क्या आप जानते हैं राम लला की प्राण प्रतिष्ठा बाल रूप में क्यों हुई ?
यहां दिये गये 14 प्रश्नों से ही ये स्पष्ट होता है कि राम लला की प्राण प्रतिष्ठा बाल रूप में क्यों हुई ? और हम यह आशा करते हैं कि सभी को इस प्रश्न का उत्तर मिल भी गया होगा।
यहां दिये गये 14 प्रश्नों से ही ये स्पष्ट होता है कि राम लला की प्राण प्रतिष्ठा बाल रूप में क्यों हुई ? और हम यह आशा करते हैं कि सभी को इस प्रश्न का उत्तर मिल भी गया होगा।
भारतीय संस्कृति का इतिहास धरती के ऊपर ही नहीं धरती के भीतर तक लिखा हुआ है, नदियों से समुद्र तक लिखा हुआ है, पत्थरों पर ही नहीं पहाड़ों पर भी लिखा हुआ है, सूर्य-चन्द्रमा-नक्षत्र-तारों तक लिखा हुआ है जिसे पन्नों में इतिहास लिखने-पढ़ने वाले कैसे पढ़ें ? उन्हें तो यह भाषा/विधा ही नहीं आती है।
राम लला के अयोध्या आगमन पर सबसे अधिक प्रसन्न होकर हनुमान जी नाच रहे हैं और भक्त गा रहे हैं – राम हमारे अयोध्या पधारे, नाच रहे हनुमान। जय श्री राम :- इस भजन में इतिहास को भी समाहित किया गया है।
इस आलेख में मंदिरों में शिखर की अनिवार्यता से सम्बंधित एक नये विषय के प्रकट होने की चर्चा कि गयी है, जो देश के लाखों राम और कृष्ण मंदिरों (ठाकुरवारियों) के सन्दर्भ में विचारणीय है।
कर्मकांड विधि का इस आलेख में मात्र इतना उद्देश्य है कि देशभर के श्रद्धालु रामभक्तों के मन में जो संशय उत्पन्न करने का प्रयास किया जा रहा है उसका निस्तारण हो सके। प्रलाप करने वालों के लिये समय नष्ट करना भी अनावश्यक है। प्रलाप करने वालों के लिये गोस्वामी तुलसीदास की सर्वोत्तम चौपाई जो उन्हें सचेत करती है वह है : संकर सहस विष्णु अज तोहिं । सकहिं न राखि राम कर द्रोही॥
इस आलेख में सभी मुख्य प्रश्नों के उत्तर समाहित किया जा रहा है जिससे श्रद्धालुओं को संशय न रहे। इस विषय में उमाशंकर पांडेय (येन केन प्रकारेण शंकराचार्य) के द्वारा भी बहुत प्रलाप किये जा रहे हैं तो निश्चित रूप से उनकी चर्चा समाहित की जानी चाहिये।
इस आलेख में राम लला की प्राण प्रतिष्ठा से सबंधित विवादों ने जो नया आयाम लिया है कि न्यायालय में इसके लिये याचिका तक चली गयी तो शास्त्र-सम्मत विशेष महत्वपूर्ण विमर्श किया जायेगा। शंकराचार्यों से सम्बन्धित चर्चा करना नहीं चाहता था किन्तु पुनः करने की आवश्यकता है। इस आलेख से कर्मकांड में आस्था रखने वाले श्रद्धालुओं को भी विशेष महत्वपूर्ण जानकारी मिलेगी।
शंकराचार्य ज्ञान पक्ष में होते हैं। कर्मकांड में शंकराचार्य की भूमिका नगण्य होती है अथवा बिल्कुल ही नहीं होती। राम लला की प्राण प्रतिष्ठा में विरोधियों को बड़ा अच्छा प्रश्रय मिल रहा है और वह है शंकराचार्यों के वक्तव्य। लेकिन शंकराचार्यों के वक्तव्य में कुछ प्रच्छन्न पीड़ा भी है जो पूर्व से है। जहां तक प्राण प्रतिष्ठा संबंधी विहित-निषिद्ध, उचित-अनुचित आदि वाली बातें हैं उसके लिये शंकराचार्य का कोई दायित्व ही नहीं है यदि उपस्थित न हों ।
प्रतिमा की प्राणप्रतिष्ठा से पहले अग्न्युत्तारण संस्कार किया जाता है। इस लेख में अग्न्युत्तारण मंत्र दिया गया है जो प्राण प्रतिष्ठा के लिए उपयोगी हैं। अग्न्युत्तारण के महत्वपूर्ण बिंदु और विधि तत्व बताए गए हैं। मंत्र पाठ और आहुति द्वारा इसे पूर्ण करने के लिए विस्तृत जानकारी दी गई है।
इस आलेख में सर्व देव प्राण प्रतिष्ठा विधि की विस्तृत जानकारी दी गयी है। मातृकादि पूजन पूर्वक आरंभ, संकल्प मंत्र, जलयात्रा, नेत्रोन्मीलन, अग्न्युत्तारण, जलाधिवास, धान्याधिवास, शय्याधिवास, वेदी पूजन, हवन आदि सभी विषयों की विस्तृत विधि का वर्णन करते हुये सबके लिंक भी दिये गये हैं।