हिन्दू आतंकवाद और असहिष्णुता – क्या हिन्दुओं को अपना अस्तित्व त्याग देना चाहिये ?

स्वतंत्र भारत में छठा दशक ऐसा आया जब हिन्दू आतंकवाद और हिन्दुओं को असहिष्णु कहा जाने लगा। हिन्दुओं ने अपने सहिष्णुता की सीमा लाँघ दी और उसे असहिष्णुता का आरोप झेलना पड़ रहा है। आज इसी विषय की चर्चा की जायेगी हिन्दू वास्तव में कितना असहिष्णु है, हिन्दू आतंकवाद क्या है ? एक बार को तो ऐसा लगता है कि सहिष्णुता, शांतिप्रियता के नाम पर हिन्दुओं को अपना अस्तित्व त्यागने के लिये विवश किया जा रहा है और विचार ये करना चाहिये की क्या हिन्दुओं को अपना अस्तित्व त्याग देना चाहिये ?

हिन्दू आतंकवाद और असहिष्णुता – क्या हिन्दुओं को अपना अस्तित्व त्याग देना चाहिये ?

सबसे पहले तो हमें असहिष्णुता और आतंकवाद को समझना होगा आखिर ये होता क्या है और सहिष्णुता एवं शांतिप्रियता का तात्पर्य का ये होता है कि अपना अस्तित्व त्याग दिया जाय ?

असहिष्णुता का अर्थ

दो पक्षों का परस्पर सहअस्तित्व स्वीकार करना सहिष्णुता होता है और ये द्विपक्षीय होता है, जैसे चूहे के प्रति मनुष्य का दिखता है।

जब तक चूहों के द्वारा होने वाली अनपेक्षित हानि से मनुष्य तंग न हो जाये तब तक वह चूहों के प्रति सहिष्णु रहता है, लेकिन जब चूहा आवश्यक खाद्य पदार्थों का भक्षण से आगे बढ़कर कपड़ों और अन्य वस्तुओं को कुतर-कुतर कर बर्बाद करने लगता है तब ये चूहे की असहिष्णुता होती है और फिर भी मनुष्य सहिष्णुता दिखाते हुये पहली बार चूहों को मारने का निर्णय नहीं करता है, चूहों को मारने का निर्णय मनुष्य के द्वारा लिया गया अंतिम निर्णय होता है क्योंकि उसकी सहनशक्ति समाप्त हो जाती है ।

असहिष्णुता का अर्थ
असहिष्णुता का अर्थ

लेकिन फिर भी मनुष्य का वह अंतिम निर्णय असहिष्णुता नहीं कही जा सकती वह आत्मरक्षा की श्रेणी में ही रखी जायेगी।

लेकिन बात जब सांप की हो तो उसके प्रति मनुष्य असहिष्णु होता है। सांप को देखते ही पहला विचार उसे मारने का आता है। मनुष्य यदि सांप के प्रति सहिष्णु होकर उसे घर में रहने दे उसका सहअस्तित्व स्वीकार करे तो मनुष्य का ही अस्तित्व समाप्त हो जायेगा। लेकिन ये भी वास्तविक अर्थ में असहिष्णुता नहीं है, यहां भी मनुष्य अपने अस्तित्व के लिये सांप के लिये घर में सहअस्तित्व स्वीकार नहीं करता।

ये सच है कि सांप से मनुष्य भयाक्रांत होता है, किन्तु सांप को आतंकी या असहिष्णु नहीं माना जा सकता क्योंकि सांप के विष उसकी आत्मरक्षा के लिये होता है और वह भी विशेषतः (१-२ प्रजातियों को छोड़कर) आत्मरक्षा के लिये ही प्रयोग करता है।

आतंक और सांप
आतंक और सांप

फिर असहिष्णुता होती क्या है : वास्तव में हम असहिष्णुता के ऊपर गलत तरीके से विचार कर रहे हैं सहिष्णुता या असहिष्णुता को दो अलग-अलग प्राणियों के परिप्रेक्ष्य में नहीं लिया जा सकता है, इसे एक वर्गीकृत प्राणी के परस्पर व्यवहार से समझा जा सकता है। साथ ही बात जब सुरक्षा की हो तब के व्यवहार को भी सहिष्णुता या असहिष्णुता नहीं कहा जा सकता।

  1. जब किसी बाहरी कुत्ते के आने पर गली के सभी कुत्ते टूट पड़ते हैं तो उसे असहिष्णुता समझना चाहिये, क्योंकि उस नये कुत्ते की गली में भी जब इस गली का कुत्ता जायेगा तो ऐसा ही होगा, उस गली के कुत्ते भी टूट पड़ेंगे।
  2. इसी तरह दो बिल्ला, दो भैंसा, दो सांढ़, दो शेर आदि परस्पर असहिष्णु होते हैं लेकिन दोनों होते हैं इनमें से एक भी सहिष्णु नहीं होता, और इसे भी वास्तविक असहिष्णुता नहीं कहा जा सकता, मामला जब द्विपक्षीय हो तो उसे भी वास्तविक असहिष्णुता नहीं माना जा सकता।
  3. मोदी सरकार द्वारा लिये गये प्रत्येक निर्णय को चाहे वह कितना भी सही क्यों न हो विपक्ष ने हमेशा गलत ही कहा है और निंदा ही किया है, लेकिन ये भी असहिष्णुता नहीं है ये विरोध या द्वेष हो सकता है।

उपराज्यपाल या केंद्र सरकार के लिये दिल्ली में केजरीवाल ने जो कुछ किया है वो असहिष्णुता का सटीक उदहारण हो सकता है। केजरीवाल ने हमेशा उपराज्यपाल या केन्द्र सरकार के अस्तित्व को ही नकारने का प्रयास किया है, इसे द्वेष या विरोध नहीं कहा जा सकता है।

आपके साथ भी ऐसा हो सकता है की कोई विशेष व्यक्ति आपके प्रति या किसी विशेष व्यक्ति के प्रति, द्वेष इतना अधिक हो कि वो जो भी कहे उसे गलत ही मान लिया, आंखों में खटकता हो, देखना भी पसंद न हो, देखते ही मन उद्वेलित होने लगे वो असहिष्णुता होती है।

किसी बड़ी गाड़ी की हॉर्न खराब हो तो आगे में चलने वाली साइकल या मोटरसाइकल से साइड लेने में थोड़ा समय लगता है, या कई बार हॉर्न सही रहने पर भी लग सकता है उस समय असहिष्णुता उत्पन्न होने लगता है।

असहिष्णुता में केवल द्वेष ही नहीं ईर्ष्या भी होती है। मिश्रित द्वेष और ईर्ष्या भाव का चरमसीमा पर होना असहिष्णुता होती है।

यदि इस्लाम से हिन्दू को खतरा है तो अपनी सुरक्षा के लिये हिन्दू का विरोध करना असहिष्णुता नहीं हो सकती और सहिष्णुता का अर्थ ये नहीं हो सकता कि हिन्दू आत्मसमर्पण करके अपना अस्तित्व समाप्त कर ले।

बात यदि अस्तित्व रक्षा की हो और असहिष्णुता से ही अस्तित्व रक्षा संभव हो तो उस समय की असहिष्णुता भी अमृत समझना चाहिये। अकारण नाखून गड़ाना भी गलत हो सकता है लेकिन जब डॉक्टर ऑपरेशन करता है तो वह गलत नहीं होता।

आतंकवाद क्या है ?

अकारण या सकारण किसी व्यक्ति या समूह को प्रताड़ित करना, दुःख पहुंचाना, भयाक्रांत करना आतंकवाद है।

शताब्दियों से एक विशेष समुदाय द्वारा अन्य समुदाय के व्यक्तियों, समूहों यहाँ तक की राज्यों को भी प्रताड़ित किया गया है विशेष रूप से हिन्दू को, दुःख पहुंचाया गया है, धार्मिक भावना आहत की गयी है, भू-भाग हड़पा गया है, लूटपाट किया गया है, खून की होली खेली गयी है, बलात्कारपूर्वक नई नस्ल पैदा की गई है, लाखों मंदिरों का विध्वंस किया गया है और बचे हुये एक मात्र भारत में भी हिन्दू सुरक्षित नहीं है क्योंकि समुदाय विशेष के आतंकवाद का शिकार हुआ है।

ऐसी स्थिति में यदि अपना अस्तित्व एक मात्र भारत में बचाये रखने के लिये यदि हिन्दू वास्तव में असहिष्णु भी हो जाये तो वो अमृततुल्य होगा, आत्मरक्षा का प्रयास होगा उसे असहिष्णुता नहीं कहा जा सकता।

असहिष्णुता तो तब होती है जब हिन्दुओं की शोभायात्रा/कांवड़यात्रा पर पत्थरबाजी की जाती है। असहिष्णुता तो वो है जब किसी विशेष इलाके को विशेष वर्ग मेरा इलाका घोषित करता है। असहिष्णु तो वो होते हैं जिनके इलाके को शासन/प्रशासन भी संवेदनशील मानता है।

यदि हिन्दू असहिष्णु या आतंकवादी होता तो :

  • आज अनेकों देश से समाप्त न होता।
  • आज भारत सेकुलर घोषित न होता।
  • कश्मीर से पलायन न करता।
  • पत्थरबाजों का शिकार न होता।
  • जिहाद का शिकार न बनता।
  • लाखों मंदिरों का विध्वंस न होता।
  • आज एक मात्र देश भारत में भी अपने लिये न्याय नहीं मांग रहा होता।
  • आज भारत के कई राज्यों में वास्तविक अल्पसंख्यक न होता।

इन सभी तथ्यों के आधार से तो यही सिद्ध होता है कि हिन्दू इतना अधिक सहिष्णु था कि वर्गविशेष की असहिष्णुता और आतंकवाद का शिकार हो गया और अपने लिये एक देश भारत को भी हिन्दुराष्ट्र न बना सका।

हिन्दू आतंकवाद और असहिष्णुता
हिन्दू आतंकवाद और असहिष्णुता

अब यदि भारत को हिन्दुराष्ट्र बनाना चाहता है तो ये असहिष्णुता या आतंकवाद नहीं अपने अस्तित्व की रक्षा का प्रयास है।

  • हिन्दू अगर किसी हिन्दू विरोधी फिल्म का बॉयकॉट मात्र करे तो इसे असहिष्णुता नहीं कहा जा सकता।
  • यदि अपने प्राचीन मंदिर पर अधिकार प्राप्त करने के लिये न्यायपूर्ण तरीके से लड़े तो इसे असहिष्णुता या आतंकवाद नहीं कहा जा सकता।
  • यदि हिन्दू विरोधी राजनीतिक दलों को मतदान न करके हिन्दू समर्थक दल की सरकार बनाये तो इसे असहिष्णुता नहीं कहा जा सकता।
  • और यदि हिन्दूविरोधियों की दृष्टि में ये असहिष्णुता है भी; तो भी इसे अनुचित नहीं कहा जा सकता।

वर्तमान भारत का हिन्दू एक मात्र बचे देश भारत में अपने अस्तित्व की लड़ाई किसी भी हद तक लड़े उसे अस्तित्व की लड़ाई ही कहा जा सकता क्योंकि ये आवश्यक है। हिन्दू को अपने अस्तित्व की रक्षा का अधिकार किसी के मानने या नहीं मानने से नहीं, स्वतः सिद्ध अधिकार है।

देश को विकास करना चाहिये लेकिन इसका अर्थ ये नहीं हो सकता कि संस्कृति, धर्म को मिटने दिया जाय। यदि दो ही विकल्प बचें विकास या अस्तित्व तो पहले अस्तित्व का ही चयन करना न्यायोचित है; क्योंकि यदि अस्तित्व रहेगा तो विकास किया जा सकता है; लेकिन विकास होने पर भी यदि अस्तित्व समाप्त हो जाये विकास से अस्तित्व प्राप्त नहीं किया जा सकता।

देवीदीन पाण्डे का युद्ध अस्तित्व का युद्ध था, आतंकी या आक्रांता बाबर, मीर बांकी था
देवीदीन पाण्डे का युद्ध अस्तित्व का युद्ध था, आतंकी या आक्रांता बाबर, मीर बांकी था

अर्थात विकास और अस्तित्व दो में से किसी एक की बलि देना हो तो विकास की ही बलि दी जा सकती है अस्तित्व की नहीं।

भारत का वर्तमान हिन्दू अपने अस्तित्व के लिये न्यायपूर्ण तरीकों से लड़ रहा है।

देश में ऐसे तत्व भी हैं जो संस्कृति को मुद्दा नहीं मानते, हिंदुत्व को मुद्दा नहीं मानते अर्थात स्पष्ट रूप से कहते हैं कि संस्कृति का स्थान दूसरा है, अस्तित्व रहे या न रहे कोई फर्क नहीं पड़ता।

दुःखद ये है कि जिस दल ने लगभग ७ दशकों तक स्वतंत्र भारत में शासन किया उसने हिन्दुओं पर असहिष्णुता और आतंकवाद मढ़ने का दुष्प्रयास किया। इसे मात्र दुःखद नहीं माना जा सकता, इससे ये भी ज्ञात होता है की स्वतंत्र भारत में भी ७ दशकों तक भारतीय संस्कृति को नष्ट करने वाले तत्व ही सत्ता पर आसीन रहे।

विश्व समुदाय पहले ये बताये कि :

  • उसके बनाये इतिहास में भी हिन्दू का अधिकार कहां तक के भू-भाग पर था ?
  • जिसने हिन्दुओं के बड़े भू-भाग को हड़प लिया है वो असहिष्णु है या जिसका बड़ा भू-भाग हड़पा गया है वो असहिष्णु है ?
  • जिसने पारसियों के देश को हड़प लिया वो असहिष्णु है या जिसने पारसियों को शरण दिया वो असहिष्णु है ?
  • जिसने रक्तपात किया था वो असहिष्णु है या जिसका रक्त बहा वो असहिष्णु है ?
  • जिसने मंदिरों का विध्वंस किया वो असहिष्णु है या जिसके मंदिर विध्वंस हुये वो असहिष्णु है ?
  • जिसने बलात्कार किया वो असहिष्णु है या जिसका बलात्कार हुआ वो असहिष्णु है ?
  • जिसने कई देश बना रखा है वो असहिष्णु है; या जो अपने देश में भी प्रताड़ित है वो असहिष्णु है ?
  • जो पत्थरबाजी करता है वो असहिष्णु है या जो पत्थरबाजी झेलता है वो असहिष्णु है ?
  • जिसने हिन्दुओं के एकमात्र देश में भी कई विशेषाधिकार ले रखा है वो असहिष्णु है या जो अपने अधिकार की मांग कर रहा है वो असहिष्णु है ?

आतंकवाद और आतंकवादी को परिभाषित एवं चिह्नित करने के लिये उपरोक्त प्रश्नों का उत्तर जानना अनिवार्य है। आज विश्व यदि आतंकवाद को खतड़ा मानता है तो पहले आतंकवाद को सही-सही परिभाषित करे। आतंकवाद को परिभाषित करने के लिये ऐतिहासिक घटनाओं का अध्ययन करना आवश्यक है।

जब हम आतंकवाद को सही-सही परिभाषित कर लेंगे तभी आतंकवादियों को चिह्नित कर पायेंगे। आतंकवाद को आसानी से इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है : “आतंकवाद वो जघन्य कुकृत्य है जो एक व्यक्ति/समुदाय/देश द्वारा दूसरे व्यक्ति/समुदाय/देश के अस्तित्व पर संकट उत्पन्न करता है।”

कोई व्यक्ति इस विषय पर और अधिक स्पष्ट बोल भी नहीं सकता, क्योंकि इन आतंकवादियों का एक बौद्धिक समर्थक वर्ग भी सभी देशों में बन गया गया है। लेकिन ये विषय विश्वसुरक्षा के लिये आवश्यक है । यहां पर ये भी आवश्यक है कि पहले सही से परिभाषित किया जाय और सही से परिभाषित करने के लिये ये आवश्यक है कि उसमें आतंकवादी वर्ग या उसका समर्थक शामिल न हो। यदि परिभाषित करने में ही त्रुटि हो जाये तो आगे की दिशा भी गलत ही होगी ।

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