
दिग्रक्षण : रक्षा विधान मंत्र या भूतोत्सारण, संक्षिप्त नित्यकर्म सहित, दिग्बंधन विधि
देव-दानवों का प्राकृतिक वैर है एवं असुरादि गणों का नैसर्गिक स्वभाव भी शुभ कर्मों में विघ्नादि उपस्थित करना है। इस कारण किसी भी प्रकार के पूजा-पाठ आदि करने से पूर्व रक्षा विधान किया जाता है। रक्षा विधान को ही दिग्रक्षण या अपसारन आदि भी कहा जाता है।