तदुत्तर ब्रह्मचारी (बरुआ) आचार्य के दाहिने पूर्वाभिमुख होकर बैठे, अगले पांच मंत्रों से घृताक्त पांच समिधाओं की आहुति प्रदान करे :
- ॐ अग्ने सुश्रवः सुश्रवसं मा कुरु ॥
- ॐ यथा त्वमग्ने सुश्रवः सुश्रवा असि ॥
- ॐ एवं मा ᳪ सुश्रवः सौश्रवसं कुरु ॥
- ॐ यथा त्वमग्ने देवानां यज्ञस्य निधिपा असि ॥
- ॐ एवमहं मनुष्याणां वेदस्य निधिपो भूयासम् ॥
फिर ब्रह्मचारी दाहिने हाथ में जल लेकर प्रदक्षिण क्रम से अग्नि का पर्युक्षण करे, फिर खड़ा हो जाये, एक प्रादेशप्रमाण (ब्रह्मचारी का प्रादेशप्रमाण) घृताक्त पलाश समिधा लेकर अगले मंत्र से अग्नि में दे : ॐ अग्नये समिधमहार्षं बृहते जातवेदसे । यथा त्वमग्ने समिधा समिध्यस एवमहमायुषा मेधया वर्च्चसा प्रजया पशुभिर्ब्रह्मवर्चसेन समिन्धे जीवपुत्रो ममाचार्यो मेधाव्यहमसान्यनिराकारिष्णुर्यशस्वी तेजस्वी ब्रह्मवर्चस्यन्नादो भूयास ᳪ स्वाहा ॥ पुनः इसी मंत्र से एक-एक समिधा और दे, कुल – 3।
पुनः ब्रह्मचारी बैठ जाये और पूर्ववत ही पांच घृताक्त समिधा अग्नि में दे :
- ॐ अग्ने सुश्रवः सुश्रवसं मा कुरु ॥
- ॐ यथा त्वमग्ने सुश्रवः सुश्रवा असि ॥
- ॐ एवं मा ᳪ सुश्रवः सौश्रवसं कुरु ॥
- ॐ यथा त्वमग्ने देवानां यज्ञस्य निधिपा असि ॥
- ॐ एवमहं मनुष्याणां वेदस्य निधिपो भूयासम् ॥
पाणी प्रतप्य मुख विमृष्टे : तत्पश्चात ब्रह्मचारी पुनः अग्नि का पर्युक्षण करे। तत्पश्चात क्रमशः पहले चुपचाप अग्नि में दोनों हाथों को तप्त करे फिर मंत्र पढ़कर दोनों हाथों से मुख (मुखमण्डल) का स्पर्श करे अर्थात सेंके :
- ॐ तनूपा अग्नेऽसि तन्वं मे पाहि ॥
- ॐ आयुर्दा अग्नेऽस्यायुर्मे देहि ॥
- ॐ व्वर्चोदा अग्नेऽसि व्वर्चो मे देहि ॥
- ॐ अग्ने यन्मे तन्वा ऊनं तन्म आपृण ॥
- ॐ मेधां मे देवः सविता आदधातु ॥
- ॐ मेधां मे देवी सरस्वती आदधातु ॥
- ॐ मेधां मे अश्विनौ देवावाधत्तां पुष्करस्रजौ ॥
अङ्गान्यालभ्य जपति : तदुत्तर अगले मंत्रों से निर्द्दिष्ट किये गये अंगों का स्पर्श करे, यहां पर अग्नि में हाथों को तपाने की आवश्यकता नहीं है अर्थात हाथों को अग्नि में तपाये बिना ही अंगों का स्पर्श करे :
- ॐ अङ्गानि च म आप्यायन्तां ॥ शिर से पैर तक सभी अङ्गों का स्पर्श करे।
- ॐ वाक् च म आप्यायतां ॥ मुख का स्पर्श करे।
- ॐ प्राणश्च म आप्यायतां ॥ नासापुटों का स्पर्श करे।
- ॐ चक्षुश्च म आप्यायतां ॥ दोनों नेत्रों का स्पर्श करे।
- ॐ श्रोत्रं च म आप्यायतां ॥ दोनों कर्णों का स्पर्श करे।
- ॐ यशोबलञ्च म आप्यायतां ॥ पाठ मात्र ।
त्र्यायुषमिति प्रतिमन्त्रम् : फिर ब्रह्मचारी दाहिने अनामिका से त्र्यायुषं मंत्रों को पढ़ते हुये क्रमशः आगे बताई गये अंगों में भस्म लगाये : ॐ त्र्यायुषम्जमदग्नेः (ललाट पर) । ॐ कश्यपस्य त्र्यायुषं (कंठ में) । ॐ यद्देवेषु त्र्यायुषं (दक्षिण बाहु पर) । ॐ तन्नोऽअस्तु त्र्यायुषं (हृदय में) ।
अभिवादन : तत्पश्चात बांये गट्टे पर दाहिना गट्टा रखते हुये पृथ्वी का स्पर्श करके क्रमशः अगले तीनों मंत्रों को पढ़ते हुये (यथास्थान गोत्र, प्रवर, नाम का उच्चारण करके) वैश्वानर, वरुण और आचार्य का अभिवादन करे :
- वैश्वानर: ॐ अमुक गोत्रोऽहं अमुक प्रवरोऽहं अमुक शर्माऽहं भो वैश्वानर अभिवादये ॥
- वरुण : ॐ अमुक गोत्रोऽहं अमुक प्रवरोऽहं अमुक शर्माऽहं भो वरुण अभिवादये ॥
- आचार्य : ॐ अमुक गोत्रोऽहं अमुक प्रवरोऽहं अमुक शर्माऽहं भो आचार्य अभिवादये ॥
अभिवादन के बाद आचार्य आशीर्वाद प्रदान करें : ॐ आयुष्मान् भव सौम्य ॥