पूर्व आलेख में नान्दीमुख श्राद्ध विषयक विस्तृत चर्चा के साथ मातृका पूजा और वसोर्द्धारा विधि बताई गयी थी। इस आलेख में नान्दी श्राद्ध अर्थात वृद्धि श्राद्ध या आभ्युदयिक श्राद्ध की विधि और मंत्र बताई गयी है। मुख्य रूप से वाजसनेयी विधि प्रचलित है किन्तु यहां वाजसनेयी और छन्दोगी दोनों विधि दी गई है। नान्दी श्राद्ध के मुख्य दो प्रकार होते हैं सपिण्ड और पिण्डरहित, इस आलेख में पिंडरहित नान्दीश्राद्ध दिया गया है।
वृद्धि श्राद्ध विधि अर्थात आभ्युदयिक श्राद्ध विधि
यहां हम नान्दीमुख श्राद्ध के दोनों प्रकारों का अध्ययन करेंगे। दो प्रकार होते हैं – वाजसनेयी और छन्दोगी।
नान्दीमुख श्राद्ध विषयक विस्तृत चर्चा के साथ मातृका पूजा और वसोर्द्धारा विधि : नान्दी श्राद्ध – 1
“वाजसनेयी वृद्धिश्राद्ध (पिण्डरहित) विधि”
पूर्व से आरम्भ करते प्रदक्षिणक्रम से त्रिकुशात्मक आसन लगाकर, अन्य वस्तुएं (अन्न, फल, वस्त्र, द्रव्यादि भी) प्रदक्षिण क्रम से ही लगाए । विश्वेदेव के संबंध में २ पक्ष हैं, त्रिपक्षीय श्राद्ध हेतु ३ विश्वेदेव, अथवा २ विश्वेदेव (१ मातृ व पितृपक्षीय, दूसरा मातामह पक्षीय), ३ विश्वेदेव का पक्ष अधिक उचित प्रतीत होता है । आचमन, पवित्रीकरणादि करके गया, विष्णु भगवान एवं पितरों का ध्यान करे :
ॐ श्राद्धकाले गयां ध्यात्वा ध्यात्वा देवं गदाधरं। मनसा च पितृन ध्यात्वा वृद्धिश्राद्धं समारभे॥ फिर संकल्प करे ।
संकल्प : पान, सुपारी, जौ, जल, पुष्प, चंदन, द्रव्यादि लेकर त्रिकुशहस्त संकल्प करे – ॐ अद्य ……… (गोत्र नामादि उच्चारण) कर्तव्य……….. कर्म निमित्तक आभ्युदयिक श्राद्धमहं करिष्ये ॥
त्रिकुशा सहित संकल्प द्रव्य भूमि पर छोड़े । पुनः त्रिकुशहस्त होकर ३ बार गायत्री जप करके तीन बार अगला मंत्र जपे – ॐ देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च । नमः स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नमः॥३॥
विश्वेदेवासन : ॐ अद्य विश्वेदेवा इदमासनं वो नमः ॥३॥ त्रिकुशहस्त जौ-जल से दोनों पक्ष के विश्वेदेवों को अलग-अलग आसन दे । (वृद्धिश्राद्ध के विश्वेदेवों का नाम सत्य-वसु है।)
मातृपक्ष आसन : त्रिकुशहस्त जौ-जल से माता, पितामही, प्रपितामही तीनों को अलग-अलग आसन दे ।
- माता – ॐ अद्य ………. गोत्रे मातः ………… देवी नान्दीमुखी इदमासनं तुभ्यं वृद्धिः ॥
- पितामही – ॐ अद्य ……… गोत्रे पितामही ……… देवी नान्दीमुखी इदमासनं तुभ्यं वृद्धिः ॥
- प्रपितामही – ॐ अद्य ……… गोत्रे प्रपितामही ………. देवी नान्दीमुखी इदमासनं तुभ्यं वृद्धिः ॥
पितृपक्ष आसन : त्रिकुशहस्त जौ-जल से पिता, पितामह, प्रपितामह तीनों को अलग-अलग आसन दे ।
- पिता – ॐ अद्य ……… गोत्र पितः ………. शर्मन् नान्दीमुख इदमासनं तुभ्यं वृद्धिः ॥
- पितामह – ॐ अद्य ……… गोत्र पितामह ……… शर्मन् नान्दीमुख इदमासनं तुभ्यं वृद्धिः ॥
- प्रपितामह – ॐ अद्य ………. गोत्र प्रपितामह ………. शर्मन् नान्दीमुख इदमासनं तुभ्यं वृद्धिः ॥
मातामहपक्ष आसन : त्रिकुशहस्त जौ-जल से पिता, पितामह, प्रपितामह तीनों को अलग-अलग आसन दे।
- मातामह – ॐ अद्य ……….. गोत्र मातामह ……….. शर्मन् नान्दीमुख इदमासनं तुभ्यं वृद्धिः ॥
- प्रमातामह – ॐ अद्य ……… गोत्र प्रमातामह ……… शर्मन् नान्दीमुख इदमासनं तुभ्यं वृद्धिः ॥
- वृद्धप्रमातामह – ॐ अद्य ……… गोत्र वृद्धप्रमातामह ……… शर्मन् नान्दीमुख इदमासनं तुभ्यं वृद्धिः ॥
गन्धादिक – विश्वेदेव : ॐ अद्य विश्वेदेवा एतानि गन्धपुष्पधूपदीपताम्बुलवस्त्रयज्ञोपवीतादि आच्छादननानि वो नमः ॥३॥त्रिकुशहस्त जौ-जल से तीनों पक्ष के विश्वेदेवों को अलग-अलग उत्सर्ग करे ।
मातृपक्ष गन्धादि : त्रिकुशहस्त जौ-जल से माता, पितामही, प्रपितामही तीनों को अलग-अलग उत्सर्ग करे :
- माता – ॐ अद्य ………. गोत्रे मातः ……….. देवी नान्दीमुखी एतानि गन्धपुष्पधूपदीपताम्बुल वस्त्रसिन्दूरादि आच्छादननानि तुभ्यं वृद्धिः ॥
- पितामही – ॐ अद्य ……….. गोत्रे पितामही ………… देवी नान्दीमुखी एतानि गन्धपुष्पधूपदीपताम्बुल वस्त्रसिन्दूरादि आच्छादननानि तुभ्यं वृद्धिः ॥
- प्रपितामही – ॐ अद्य …………. गोत्रे प्रपितामही ……………. देवी नान्दीमुखी एतानि गन्ध-पुष्पधूपदीपताम्बुल वस्त्रसिन्दूरादि आच्छादननानि तुभ्यं वृद्धिः ॥
पितृपक्ष गन्धादि : त्रिकुशहस्त जौ-जल से पिता, पितामह, प्रपितामह तीनों को अलग-अलग उत्सर्ग करे :
- पिता – ॐ अद्य ……… गोत्र पितः ………. शर्मन् नान्दीमुख एतानि गन्धपुष्पधूपदीपताम्बुल वस्त्रयज्ञोपवीतादि आच्छादननानि तुभ्यं वृद्धिः ॥
- पितामह – ॐ अद्य ……… गोत्र पितामह ………. शर्मन् नान्दीमुख एतानि गन्धपुष्पधूपदीपताम्बुल वस्त्रयज्ञोपवीतादि आच्छादननानि तुभ्यं वृद्धिः ॥
- प्रपितामह – ॐ अद्य ………. गोत्र प्रपितामह ………. शर्मन् नान्दीमुख एतानि गन्धपुष्पधूपदीपताम्बुल वस्त्रयज्ञोपवीतादि आच्छादननानि तुभ्यं वृद्धिः ॥
मातामहपक्ष गन्धादि : त्रिकुशहस्त जौ-जल से पिता, पितामह, प्रपितामह तीनों को अलग-अलग उत्सर्ग करे :
- मातामह – ॐ अद्य ……… गोत्र मातामह ………. शर्मन् नान्दीमुख एतानि गन्धपुष्पधूपदीपताम्बुल वस्त्रयज्ञोपवीतादि आच्छादननानि तुभ्यं वृद्धिः ॥
- प्रमातामह – ॐ अद्य ……… गोत्र प्रमातामह ………. शर्मन् नान्दीमुख एतानि गन्धपुष्पधूपदीपताम्बुल वस्त्रयज्ञोपवीतादि आच्छादननानि तुभ्यं वृद्धिः ॥
- वृद्धप्रमातामह – ॐ अद्य ………. गोत्र वृद्धप्रमातामह ………. शर्मन् नान्दीमुख एतानि गन्धपुष्पधूपदीपताम्बुल वस्त्रयज्ञोपवीतादि आच्छादननानि तुभ्यं वृद्धिः ॥
तत्पश्चात अन्नपात्र सहित सभी आसनों को प्रदक्षिणवत् जल से चतुष्कोण मण्डलवेष्टित करे । (कुल परम्परावश यदि भूस्वामि को अन्न दिया जाता हो तो ही दे । भूस्वामि का अन्नोत्सर्ग अपसव्य होकर ही करे। यदि यज्ञादि अथवा विवाहादि अन्य की भूमि पर किया जा रहा हो जैसे होटल, किराये का मकान, किसी अन्य व्यक्ति या व्यक्तियों की भूमि पर भूस्वामि को अन्न दिया जाना चाहिए। निजगृह या अपनी भूमि पर भूस्वामि को अन्न नहीं दिया जाना चाहिए)
तदूत्तर देवादिकों के भोजन पात्रों में अन्न-घृतादि (आमान्न श्राद्ध में आमान्न) दे, सबके लिए अलग-अलग १२ पुटकों में घृत व जल रखे । भोजन पात्र का आलम्भन (दोनों हाथों द्वारा) करते हुए अगला मंत्र पढे –
ॐ पृथिवी ते पात्रं द्यौरपिधानं ब्राह्मणस्य मुखेऽअमृतेऽअमृतं जुहोमि स्वाहा। ॐ इदं विष्णुर्विचक्रमे त्रेधा निदधे पदम् । समूढमस्य पा ᳪ सुरे । ॐ कृष्ण हव्यमिदं रक्ष मदीयम् ॥ तत्पश्चात दाहिने हाथ के अंगुष्ठ से क्रमशः अन्न, जल, आज्य, हवि सबको आरोपित करे । ॐ इदमन्नं (अन्न) ॥ ॐ इमा आपः (जल) ॥ ॐ इदमाज्यं (घृत) ॥ ॐ इदं हविः (अन्न) ॥ इस मंत्र से यव छिड़के – ॐ यवोऽसि यवयास्मद्वेषो यवयारातीः ॥ तदूत्तर जौ जल लेकर अन्नोत्सर्ग करे : ॐ विश्वेदेवा इदमन्नं सोपकरणं वो नमः॥ बांया हाथ हटाकर, अन्य दो विश्वेदेवान्नोत्सर्ग भी समान विधि से करे ।
(उपरोक्त विधि सिद्ध अन्न के लिए है, यदि आमान्न या हेमश्राद्ध करे तो उसके लिए इस मन्त्र से उत्सर्ग करे : आमान्न – ॐ विश्वेदेवा युग्मब्राह्मणभोजन पर्याप्तं इदमामान्नं सोपकरणं वो नमः॥ हेम – ॐ विश्वेदेवा युग्मब्राह्मणभोजन पर्याप्तं तन्निष्क्रयीभूतं इदं हिरण्यं वो नमः॥ आमान्न या हेम श्राद्ध में सर्वत्र इसी तरह प्रयोग करे।)
फिर मातृ पक्ष का अन्नादि उत्सर्ग करे :
माता : ॐ पृथिवी ते पात्रं द्यौरपिधानं ब्राह्मणस्य मुखेऽअमृतेऽअमृतं जुहोमि स्वाहा। ॐ इदं विष्णुर्विचक्रमे त्रेधा निदधे पदम् । समूढमस्य पा ᳪ सुरे । ॐ कृष्ण कव्यमिदं रक्ष मदीयम् ॥ तत्पश्चात दाहिने हाथ के अंगुष्ठ से क्रमशः अन्न, जल, आज्य, हवि सबको आरोपित करे । ॐ इदमन्नं (अन्न) ॥ ॐ इमा आपः (जल) ॥ ॐ इदमाज्यं (घृत) ॥ ॐ इदं हविः (अन्न) ॥ इस मंत्र से यव छिड़के – ॐ अपहता असुरा रक्षा ᳪ सि वेदिषदः ॥ तदूत्तर जौ जल लेकर अन्नोत्सर्ग करे : ॐ अद्य ………. गोत्रे मातः ……….. देवी नान्दीमुखी इदमन्नं सोपकरणं तुभ्यं वृद्धिः॥ बांया हाथ हटाकर, अन्य दो पितामही व प्रपितामही का भी समान विधि से करे ।
(उपरोक्त विधि सिद्ध अन्न के लिए है, यदि आमान्न या हेमश्राद्ध करे तो उसके लिए इस मन्त्र से उत्सर्ग करे : आमान्न – ॐ अद्य ………. गोत्रे मातः ……….. देवी नान्दीमुखी युग्मब्राह्मणभोजन पर्याप्तं इदमामान्नं सोपकरणं तुभ्यं वृद्धिः॥ हेम – ॐ अद्य ………. गोत्रे मातः ……….. देवी नान्दीमुखी युग्मब्राह्मणभोजन पर्याप्तं तन्निष्क्रयीभूतं इदं हिरण्यं तुभ्यं वृद्धिः॥ आमान्न या हेम श्राद्ध में सर्वत्र इसी तरह प्रयोग करे।)
- पितामही : ॐ पृथिवी ते पात्रं द्यौरपिधानं ब्राह्मणस्य मुखेऽअमृतेऽअमृतं जुहोमि स्वाहा। ॐ इदं विष्णुर्विचक्रमे त्रेधा निदधे पदम् । समूढमस्य पा ᳪ सुरे । ॐ कृष्ण कव्यमिदं रक्ष मदीयम् ॥ तत्पश्चात दाहिने हाथ के अंगुष्ठ से क्रमशः अन्न, जल, आज्य, हवि सबको आरोपित करे । ॐ इदमन्नं (अन्न) ॥ ॐ इमा आपः (जल) ॥ ॐ इदमाज्यं (घृत) ॥ ॐ इदं हविः (अन्न) ॥ इस मंत्र से यव छिड़के – ॐ अपहता असुरा रक्षा ᳪ सि वेदिषदः ॥ तदूत्तर जौ जल लेकर अन्नोत्सर्ग करे : ॐ अद्य ………. गोत्रे पितामही ……….. देवी नान्दीमुखी इदमन्नं सोपकरणं तुभ्यं वृद्धिः॥
- प्रपितामही : ॐ पृथिवी ते पात्रं द्यौरपिधानं ब्राह्मणस्य मुखेऽअमृतेऽअमृतं जुहोमि स्वाहा॥ ॐ इदं विष्णुर्विचक्रमे त्रेधा निदधे पदम् । समूढमस्य पा ᳪ सुरे ॥ ॐ कृष्ण कव्यमिदं रक्ष मदीयम् ॥ तत्पश्चात दाहिने हाथ के अंगुष्ठ से क्रमशः अन्न, जल, आज्य, हवि सबको आरोपित करे । ॐ इदमन्नं (अन्न) ॥ ॐ इमा आपः (जल) ॥ ॐ इदमाज्यं (घृत) ॥ ॐ इदं हविः (अन्न) ॥ इस मंत्र से यव छिड़के – ॐ अपहता असुरा रक्षा ᳪ सि वेदिषदः ॥ तदूत्तर जौ जल लेकर अन्नोत्सर्ग करे : ॐ अद्य ………. गोत्रे प्रपितामही ……….. देवी नान्दीमुखी इदमन्नं सोपकरणं तुभ्यं वृद्धिः॥
फिर पितृपक्षीय अन्नादि उत्सर्ग करे।
- पिता : ॐ पृथिवी ते पात्रं द्यौरपिधानं ब्राह्मणस्य मुखेऽअमृतेऽअमृतं जुहोमि स्वाहा॥ ॐ इदं विष्णुर्विचक्रमे त्रेधा निदधे पदम् । समूढमस्य पा ᳪ सुरे ॥ ॐ कृष्ण कव्यमिदं रक्ष मदीयम् ॥ तत्पश्चात दाहिने हाथ के अंगुष्ठ से क्रमशः अन्न, जल, आज्य, हवि सबको आरोपित करे । ॐ इदमन्नं (अन्न) ॥ ॐ इमा आपः (जल) ॥ ॐ इदमाज्यं (घृत) ॥ ॐ इदं हविः (अन्न) ॥ इस मंत्र से यव छिड़के – ॐ अपहता असुरा रक्षा ᳪ सि वेदिषदः । तदूत्तर जौ जल लेकर अन्नोत्सर्ग करे : ॐ अद्य ………. गोत्र पितः ……. शर्मन् नान्दीमुख इदमन्नं सोपकरणं तुभ्यं वृद्धिः॥ बांया हाथ हटाकर, अन्य दो पितामह व प्रपितामह का भी समान विधि से करे ।
- पितामह : ॐ पृथिवी ते पात्रं द्यौरपिधानं ब्राह्मणस्य मुखेऽअमृतेऽअमृतं जुहोमि स्वाहा॥ ॐ इदं विष्णुर्विचक्रमे त्रेधा निदधे पदम् । समूढमस्य पा ᳪ सुरे ॥ ॐ कृष्ण कव्यमिदं रक्ष मदीयम् ॥ तत्पश्चात दाहिने हाथ के अंगुष्ठ से क्रमशः अन्न, जल, आज्य, हवि सबको आरोपित करे । ॐ इदमन्नं (अन्न) ॥ ॐ इमा आपः (जल) ॥ ॐ इदमाज्यं (घृत) ॥ ॐ इदं हविः (अन्न) ॥ इस मंत्र से यव छिड़के – ॐ अपहता असुरा रक्षा ᳪ सि वेदिषदः ॥ तदूत्तर जौ जल लेकर अन्नोत्सर्ग करे : ॐ अद्य ………. गोत्र पितामह ………. शर्मन् नान्दीमुख इदमन्नं सोपकरणं तुभ्यं वृद्धिः॥
- प्रपितामह : ॐ पृथिवी ते पात्रं द्यौरपिधानं ब्राह्मणस्य मुखेऽअमृतेऽअमृतं जुहोमि स्वाहा॥ ॐ इदं विष्णुर्विचक्रमे त्रेधा निदधे पदम् । समूढमस्य पा ᳪ सुरे ॥ ॐ कृष्ण कव्यमिदं रक्ष मदीयम् ॥ तत्पश्चात दाहिने हाथ के अंगुष्ठ से क्रमशः अन्न, जल, आज्य, हवि सबको आरोपित करे । ॐ इदमन्नं (अन्न) ॥ ॐ इमा आपः (जल) ॥ ॐ इदमाज्यं (घृत) ॥ ॐ इदं हविः (अन्न) ॥ इस मंत्र से यव छिड़के – ॐ अपहता असुरा रक्षा ᳪ सि वेदिषदः ॥ तदूत्तर जौ जल लेकर अन्नोत्सर्ग करे : ॐ अद्य ………. गोत्र प्रपितामह ………. शर्मन् नान्दीमुख इदमन्नं सोपकरणं तुभ्यं वृद्धिः॥
फिर मातामहपक्षीय अन्नादि उत्सर्ग करे :
- मातामह : ॐ पृथिवी ते पात्रं द्यौरपिधानं ब्राह्मणस्य मुखेऽअमृतेऽअमृतं जुहोमि स्वाहा॥ ॐ इदं विष्णुर्विचक्रमे त्रेधा निदधे पदम् । समूढमस्य पा ᳪ सुरे॥ ॐ कृष्ण कव्यमिदं रक्ष मदीयम् ॥ तत्पश्चात दाहिने हाथ के अंगुष्ठ से क्रमशः अन्न, जल, आज्य, हवि सबको आरोपित करे । ॐ इदमन्नं (अन्न) ॥ ॐ इमा आपः (जल) ॥ ॐ इदमाज्यं (घृत) ॥ ॐ इदं हविः (अन्न) ॥ इस मंत्र से यव छिड़के – ॐ अपहता असुरा रक्षा ᳪ सि वेदिषदः ॥ तदूत्तर जौ जल लेकर अन्नोत्सर्ग करे : ॐ अद्य ………. गोत्र मातामह ……. शर्मन् नान्दीमुख इदमन्नं सोपकरणं तुभ्यं वृद्धिः॥बांया हाथ हटाकर, अन्य दो पितामह व प्रपितामह का भी समान विधि से करे ।
- प्रमातामह : ॐ पृथिवी ते पात्रं द्यौरपिधानं ब्राह्मणस्य मुखेऽअमृतेऽअमृतं जुहोमि स्वाहा॥ ॐ इदं विष्णुर्विचक्रमे त्रेधा निदधे पदम् । समूढमस्य पा ᳪ सुरे ॥ ॐ कृष्ण कव्यमिदं रक्ष मदीयम् ॥ तत्पश्चात दाहिने हाथ के अंगुष्ठ से क्रमशः अन्न, जल, आज्य, हवि सबको आरोपित करे । ॐ इदमन्नं (अन्न) ॥ ॐ इमा आपः (जल) ॥ ॐ इदमाज्यं (घृत) ॥ ॐ इदं हविः (अन्न) ॥ इस मंत्र से यव छिड़के – ॐ अपहता असुरा रक्षा ᳪ सि वेदिषदः ॥ तदूत्तर जौ जल लेकर अन्नोत्सर्ग करे : ॐ अद्य ………. गोत्र प्रमातामह ………. शर्मन् नान्दीमुख इदमन्नं सोपकरणं तुभ्यं वृद्धिः॥
- वृद्धप्रमातामह : ॐ पृथिवी ते पात्रं द्यौरपिधानं ब्राह्मणस्य मुखेऽअमृतेऽअमृतं जुहोमि स्वाहा॥ ॐ इदं विष्णुर्विचक्रमे त्रेधा निदधे पदम् । समूढमस्य पा ᳪ सुरे ॥ ॐ कृष्ण कव्यमिदं रक्ष मदीयम् ॥ तत्पश्चात दाहिने हाथ के अंगुष्ठ से क्रमशः अन्न, जल, आज्य, हवि सबको आरोपित करे । ॐ इदमन्नं (अन्न) ॥ ॐ इमा आपः (जल) ॥ ॐ इदमाज्यं (घृत) ॥ ॐ इदं हविः (अन्न) ॥ इस मंत्र से यव छिड़के – ॐ अपहता असुरा रक्षा ᳪ सि वेदिषदः ॥ तदूत्तर जौ जल लेकर अन्नोत्सर्ग करे : ॐ अद्य ………. गोत्र वृद्धप्रमातामह ………. शर्मन् नान्दीमुख इदमन्नं सोपकरणं तुभ्यं वृद्धिः॥
तदूत्तर अञ्जलिबद्ध यह मंत्र पढे – ॐ अन्नहीनं क्रियाहीनं विधिहीनं च यद्भवेत् । तत्सर्वमच्छिद्रमस्तु ॥ तदूत्तर ३ बार गायत्री जपे । कुशा पर बैठकर – ॐ मधु मधु मधु । पढे ।
फिर क्रमशः सभी को दुग्ध मिश्रित जल की धारा दे :
- विश्वेदेव : ॐ विश्वेदेवाः प्रीयन्ताम् ॥
- मातृपक्ष – ॐ मातः-पितामही प्रपितामह्यः नान्दीमुख्यः प्रीयन्ताम् ॥
- पितृपक्ष : ॐ पितः-पितामह प्रपितामहाः नान्दीमुखाः प्रीयन्ताम् ॥
- मातामह पक्ष : ॐ मातामह-प्रमातामह-वृद्धप्रमातामहाः नान्दीमुखाः प्रीयन्ताम् ॥
तदुत्तर आशीः प्रार्थना करे, (हाथ जोड़ कर प्रणाम करे) – ॐ गोत्रं नो वर्द्धतां दातारो नोऽभिवर्द्धन्ताम् वेदाः सन्ततिरेव च । श्रद्धा च नो मा व्यगमद् बहुदेयं च नोऽस्तु । अन्नं च नो बहुभवेदथींश्च लभेमहि । याचितारश्च नः सन्तु मा च याचिष्म कञ्चन। एताः सत्याशिषः सन्तु ॥ तत्पश्चात सभी श्राद्धों का फल-मूलादि की दक्षिणा करे :
- विश्वेदेव श्राद्ध दक्षिणा – ॐ अद्य विश्वेषां देवानां कृतैतदाभ्युदयिक श्राद्धप्रतिष्ठार्थमिमे फलमूले वनस्पतिदैवते यथानामगोत्राय ब्राह्मणाय दक्षिणामहं ददे ।
- मातृपक्ष श्राद्ध दक्षिणा – ॐ अद्यामुकगोत्रायाः मातुरमुकीदेव्या नान्दीमुख्याः कृतै तदाभ्युदयिकश्राद्धप्रतिष्ठार्थमिमे फलमूले वनस्पतिदैवते यथानामगोत्राय ब्राह्मणाय दक्षिणामहन्ददे । इसी तरह पितामही व प्रपितामही श्राद्ध की भी दक्षिणा करे ।
- पितृपक्ष व मातामह श्राद्ध दक्षिणा – ॐ अद्यामुकगोत्रस्य पितुरमुकशर्मणो नान्दीमुखस्य कृतैतदाभ्युदयिक श्राद्धप्रतिष्ठार्थमिमे फलमूले वनस्पतिदैवते यथानामगोत्राय ब्राह्मणाय दक्षिणामहन्ददे । इसी प्रकार पितामह-प्रपितामह; मातामह-प्रमातामह-वृद्धप्रमातामहों के श्राद्ध की भी दक्षिणा करे ।
फिर ३ बार यह मंत्र पढे – ॐ देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च । नमः स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नमः॥३॥
प्रार्थना : ॐ माता पितामही चैव तथैव प्रपितामही । पिता पितामहश्चैव तथैव प्रपितामहः ॥ मातामहस्तत्पिता च प्रमातामहकादयः । एते भवन्तु मे प्रीताः प्रयच्छन्तु सुमङ्गलम् ॥ फिर दीप निर्वपण करे ।
हाथ-पैर प्रक्षालित करके प्रार्थना करे – ॐ प्रमादात्कुर्वतां कर्म प्रच्यवेताध्वरेषु यत् । स्मरणादेव तद्विष्णोः सम्पूर्ण स्यादिति श्रुतिः ॥ ॐ विष्णुर्विष्णुर्हरिर्हरिः ॥ श्राद्ध की वस्तुएं ब्राह्मण को प्रदान करे।
“छन्दोगी वृद्धिश्राद्ध (पिण्डरहित) विधि”
पूर्व से आरम्भ करते प्रदक्षिणक्रम से त्रिकुशात्मक आसन लगाकर, अन्य वस्तुएं (अन्न, फल, वस्त्र, द्रव्यादि भी) प्रदक्षिण क्रम से ही लगाए । विश्वेदेव के संबंध में २ पक्ष हैं, त्रिपक्षीय श्राद्ध हेतु ३ विश्वेदेव, अथवा २ विश्वेदेव (१ मातृ व पितृपक्षीय, दूसरा मातामह पक्षीय), ३ विश्वेदेव का पक्ष अधिक उचित प्रतीत होता है । आचमन, पवित्रीकरणादि करके गया, विष्णु भगवान एवं पितरों का ध्यान करे :
ॐ श्राद्धकाले गयां ध्यात्वा ध्यात्वा देवं गदाधरं। मनसा च पितृन ध्यात्वा वृद्धिश्राद्धं समारभे॥ फिर संकल्प करे ।
संकल्प : पान, सुपारी, जौ, जल, पुष्प, चंदन, द्रव्यादि लेकर त्रिकुशहस्त संकल्प करे – ॐ अद्य ……… (गोत्र नामादि उच्चारण) कर्तव्य……….. कर्म निमित्तक आभ्युदयिक श्राद्धमहं करिष्ये ॥
त्रिकुशा सहित संकल्प द्रव्य भूमि पर छोड़े । पुनः त्रिकुशहस्त होकर ३ बार गायत्री जप करके तीन बार अगला मंत्र जपे – ॐ देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च । नमः स्वधायै स्वाहायै नित्यमेव भवन्त्विति॥३॥
विश्वेदेवासन : ॐ अद्य विश्वेदेवा इदमासनं वो नमः ॥३॥ त्रिकुशहस्त जौ-जल से दोनों पक्ष के विश्वेदेवों को अलग-अलग आसन दे । (वृद्धिश्राद्ध के विश्वेदेवों का नाम सत्य-वसु है।)
मातृपक्ष आसन : त्रिकुशहस्त जौ-जल से माता, पितामही, प्रपितामही तीनों को अलग-अलग आसन दे :
- माता – ॐ अद्य ………. गोत्रे मातः ……… देवी नान्दीमुखी इदमासनं तुभ्यं वृद्धिः ॥
- पितामही – ॐ अद्य ……… गोत्रे पितामही ……… देवी नान्दीमुखी इदमासनं तुभ्यं वृद्धिः ॥
- प्रपितामही – ॐ अद्य …….. गोत्रे प्रपितामही ……… देवी नान्दीमुखी इदमासनं तुभ्यं वृद्धिः ॥
पितृपक्ष आसन : त्रिकुशहस्त जौ-जल से पिता, पितामह, प्रपितामह तीनों को अलग-अलग आसन दे :
- पिता – ॐ अद्य …….. गोत्र पितः ……… शर्मन् नान्दीमुख इदमासनं तुभ्यं वृद्धिः ॥
- पितामह – ॐ अद्य …….. गोत्र पितामह ………. शर्मन् नान्दीमुख इदमासनं तुभ्यं वृद्धिः ॥
- प्रपितामह – ॐ अद्य …….. गोत्र प्रपितामह ……… शर्मन् नान्दीमुख इदमासनं तुभ्यं वृद्धिः ॥
मातामहपक्ष आसन : त्रिकुशहस्त जौ-जल से पिता, पितामह, प्रपितामह तीनों को अलग-अलग आसन दे :
- मातामह – ॐ अद्य ……….. गोत्र मातामह ……….. शर्मन् नान्दीमुख इदमासनं तुभ्यं वृद्धिः ॥
- प्रमातामह – ॐ अद्य ……… गोत्र प्रमातामह ……… शर्मन् नान्दीमुख इदमासनं तुभ्यं वृद्धिः ॥
- वृद्धप्रमातामह – ॐ अद्य ……… गोत्र वृद्धप्रमातामह ……… शर्मन् नान्दीमुख इदमासनं तुभ्यं वृद्धिः ॥
गन्धादिक – विश्वेदेव : ॐ अद्य विश्वेदेवा एतानि गन्धपुष्पधूपदीपताम्बुलवस्त्रयज्ञोपवीतादि आच्छादननानि वो नमः ॥३॥त्रिकुशहस्त जौ-जल से तीनों पक्ष के विश्वेदेवों को अलग-अलग उत्सर्ग करे :
मातृपक्ष गन्धादि : त्रिकुशहस्त जौ-जल से माता, पितामही, प्रपितामही तीनों को अलग-अलग उत्सर्ग करे :
- माता – ॐ अद्य ………. गोत्रे मातः ……….. देवी नान्दीमुखी एतानि गन्धपुष्पधूपदीपताम्बुल वस्त्रसिन्दूरादि आच्छादननानि तुभ्यं वृद्धिः ॥
- पितामही – ॐ अद्य ……….. गोत्रे पितामही ………… देवी नान्दीमुखी एतानि गन्धपुष्पधूपदीपताम्बुल वस्त्रसिन्दूरादि आच्छादननानि तुभ्यं वृद्धिः ॥
- प्रपितामही – ॐ अद्य …………. गोत्रे प्रपितामही …………. देवी नान्दीमुखी एतानि गन्ध-पुष्पधूपदीपताम्बुल वस्त्रसिन्दूरादि आच्छादननानि तुभ्यं वृद्धिः ॥
पितृपक्ष गन्धादि : त्रिकुशहस्त जौ-जल से पिता, पितामह, प्रपितामह तीनों को अलग-अलग उत्सर्ग करे :
- पिता – ॐ अद्य ………. गोत्र पितः ……….. शर्मन् नान्दीमुख एतानि गन्धपुष्पधूपदीपताम्बुल वस्त्रयज्ञोपवीतादि आच्छादननानि तुभ्यं वृद्धिः ॥
- पितामह – ॐ अद्य ……….. गोत्र पितामह ………… शर्मन् नान्दीमुख एतानि गन्धपुष्पधूपदीपताम्बुल वस्त्रयज्ञोपवीतादि आच्छादननानि तुभ्यं वृद्धिः ॥
- प्रपितामह – ॐ अद्य ……….. गोत्र प्रपितामह ………. शर्मन् नान्दीमुख एतानि गन्धपुष्पधूपदीपताम्बुल वस्त्रयज्ञोपवीतादि आच्छादननानि तुभ्यं वृद्धिः ॥
मातामहपक्ष गन्धादि : त्रिकुशहस्त जौ-जल से पिता, पितामह, प्रपितामह तीनों को अलग-अलग उत्सर्ग करे :
- मातामह – ॐ अद्य ……… गोत्र मातामह ………. शर्मन् नान्दीमुख एतानि गन्धपुष्पधूपदीपताम्बुल वस्त्रयज्ञोपवीतादि आच्छादननानि तुभ्यं वृद्धिः ॥
- प्रमातामह – ॐ अद्य ……… गोत्र प्रमातामह ………. शर्मन् नान्दीमुख एतानि गन्धपुष्पधूपदीपताम्बुल वस्त्रयज्ञोपवीतादि आच्छादननानि तुभ्यं वृद्धिः ॥
- वृद्धप्रमातामह – ॐ अद्य ………. गोत्र वृद्धप्रमातामह ………. शर्मन् नान्दीमुख एतानि गन्धपुष्पधूपदीपताम्बुल वस्त्रयज्ञोपवीतादि आच्छादननानि तुभ्यं वृद्धिः ॥
तत्पश्चात अन्नपात्र सहित सभी आसनों को प्रदक्षिणवत् जल से चतुष्कोण मण्डलवेष्टित करे । (कुल परम्परावश यदि भूस्वामि को अन्न दिया जाता हो तो ही दे । भूस्वामि का अन्नोत्सर्ग अपसव्य होकर ही करे।
यदि यज्ञादि अथवा विवाहादि अन्य की भूमि पर किया जा रहा हो जैसे होटल, किराये का मकान, किसी अन्य व्यक्ति या व्यक्तियों की भूमि पर भूस्वामि को अन्न दिया जाना चाहिए। निजगृह या अपनी भूमि पर भूस्वामि को अन्न नहीं दिया जाना चाहिए) तदूत्तर देवादिकों के भोजन पात्रों में अन्न-घृतादि (आमान्न श्राद्ध में आमान्न) दे, सबके लिए अलग-अलग १२ पुटकों में घृत व जल रखे । भोजन पात्र का आलम्भन (दोनों हाथों द्वारा) करते हुए अगला मंत्र पढे –
ॐ पृथिवी ते पात्रं द्यौरपिधानं ब्राह्मणस्य मुखेऽअमृतेऽअमृतं जुहोमि स्वाहा॥ ॐ इदं विष्णुर्विचक्रमे त्रेधा निदधे पदम् । समूढमस्य पांसूले ॥ ॐ कृष्ण हव्यमिदं रक्ष मदीयम् ॥ तत्पश्चात दाहिने हाथ के अंगुष्ठ से क्रमशः अन्न, जल, आज्य, हवि सबको आरोपित करे । ॐ इदमन्नं (अन्न) ॥ ॐ इमा आपः (जल) ॥ ॐ इदं हविः (अन्न) ॥ इस मंत्र से यव छिड़के – ॐ यवोऽसि यवयास्मद्वेषो यवयारातीः ॥ तदूत्तर जौ जल लेकर अन्नोत्सर्ग करे : ॐ विश्वेदेवा इदमन्नं सोपकरणं वो नमः॥ बांया हाथ हटाकर, अन्य दो विश्वेदेवान्नोत्सर्ग भी समान विधि से करे ।
[उपरोक्त विधि सिद्ध अन्न के लिए है, यदि आमान्न या हेमश्राद्ध करे तो उसके लिए इस मन्त्र से उत्सर्ग करे :
- आमान्न – ॐ विश्वेदेवा युग्मब्राह्मणभोजन पर्याप्तं इदमामान्नं सोपकरणं वो नमः॥
- हेम – ॐ विश्वेदेवा युग्मब्राह्मणभोजन पर्याप्तं तन्निष्क्रयीभूतं इदं हिरण्यं वो नमः। आमान्न या हेम श्राद्ध में सर्वत्र इसी तरह प्रयोग करे।]
फिर मातृ पक्ष का अन्नादि उत्सर्ग करे :-
- माता : ॐ पृथिवी ते पात्रं द्यौरपिधानं ब्राह्मणस्य मुखेऽअमृतेऽअमृतं जुहोमि स्वाहा॥ ॐ इदं विष्णुर्विचक्रमे त्रेधा निदधे पदम् । समूढमस्य पांसूले ॥ ॐ कृष्ण कव्यमिदं रक्ष मदीयम् ॥ तत्पश्चात दाहिने हाथ के अंगुष्ठ से क्रमशः अन्न, जल, आज्य, हवि सबको आरोपित करे । ॐ इदमन्नं (अन्न) ॥ ॐ इमा आपः (जल) ॥ ॐ इदं हविः (अन्न) ॥ इस मंत्र से यव छिड़के – ॐ अपहता असुरा रक्षां सि वेदिषदः॥ तदूत्तर जौ जल लेकर अन्नोत्सर्ग करे : ॐ अद्य ………. गोत्रे मातः ……….. देवी नान्दीमुखी इदमन्नं सोपकरणं तुभ्यं वृद्धिः॥ बांया हाथ हटाकर, अन्य दो पितामही व प्रपितामही का भी समान विधि से करे ।
- [उपरोक्त विधि सिद्ध अन्न के लिए है, यदि आमान्न या हेमश्राद्ध करे तो उसके लिए इस मन्त्र से उत्सर्ग करे : आमान्न – ॐ अद्य ………. गोत्रे मातः ……….. देवी नान्दीमुखी युग्मब्राह्मणभोजन पर्याप्तं इदमामान्नं सोपकरणं तुभ्यं वृद्धिः॥ हेम – ॐ अद्य ………. गोत्रे मातः ……….. देवी नान्दीमुखी युग्मब्राह्मणभोजन पर्याप्तं तन्निष्क्रयीभूतं इदं हिरण्यं तुभ्यं वृद्धिः॥ आमान्न या हेम श्राद्ध में सर्वत्र इसी तरह प्रयोग करे।]
- पितामही : ॐ पृथिवी ते पात्रं द्यौरपिधानं ब्राह्मणस्य मुखेऽअमृतेऽअमृतं जुहोमि स्वाहा॥ ॐ इदं विष्णुर्विचक्रमे त्रेधा निदधे पदम् । समूढमस्य पांसूले ॥ ॐ कृष्ण कव्यमिदं रक्ष मदीयम् ॥ तत्पश्चात दाहिने हाथ के अंगुष्ठ से क्रमशः अन्न, जल, आज्य, हवि सबको आरोपित करे । ॐ इदमन्नं (अन्न) ॥ ॐ इमा आपः (जल) ॥ ॐ इदं हविः (अन्न) ॥ इस मंत्र से यव छिड़के – ॐ अपहता असुरा रक्षां सि वेदिषदः॥ तदूत्तर जौ जल लेकर अन्नोत्सर्ग करे : ॐ अद्य ………. गोत्रे पितामही ……….. देवी नान्दीमुखी इदमन्नं सोपकरणं तुभ्यं वृद्धिः॥
- प्रपितामही : ॐ पृथिवी ते पात्रं द्यौरपिधानं ब्राह्मणस्य मुखेऽअमृतेऽअमृतं जुहोमि स्वाहा॥ ॐ इदं विष्णुर्विचक्रमे त्रेधा निदधे पदम् । समूढमस्य पांसूले ॥ ॐ कृष्ण कव्यमिदं रक्ष मदीयम् ॥ तत्पश्चात दाहिने हाथ के अंगुष्ठ से क्रमशः अन्न, जल, आज्य, हवि सबको आरोपित करे । ॐ इदमन्नं (अन्न) ॥ ॐ इमा आपः (जल) ॥ ॐ इदं हविः (अन्न) ॥ इस मंत्र से यव छिड़के – ॐ अपहता असुरा रक्षां सि वेदिषदः॥ तदूत्तर जौ जल लेकर अन्नोत्सर्ग करे : ॐ अद्य ………. गोत्रे प्रपितामही ……….. देवी नान्दीमुखी इदमन्नं सोपकरणं तुभ्यं वृद्धिः॥
फिर पितृपक्षीय अन्नादि उत्सर्ग करे :-
- पिता : ॐ पृथिवी ते पात्रं द्यौरपिधानं ब्राह्मणस्य मुखेऽअमृतेऽअमृतं जुहोमि स्वाहा॥ ॐ इदं विष्णुर्विचक्रमे त्रेधा निदधे पदम् । समूढमस्य पांसूले ॥ ॐ कृष्ण कव्यमिदं रक्ष मदीयम् ॥ तत्पश्चात दाहिने हाथ के अंगुष्ठ से क्रमशः अन्न, जल, आज्य, हवि सबको आरोपित करे । ॐ इदमन्नं (अन्न) ॥ ॐ इमा आपः (जल) ॥ ॐ इदं हविः (अन्न) ॥ इस मंत्र से यव छिड़के – ॐ अपहता असुरा रक्षां सि वेदिषदः॥ तदूत्तर जौ जल लेकर अन्नोत्सर्ग करे : ॐ अद्य ………. गोत्र पितः ……. शर्मन् नान्दीमुख इदमन्नं सोपकरणं तुभ्यं वृद्धिः॥ बांया हाथ हटाकर, अन्य दो पितामह व प्रपितामह का भी समान विधि से करे ।
- पितामह : ॐ पृथिवी ते पात्रं द्यौरपिधानं ब्राह्मणस्य मुखेऽअमृतेऽअमृतं जुहोमि स्वाहा॥ ॐ इदं विष्णुर्विचक्रमे त्रेधा निदधे पदम् । समूढमस्य पांसूले ॥ ॐ कृष्ण कव्यमिदं रक्ष मदीयम् ॥ तत्पश्चात दाहिने हाथ के अंगुष्ठ से क्रमशः अन्न, जल, आज्य, हवि सबको आरोपित करे । ॐ इदमन्नं (अन्न) ॥ ॐ इमा आपः (जल) ॥ ॐ इदं हविः (अन्न) ॥ इस मंत्र से यव छिड़के – ॐ अपहता असुरा रक्षां सि वेदिषदः॥ तदूत्तर जौ जल लेकर अन्नोत्सर्ग करे : ॐ अद्य ………. गोत्र पितामह ………. शर्मन् नान्दीमुख इदमन्नं सोपकरणं तुभ्यं वृद्धिः॥
- प्रपितामह : ॐ पृथिवी ते पात्रं द्यौरपिधानं ब्राह्मणस्य मुखेऽअमृतेऽअमृतं जुहोमि स्वाहा॥ ॐ इदं विष्णुर्विचक्रमे त्रेधा निदधे पदम् । समूढमस्य पांसूले ॥ ॐ कृष्ण कव्यमिदं रक्ष मदीयम् ॥ तत्पश्चात दाहिने हाथ के अंगुष्ठ से क्रमशः अन्न, जल, आज्य, हवि सबको आरोपित करे । ॐ इदमन्नं (अन्न) ॥ ॐ इमा आपः (जल) ॥ ॐ इदं हविः (अन्न) ॥ इस मंत्र से यव छिड़के – ॐ अपहता असुरा रक्षां सि वेदिषदः ॥ तदूत्तर जौ जल लेकर अन्नोत्सर्ग करे : ॐ अद्य ………. गोत्र प्रपितामह ………. शर्मन् नान्दीमुख इदमन्नं सोपकरणं तुभ्यं वृद्धिः॥
फिर मातामहपक्षीय अन्नादि उत्सर्ग करे :-
- मातामह : ॐ पृथिवी ते पात्रं द्यौरपिधानं ब्राह्मणस्य मुखेऽअमृतेऽअमृतं जुहोमि स्वाहा॥ ॐ इदं विष्णुर्विचक्रमे त्रेधा निदधे पदम् । समूढमस्य पांसूले॥ ॐ कृष्ण कव्यमिदं रक्ष मदीयम् ॥ तत्पश्चात दाहिने हाथ के अंगुष्ठ से क्रमशः अन्न, जल, आज्य, हवि सबको आरोपित करे । ॐ इदमन्नं (अन्न) ॥ ॐ इमा आपः (जल) ॥ ॐ इदं हविः (अन्न) ॥ इस मंत्र से यव छिड़के – ॐ अपहता असुरा रक्षां सि वेदिषदः ॥ तदूत्तर जौ जल लेकर अन्नोत्सर्ग करे : ॐ अद्य ………. गोत्र मातामह ……. शर्मन् नान्दीमुख इदमन्नं सोपकरणं तुभ्यं वृद्धिः॥ बांया हाथ हटाकर, अन्य दो पितामह व प्रपितामह का भी समान विधि से करे ।
- प्रमातामह : ॐ पृथिवी ते पात्रं द्यौरपिधानं ब्राह्मणस्य मुखेऽअमृतेऽअमृतं जुहोमि स्वाहा॥ ॐ इदं विष्णुर्विचक्रमे त्रेधा निदधे पदम् । समूढमस्य पांसूले ॥ ॐ कृष्ण कव्यमिदं रक्ष मदीयम् ॥ तत्पश्चात दाहिने हाथ के अंगुष्ठ से क्रमशः अन्न, जल, आज्य, हवि सबको आरोपित करे । ॐ इदमन्नं (अन्न) ॥ ॐ इमा आपः (जल) ॥ ॐ इदं हविः (अन्न) ॥ इस मंत्र से यव छिड़के – ॐ अपहता असुरा रक्षां सि वेदिषदः ॥ तदूत्तर जौ जल लेकर अन्नोत्सर्ग करे : ॐ अद्य ………. गोत्र प्रमातामह ………. शर्मन् नान्दीमुख इदमन्नं सोपकरणं तुभ्यं वृद्धिः॥
- वृद्धप्रमातामह : ॐ पृथिवी ते पात्रं द्यौरपिधानं ब्राह्मणस्य मुखेऽअमृतेऽअमृतं जुहोमि स्वाहा॥ ॐ इदं विष्णुर्विचक्रमे त्रेधा निदधे पदम् । समूढमस्य पांसूले ॥ ॐ कृष्ण कव्यमिदं रक्ष मदीयम् ॥ तत्पश्चात दाहिने हाथ के अंगुष्ठ से क्रमशः अन्न, जल, आज्य, हवि सबको आरोपित करे । ॐ इदमन्नं (अन्न) ॥ ॐ इमा आपः (जल) ॥ ॐ इदं हविः (अन्न) ॥ इस मंत्र से यव छिड़के – ॐ अपहता असुरा रक्षां सि वेदिषदः॥ तदूत्तर जौ जल लेकर अन्नोत्सर्ग करे : ॐ अद्य ………. गोत्र वृद्धप्रमातामह ………. शर्मन् नान्दीमुख इदमन्नं सोपकरणं तुभ्यं वृद्धिः॥
तदूत्तर अञ्जलिबद्ध यह मंत्र पढे – ॐ अन्नहीनं क्रियाहीनं विधिहीनं च यद्भवेत् । तत्सर्वमच्छिद्रमस्तु ॥ तदूत्तर ३ बार गायत्री जपे । कुशा पर बैठकर – ॐ मधु मधु मधु ॥ पढे ।
फिर क्रमशः सभी को दुग्ध मिश्रित जल की धारा दे :
- विश्वेदेव : ॐ विश्वेदेवाः प्रीयन्ताम् ॥
- मातृपक्ष – ॐ मातः-पितामही प्रपितामह्यः नान्दीमुख्यः प्रीयन्ताम् ॥
- पितृपक्ष : ॐ पितः-पितामह प्रपितामहाः नान्दीमुखाः प्रीयन्ताम् ॥
- मातामह पक्ष : ॐ मातामह-प्रमातामह-वृद्धप्रमातामहाः नान्दीमुखाः प्रीयन्ताम् ॥
तदुत्तर आशीः प्रार्थना करे, (हाथ जोड़ कर प्रणाम करे) – ॐ गोत्रं नो वर्द्धताम् ॥ तत्पश्चात सभी श्राद्धों का फल-मूलादि की दक्षिणा करे :
- विश्वेदेव श्राद्ध दक्षिणा – ॐ अद्य विश्वेषां देवानां कृतैतदाभ्युदयिक श्राद्धप्रतिष्ठार्थमिमे फलमूले वनस्पतिदैवते यथानामगोत्राय ब्राह्मणाय दक्षिणामहं ददे ॥
- मातृपक्ष श्राद्ध दक्षिणा – ॐ अद्यामुकगोत्रायाः मातुरमुकीदेव्या नान्दीमुख्याः कृतै तदाभ्युदयिकश्राद्धप्रतिष्ठार्थमिमे फलमूले वनस्पतिदैवते यथानामगोत्राय ब्राह्मणाय दक्षिणामहन्ददे ॥ इसी तरह पितामही व प्रपितामही श्राद्ध की भी दक्षिणा करे ।
- पितृपक्ष व मातामह श्राद्ध दक्षिणा – ॐ अद्यामुकगोत्रस्य पितुरमुकशर्मणो नान्दीमुखस्य कृतैतदाभ्युदयिक श्राद्ध प्रतिष्ठार्थमिमे फलमूले वनस्पतिदैवते यथानामगोत्राय ब्राह्मणाय दक्षिणामहन्ददे ॥
इसी प्रकार पितामह-प्रपितामह; मातामह-प्रमातामह-वृद्धप्रमातामहों के श्राद्ध की भी दक्षिणा करे ।
तदुत्तर पुनः आशीः प्रार्थना करे, (हाथ जोड़ कर प्रणाम करे) – ॐ दातारो नोऽभिवर्द्धन्ताम् वेदाः सन्ततिरेव च । श्रद्धा च नो मा व्यगमद् बहुदेयं च नोऽस्तु । अन्नं च नो बहुभवेदथींश्च लभेमहि । याचितारश्च नः सन्तु मा च याचिष्म कञ्चन । एताः सत्याशिषः सन्तु ॥
फिर ३ बार यह मंत्र पढे – ॐ देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च । नमः स्वधायै स्वाहायै नित्यमेव भवन्त्विति॥३॥
वामदेव गान : कयान इति महावामदेव ऋषिर्गायत्रीच्छन्दोऽग्निर्देवता ऽअग्निष्टोमादौ द्वितीय पृष्ठे शान्तिकर्मणि च जपे विनियोगः । ॐ कयानश्चित्र आ भुव दूती सदा वृधः सखा । कया शचिष्ठया वृता ॥ कस्त्वा सत्यो मदानां मंहिष्ठो मत्सदन्धसः । दृढाचिदारु ये वसु ॥ अभीषुणः सखीनामविता जरितॄणां शतं भवास्यूतये ॥ स्वस्ति न ऽइन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः । स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो ऽअरिष्टनेमिः ॥ स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु । ॐ स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥ ॐ प्राजापत्यं वै वामदेव्यं प्रजापतावेव प्रतिष्ठायोतिष्ठन्ति । ॐ पशवो वै वामदेव्यं पशुष्वेव प्रतिष्ठायोत्तिष्ठन्ति । ॐ शान्तिर्वै वामदेव्यं शान्तावेव प्रतिष्ठायोत्तिष्ठन्ति । ॐ अत एतत्कर्माच्छिद्रमस्तु ॥
प्रार्थना : ॐ माता पितामही चैव तथैव प्रपितामही । पिता पितामहश्चैव तथैव प्रपितामहः ॥ मातामहस्तत्पिता च प्रमातामहकादयः। एते भवन्तु मे प्रीताः प्रयच्छन्तु सुमङ्गलम् ॥ फिर दीप निर्वपण करे ।
हाथ-पैर प्रक्षालित करके प्रार्थना करे – ॐ प्रमादात्कुर्वतां कर्म प्रच्यवेताध्वरेषु यत् । स्मरणादेव तद्विष्णोः सम्पूर्ण स्यादिति श्रुतिः ॥ ॐ विष्णुर्विष्णुर्हरिर्हरिः ॥ श्राद्ध की वस्तुएं ब्राह्मण को प्रदान करे।
॥ इति दिगम्बर झा सम्पादिता “करुणामयि” हिन्दीटीकाऽनूदितं मातृकापूजनसहितं वृद्धिश्राद्धविधानं समाप्तं ॥
कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।
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