास करता है। इस आलेख में गुरु शांति विधि दी गयी है।

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बुध शांति विधि, बुध शांति के उपाय

बुध शांति के उपाय | बुध शांति मंत्र – Budh shanti 6th

बुध शांति के उपाय | बुध शांति मंत्र – Budh shanti : नवग्रहों में बुध का चौथा क्रम आता है। जैसे सूर्य, चंद्र और बुध की शांति विधि मिलती है उसी प्रकार बुध के लिये भी शांति विधि प्राप्त होती है। बुध को सौम्य, सम ग्रह कहा जाता और जिससे संपर्क या दृष्टि आदि युति करे उसके अनुसार फलदायी होता है। इस आलेख में मंगल शांति विधि दी गयी है। बुध शांति विधि का तात्पर्य शास्त्रोक्त विधान से बुध के अशुभ फलों की शांति करना है।

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विजयादशमी : दुर्गा विसर्जन, अपराजिता पूजा

विजयादशमी : दुर्गा विसर्जन, अपराजिता पूजा

विजयादशमी : दुर्गा विसर्जन, अपराजिता पूजा : आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से आरंभ होने वाली शारदीय नवरात्रि आश्विन शुक्ल दशमी को संपन्न होती है। आश्विन शुक्ल दशमी को विजयादशमी भी कहा जाता है, दशहरा भी कहा जाता है और यात्रा भी। विजयादशमी के दिन भगवती दुर्गा, कलश आदि का विसर्जन किया जाता है, अपराजिता पूजा की जाती है, जयंती धारण किया जाता है।

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