दान करने की विधि और मंत्र

दान करने की विधि और मंत्र

पवित्रीकरण : ॐ अपवित्रः पवित्रोऽ वा सर्वावस्थांगतोऽपि वा यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याऽभ्यन्तरः शुचिः पुण्डरीकाक्षः पुनातु । ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु ॥ सभी वस्तुओं पर जल छिड़क कर शरीर पर भी छिड़क ले, तीन बार आचमन कर ले।

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गौ दान विधि

गो दान करने के लिये गाय को पूर्वाभिमुख रखे, वस्त्रादि से आच्छादित कर दे, बच्चे को निकट में रखे, नीचे बाल्टी (दोहन पात्र) रख दे। गाय के पीछे पूर्वाभिमुख होकर गाय के पीठ की पूजा करे व दान करने के बाद गोपुच्छ (तिल-जल सहित) ब्राह्मण के हाथ में दे।

विस्तृत रूप से गोदान के विषय में “हेमशृंगीं रौप्यखुरां ताम्रपृष्ठां वस्त्रयुगच्छनां कांस्योपदोहां मुक्तांगुलभूषितां” कहा गया है। जिस अवस्था में गाय हो अर्थात जो-जो द्रव्य युक्त हो उसी का उच्चारण करे। जैसे हेमशृंगि न हो तो हेमश्रृंगी न कहे।

  • तीन बार गाय की पुष्पाक्षत से पूजा करे : ॐ सोपकरण सवत्स कपिल गव्यै नमः ॥३॥
  • उत्तराग्र त्रिकुशा (दर्भबटु) की पुष्पाक्षत से तीन बार पूजा करे : ॐ ब्राह्मणाय नमः ॥३॥
  • गाय को कुशोदक से अभिसिक्त करे ।
  • पुनः तिल, जल लेकर इस मंत्र से तिल-जल; उत्तराग्र त्रिकुशा (दर्भबटु) पर दे : ॐ अद्य अशौचान्त द्वितीयेऽह्नि ………  गोत्रस्य पितुः ……… प्रेतस्य (…… गोत्रायाः मातुः ………. प्रेतायाः) स्वर्गप्राप्तिकाम इमां सोपकरणां सवत्सां कपिलां गां हेमशृंगीं रौप्यखुरां ताम्रपृष्ठां वस्त्रयुगच्छनां कांस्योपदोहां मुक्तांगुलभूषितां रुद्रदैवतां यथानाम गोत्राय ब्राह्मणाय अहं ददे ॥ (यदि एकादशाह को गोदान करे तभी “अशौचान्त द्वितीयेऽह्नि” कहे द्वादशाह को करे तो न कहे।)
  • पुनः त्रिकुश, तिल, जल, दक्षिणा लेकर दक्षिणा करे : ॐ अद्य कृतैतत् सोपकरण सवत्स कपिल गवीदान प्रतिष्ठार्थं एतावत् द्रव्यमूल्यकं हिरण्यं अग्नि दैवतं यथानाम गोत्राय ब्राह्मणाय दक्षिणां अहं ददे ॥ उत्तराग्र त्रिकुशा (दर्भबटु) पर दे।
  • ब्राह्मण गाय का पुच्छ ग्रहण कर पढ़े : वाजसनेयी – ॐ कोऽदात् कस्माऽअदात् कामोऽदात् कामायाऽदात् । कामो दाता कामः प्रतिग्रहीता कामः समुद्रमाविशत् । कामेन त्वा प्रतिगृह्णामि कामैतत्ते ॥ छन्दोगी – ॐ क इदं कस्मा ऽअदात् कामः कामायाऽदात् । कामो दाता कामः प्रतिग्रहीता कामः समुद्रमाविशत् । कामेन त्वा प्रतिगृह्णामि कामैतत्ते ॥

गोमूल्य दान विधि : यदि गोदान न कर सके तो गोमूल्य दान करे। गोमूल्य दान विधि इस प्रकार है।

  • तीन बार गोमूल्य की पुष्पाक्षत से पूजा करे : ॐ एतावत् द्रव्यमूल्यक सोपकरण सवत्स कपिल गव्यै नमः ॥३॥
  • उत्तराग्र त्रिकुशा (दर्भबटु) की पुष्पाक्षत से तीन बार पूजा करे : ॐ ब्राह्मणाय नमः ॥३॥
  • पुनः तिल, जल लेकर इस मंत्र से त्रिकुशा व तिल-जल; उत्तराग्र त्रिकुशा (दर्भबटु) पर दे – ॐ अद्य अशौचान्त द्वितीयेऽह्नि ………  गोत्रस्य पितुः ……… प्रेतस्य (…… गोत्रायाः मातुः ………. प्रेतायाः) स्वर्गप्राप्तिकाम एतावत् द्रव्यमूल्योपकल्पितां सोपकरणां सवत्सां कपिलां गां रुद्रदैवतां यथानाम गोत्राय ब्राह्मणाय अहं ददे ॥
  • पुनः त्रिकुश, तिल, जल लेकर दक्षिणा करे : ॐ अद्य कृतैतत् द्रव्यमूल्योपकल्पित सोपकरण सवत्स कपिल गवीदान प्रतिष्ठार्थं एतावत् द्रव्यमूल्यकं हिरण्यं अग्नि दैवतं यथानाम गोत्राय ब्राह्मणाय दक्षिणां अहं ददे ॥ उत्तराग्र त्रिकुशा (दर्भबटु) पर दे।

शय्या दान विधि

  • शय्या पर तीन बार इस मंत्र से पुष्पाक्षत छींटे : ॐ सोपकरणशय्यायै नमः ॥३॥
  • उत्तराग्र त्रिकुशा (दर्भबटु) की पुष्पाक्षत से तीन बार पूजा करे : ॐ ब्राह्मणाय नमः ॥३॥
  • शय्या को कुशोदक से सिक्त करे ।
  • पुनः तिल, जल लेकर इस मंत्र से त्रिकुशा व तिल-जल ब्राह्मण को दे : ॐ अद्य अशौचान्त द्वितीयेऽह्नि ………  गोत्रस्य पितुः ……… प्रेतस्य (…… गोत्रायाः मातुः ………. प्रेतायाः) स्वर्गकाम इमां सोपकरणां शय्यां विष्णु दैवताम् यथानाम गोत्राय ब्राह्मणाय दक्षिणां अहं ददे ॥
  • पुनः त्रिकुश, तिल, जल, दक्षिणा लेकर दक्षिणा करे : ॐ अद्य कृतैतत्सोपकरण शय्यादान प्रतिष्ठार्थं एतावत् द्रव्यमूल्यकं हिरण्यं अग्नि दैवतं यथानाम गोत्राय ब्राह्मणाय दक्षिणां अहं ददे ॥ उत्तराग्र त्रिकुशा (दर्भबटु) पर दे।

काञ्चनपुरुषदान विधि

  • भगवान विष्णु की स्वर्ण प्रतिमा पर तीन बार इस मंत्र से पुष्पाक्षत छिड़के : ॐ फलवस्त्रसमन्वित हिरण्याय नमः ॥३॥
  • उत्तराग्र त्रिकुशा (दर्भबटु) की पुष्पाक्षत से तीन बार पूजा करे : ॐ ब्राह्मणाय नमः ॥३॥
  • भगवान विष्णु की स्वर्ण प्रतिमा को कुशोदक से सिक्त करे ।
  • पुनः तिल, जल लेकर इस मंत्र से त्रिकुशा व तिल-जल; उत्तराग्र त्रिकुशा (दर्भबटु) पर दे – ॐ अद्य अशौचान्त द्वितीयेऽह्नि ………  गोत्रस्य पितुः ……… प्रेतस्य (…… गोत्रायाः मातुः ………. प्रेतायाः)  स्वर्गकाम इदं फलवस्त्र समन्वितहिरण्यं विष्णु दैवतम्  यथानाम गोत्राय ब्राह्मणाय दक्षिणां अहं ददे ॥
  • पुनः त्रिकुश, तिल, जल, दक्षिणा लेकर दक्षिणा करे : ॐ अद्य कृतैतत् फलवस्त्रसमन्वित काञ्चनपुरुष दान प्रतिष्ठार्थं एतावत् द्रव्यमूल्यकं हिरण्यं अग्नि दैवतं यथानाम गोत्राय ब्राह्मणाय दक्षिणां अहं ददे ॥ उत्तराग्र त्रिकुशा (दर्भबटु) पर दे।
दान करने का मंत्र
दान करने का मंत्र

छत्रदान : 

  • छाता पर तीन बार इस मंत्र से पुष्पाक्षत छिड़के : ॐ छत्राय नमः ॥३॥
  • उत्तराग्र त्रिकुशा (दर्भबटु) की पुष्पाक्षत से तीन बार पूजा करे : ॐ ब्राह्मणाय नमः ॥३॥
  • छाते को कुशोदक से सिक्त करे ।
  • पुनः तिल, जल लेकर इस मंत्र से त्रिकुशा व तिल-जल; उत्तराग्र त्रिकुशा (दर्भबटु) पर दे – ॐ अद्य ………  गोत्रस्य पितुः ……… प्रेतस्य (…… गोत्रायाः मातुः ………. प्रेतायाः) आवरण काम इदं छत्रं उत्तानाङ्गिरो दैवतम् यथानाम गोत्राय ब्राह्मणाय दक्षिणां अहं ददे ॥
  • पुनः त्रिकुश, तिल, जल, दक्षिणा लेकर दक्षिणा करे : ॐ अद्य कृतैतत् छत्र दान प्रतिष्ठार्थं एतावत् द्रव्यमूल्यकं हिरण्यं अग्नि दैवतं यथानाम गोत्राय ब्राह्मणाय दक्षिणां अहं ददे ॥ उत्तराग्र त्रिकुशा (दर्भबटु) पर दे।

उपानद्दान :

  • सव्य पूर्वाभिमुख होकर उपानद् पर तीन बार इस मंत्र से पुष्पाक्षत छिड़के : ॐ उपानद्भ्यां नमः ॥३॥
  • उत्तराग्र त्रिकुशा (दर्भबटु) की पुष्पाक्षत से तीन बार पूजा करे : ॐ ब्राह्मणाय नमः ॥३॥
  • उपानद् को कुशोदक से सिक्त करे ।
  • पुनः तिल, जल लेकर इस मंत्र से त्रिकुशा व तिल-जल; उत्तराग्र त्रिकुशा (दर्भबटु) पर दे –  ॐ अद्य ………  गोत्रस्य पितुः ……… प्रेतस्य (…… गोत्रायाः मातुः ………. प्रेतायाः)  तप्त-बालुकासि-कण्टकित-भूदुर्ग-सन्तरण काम इमे उपानहौ उत्तानाङ्गिरो दैवते यथानाम गोत्राय ब्राह्मणाय दक्षिणां अहं ददे ॥
  • पुनः त्रिकुश, तिल, जल, दक्षिणा लेकर दक्षिणा करे : ॐ अद्य कृतैतत् उपानद्दान प्रतिष्ठार्थं एतावत् द्रव्यमूल्यकं हिरण्यं अग्नि दैवतं यथानाम गोत्राय ब्राह्मणाय दक्षिणां अहं ददे ॥ उत्तराग्र त्रिकुशा (दर्भबटु) पर दे।

अनुपदी दान (यदि चप्पल हो तो अनुपदी कहे)

  • सव्य पूर्वाभिमुख होकर उपानद् पर तीन बार इस मंत्र से पुष्पाक्षत छिड़के : ॐ अनुपदीभ्यां नमः ॥३॥
  • उत्तराग्र त्रिकुशा (दर्भबटु) की पुष्पाक्षत से तीन बार पूजा करे : ॐ ब्राह्मणाय नमः ॥३॥
  • उपानद् को कुशोदक से सिक्त करे ।
  • पुनः तिल, जल लेकर इस मंत्र से त्रिकुशा व तिल-जल; उत्तराग्र त्रिकुशा (दर्भबटु) पर दे –  ॐ अद्य ………  गोत्रस्य पितुः ……… प्रेतस्य (…… गोत्रायाः मातुः ………. प्रेतायाः)  तप्त-बालुकासि-कण्टकित-भूदुर्ग-सन्तरण काम इमे अनूपद्ये उत्तानाङ्गिरो दैवते यथानाम गोत्राय ब्राह्मणाय दक्षिणां अहं ददे ॥
  • पुनः त्रिकुश, तिल, जल, दक्षिणा लेकर दक्षिणा करे : ॐ अद्य कृतैतत् अनुपदी प्रतिष्ठार्थं एतावत् द्रव्यमूल्यकं हिरण्यं अग्नि दैवतं यथानाम गोत्राय ब्राह्मणाय दक्षिणां अहं ददे ॥ उत्तराग्र त्रिकुशा (दर्भबटु) पर दे।

मुद्रिका दान

  • मुद्रिका पर तीन बार इस मंत्र से पुष्पाक्षत छिड़के : ॐ मुद्रिकायै नमः ॥३॥
  • उत्तराग्र त्रिकुशा (दर्भबटु) की पुष्पाक्षत से तीन बार पूजा करे : ॐ ब्राह्मणाय नमः ॥३॥
  • मुद्रिका को कुशोदक से सिक्त करे ।
  • पुनः तिल, जल लेकर इस मंत्र से त्रिकुशा व तिल-जल; उत्तराग्र त्रिकुशा (दर्भबटु) पर दे – ॐ अद्य ………  गोत्रस्य पितुः ……… प्रेतस्य (…… गोत्रायाः मातुः ………. प्रेतायाः)  स्वर्गकाम इमां मुद्रिकां विष्णु दैवताम् यथानाम गोत्राय ब्राह्मणाय दक्षिणां अहं ददे ॥
  • पुनः त्रिकुश, तिल, जल, दक्षिणा लेकर दक्षिणा करे : ॐ अद्य कृतैतत् मुद्रिका दान प्रतिष्ठार्थं एतावत् द्रव्यमूल्यकं हिरण्यं अग्नि दैवतं यथानाम गोत्राय ब्राह्मणाय दक्षिणां अहं ददे ॥ उत्तराग्र त्रिकुशा (दर्भबटु) पर दे।

पूजोपकरण दान :

  • पूजा के उपकरणों पर तीन बार इस मंत्र से पुष्पाक्षत छिड़के : ॐ सोपकरण पूजोपकरणेभ्योभ्यो नमः ॥३॥
  • उत्तराग्र त्रिकुशा (दर्भबटु) की पुष्पाक्षत से तीन बार पूजा करे : ॐ ब्राह्मणाय नमः ॥३॥
  • पूजा के उपकरणों को कुशोदक से सिक्त करे ।
  • पुनः तिल, जल लेकर इस मंत्र से त्रिकुशा व तिल-जल; उत्तराग्र त्रिकुशा (दर्भबटु) पर दे – ॐ अद्य ………  गोत्रस्य पितुः ……… प्रेतस्य (…… गोत्रायाः मातुः ………. प्रेतायाः)  स्वर्गकाम एतानि सोपकरणानि पूजोपकरणानि विश्वकर्म दैवतानि यथानाम गोत्राय ब्राह्मणाय दक्षिणां अहं ददे ॥
  • पुनः त्रिकुश, तिल, जल, दक्षिणा लेकर दक्षिणा करे : ॐ अद्य कृतैतत् सोपकरण पूजोपकरण दान प्रतिष्ठार्थं एतावत् द्रव्यमूल्यकं हिरण्यं अग्नि दैवतं यथानाम गोत्राय ब्राह्मणाय दक्षिणां अहं ददे ॥ उत्तराग्र त्रिकुशा (दर्भबटु) पर दे।

धार्मिक पुस्तक दान :

  • वस्त्रावेष्टित कई धार्मिक पुस्तकों पर तीन बार इस मंत्र से पुष्पाक्षत छिड़के : ॐ सावरण धार्मिक पुस्तकेभ्यो नमः ॥३॥
  • उत्तराग्र त्रिकुशा (दर्भबटु) की पुष्पाक्षत से तीन बार पूजा करे : ॐ ब्राह्मणाय नमः ॥३॥
  • वस्त्रावेष्टित धार्मिक पुस्तकों को कुशोदक से सिक्त करे ।
  • पुनः तिल, जल लेकर इस मंत्र से त्रिकुशा व तिल-जल; उत्तराग्र त्रिकुशा (दर्भबटु) पर दे – ॐ अद्य ………  गोत्रस्य पितुः ……… प्रेतस्य (…… गोत्रायाः मातुः ………. प्रेतायाः)  स्वर्गकाम एतानि सावरणानि धर्मपुस्तकानि सरस्वती दैवतानि यथानाम गोत्राय ब्राह्मणाय दक्षिणां अहं ददे ॥
  • पुनः त्रिकुश, तिल, जल, दक्षिणा लेकर दक्षिणा करे : ॐ अद्य कृतैतत् सावरण धार्मिक पुस्तक दान प्रतिष्ठार्थं एतावत् द्रव्यमूल्यकं हिरण्यं अग्नि दैवतं यथानाम गोत्राय ब्राह्मणाय दक्षिणां अहं ददे ॥ उत्तराग्र त्रिकुशा (दर्भबटु) पर दे।

मञ्जूषा दान :

  • मञ्जूषा पर तीन बार इस मंत्र से पुष्पाक्षत छिड़के : ॐ सावरण सोपकरण मञ्जूषायै नमः ॥३॥
  • उत्तराग्र त्रिकुशा (दर्भबटु) की पुष्पाक्षत से तीन बार पूजा करे : ॐ ब्राह्मणाय नमः ॥३॥
  • मञ्जूषा को कुशोदक से सिक्त करे ।
  • पुनः तिल, जल लेकर इस मंत्र से त्रिकुशा व तिल-जल; उत्तराग्र त्रिकुशा (दर्भबटु) पर दे – ॐ अद्य ………  गोत्रस्य पितुः ……… प्रेतस्य (…… गोत्रायाः मातुः ………. प्रेतायाः)  स्वर्गकाम इमां सोपकरणां मञ्जूषां वनस्पति दैवतां यथानाम गोत्राय ब्राह्मणाय दक्षिणां अहं ददे ॥
  • पुनः त्रिकुश, तिल, जल, दक्षिणा लेकर दक्षिणा करे : ॐ अद्य कृतैतत् सोपकरण मञ्जूषा दान प्रतिष्ठार्थं एतावत् द्रव्यमूल्यकं हिरण्यं अग्नि दैवतं यथानाम गोत्राय ब्राह्मणाय दक्षिणां अहं ददे ॥ उत्तराग्र त्रिकुशा (दर्भबटु) पर दे।

गैस चूल्हा दान :

  • गैस चूल्हा पर पर तीन बार इस मंत्र से पुष्पाक्षत छिड़के : ॐ सद्रवीभूत वायवीयेंधन ईंधनपात्र सहित चुल्लिकायै नमः ॥३॥
  • उत्तराग्र त्रिकुशा (दर्भबटु) की पुष्पाक्षत से तीन बार पूजा करे : ॐ ब्राह्मणाय नमः ॥३॥
  • गैस चूल्हा को कुशोदक से सिक्त करे ।
  • पुनः तिल, जल लेकर इस मंत्र से त्रिकुशा व तिल-जल; उत्तराग्र त्रिकुशा (दर्भबटु) पर दे – ॐ अद्य ………  गोत्रस्य पितुः ……… प्रेतस्य (…… गोत्रायाः मातुः ………. प्रेतायाः)  स्वर्गकाम इमां सद्रवीभूत वायवीयेंधन ईंधनपात्र सहित चुल्लिकां अग्नि दैवतां यथानाम गोत्राय ब्राह्मणाय दक्षिणां अहं ददे ॥
  • पुनः त्रिकुश, तिल, जल, दक्षिणा लेकर दक्षिणा करे : ॐ अद्य कृतैतत् सद्रवीभूत वायवीयेंधन ईंधनपात्र सहित चुल्लिका दान प्रतिष्ठार्थं एतावत् द्रव्यमूल्यकं हिरण्यं अग्नि दैवतं यथानाम गोत्राय ब्राह्मणाय दक्षिणां अहं ददे ॥ उत्तराग्र त्रिकुशा (दर्भबटु) पर दे।

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