दुर्गा सप्तशती पाठ अध्याय 13
ॐ बालार्कमण्डलाभासां चतुर्बाहुं त्रिलोचनाम्।
पाशाङ्कुशवराभीतीर्धारयन्तीं शिवां भजे॥
ॐ बालार्कमण्डलाभासां चतुर्बाहुं त्रिलोचनाम्।
पाशाङ्कुशवराभीतीर्धारयन्तीं शिवां भजे॥
स्तुति से प्रसन्न होकर देवताओं को बाधानिवारण का वरदान देने के पश्चात् बारहवें अध्याय में भगवती स्वयं ही सप्तशती के पाठ, श्रवण आदि का माहात्म्य बताती हैं। ग्यारहवां अध्याय वास्तव में सप्तशती का माहात्म्य ही है जो स्वयं भगवती द्वारा ही बताया गया है।
देवी द्वारा शुम्भ वध के उपरांत दशों दिशाओं में हर्ष व्याप्त हो गया, देवताओं के मुखकमल खिल गये और हर्षित होकर देवताओं ने देवी की स्तुति किया। स्तुति से प्रसन्न होने के बाद देवी ने वर मांगने के लिये कहा तो देवताओं ने सभी बाधाओं को शमन करने के लिये कहा।
देवी द्वारा निशुम्भ वध के उपरांत शुम्भ लांछन करता है कि औरों के बल पर आश्रित होकर गर्व करती हो तब देवी कहती है इस अखिल विश्व में एक मैं ही हूँ,
सभी प्रमुख असुरों की मृत्यु के उपरांत शुम्भ-निशुम्भ विशाल सेना के साथ युद्ध करने आया। भयंकर युद्ध के साथ ही नौवें अध्याय में निशुम्भ वध की कथा है।
ॐ अरुणां करुणातरङ्गिताक्षीं
धृतपाशाङ्कुशबाणचापहस्ताम्।
अणिमादिभिरावृतां मयूखै-
रहमित्येव विभावये भवानीम्॥
ॐ ध्यायेयं रत्नपीठे शुककलपठितं शृण्वतीं श्यामलाङ्गीं
न्यस्तैकाङ्घ्रिं सरोजे शशिशकलधरां वल्लकीं वादयन्तीम्।
कह्लाराबद्धमालां नियमितविलसच्चोलिकां रक्तवस्त्रां
मातङ्गीं शङ्खपात्रां मधुरमधुमदां चित्रकोद्भासिभालाम्॥
ॐ नागाधीश्वरविष्टरां फणिफणोत्तंसोरुरत्नावली-
भास्वद्देहलतां दिवाकरनिभां नेत्रत्रयोद्भासिताम्।
मालाकुम्भकपालनीरजकरां चन्द्रार्धचूडां परां
सर्वज्ञेश्वरभैरवाङ्कनिलयां पद्मावतीं चिन्तये॥
ॐ कालाभ्राभां कटाक्षैररिकुलभयदां मौलिबद्धेन्दुरेखां
शड्खं चक्रं कृपाणं त्रिशिखमपि करैरुद्वहन्तीं त्रिनेत्राम्।
सिंहस्कन्धाधिरूढां त्रिभुवनमखिलं तेजसा पूरयन्तीं
ध्यायेद् दुर्गां जयाख्यां त्रिदशपरिवृतां सेवितां सिद्धिकामैः॥
ॐ घण्टाशूलहलानि शङ्खमुसले चक्रं धनुः सायकं
हस्ताब्जैर्दधतीं घनान्तविलसच्छीतांशुतुल्यप्रभाम्।
गौरीदेहसमुद्भवां त्रिजगतामाधारभूतां महा-
पूर्वामत्र सरस्वतीमनुभजे शुम्भादिदैत्यार्दिनीम्॥