नान्दीमुख श्राद्ध विधि pdf सहित

नान्दीमुख श्राद्ध विधि pdf

यदि नान्दीमुख श्राद्ध करनी हो तो मातृका पूजा व वसोर्द्धारा करे और यदि नान्दीमुख श्राद्ध नहीं हो रहा है तो मातृकापूजा न ही करे। वृद्धि श्राद्ध अथवा आभ्युदयिक श्राद्ध भी नान्दी श्राद्ध को ही कहा जाता है। नान्दीमुख श्राद्ध विधि pdf

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कलश स्थापन पूजन विधि

कलश स्थापना विधि और मंत्र – kalash sthapana 1st Day

कलश स्थापना विधि और मंत्र : कर्मकांड में सामान्यतः सभी पूजन-हवन आदि पूजा-अनुष्ठानों में कलशस्थापन पूजन करने का विधान है। मात्र कुछ कर्म ही ऐसे होते हैं जिनमें कलशस्थापन पूजन नहीं किया जाता है; जैसे : अन्त्यकर्म-श्राद्ध, कुछ व्रत की पूजा आदि। कलश स्थापन में एक विशेष नियम यह भी है कि रात्रि में कलश स्थापना का निषेध प्राप्त होता है, तथापि जिन कर्मों में कलश स्थापन आवश्यक होता है उन कर्मों के आरंभ में रात्रि में भी कलश स्थापन अवश्य ही किया जाता है भले ही अमंत्रक क्यों न करे।

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गणेशाम्बिका पूजन विधि, गौरी गणेश पूजन विधि मंत्र

गणेशाम्बिका पूजन अर्थात गौरी गणेश पूजन विधि मंत्र | Ganeshambika Puja No 1

गणेशाम्बिका पूजन अर्थात गौरी गणेश पूजन विधि मंत्र | Ganeshambika Puja : गौरी गणेश पूजा हेतु किसी पात्र में चावल भर कर उसपर कुंकुमादि से अष्टदल या स्वास्तिक बना लें। दो सुपारी में मौली लपेट कर उस पात्र में रख दें एक पात्र आगे में रख लें जिसमें जल-पंचामृत अर्पित करना है और आगे की विधि से पूजा करें ।

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संकल्प विधि और मंत्र

संकल्प विधि और मंत्र – Sankalp

कर्मकांड में पूजा, पाठ, जप, हवन, अनुष्ठान, यज्ञ, प्राण प्रतिष्ठा, नित्यकर्म, नैमित्तिक कर्म, शांति कर्म, श्राद्ध किसी भी प्रकार का कोई भी कर्म हो कर्म से पूर्व उस कर्म का संकल्प करना आवश्यक होता है। संकल्परहित कर्म का औचित्य ही नहीं होता। संकल्प हेतु हेमाद्रि संकल्प जैसे विस्तृत संकल्प से लेकर अत्यंत लघु संकल्प का भी विधान पाया जाता है और कर्म-काल आदि के अनुसार विवेकानुसार संकल्प का प्रयोग किया जाता है।

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स्वस्तिवाचन – चारों वेदों का – swastiwachan mantra

स्वस्तिवाचन मंत्र संस्कृत में – Swastiwachan No.1

स्वस्ति अर्थात कल्याण, वाचन अर्थात बोलना, इस प्रकार स्वस्तिवाचन (Swastiwachan) अर्थात जिन वचनों/मंत्रों से कल्याण हो। वेद में कल्याणकारी ऋचाओं के समूह को भद्रसूक्त या स्वस्तिवाचन कहा जाता है। ब्राह्मण को विराट्पुरुष का शिर कहा गया है और ब्राह्मणों के वचन को विशेष महत्व दिया गया है। इस लिये वैदिक ब्राह्मणों द्वारा कल्याण की कामना से भद्रसूक्त का पाठ करना स्वस्तिवाचन कहलाता है। इस आलेख में हस्तस्वर सहित भद्रसूक्त अर्थात स्वस्तिवाचन मंत्र संस्कृत में दिया गया है।

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दिग्रक्षण-विधि

दिग्रक्षण : रक्षा विधान मंत्र या भूतोत्सारण, संक्षिप्त नित्यकर्म सहित, दिग्बंधन विधि

देव-दानवों का प्राकृतिक वैर है एवं असुरादि गणों का नैसर्गिक स्वभाव भी शुभ कर्मों में विघ्नादि उपस्थित करना है। इस कारण किसी भी प्रकार के पूजा-पाठ आदि करने से पूर्व रक्षा विधान किया जाता है। रक्षा विधान को ही दिग्रक्षण या अपसारन आदि भी कहा जाता है।

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गया श्राद्ध और मृताह श्राद्ध

दूध का दूध और पानी का पानी, गया श्राद्ध की गजब कहानी

गया श्राद्ध की शास्त्रों में अतिशय महत्वपूर्ण स्थान और माहात्म्य है। यहां तक कहा गया है कि पितरगण लालायित रहते हैं कि मेरे वंश में कोई गया श्राद्ध करे । गया श्राद्ध की महिमा का वर्णन करना संभव नहीं है और इस असीम महिमा के कारण लोगों की धारणायें भी शास्त्र-उल्लंघन करने वाली हो रही है।

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पितृपक्ष कब है 2024

पितृपक्ष कब है 2024, तर्पण-श्राद्ध

पितृपक्ष कब है : 2024 में पितृपक्षीय तर्पण-श्राद्ध का आरंभ 18 सितंबर 2024 बुधवार से ही होगा।
अतः 2024 में पितृपक्षीय तर्पण-श्राद्धादि आश्विन कृष्ण अमावास्या 2 अक्टूबर बुधवार तक होगा।

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जीवित्पुत्रिका व्रत कथा

जीवित्पुत्रिका व्रत कथा – Jitiya Vrat Katha

जीवित्पुत्रिका व्रत कथा : स्त्रियां पुत्र और पति की दीर्घायु कामना से जितिया का कठिन व्रत किया करती हैं। यह व्रत इतना कठिन होता है कि सामान्य व्रतों की तुलना में अधिक काल तक उपवास करना पड़ता है और उसमें भी बड़ी बात है कि जल आदि का ग्रहण करना भी निषिद्ध होता है।

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जीवित्पुत्रिका व्रत पूजा विधि और मंत्र

जीवित्पुत्रिका व्रत पूजा विधि और मंत्र

जीवित्पुत्रिका व्रत पूजा विधि : प्रदोषकाल में जीमूतवाहन की पूजा की जाती है। जितिया की पूजा विधि भी विशेष है जिसकी जानकारी आवश्यक है और सामान्य जनों को यह जानकारी नहीं दी जाती है। इस आलेख में जितिया पूजा विधि बताई गयी है।

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