क्या आप जानते हैं राम लला की प्राण प्रतिष्ठा बाल रूप में क्यों हुई ?
यहां दिये गये 14 प्रश्नों से ही ये स्पष्ट होता है कि राम लला की प्राण प्रतिष्ठा बाल रूप में क्यों हुई ? और हम यह आशा करते हैं कि सभी को इस प्रश्न का उत्तर मिल भी गया होगा।
यहां दिये गये 14 प्रश्नों से ही ये स्पष्ट होता है कि राम लला की प्राण प्रतिष्ठा बाल रूप में क्यों हुई ? और हम यह आशा करते हैं कि सभी को इस प्रश्न का उत्तर मिल भी गया होगा।
राम राज्य का सीधा भाव यह होता है कि सभी सुखी-सम्पन्न हों, चिन्तामुक्त जीवन हो, किसी प्रकार का भय न हो इत्यादि-इत्यादि । इसको अगर थोड़ा शब्दांतर से समझने का प्रयास करें तो इस प्रकार का भी अर्थ प्रकट हो सकता है :-
बुद्धिमान वो होता है जो गलतियों से सीख ले, विद्वान वो होता है जो आत्म कल्याण करते हुए औरों का कल्याण करने में सक्षम हो। मंदिर, मूर्ति, प्राण-प्रतिष्ठा, महोत्सव आदि सभी विषयों पर कुछ विवाद भी उत्पन्न हुए, जिससे आगे काशी, मथुरा आदि के संबंध में कुछ सीख प्राप्त हुई ।
राम लला के अयोध्या आगमन पर सबसे अधिक प्रसन्न होकर हनुमान जी नाच रहे हैं और भक्त गा रहे हैं – राम हमारे अयोध्या पधारे, नाच रहे हनुमान। जय श्री राम :- इस भजन में इतिहास को भी समाहित किया गया है।
इस आलेख में मंदिरों में शिखर की अनिवार्यता से सम्बंधित एक नये विषय के प्रकट होने की चर्चा कि गयी है, जो देश के लाखों राम और कृष्ण मंदिरों (ठाकुरवारियों) के सन्दर्भ में विचारणीय है।
कर्मकांड विधि का इस आलेख में मात्र इतना उद्देश्य है कि देशभर के श्रद्धालु रामभक्तों के मन में जो संशय उत्पन्न करने का प्रयास किया जा रहा है उसका निस्तारण हो सके। प्रलाप करने वालों के लिये समय नष्ट करना भी अनावश्यक है। प्रलाप करने वालों के लिये गोस्वामी तुलसीदास की सर्वोत्तम चौपाई जो उन्हें सचेत करती है वह है : संकर सहस विष्णु अज तोहिं । सकहिं न राखि राम कर द्रोही॥
इस आलेख में सभी मुख्य प्रश्नों के उत्तर समाहित किया जा रहा है जिससे श्रद्धालुओं को संशय न रहे। इस विषय में उमाशंकर पांडेय (येन केन प्रकारेण शंकराचार्य) के द्वारा भी बहुत प्रलाप किये जा रहे हैं तो निश्चित रूप से उनकी चर्चा समाहित की जानी चाहिये।
शंकराचार्य ज्ञान पक्ष में होते हैं। कर्मकांड में शंकराचार्य की भूमिका नगण्य होती है अथवा बिल्कुल ही नहीं होती। राम लला की प्राण प्रतिष्ठा में विरोधियों को बड़ा अच्छा प्रश्रय मिल रहा है और वह है शंकराचार्यों के वक्तव्य। लेकिन शंकराचार्यों के वक्तव्य में कुछ प्रच्छन्न पीड़ा भी है जो पूर्व से है। जहां तक प्राण प्रतिष्ठा संबंधी विहित-निषिद्ध, उचित-अनुचित आदि वाली बातें हैं उसके लिये शंकराचार्य का कोई दायित्व ही नहीं है यदि उपस्थित न हों ।
राम लला की प्राण प्रतिष्ठा में नया विवाद है, जिसमें शंकराचार्य का अनपेक्षित विडिओ सामने आया है। राम मंदिर निर्माण में राजनीतिक होने के साथ प्राण प्रतिष्ठा का धार्मिक महत्व भी है। इस प्रकार के कर्म में शास्त्रीय मर्यादा का पालन अत्यंत आवश्यक है। पर्षद की अहमियत और अनुचित आमंत्रण के विषय में विचार करना चाहिए।