इस आलेख में प्राण-प्रतिष्ठा का महत्वपूर्ण अंग जलाधिवास के विषय में चर्चा करते हुए विधि और मंत्र बताया गया है। जलाधिवास का तात्पर्य शास्त्रीय विधि से एक निर्धारित समय तक जल में वास करना है। जलाधिवास करने की विधि में पूजा, मंत्र और संस्कारों का वर्णन किया गया है। किसी भी देवता की प्राण प्रतिष्ठा में विशेष उपयोगी है।
जलाधिवास क्या होता है
जब कभी भी प्राण-प्रतिष्ठा होती है तो प्रतिमा अर्थात मूर्ति में देवता का आवाहन-स्थापन किया जाता है। नई बनी हुयी प्रतिम देवताओं के आवाहन-स्थापन हेतु योग्य नहीं होती है। प्रतिमा में देवता का आवाहन करने से पूर्व उसके कई संस्कार करके देवता के आवाहन-स्थापन योग्य बनाया जाता है। प्रतिमा के उन्हीं संस्कारों में से एक जलाधिवास कर्म है।
जलाधिवास का तात्पर्य : जलाधिवास का तात्पर्य जिस प्रतिमा की प्राण-प्रतिष्ठा करनी है उसे शास्त्रीय विधि से एक निर्धारित समय तक जल में वास करना या रखना है।
- जल में सभी देवताओं का वास होता है। जल का एक नाम नार है और भगवान विष्णु का निवास जल (क्षीरसागर) में है इसलिये उनका एक नाम नारायण भी है।
- जल में प्रतिमा को शीतलत्व प्राप्ति हेतु रखा जाता है।
- जल में रखने का तात्पर्य होता है कि जल स्थित सभी देवता प्रतिमा को पवित्र कर दें ताकि उनमें संबंधित देवता का आवाहन किया जा सके।
- प्रतिमा को जल में रखने से अग्निप्रयोग से प्राप्त दाहत्व का निवारण होता है।
मूर्ति का जलाधिवास
- हमने वाहन बनाया तो वाहन परिचालन हेतु उसमें और भी कई महत्वपूर्ण उपकरणों की आवश्यकता होती है; जैसे रंग करना, सीसा लगाना, रजिस्ट्रेशन कराना, नंबर प्लेट लगाना, बीमा कराना इत्यादि।
- जब हम किसी को घर पर बुलाते हैं तो रहने लिए कुछ विशेष व्यवस्थायें भी करते हैं जैसे सफाई, बैठने-सोने की व्यवस्था, नास्ता-भोजन इत्यादि की व्यवस्था।
- उसी प्रकार दिव्य देवताओं के आवाहन हेतु प्रतिमा को उनके योग्य बनाना आवश्यक होता है।
- प्रतिमा को देवता के आवाहन योग्य बनाने के लिये अग्न्युत्तारण, हवन एवं कई अधिवास कराये जाते हैं जिनमें से मुख्य अधिवास जलाधिवास है।
- मूर्ति का जलाधिवास करने के लिये पवित्र जल में विभिन्न देवताओं का आवाहन पूजन करके प्रतिमा को रखा जाता है।
जलाधिवास विधि
- जलाधिवास करने से पूर्व अग्न्युत्तारण कर लें।
- जलाधिवास करने हेतु प्रतिमा पूरी तरह जल में समाहित हो सके वैसा जलपात्र धान्यपुंज पर रखें।
- ये सुनिश्चित कर लें कि प्रतिमा में किसी प्रकार का दोष नहीं दिख रहा हो।
- फिर भी व्रणभंगद्रव्य की व्यवस्था रखे ।
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