राम मंदिर ऐतिहासिक मंदिर है जो देश के इतिहास और राष्ट्रसम्मान से जुड़ा हुआ है। इस कारण राम मंदिर में जो भी हो उसमें शास्त्रोक्त वचनों का अक्षरशः पालन किया जाना चाहिये। यदि उपस्थित निर्णेता शास्त्र से अनभिज्ञ हों तो उन्हें विद्वानों से परामर्श लेना चाहिये और फिर कोई निर्णय करना चाहिये। अभी कुछ नये नियम बनाये गये हैं जिसकी चर्चा यहां की गयी है।
देश के सम्मान से जुड़े राम मंदिर में ऐसे निर्णय कौन लेते हैं
राम मंदिर में नियुक्त 20 पुजारियों के 6 महीने का प्रशिक्षण पूरा हो गया है और सूचना के अनुसार अगले 6 महीने में फिर नये 20 पुजारियों को प्रशिक्षण दिया जायेगा। अर्चकों की कुल संख्या 100 किया जायेगा और वह इसी 20 – 20 के क्रम से होगा। 20 की संख्या पर भी आगे चर्चा करेंगे। राम मंदिर ट्रस्ट द्वारा कुछ निर्णय समाचार के माध्यम से ज्ञात हुये हैं जैसे कि :
- परिधान परिवर्तन : समाचारों में बताया गया है कि पहले पुजारी भगवा रंग के वस्त्र धारण करते थे अब पीला वस्त्र धारण करेंगे। पीताम्बरी, कुर्ता और पगड़ी सभी पीले ही होंगे। आगे हम पगड़ी के विषय में चर्चा करेंगे।
- वेतन : समाचारों में पुजारियों के वेतन संबंधी जानकारी भी बताई गई है कि वेतन का निर्धारण हो गया है। वेतन सार्वजनिक नहीं किया गया है लेकिन पुजारियों को बता दिया गया है।
- मोबाइल का प्रयोग : एक निर्णय मोबाइल के संबंध में भी बताया जा रहा है। गर्भगृह में मोबाइल प्रयोग पर प्रतिबंध लगाया गया है । पुजारियों को जो गर्भगृह में उपस्थित होंगे अपना मोबाइल एक लॉकर में रखना होगा, आवश्यक होने पर मोबाइल लेकर गर्भगृह से बाहर जाकर बात कर सकेंगे। यह अच्छा निर्णय कहा जाना चाहिये।
- दक्षिणा आदि न लेना : एक निर्णय यह भी लिया गया है कि यदि कोई श्रद्धालु कुछ दक्षिणा दें भी तो पुजारी ग्रहण नहीं कर सकते, वो दान पेटी बतायेंगे। यह भी चर्चा का विषय है।
इसके साथ ही कुछ और निर्णय भी बताये जा रहे हैं। हमें जिन दो निर्णयों की चर्चा करनी है वो है पगड़ी, 20 की संख्या और दक्षिणा ग्रहण करने का निषेध।
पगड़ी
यहां चर्चा का विषय राम मंदिर के पुजारियों के परिधान संबंधी निर्णय में किये गये परिवर्तन हैं। इसी कारण त्रुटि ज्ञात भी हुआ और ढूंढने पर त्रुटि सिद्ध करने वाले विडियो भी मिले जो यहां दिया गया है और उसमें साफ-साफ देखा जा सकता है। राम मंदिर के पुजारियों के लिये पीले रंग के कपड़े पहनने का नियम बनाया गया लेकिन विषय यह नहीं है। परिधान में पगड़ी की बात भी उजागर हुई है और चर्चा का विषय पगड़ी ही है।
पूजा आदि काल में सिर पर वस्त्रादि रखकर सिर ढंकना शास्त्रों में निषिद्ध किया गया है। प्रश्न यही है कि निर्णय लेने वाले किन शास्त्रों के आधार पर निर्णय लेते हैं कि गर्भगृह में पगड़ी पहनने का निर्णय लिया गया है।
अति दुर्लभ दर्शन गर्भ ग्रह श्री राम मंदिर अयोध्या से🚩 pic.twitter.com/2YkEnC9Kfi
— राम नगरी – अयोध्या (@RamNagariAyodhy) July 4, 2024
दूसरा प्रश्न पुजारियों से भी है, क्योंकि ऐसा भी बताया जा रहा है कि परिधान का निर्णय लेने के लिये पुजारियों को ही कहा गया था। ये पुजारी कहां से चयन किये गये हैं, किस आधार पर चयन किया गया है और चयन करने वाले कौन थे? आगे की चर्चा से पूर्व हम इस संदर्भ में कुछ प्रमाणों का अवलोकन करेंगे :
- शिरः प्रावृत्य वस्त्रेण ध्यानं नैव प्रशस्यते। – पद्मपुराण; सिर पर वस्त्र रखकर या वस्त्रावृत करके (पगड़ी) बांधकर ध्यान करना प्रशस्त नहीं होता है।
- शिरः प्रावृत्य कण्ठं वा मुक्तकच्छशिखोऽपि वा । अकृत्वा पादयोः शौचं आचान्तोऽप्यशुचिर्भवेत् ॥ – व्यास; सिर वा कंठ में वस्त्रादि लपेट रखे हो, ढंक रखे हो, कच्छरहित हो, शिखामुक्त (अथवा ग्रंथिहीन) हो, पैर को धोया नहीं हो तो आचमन करने के उपरांत भी अशुद्ध ही रहता है।
- प्रदक्षिणे प्रणामे च पूजयां हवने जपे। न कण्ठावृतवस्त्रः स्याद्दर्शने गुरुदेवयोः ॥ – शांडिल्य; प्रदक्षिणा, प्रणाम, पूजा, हवन, जपादि के साथ-साथ देवता और गुरु के दर्शन करते कण्ठ में भी वस्त्र लपेटा नहीं रखे।
तीन प्रमाण पर्याप्त हैं जो यह सिद्ध करते हैं कि कर्मकांड में उन अपवादों को छोड़कर जब पगड़ी धारण का उल्लेख किया गया हो, कभी भी सिर पर या गले में भी वस्त्र (अंगोछा, रुमाल आदि) नहीं लपेटना चाहिये। अर्थात गले से लेकर सिर तक वस्त्र रहित रहना चाहिये, भले ही मात्र देवता अथवा गुरु का दर्शन मात्र ही क्यों न करना हो।
- जहां कहीं भी पूजा, प्रदक्षिणा, आरती, दर्शन इत्यादि जो कुछ भी करना हो सबसे पहले दो बातें अनिवार्य होती है स्नानादि के उपरांत शुद्ध वस्त्र धारण करें और पैर धोना (कर्मकांड में अधिकांशतः अतिरिक्त वैकल्पिक मंत्रस्नान और जल छींटकर ही पादप्रक्षालन भी किया जाता है), बाह्याभ्यंतर शुद्धि आचमन और भगवान हरि के स्मरण से होती है।
- आचमन काल में भी यदि सिर अथवा गले में वस्त्र लपेट रखे हों तो आचमन के उपरांत भी अशुद्धि बनी रहती है अर्थात शुद्धि नहीं होती।
- आचमन के उपरांत कहीं ऐसा वर्णन नहीं है कि सिर या गले में वस्त्राच्छादन कर लेना चाहिये, किन्तु निषेध है।
कुल मिलाकर गर्भगृह में जो पगड़ी धारण संबंधी नियम है वह शास्त्रविरुद्ध प्रतीत होता है। साथ ही साथ नियुक्त पुजारियों के ऊपर प्रश्नचिह्न भी उत्पन्न करता है। राममंदिर पूरे राष्ट्र के गौरव, इतिहास से जुड़ा हुआ है। राममंदिर संबंधी किसी भी नियम हेतु कोई निष्कर्ष सम्पूर्ण शास्त्रों का अवलोकन करना अपेक्षित है। राम मंदिर का प्रत्येक नियम सभी प्रमुख ऋषियों और स्मृति-पुराणादि प्रामाणिक ग्रंथों के वचनों के आधार पर निर्धारित होना चाहिये।
जो पुजारी गर्भगृह के बाहर आशीर्वाद देने, तिलक लगाने, प्रसाद देने आदि का कार्य करें वो पगड़ी धारण करें तो दूसरी बात होगी, किन्तु गर्भगृह में पुजारी कहने का तात्पर्य ही होता है एक ही पगड़ीधारी है और वो गर्भगृह में स्थापित देवता है न कि पुजारी। पुजारी तो उसकी पूजा करने के लिये मंदिर में नियुक्त हुआ है।
20 की संख्या
समाचार के माध्यम से ही यह तथ्य भी विदित हुआ कि अर्चकों के प्रथम समूह का प्रशिक्षण संपन्न हो गया है और समूह में कुल 20 अर्चक थे। इसी प्रकार अर्चकों के और समूह भी प्रशिक्षित किये जायेंगे और कुल 100 अर्चक नियुक्त होंगे। सभी समूह में 20 अर्चक होंगे जिनको प्रशिक्षण दिया जायेगा।
20 की संख्या भी त्याज्य है बीस को विष माना गया है। विषम संख्या की बात करें तो 3 को दोषपूर्ण और सम संख्या की बात करें तो 20 को दोषपूर्ण माना गया है। किसी को कुछ देना हो तो 3 की संख्या में नहीं दिया जाता, यात्रा करनी हो तो तीन लोग एक साथ यात्रा के लिये प्रस्थान नहीं करते आदि। विवाह करना हो तो 20वां वर्ष निषिद्ध होता है और बीस को विष माना जाता है। 20 के संबंध में ये निषेध मात्र लौकिक नहीं है शास्त्रोचित भी है।
देश के गौरव राम मंदिर को कौन लोग चला रहे हैं जो इन सामान्य नियमों की भी अनदेखी कर रहे हैं, अर्थात सामान्य बातें भी जिसके लिये शास्त्रों को देखने की आवश्यकता नहीं होती व्यवहार में भी प्रचलित है उसकी अनदेखी क्यों की जाती है अथवा उसके विरुद्ध क्यों किया जा रहा है ?
दक्षिणा ग्रहण करने का निषेध
उपरोक्त जो दो महत्वपूर्ण विषय है जिसपर विमर्श और सुधार की आवश्यकता है संभवतः कहीं कोई चर्चा नहीं करेंगे। शंकराचार्य भी इस महत्वपूर्ण विषय पर कुछ बोलें ऐसी आशा नहीं है। किन्तु विवाद किस विषय पर उत्पन्न हो सकता है ? विवाद उत्पन्न हो सकता है भक्तों से दक्षिणा ग्रहण करने के निषेध पर।
सबसे पहली बात जो लोग ये समझ रहे हों की मंदिर के पुजारी बहुत श्रेष्ठ हैं, ये सत्य नहीं है। शास्त्रों के द्वारा ही इस विषय का निश्चय किया जा सकता है न कि उनके प्रभाव के आधार पर। राममंदिर में जो पुजारी नियुक्त हुये हैं निश्चित रूप से उनका देश भर में विशेष प्रभाव होगा क्योंकि सभी प्रभावशाली व्यक्तियों से उनका संपर्क होगा। किन्तु इस प्रभाव के कारण वो श्रेष्ठ सिद्ध नहीं हो सकते।
शास्त्रों में वैतनिक पुजारी को निंद्य कहा गया है और उनके भोजन तक कराने का निषेध किया गया है। अर्थात यदि ब्राह्मण भोजन कराना हो तो जो वेतन प्राप्त करने वाले पुजारी ब्राह्मण होते हैं उन्हें निषिद्ध कहा गया है। जब ब्राह्मण भोजन तक के लिये वैतनिक पुजारी का निषेध किया गया है तो दान और दक्षिणा ग्रहण करने की योग्यता कैसे सिद्ध हो सकती है।
इस विषय में यह विमर्श या विवाद का विषय नहीं होना चाहिये कि पुजारियों के दक्षिणा ग्रहण को निषेध किया गया है। उन्हें पुजारी कहा जायेगा ये अलग बात है इस आधार से कहा जायेगा कि राम मंदिर में पूजा आदि करेंगे।
आगे की बात जो है वो थोड़ी अटपटी लग सकती है किन्तु इसका यदि खंडन करना हो तो तर्क से खंडन करें। विरोध मात्र करने से खंडन नहीं होता, विषय संवेदनशील है इसका अर्थ उचित तथ्य को छुपाया जाय ये भी नहीं होता। यदि आगे की बातें या तर्क असिद्ध हो जाये तो उसे हटाने के लिये मुझे कोई आपत्ति नहीं होगी और इस विषय में मैं भी अधिक जानकारी प्राप्त करना चाहूंगा। जो भी इस विषय में अधिक बातें बता सकते हैं उनका स्वागत है। वास्तव में वो ट्रष्ट के कर्मचारी हैं।
- उन्हें वेतन कौन देगा – ट्रष्ट
- नियम किसने बनाया या बनायेगा – ट्रष्ट
- तो कर्मचारी या सेवक किसके – ट्रष्ट के।
वैतनिक पुजारी को निंद्य इसी कारण कहा गया है क्योंकि वास्तव में वो भगवान के सेवक नहीं होते वो व्यक्ति/संस्था विशेष के सेवक होते हैं। उनकी नियुक्ति भी व्यक्ति/संस्था विशेष द्वारा होती है, उन्हें वेतन भी व्यक्ति/संस्था विशेष द्वारा प्रदान किया जाता है और व्यक्ति/संस्था विशेष उनको पदमुक्त भी कर सकते हैं। पुजारी का तात्पर्य भगवान का आश्रित पूजा करने वाला है न की व्यक्ति या ट्रष्ट का आश्रित।
लेकिन यहाँ वास्तविक त्रुटि व्यवस्था, तंत्र, ट्रष्ट की है न कि पुजारियों की लेकिन इस सत्य को नकारा नहीं जा सकता कि राममंदिर पुजारीविहीन है। इसकी तुलना अन्य निजी/संस्थागत मंदिरों से भी नहीं की जा सकती क्योंकि वहां सेवकत्व की सिद्धि नहीं होती। वहां पुजारी को आग्रह करके नियुक्त किया जाता है न की परीक्षा लेकर। उन मंदिरों के पुजारियों को भी कुछ वृत्तिका लाभ प्राप्त होता है किन्तु वो व्यक्ति/संस्था के सेवक नहीं होते।
पहले भी राजा महाराजा मंदिर बनाया करते थे किन्तु वो ट्रष्ट के अधीन पूजा व्यवस्था व भगवान की सेवा नहीं रखी जाती थी। ट्रष्ट व्यवस्था के लिये बनाया जा सकता है, सभी कार्यों के लिये बनाया जा सकता है किन्तु प्रतिष्ठित देवता और पुजारी के मध्य नहीं आ सकता। यदि ढेरों पुजारी बनने हैं तो पुजारियों का एक अतिरिक्त ट्रष्ट होना चाहिये जो ये सिद्ध करे कि पुजारी उस ट्रष्ट के कर्मचारी/सेवक नहीं हैं जो व्यवस्था के लिये बनाई गयी है।
पुजारियों को ट्रष्ट से एक रुपया भी वेतन नहीं लेना चाहिये। यदि वेतन लेने के लिये पुजारी बने हैं तो ज्ञान और पूजा दोनों …. आगे “मौनं सर्वार्थ साधनं।” किन्तु गर्भगृह हो अथवा मंदिर का पूरा प्रांगण अथवा पूर्ण विश्व कहीं किसी से, श्रद्धालु यदि उपहार-दक्षिणा दे रहा हो तो उसे ग्रहण करने में पुजारी पर रोक लगाने वाला अधिकार ट्रष्ट को किस शास्त्र ने दिया प्रश्न ये है ? क्या ट्रष्ट ने शास्त्रों को जला दिया है ?