अधिवास :
- नेत्रोन्मीलन करके अग्न्युत्तारण करके विभिन्न द्रव्यों से प्रतिमा को स्नान कराकर जलाधिवास करे। जलाधिवास और शय्याधिवास ही प्रतिमा के लिये मुख्य रूप से विशेष आवश्यक होता है। जलाधिवास, धान्यादिवास एवं शय्याधिवास की विशेष विधि है।
- इसके अतिरिक्त घृताधिवास, गंधाधिवास, पुष्पाधिवास, वस्त्राधिवास, फलाधिवास आदि अनेक अधिवास कराये जाते हैं। प्रत्येक अधिवास एक निर्धारित समय के अनुसार करे।
- तत्पश्चात स्नपन, (९० कलशात्मक : दक्षिणवेदी स्नपन, मध्यवेदी स्नपन, उत्तरवेदी स्नपन), रथयात्रा करे।
- शय्याधिवास प्रधान मंडप में भी किया जा सकता है। यदि प्रधान मंडप में शय्याधिवास करना हो तो हवनकुण्ड और प्रधान वेदी (सर्वतोभद्र मंडल/लिंगतोभद्र मंडल.. ) के मध्य में शय्या लगाये।
- शय्या का शिर पूर्व अथवा दक्षिण रखना चाहिये।
एक अप्रमाणिक परम्परा चल पड़ी है नेत्रोन्मीलन काल में शीशा तोड़ने की यह सर्वथा अनुचित है। अधिक जानकारी के लिये ये आलेख पढ़ सकते हैं।
न्यास : तत्पश्चात न्यास करे। न्यास की भी विस्तृत विधि है और न्यास किस प्रकार क्या-क्या होगा इसका निर्धारण पहले ही कर लेना चाहिये। न्यास विधि जटिल है एवं योग्य विद्वानों के लिये पुस्तकोपलब्ध है। न्यास, मूर्तिमूर्तिपतिलोकपाल आवाहन, द्वारपालों को वेदसूक्त जप करना चाहिये।
शान्तिक-पौष्टिक होम :
- पलाश, गुल्लड़, पीपल, शमी, अपामार्ग आदि समिधाओं से शान्तिक-पौष्टिक होम करे।
- यदि १८ होता हों तो ३० बार शांति मन्त्रों से और ३० बार पौष्टिक मन्त्रों से होम करे। यदि १२ होता हों तो ४५-४५ बार, नौ होता हों तो ६०-६० बार करें।
- पर्याप्त समिधा के अभाव में जौ (घृत मिश्रित) अथवा तिल से करे।
- फिर प्रत्येक मूर्तिमूर्तिपतिलोकपाल का १०८ या न्यूनतम २८ आहुति देते हुए होम करे।
- फिर प्रधान देवता का न्यूनतम १००८ अधिक करना हो १२००८ आहुति करके परिवार देवताओं को भी १०८-१०८ आहुतियां प्रदान करे।
- अधिवासन कर्म जितने दिन चले प्रतिदिन होम करे।
- प्रासाद स्नपन, तदङ्ग वास्तु शांति, होम आदि करके देवता का प्रबोधन करे। नानाविध भोगादि अर्पित करे, पूजन करके रथ पर बैठाकर मण्डप के पश्चिम द्वार से बाहर निकले। कर्मकाण्ड विधि का मत है कि रथयात्रा भी इसी समय करे। मंदिर की प्रतिमा करके देवता का मंदिर में प्रवेश स्थापन, स्थिरीकरण करने के बाद शुभ मुहूर्त में प्राणप्रतिष्ठा करे।
प्राण प्रतिष्ठा मंत्र
- ॐ आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं, षं सं हं लं क्षं हं सः सपरिवारस्य …. देवस्य प्राणा इह प्राणाः ॥
- ॐ आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं, षं सं हं लं क्षं हं सः सपरिवारस्य …. देवस्य जीव इह स्थितः ॥
- ॐ आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं, षं सं हं लं क्षं हं सः सपरिवारस्य …. देवस्य सर्वेन्द्रियाणि ॥
- ॐ आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं, षं सं हं लं क्षं हं सः सपरिवारस्य …. देवस्य वाङ्गमनःचक्षुः श्रोत्र त्वग् जिह्वा प्राण वाक्पाणिपादपायूपस्थ प्राणाः इहागत्य सुखं चिरं तिष्ठन्तु स्वाहा ॥
- ॐ अस्यै प्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणाः क्षरन्तु च अस्यै, देवत्वमर्चायै मामहेति च कश्चन॥
- ॐ मनो जूतिर्ज्जुषतामाज्ज्यस्य बृहस्पतिर्य्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं य्यज्ञᳪ समिमं दधातु। विश्वे देवासऽइह मादयन्तामों३ प्रतिष्ठ ॥
जिन विधियों के लिंक उपस्थित नहीं किये गये हैं उनसे सम्बंधित लेख प्रकाशित नहीं किये गए है। प्रकाशित होने के उन विषयों के लिंक उपलब्ध कर दिये जायेंगे।
सभी देवताओं के लिये प्राण प्रतिष्ठा की विधि लगभग यही होती है। थोड़ा-बहुत अंतर अथवा देवता विशेष की विधि जुड़ने पर उसे उन-उन देवताओं की प्राण प्रतिष्ठा विधि कही जाती है जैसे :
राम प्राण प्रतिष्ठा विधि – राम लला की प्राण प्रतिष्ठा
- ॐ आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं, षं सं हं लं क्षं हं सः श्रीरामस्य प्राणा इह प्राणाः ॥
- ॐ आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं, षं सं हं लं क्षं हं सः श्रीरामस्य जीव इह स्थितः ॥
- ॐ आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं, षं सं हं लं क्षं हं सः श्रीरामस्य सर्वेन्द्रियाणि ॥
- ॐ आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं, षं सं हं लं क्षं हं सः श्रीरामस्य वाङ्गमनःचक्षुः श्रोत्र त्वग् जिह्वा प्राण वाक्पाणिपादपायूपस्थ प्राणाः इहागत्य सुखं चिरं तिष्ठन्तु स्वाहा ॥
- ॐ अस्यै प्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणाः क्षरन्तु च अस्यै, देवत्वमर्चायै मामहेति च कश्चन॥
- ॐ मनो जूतिर्ज्जुषतामाज्ज्यस्य बृहस्पतिर्य्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं य्यज्ञᳪ समिमं दधातु। विश्वे देवासऽइह मादयन्तामों३ प्रतिष्ठ ॥ भगवन् श्रीराम इहागच्छ इह सुप्रतिष्ठितो भव।
हनुमान मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा विधि
- ॐ आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं, षं सं हं लं क्षं हं सः श्रीहनुमतः प्राणा इह प्राणाः ॥
- ॐ आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं, षं सं हं लं क्षं हं सः श्रीहनुमतः जीव इह स्थितः ॥
- ॐ आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं, षं सं हं लं क्षं हं सः श्रीहनुमतः सर्वेन्द्रियाणि ॥
- ॐ आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं, षं सं हं लं क्षं हं सः श्रीहनुमतः वाङ्गमनःचक्षुः श्रोत्र त्वग् जिह्वा प्राण वाक्पाणिपादपायूपस्थ प्राणाः इहागत्य सुखं चिरं तिष्ठन्तु स्वाहा ॥
- ॐ अस्यै प्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणाः क्षरन्तु च अस्यै, देवत्वमर्चायै मामहेति च कश्चन॥
- ॐ मनो जूतिर्ज्जुषतामाज्ज्यस्य बृहस्पतिर्य्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं य्यज्ञᳪ समिमं दधातु। विश्वे देवासऽइह मादयन्तामों३ प्रतिष्ठ ॥ भगवन् श्रीहनुमन् इहागच्छ इह सुप्रतिष्ठितो भव।
शिव प्राण प्रतिष्ठा विधि
- ॐ आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं, षं सं हं लं क्षं हं सः श्रीशिवस्य प्राणा इह प्राणाः ॥
- ॐ आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं, षं सं हं लं क्षं हं सः श्रीशिवस्य जीव इह स्थितः ॥
- ॐ आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं, षं सं हं लं क्षं हं सः श्रीशिवस्य सर्वेन्द्रियाणि ॥
- ॐ आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं, षं सं हं लं क्षं हं सः श्रीशिवस्य वाङ्गमनःचक्षुः श्रोत्र त्वग् जिह्वा प्राण वाक्पाणिपादपायूपस्थ प्राणाः इहागत्य सुखं चिरं तिष्ठन्तु स्वाहा ॥
- ॐ अस्यै प्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणाः क्षरन्तु च अस्यै, देवत्वमर्चायै मामहेति च कश्चन॥
- ॐ मनो जूतिर्ज्जुषतामाज्ज्यस्य बृहस्पतिर्य्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं य्यज्ञᳪ समिमं दधातु। विश्वे देवासऽइह मादयन्तामों३ प्रतिष्ठ ॥ भगवन् श्रीशिव इहागच्छ इह सुप्रतिष्ठितो भव।
दुर्गा प्राण प्रतिष्ठा मंत्र
- ॐ आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं, षं सं हं लं क्षं हं सः श्रीदुर्गायाः प्राणा इह प्राणाः ॥
- ॐ आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं, षं सं हं लं क्षं हं सः श्रीदुर्गायाः जीव इह स्थितः ॥
- ॐ आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं, षं सं हं लं क्षं हं सः श्रीदुर्गायाः सर्वेन्द्रियाणि ॥
- ॐ आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं, षं सं हं लं क्षं हं सः श्रीदुर्गायाः वाङ्गमनःचक्षुः श्रोत्र त्वग् जिह्वा प्राण वाक्पाणिपादपायूपस्थ प्राणाः इहागत्य सुखं चिरं तिष्ठन्तु स्वाहा ॥
- ॐ अस्यै प्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणाः क्षरन्तु च अस्यै, देवत्वमर्चायै मामहेति च कश्चन॥
- ॐ मनो जूतिर्ज्जुषतामाज्ज्यस्य बृहस्पतिर्य्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं य्यज्ञᳪ समिमं दधातु। विश्वे देवासऽइह मादयन्तामों३ प्रतिष्ठ ॥ भगवति श्रीदुर्गे इहागच्छ इह सुप्रतिष्ठितो भव।
- देवी प्राण प्रतिष्ठा विधि
F & Q :
प्रश्न : प्राण प्रतिष्ठा कैसे की जाती है?
उत्तर : अक्षत-पुष्पादि लेकर प्रतिमा के हृदय को अनामिका व अंगुष्ठ से स्पर्श करते हुये वैदिक-पौराणिक-नाम मंत्रों को पढ़कर प्राण-प्रतिष्ठा की जाती है।
प्रश्न : नई मूर्ति की पूजा कैसे करें?
उत्तर : नयी मूर्ति की पूजा से पहले उसकी प्राण-प्रतिष्ठा आवश्यक होती है। ब्राह्मण को निमंत्रित करके विधि के अनुसार नयी मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा करें उसके बाद पूजा करें।
प्रश्न : मूर्तिकार को क्या बोलते हैं?
उत्तर : मूर्तिकार को शिल्पी भी बोलते हैं।
प्रश्न : प्राण प्रतिष्ठा कैसे किया जाता है?
उत्तर : घर में छोटी प्रतिमा और मंदिर की प्रतिमा के लिये प्राण प्रतिष्ठा की अलग-अलग विधि होती है। मंदिर में अचल और चल दोनों प्रकार की प्राण प्रतिष्ठा की जा सकती है लेकिन घर में चल प्राण प्रतिष्ठा ही करनी चाहिये। प्राण प्रतिष्ठा की विशेष विधि होती है जिसके लिये विद्वान आचार्य की आवश्यकता होती है।
प्रश्न : प्राण प्रतिष्ठा का मंत्र क्या है?
उत्तर : प्राण प्रतिष्ठा का मुख्य वाजसनेयी मंत्र है : ॐ मनो जूतिर्ज्जुषतामाज्ज्यस्य बृहस्पतिर्य्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं य्यज्ञᳪ समिमं दधातु। विश्वे देवासऽइह मादयन्तामों३ प्रतिष्ठ ॥ प्राण प्रतिष्ठा का छन्दोगी मंत्र है : ॐ वाङ्मनः प्राणाऽपानौ व्यानश्चक्षुः श्रोत्रं शर्म वर्म भूतिः प्रतिष्ठा॥
प्रश्न : प्राण प्रतिष्ठा का मतलब क्या होता है?
उत्तर : प्राण प्रतिष्ठा का मतलब होता है जिस प्रतिमा या कलश, वेदी, पिण्डिका आदि की पूजा करनी हो उसमें पूज्य देवता का सन्निद्धान करना। कुछ लोग केवल किसी मंदिर में प्रतिमा के लिये देवता का सन्निधान होना प्राण प्रतिष्ठा समझते हैं जो सही नहीं है।
प्रश्न : प्राण प्रतिष्ठा का समय क्या है?
उत्तर : प्राण प्रतिष्ठा का कोई निर्धारित समय नहीं होता है। पञ्चाङ्गो के अनुसार शुभ मुहूर्त का निर्धारण किया जाता है। यदि प्राण प्रतिष्ठा के लिये उपर्युक्त तिथ्यादि में शोधित लग्न अनुपलब्ध हो तो अभिजिन्मुहूर्त में किया जाता है।
प्रश्न : क्या हम घर पर प्राण प्रतिष्ठा कर सकते हैं?
उत्तर : प्रतिदिन पूजा करने के लिये यदि भगवान की कोई नई प्रतिमा लिया है तो विद्वान ब्राह्मण के बुलाकर उनसे परामर्श लेकर शुभमुहूर्त में प्राण प्रतिष्ठा कर सकते हैं। घर में 12 अंगुल से बड़ी प्रतिमा रखने का निषेध है।
कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।