“चंद्रमा मनसो जातः” ये वेद का कथन है जो पुरुषसूक्त का अंश है और इसका तात्पर्य है चन्द्रमा विराटपुरुष (परमात्मा) के मन से उत्पन्न हुआ। ज्योतिष में चन्द्रमा को मन का कारक कहा गया है। मन का कारक चन्द्रमा की अशुभता का निवारण करने के लिये चंद्र शांति विधि है। इस आलेख में चंद्र दोष निवारक चंद्र ग्रह की शांति विधि बताई गयी है।
चंद्र ग्रह शांति विधि | कमजोर चंद्रमा के लक्षण और उपाय
हम सभी जानते हैं कि चन्द्रमा मन का कारक है और चन्द्रमा यदि अशुभ हो तो क्या-क्या दुष्परिणाम होते हैं ? मुख्य रूप से चन्द्रमा मन को ही प्रभावित करता है एवं कमजोर चंद्रमा के लक्षण और उपाय समझने के लिये पूर्व में ही आलेख प्रकाशित किया जा चुका है यदि आप इस आलेख को पढ़ना चाहते हैं तो यहां क्लिक करें।
मन के अतिरिक्त भी चन्द्रमा अन्य कई विषयों को भी प्रभावित करता है किन्तु वह ज्योतिष का अतिरिक्त विषय है। यहां चन्द्रमा के उन प्रभावों का वर्णन करने से विषय का अनावश्यक विस्तार होगा अतः अपेक्षित नहीं है। यहां हम चन्द्रमा के अशुभ फलों के शांति की विधि को जानेंगे। साथ ही निर्बल (कमजोर) चन्द्रमा के रत्नादि को भी समझेंगे।
ग्रहों का कमजोर (निर्बल) होना और अशुभ फल होना दोनों अलग-अलग विषय हैं और ये सामान्यतः नए ज्योतिषी नहीं समझ पाते हैं, चन्द्रमा यदि निर्बल है तो सबल करने हेतु रत्नादि धारण करना चाहिये किन्तु अशुभ फलों का निवारण रत्नादि धारण करने से नहीं होता अशुभ फलों का निवारण करने हेतु चंद्र दोष की शांति करनी चाहिये न की रत्नादि धारण।

इस विषय की अधिक चर्चा सूर्य ग्रह शांति विधि में की गई यदि आपने सूर्य शांति विधि नहीं पढ़ा है तो यहां उसका लिंक दिया जा रहा है, यहां क्लिक करके सूर्य शांति पढ़ें।
कमजोर (निर्बल) चन्द्रमा के उपाय
चन्द्रमा यदि कमजोर अर्थात निर्बल हो तो उसे सबल करने हेतु निम्न उपाय (रत्नादि धारण) किये जा सकते हैं :
- रत्न : मोती।
- उपरत्न : शंखमूंगा।
- जड़ी : खिरनी मूल।
- दिन : सोमवार।
- समिधा : पलाश (ढाक)
- धातु : रजत (चांदी)
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चंद्र शांति मंत्र – surya mantra
- वैदिक मंत्र (वाजसनेयी) : ॐ इमं देवा असपत्न ᳪ सुवध्वं महते क्षत्राय महते ज्यैष्ठ्याय महते जानराज्यायेन्द्रस्येन्द्रियाय । इमममुष्य पुत्रममुष्यै पुत्रमस्यै विश एष वोऽमी राजा सोमोऽस्माकं ब्राह्मणाना ᳪ राजा ॥
- वैदिक मंत्र (छन्दोगी) : ॐ सन्ते पयांसि समयन्तुवाजाः संवृष्ण्यान्यभिमातिषाहः आप्यायमानो अमृताय सोम दिवि श्रवांस्युत्तमानिधिष्व॥
- तांत्रिक मंत्र : ॐ श्रां श्रीं श्रौं सः चन्द्रमसे नमः॥
- एकाक्षरी बीज मंत्र : ॐ सों सोमाय नमः अथवा ॐ चं चन्द्रमसे नमः॥
- जप संख्या : 11000
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