हम अभी फलाधिवास के बारे में जानेंगे, फलाधिवास की विधि और मंत्रों को समझेंगे। मुख्य अधिवासन 3 ही है जलाधिवास, धन्याधिवास और शय्याधिवास। इसके अतिरिक्त अन्य अधिवासनों में से एक फलाधिवास भी है। पुष्पाधिवास की भांति ही फलाधिवास के लिये भी विशेष विधि सामान्यतः उपलब्ध नहीं हैं अतः फलाधिवास के लिये उन्हीं तीन विधियों का अनुसरण करते हुये इस आलेख में फलाधिवास विधि की बताई गयी है। चूंकि पुस्तकों में फलाधिवास की विधि नहीं मिलती इस कारण यह आलेख विशेष महत्वपूर्ण हो जाता है।
यदि एक ही दिन में सभी अधिवास करने हो तो सबके लिये अलग-अलग पूरी प्रक्रिया की आवश्यता नहीं होती।
फलाधिवास विधि
- फलाधिवास के लिये कई प्रकार के शास्त्रविहित पुष्पों का संग्रह करना चाहिये।
- पूर्व अधिवास से देवप्रतिमा को निकाल ले, स्थान की सफाई करे।
- स्थान की सफाई के लिये झाड़ू का प्रयोग न करके वस्त्र या कपड़े (तंतु) वाले पोंछा का प्रयोग करे जो नया होना चाहिये।
- तत्पश्चात गाय के गोबर से लीपे।
- पूजा सामग्री व्यवस्थित करके पूर्वाभिमुख बैठे।
- संक्षिप्त पवित्रीकरण स्वस्तिवाचन आदि करके फलाधिवास का संकल्प करे ।
- संकल्प मंत्र : ॐ अद्यादि …………… प्रतिष्ठाङ्गगत्वेन प्रतिमासंशुद्ध्यर्थं ममगृहे प्रचुरधान्यपुत्र-पौत्रादिसुखसम्पत्यादि अभिवृद्धयर्थं फलाधिवासं करिष्ये ॥
- लीपे हुये फलाधिवास भूमि पर अष्टदल बना ले।
- रक्षोघ्न सूक्त का पाठ करके भूमि पर पीली सरसों छिड़के ।
- फिर भूमि पूजन करे : ॐ भूम्यै नमः।
- २८ कुशाओं का कूर्च (गठरी) बनाकर फलाधिवास भूमि पर ॐ पवित्रेष्थो मंत्र से रखे।
- पुष्पवती मंत्र से भूमि पर फल बिछा ले :
- मंत्र – ॐ याफलिनीर्या अफला अपुष्पा याश्च पुष्पिणी। बृहस्पति प्रसूतास्ता नो मुञ्चन्त्वᳪ हस:॥
वायव्यकोण में कुंकुमादि से क्षेत्रपाल लिखकर क्षेत्रपाल की पूजा ॐ क्षेत्रपालाय नमः मंत्र से करके बलि दे। चारों ओर कलश स्थापित करके दशदिक्पाल की पूजा करे।
- फिर धान्य पर पूर्व या दक्षिण सिर के अनुसार काष्ठ (शमी) पीठ रखकर वस्त्र से आच्छादित कर दे। पुनः वस्त्र पर फल बिखेरे : ॐ याफलिनीर्या अफला अपुष्पा याश्च पुष्पिणी। बृहस्पति प्रसूतास्ता नो मुञ्चन्त्वᳪ हस:॥ ।
- पवमान सूक्त पाठ करे।
- प्रतिमाओं को स्नान कराकर कुशा एवं सूखे कपड़े से मार्जन करे : ॐ प्रत्युष्ट रक्ष: प्रत्युष्टाऽअरातयो निष्टप्त रक्षो निष्टप्ताऽअरातय: । अनिशितोसि सपत्नक्षिद वाजिनं त्वा वाजेध्यायै सम्मार्ज्मि । प्रत्युष्ट रक्ष प्रत्युष्टाऽ अरातयो तिष्टप्त रक्षो निष्टप्ताऽ अरातय: । अनिशितासि सपत्नक्षिद् वाजिनं त्वा वाजेध्यायै सम्मार्ज्मि ॥
- पञ्चोपचार पूजन करके प्रतिमाओं को सकुश-वस्त्रावेष्टित करे।
- फिर वैदिक सूक्तों का पाठ, मंगलगान, वाद्य आदि बजाते हुये सभी प्रतिमाओं को ज्येष्ठक्रम से पीठ पर लिटाकर फलों से ढंक दे।
- फिर देवता का सूक्त-स्तोत्रादि पाठ करके दक्षिणा दे।
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