प्राण प्रतिष्ठा विधि – विधि-विधान की सम्पूर्ण जानकारी

प्राण प्रतिष्ठा विधि - विधि-विधान की सम्पूर्ण जानकारी

तत्पश्चात् ब्राह्मण वरण-अर्चन करे।

आचार्य वरण : आचार्य वरण सामग्री, तिल, जल लेकर पढ़े – ॐ अद्यैतस्य संकल्पित …….. प्राण प्रतिष्ठा कर्मणि आचार्य कर्म कर्तुं एभिः वरणीय द्रव्यैः ……… गोत्रं …….. शर्माणं ब्राह्मणं आचार्यत्वेन त्वामहं वृणे। ब्राह्मण कहें – वृत्तोस्मि। यजमान पुनः कहे यथाविहितं कर्म कुरु। आचार्य पुनः कहें – कर्वाणि। आचार्य पूजन करके प्रार्थना करे – आचार्यस्तु यथा स्वर्गे शक्रादीनां बृहस्पतिः । तथा त्वं ममयज्ञेऽस्मिन्चार्यो भव सुव्रत ॥

फिर अन्य ब्राह्मण का भी वरण करें। अन्य ब्राह्मणों का भी वरण करके अर्चन करे। विस्तृत वरण व अर्चन विधि संबंधी लेख भी शीघ्र प्रकाशित की जायेगी।

  • वर्द्धिनी कलश : तत्पश्चात वर्द्धिनी कलश स्थापन-पूजन करें। वर्द्धिनी कलश संबंधी लेख भी अनुपलब्ध है शीघ्र उपलब्ध करने का प्रयास किया जा रहा है।
  • मंडप प्रवेश : तत्पश्चात पत्नी को वर्द्धिनी कलश देकर आगे करके, अन्य मातृका वेदियां लेकर स्वस्तिवाचन, पुरुषसूक्त आदि वेद मंत्रों को पढ़ते हुये मंडप की प्रदक्षिणा करके पश्चिम द्वार से मंडप प्रवेश करे। वर्द्धिनी कलश को कलशवेदी पर स्थापित करे।
  • भूमि पूजन : तत्पश्चात भूमि पूजन करे। भूमि पूजन मडप प्रवेश से पूर्व भी द्वार पर किया जा सकता है। फिर रक्षोघ्न सूक्तादि द्वारा रक्षाविधान करके पंचगव्य निर्माण-प्रोक्षण करे।
  • वास्तु पूजन : तत्पश्चात नैऋत्य कोण में आकर सविधि ६४ पदों का वास्तु मंडल बनाकर वास्तु पूजन करे। वास्तु पूजन मंडपांग भी होता है और प्राण प्रतिष्ठा में प्रसादांग भी होता है। प्रसादांग वास्तु पूजन भी मंडप में किया जाता है।
  • फिर मंडप को रक्षोघ्न सूक्त पाठ करते हुये अग्निकोण से आरम्भ करके ३ बार सूत्रावेष्टित करे। फिर पवमान सूक्त पाठ करते हुये दुग्ध व जल की धारा दे।
  • फिर मंडप स्तम्भ पूजन, तोरण पूजा, द्वार पूजा, पताका-ध्वज स्थापन पूजन, महाध्वज स्थापन-पूजन आदि करे, सबको बलि भी दे। तत्पश्चात हाथ-पैर धोकर पुनः मंडप में प्रवेश करे। – यज्ञ मंडप पूजन विधि संस्कृत
  • प्रधान वेदी पूजन : तत्पश्चात प्रधान वेदी (सर्वतोभद्र, लिंगतोभद्र आदि) की पूजा करे।
  • प्रधान पूजा : फिर प्रधान देवता की अन्य सुवर्णमयी प्रतिमा का अग्न्युत्तारण करके प्राण-प्रतिष्ठा पूर्वक प्रधान पूजा करे। यह प्रतिमा स्थापित होने वाली प्रतिमा से भिन्न कर्मांग पूजा के लिये होती है।
  • अग्निस्थापन : तत्पश्चात हवन के लिये कुण्ड अथवा वेदी बनाये। यदि पहले से ही बना हो तो पञ्चभूसंस्कार करके सविधि अग्निस्थापन करे।
  • नवग्रह मंडल पूजा : अग्निस्थापन करने के बाद ईशानकोण में नवग्रह मंडल पूजन करे।
  • योगिनी मंडल पूजा : नवग्रह मंडल पूजा करने के बाद अग्निकोण में योगिनी मंडल की पूजा करे।
  • क्षेत्रपाल पूजा : तत्पश्चात वायव्य कोण में क्षेत्रपाल मंडल पूजा करे। (देवी प्रतिष्ठा में भैरव पूजा करे)
  • हवन : तत्पश्चात ब्रह्मा वरण, कुशकण्डिका, आदि करके नवाहुति देकर सभी वेदी देवताओं को आहुति प्रदान करे। फिर अष्टोत्तरशत प्रधान देवता का होम करे।
  • कर्मकुटी : तत्पश्चात शिल्पीशाला जाकर स्वस्तिवाचन करके प्रतिमा निर्माण में होने वाले विभिन्न दोषों (प्राणिदोष) निवारण के लिये कलशस्थापन पूजन करके, पुनः सविधि हवन करे, प्रधान देवता के लिए अष्टोत्तरशत आहुति प्रदान करे। इस हवन में पूर्णपात्र दान कर दे, किन्तु पुर्णाहुति न दे। शिल्पी को भी द्रव्यादि देकर संतुष्ट करे। प्रायः प्रतिमा अन्यत्र से क्रय करके ही लायी जाती है और प्रतिमा मंदिर क्षेत्र में ही रखी जाती है अतः शिल्पी शाला जाने की बात नहीं होती एवं नगर भ्रमण बाद में होता है। यदि शिल्पी द्वारा बनाया गया हो (जैसे अयोध्या में राम लला की प्रतिमा बनायी गयी) तो हवन के बाद प्रतिमा को वस्त्र, माला, शृंगारादि करके नगर भ्रमण (रथयात्रा) करके प्रतिमा हेतु निर्मित मंडप में लाये।

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