प्राण प्रतिष्ठा विधि – विधि-विधान की सम्पूर्ण जानकारी

प्राण प्रतिष्ठा विधि - विधि-विधान की सम्पूर्ण जानकारी

प्राण-प्रतिष्ठा कर्मकांड का विषय है। ईश्वर की अराधना करने के लिये उनका मंदिर बनाकर उसमें विधि-पूर्वक उनकी प्रतिमा स्थापित की जाती है जिसे प्राण-प्रतिष्ठा करना कहा जाता है। प्राण-प्रतिष्ठा की बहुत विस्तृत विधि शास्त्रों में बताई गयी है जो सामान्य जन के लाभ हेतु इस लेख में प्रस्तुत की गयी है। यदि आप प्राण प्रतिष्ठा के बारे में जानकारी चाहते हैं तो यह आलेख आपके लिये महत्वपूर्ण है। इसके साथ ही प्राण-प्रतिष्ठा से जुड़े सूक्ष्म व जटिल विषयों पर भी प्रकाश डाला गया है एवं अनेकों प्रश्नों के उत्तर भी दिये गये हैं।

प्राण प्रतिष्ठा विधि – विधि-विधान की सम्पूर्ण जानकारी

  • प्राण प्रतिष्ठा यज्ञ की विधि से सम्पन्न किया जाता है।
  • प्राण प्रतिष्ठा से पूर्व निर्मित प्रतिमा की शुद्धि की जाती है एवं दोषों का निस्तारण भी किया जाता है।
  • प्राण प्रतिष्ठा में प्रतिमा को देवता के प्रतिष्ठान हेतु संस्कारित किया जाता है। जलाधिवास सहित अन्य अधिवासन, हवन आदि क्रियाओं से प्रतिमा; देवता के लिये योग्य बनती है।
  • प्राण प्रतिष्ठा से पूर्व प्रतिमा और प्रासाद (मंदिर) का बहुत सारे अभिमंत्रित कलशों के जल से विधिपूर्वक स्नपन (स्नान या अभिषेक) किया जाता है।
  • नेत्रोन्मीलन भी एक विशेष क्रिया है जो प्राण प्रतिष्ठा से पूर्व ही विधिपूर्वक किया जाता है। नेत्रोन्मीलन का तात्पर्य है कि शास्त्रोक्त विधि से नेत्र बनाया जाय, लेकिन नेत्र पहले ही बना दिया जाता है तो इस कारण प्रतीकात्मक नेत्रोन्मीलन किया जाता है जिसका तात्पर्य नेत्र खोलना माना जा सकता है।
  • नेत्रोन्मीलन के समय कहीं-कहीं एक अप्रमाणिक परंपरा भी देखी जाती है कि एक शीशा देवता के सम्मुख तोड़ा जाता है और यह कहा जाता है कि देवता की दृष्टि से टूटी है।
  • दृष्टिसाधन की एक अलग विधि है जो विद्वान आचार्य के निर्देशन में किया जाना चाहिए।
  • नेत्रोन्मीलन के समय शीशा तोड़ने का प्रदर्शन नहीं बलि प्रदर्शन करना चाहिये और इस प्रकार करना चाहिये देवता की प्रथम दृष्टि में बलि (देवता के अनुसार छाग, कूष्माण्ड, दधिमाष, पायस आदि जो उचित हो) रहे कोई अन्य वस्तु या व्यक्ति नहीं।

प्राण प्रतिष्ठा क्या होती है ?

यद्यपि निर्गुण-निराकार ब्रह्म सर्वव्यापी है, सर्वत्र है, उसका चिंतन किया जा सकता है, साक्षात्कार किया जा सकता है, उसके साथ एकाकार हुआ जा सकता है, लेकिन उसकी उपासना नहीं की जा सकती।

  • उपासना करने के लिये उसी निर्गुण-निराकार ब्रह्म का सगुण-साकार रूप होता है जिसकी प्रतिमा (मूर्ति) बनाई जाती है।
  • जहां ईश्वर की प्रतिमा स्थापित की जाती है अर्थात ईश्वर का वास होता है उसे मंदिर कहा जाता है।
  • जब तक प्राण-प्रतिष्ठा न की जाय प्रतिमा चैतन्य नहीं होती।
  • अराधना-उपासना के लिये प्रतिमा का चैतन्य होना आवश्यक है।
  • प्राण-प्रतिष्ठा करके प्रतिमा (मूर्ति) में देवता का प्रतिष्ठापन करके प्रतिमा को चैतन्य किया जाता है।
  • प्रतिमा (मूर्ति) तब तक होती है जब तक की उसमें प्राण-प्रतिष्ठा न की जाये।
  • प्राण-प्रतिष्ठा के बाद वह देवता का विग्रह हो जाता है।
प्राण प्रतिष्ठा विधि
प्राण प्रतिष्ठा विधि

मूर्ति पूजा सही या गलत

  • वेदों-पुराणों में ब्रह्म के निर्गुण-निराकार और सगुण-साकार दोनों रूपों का वर्णन मिलता है।
  • निर्गुण-निराकार ब्रह्म के उपासक भी सगु-साकार को स्वीकार करते हैं।
  • किंतु कुछ निर्गुण-निराकार ब्रह्म के उपासक एकपक्षीय धारा भी प्रतिपादित करते हैं कि ब्रह्म सगुन-साकार नहीं हो सकता, वेदों में मूर्तिपूजा नहीं बताई गयी है।
  • वास्तव में ऐसे लोग वेद के ज्ञाता नहीं होते नास्तिक दर्शन के ज्ञाता होते हैं।
  • वेदों में विष्णु, शिव, ब्रह्मा, इंद्र, वरुण, सूर्य, चंद्र, विश्वेदेव, मरुत, अग्नि, वसु इत्यादि बहुत से देवताओं का वर्णन मिलता है।
  • पुरुषसूक्त में निर्गुण-निराकार ब्रह्म का वर्णन अवश्य किया गया है किन्तु उसे सगुण और साकार मानकर ही किया गया है।
  • वेदों में मूर्ति पूजा विधि, प्राण प्रतिष्ठा विधि आदि के पर्याप्त मंत्र उपलब्ध हैं।
  • पुराणों व स्मृति ग्रंथों में वेदोक्त सगुण-साकार ब्रह्म की विस्तृत व्याख्या की गई है।
  • मूर्ति पूजा के संदर्भ में सभी पुराण और स्मृति ग्रंथ एकमत हैं।

प्राण प्रतिष्ठा विधि

  • प्राण-प्रतिष्ठा हेतु शास्त्रों के नियमानुसार निर्मित एक प्रतिमा होनी चाहिये।
  • प्रतिमा स्थापन हेतु शास्त्रोक्त विधि से एक मंदिर निर्मित होना चाहिये।
  • प्राण-प्रतिष्ठा हेतु दैवज्ञ द्वारा शुभ मुहूर्त सुनिश्चित कराना चाहिये।
  • प्राण-प्रतिष्ठा हेतु एक शुभ मुहूर्त में एक मंडप और एक कर्मकुटी निर्माण करना चाहिये।
  • प्राण-प्रतिष्ठा यज्ञ हेतु कर्मकांडी ब्राह्मणों को निमंत्रित करना चाहिये। (निमंत्रण का तात्पर्य होता है ब्राह्मण के घर पर जाकर उचित समय पर उपस्थिति हेतु प्रार्थना करना। ब्राह्मण को कभी भी आमंत्रित नहीं करना चाहिये सदैव निमंत्रित ही करना चाहिये। यदि कहीं ब्राह्मणों के लिये आमंत्रित करना कहा गया हो तो उसका आशय भी निमंत्रित करना ही होता है)
  • प्राण-प्रतिष्ठा में लगने वाली सामग्रियों की सूचि कर्मकांडी ब्राह्मण से लेकर उसका संग्रह करे।
  • परिषद हेतु अन्य ४, ७, १२, १८, २४ या २८ (सक्षमता के आधार पर) विद्वान ब्राह्मणों को जो धर्मशास्त्र-कर्मकांड-ज्योतिष आदि से सम्बंधित परिचर्चा करने में, निर्णय देने में सक्षम हों; निमंत्रित करे। परिषद की आवश्यकता विशेष रूप से प्रायश्चित्त के लिये होती है और इस संबंध में अलग लेख है जिसे यहां क्लिक करके पढ़ सकते हैं।

प्राण प्रतिष्ठा की बहुत विस्तृत विधि है और उसमें बहुत सारी अलग-अलग क्रियायें होती है उन सभी क्रियाओं की विधि अलग-अलग लेखों (पोस्टों) में वर्णित है (एवं जो पोस्ट अनुपलब्ध है वह भी शीघ्रातिशीघ्र प्रकाशित किया जायेगा), उन सभी क्रियाओं के बारे में यहाँ बताया गया है और उन क्रिया के लेख का लिंक समाहित किया गया है।

प्राण प्रतिष्ठा विधि : प्रायश्चित्त, प्रायचित्तांग दान/दश विध स्नान/मंगलस्नान आदि करे। प्रायश्चित्त की भी विस्तृत विधि है और समय के साथ इसे भी अलग लेख में प्रकाशित किया जायेगा। फिर जलयात्रा करे।

जल यात्रा

जलयात्रा अर्थ या तात्पर्य : देवताओं के अभिषेक हेतु सविधि जलग्रहण करके निर्धारित स्थान यज्ञ मंडप/मंदिर तक की यात्रा करना जलयात्रा कहलाता है।

  • यहां यह स्पष्ट हो जाता है कि बहुत सारे कलशों में कुमारी कन्या व सौभाग्यवती महिलाओं द्वारा जो जा लाया जाता है उससे देवता का अभिषेक किया जाता है।
  • व्यवहार में जहाँ कहीं उन कलशों को मंडप के चारों ओर स्थापन-पूजन देखा जाता है वह अनुपयुक्त या अविहित है। उससे जलयात्रा का प्रयोजन (देवता प्रतिमा का अभिषेक) सिद्ध नहीं होता है।
  • मंडप के बाहर द्वार कलश, दश दिक्पाल कलश आदि अलग से स्थापित किया जाता है, जो जलयात्रा का कलश नहीं होता है।
जलयात्रा विधि
जलयात्रा

जल यात्रा विधान : जलयात्रा का भी विशेष विधान है जलयात्रा विधि देखें।

Leave a Reply