
नित्यकर्म विधि – भाग ३, शुचिता
यहाँ शुचिता के महत्त्व एवं विधान के विषय में जानकारी दी गई है। शरीर और आत्मा की शुद्धता बनाए रखने के लिए शौच, दन्तधावन, स्नान जैसे विधियों का पालन करना आवश्यक है। इसमें दिशा, वस्त्र-यज्ञोपवीत एवं स्नान के नियम तथा महत्वपूर्ण विधियाँ सम्मिलित हैं। इससे स्पष्ट होता है कि शुचिता का पालन करना शारीरिक और आत्मिक शुद्धता के लिए कितना महत्वपूर्ण है।