मृत्यु के उपरांत जीव की शांति व कल्याण हेतु कर्मकांड में श्राद्ध की विधि बताई गयी है। किन्तु श्राद्ध कर्म से पूर्व जब तक श्राद्ध न हो तब तक प्रेत की शांति व तृप्ति हेतु दशगात्र का विधान है। इस आलेख में घटदान विधि के साथ दशगात्र विधि बताई गयी है। साथ ही pdf भी दिया गया है जिसे डाउनलोड किया जा सकता है। किसी प्रकार की त्रुटि का निस्तारण या संशोधन आलेख मात्र में किया जा सकता है pdf में नहीं इसका अवश्य ध्यान रखें। त्रुटियां सदा संभावित रहती है। अतः समय-समय पर संशोधन और त्रुटि निस्तारण की जानकारी के लिये आलेख का भी अवलोकन करना अपेक्षित होता है।
दशगात्र विधि pdf सहित । घटदान और दशगात्र करने की विधि
जब किसी की मृत्यु होती है तो उस मृतात्मा की शांति व कल्याण के लिये मृत्यु के बाद भी कई प्रकार के कर्मकांड किये जाते हैं। सबसे पहले तो दाह-संस्कार करके मृतक के पाञ्चभौतिक देह को पंचतत्वों में विलीन किया जाता है जिसकी विधि पूर्व आलेख में बताई जा चुकी है।
मरने के बाद मृतात्मा (अंगुष्ठमात्र) जब देह से बाहर निकलता है तो यमदूत उसे यातना शरीर का बंधन प्रदान करके पाश में बांधकर मुहूर्तमात्र में भयङ्कर यममार्ग द्वारा यमलोक ले जाकर पुनः पृथ्वीलोक में वापस लाते हैं। यातना शरीर से ढंका हुआ वह जीव पीड़ित रहता है, यात्रा-श्रम-क्षुधा-तृष्णा-ताप आदि से व्याकुल और पीड़ित रहता है।
यातनादेहमावृत्य पाशैर्बद्ध्वा गले बलात् । नयतो दीर्घमध्वानं दण्ड्यं राजभटा यथा ॥ – गरुडपुराण
अशौच समाप्ति से पूर्व श्राद्ध नहीं किया जा सकता जिससे प्रेतत्व का निवारण होता है, इसलिये अशौच में भी प्रेत को यात्रा-श्रम-क्षुधा-तृष्णा-ताप आदि निवारण के लिये जल, पिण्डादि प्रदान किये जाते है जिसके दो भाग होते हैं सायंकृत्य व दिवाकृत्य। सायंकाल में जल, दुग्ध, माला, दीप आदि प्रदान किये जाते हैं जो घट टांगकर दिया जाता है। दिन में पिण्ड व तिलाञ्जलि दिया जाता है।
कुछ लोग घटदान को लोकाचार मात्र समझने की भूल भी करते हैं किन्तु उनके भ्रम निवारण हेतु इसके शास्त्रोक्त प्रमाण भी प्रस्तुत किये जा रहे हैं :- तस्मान्निधेयमाकाशे दशरात्रं पयस्तथा। सर्वथा तापशान्त्यर्थमध्वश्रम विनाशनं ॥ – मत्स्यपुराण
॥ घटदान-विधि ॥
दाह करके घर आने के बाद यदि समय शेष हो तो सायंकाल में घट बांधे, यदि समय शेष न हो तो अगले दिन सायंकाल में घट बांधे। कहीं घर से बाहर पीपल आदि वृक्ष में घट बांधने का व्यवहार देखा जाता है तो कहीं घर के द्वार पर। लेकिन प्रक्रिया समान ही होती है। मिट्टी के छोटे से घड़े (चुकिया) के नीचे एक छोटा सा छेद करके उसमें कुशा देकर, घट के कंठ में मूँज की रस्सी बांधकर त्रिकाष्ठिका (तीन लकड़ियों को बांधकर) या किसी सहारे से दीवार में टांगा जाता है। घट के नीचे बालू की वेदी बना दी जाती है।
यह विधि दाह-संस्कार के दिन या अगले दिन घटदान वहां किया जाता है जहां गङ्गा तट पर दाह संस्कार किया गया हो और दाह संस्कार के समय ही अस्थि को गङ्गा में विसर्जित भी कर दिया गया हो। किन्तु जहां ऐसा नहीं होता वहां तीसरे दिन स्पर्शाशौच समाप्त होने के बाद चतुर्थ दिन अस्थिसंचय किया जाता है और अस्थिसंचय के बाद सायंकाल घटदान किया जाता है।
द्वार, पीपलवृक्ष आदि जगहों पर पहले-दूसरे या चौथे दिन कुलाचार से घटदान करना चाहिए । शवदाहकर्ता पवित्र होकर दक्षिणाभिमुख-अपसव्य मोड़ा, तिल, जल लेकर संकल्प करे –
संकल्प : ॐ अद्य …………… गोत्रस्य पितुः ………….. प्रेतस्य सर्वपाप प्रशान्त्यध्व श्रम विनाश कामः अद्यादि दशरात्रं (रात्रि की गिनती करके ही तदनुसार रात्रि संख्या का उच्चारण करे) यावत् आकाशाधिकरणक जलदानमहं करिष्ये ॥ यह संकल्प मात्र प्रथम दिन होगा प्रत्येक दिन नहीं।
सर्वतापोपशमनमध्वश्रम निवारकं। प्रेततृप्तिकरं वारि पिब प्रेत सुखी भव॥ – श्राद्ध पारिजात से प्राप्त
सायंकाल घट के नीचे गाय के गोबर से चौका लगा कर पवित्र हो जाय । दीप, अगरबत्ती जला कर दक्षिणाभिमुख अपसव्य हो जाय । दो सर्वा (कच्चा सर्वा) लेकर एक में जल दूसरे में गाय का दूध व पत्ते पर फूल-माला रखे वहीं धूप, दीप आदि भी जला ले । बांया जांघ गिराकर बैठे।
श्मशानानल दग्धोऽसि परित्यक्तोऽसि बांधवैः। इदं नीरमिदंक्षीरमत्रस्नाहि इदं पिब॥ – श्राद्ध पारिजात से प्राप्त
मोड़ा, तिल, जल लेकर सभी वस्तु का उत्सर्ग करते हुए सभी वस्तुएं (धूप-दीप छोड़कर) घट में अर्पित करे –
जल :- ॐ अस्यां सन्ध्यायां ………… गोत्र ………… प्रेत इदं जलं ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम् ॥ अत्र स्नाहि ॥ जल वाले पात्र को बांये हाथ में लेकर मंत्र से उत्सर्ग करके दाहिने हाथ के पितृतीर्थ से जल घट में दे ।
दूध :- ॐ अस्यां सन्ध्यायां ………… गोत्र …….….. पितः प्रेत इदं दुग्धं ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम् ॥ इदं दुग्धं पिब ॥ दूध वाले पात्र को बांये हाथ में लेकर उत्सर्ग करते हुए दाहिने हाथ के पितृतीर्थ से दूध घट में दे दे ।
माला :- ॐ अस्यां सन्ध्यायां ……….. गोत्र पितः ………… प्रेत इदं माल्यं ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम् ॥ इदं माल्यं परिधेहि ॥ माला पर तिल, जल छींट कर माला घट में पहना दे ।
दीप :- ॐ अस्यां सन्ध्यायां ……….. गोत्र पितः ……….. प्रेत एष दीपः ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम् ॥ अनेन पश्य ॥
दशगात्र का अर्थ
गात्र का अर्थ शरीर होता है। अशौच मध्य में क्षौरकर्म दिन तक प्रेत के निमित्त १० पिण्ड उत्सर्ग किये जाते हैं जो प्रेत का भोजन होता है और उससे शुभाशुभ कर्मफल भोग करने के लिये प्रेत के शरीर का निर्माण (पुष्टि) होती और और अंगुष्ठमात्र का शरीर हस्तप्रमाण आकार प्राप्त करता है। इसका प्रमाण गरुडपुराण में इस प्रकार मिलता है : दग्धेदेहे पुनर्देहेः पिण्डेरुत्पद्यते खग। हस्तमात्रः पुमान् येन पथि भुंक्ते शुभाशुभं॥ इस प्रकार देह की पुष्टि के लिये दश दिन दिया जाने वाला पिण्ड दशगात्र संज्ञक होता है।
शिरस्त्वाद्येन पिण्डेन प्रेतस्य क्रियते सदा । द्वितीयेन तु कर्णाक्षिनासिकाश्च समासतः ॥
गलांसभुजवक्षांसि तृतीयेन यथाक्रमात् । चतुर्थेन तु पिण्डेन नाभिलिंग गुदानि च ॥
जानुजंघे तथा पादौ पंचमेन तु सर्वदा । सर्वमर्माणि षष्ठेन सप्तमेन तु नाडयः ॥
दन्तलोमाद्यष्टमेन वीर्यं तु नवमेन च । दशमेन तु पूर्णत्वं तृप्तता क्षुद्विपर्ययः ॥
पिण्डों के भाग भी किये जाते हैं। गरुडपुराण में बताया गया है कि दशगात्र के पिण्डों के चार भाग किये जाते हैं जिसमें से दो भाग पञ्चभूतों का होता है, एक भाग यमदूतों का और एक भाग प्रेत को प्राप्त होता है।
अतो दद्यात्सुतः पिण्डान दिनेषु दश सुद्विज। प्रत्यहन्ते विभाज्यंते चतुर्भागैः खगोत्तम्॥
भागद्वयं तु देहस्य पुष्टिदं भूतपञ्चके। तृतीयं यमदूतनां चतुर्थं सोपजीवति॥ – गरुडपुराण
दशगात्र करने की विधि
- दशगात्र में गात्र निर्माण करने वाले 10 पिण्ड दिये जाते हैं।
- लेकिन तिलाञ्जलि और तिलतोय पात्र प्रतिदिन बढ़ते क्रम से दिये जाते हैं। पहले दिन १ से अंतिम दिन १० तक।
- प्रथम पिण्ड जिस वस्तु की दी गयी हो सभी पिण्ड उसी वस्तु की देनी चाहिये।
- जब त्रिरात्राशौच हो तो उसमें प्रथम दिन १, द्वितीय दिन ४ और तृतीय दिन ५ पिण्ड दे।
- अशौच शङ्कर होने पर जब अशौचदिन में वृद्धि हो रही हो तो प्रथम मृतक के 9 पिण्ड देने के बाद न दे, दशम पिण्ड क्षौरकर्म के दिन दे।
- यदि अशौचशङ्कर होने पर दिन में वृद्धि न हो रही हो तो द्वितीय मृतक के 10 दिन पूर्ण नहीं होंगे। उसके लिये प्रतिदिन १ पिण्ड देकर शेष पिण्ड क्षौरकर्म के दिन दे।
प्रथम-पिण्ड-दान :
पिण्डदाता स्नान कर श्वेत वस्त्र धारण करे । मिट्टी के नए बर्तन में पाककर्म कर ले । बालु की दक्षिणप्लव वेदी बना कर वेदी पर दक्षिणाग्र तीन कुश रख दे । पवित्रीकरण करके धूप, दीप जला ले ।
अपसव्य-दक्षिणाभिमुख होकर एक पीपल के पुड़े में तिल, चंदन, जल देकर बांये हाथ में ले ले । बायां जंघा गिराकर बैठते हुए दाहिने हाथ में मोड़ा, तिल, जल लेकर अत्रावन का उत्सर्ग करे :-
अत्रावन : ॐ अद्य ……… गोत्र पितः ……… प्रेत (…… गोत्रे मातः ……. प्रेते) अत्रावने निक्ष्व ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम् ॥
अत्रावन का उत्सर्ग करके पितृतीर्थ से कुछ जल वेदी के कुशों पर गिरावे व कुछ जल शेष रखकर अपने बांए भाग में प्रत्यवन वास्ते पूड़ा रख ले वाजसनेयी (छन्दोगी का प्रत्यवन अलग पुड़े से होता है)। भात में तिल, मधु, घी, दुग्धादि मिलाकर बिल्वाकार पिण्ड बना कर बांए हाथ में ले ले, दाहिने हाथ में मोड़ा-तिल-जल लेकर पिण्डोत्सर्ग करे :
पिण्ड : ॐ अद्य ……… गोत्र पितः …….. प्रेत एष शिरः पूरकः प्रथमः पिण्डस्ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम् ॥ पिण्डोत्सर्ग कर वेदी के कुशों पर दोनों हाथ से पिण्ड प्रदान करे । दोनों हाथों का तात्पर्य यह भी है कि पिण्ड वेदी पर स्थिरता पूर्वक रखा जा सके।
फिर वाजसनेयी अत्रावन का अवशेष जल ही प्रत्यवन रूप में दे और छन्दोगी नये पूड़े में तिल, जल, चंदन, फूल दे बाएं हाथ में लेकर दाहिने हाथ में मोड़ा-तिल-जल लेकर उत्सर्ग करे :
प्रत्यवन : ॐ अद्य …….. गोत्र पितः …….. प्रेत अत्र प्रत्यवने निक्ष्व ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम् ॥ प्रत्यवन का उत्सर्ग कर जल पिण्ड पर दे ।
दशगात्र पूजन विधि – पिण्ड पूजा
पिण्ड पूजा बिना मंत्र के ही करे। पिण्ड पूजनार्थ :- चंदन, फूल, धूप, दीप, केला, पान, सुपारी, दूध, शीतल जल उनी धागा आदि पिण्ड पर चढ़ावे ।
फिर मोड़ा, तिल, जल लेकर मंत्र पढ़ते हुए पिण्ड के उत्तर भाग में एक बार गिरावे :
तिलतोयांजलि : ॐ अद्य …….. गोत्र पितः ………. प्रेत एष तिलतोयांजलिस्ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम् ॥ पीपल के एक पूड़े में तिल, जल लेकर उत्सर्ग करके पिण्ड के उत्तर भाग में रखे :-
तिलतोयपात्र : ॐ अद्य …….. गोत्र पितः ……… प्रेत इदं तिलतोयपात्रं ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम् ॥ (छन्दोगी में विशेषता ये है कि अत्रावनादि के उपरांत जलस्पर्श कर ले)। फिर त्रिकुश, तिल, जल लेकर दक्षिणा करे :-
दक्षिणा :- ॐ अद्य ….….. गोत्रस्य पितुः ………. प्रेतस्य (गोत्राया मातुः प्रेतायाः) कृतैतत् शिरः पूरक प्रथम पिण्डदान प्रतिष्ठार्थम् एतावत् (यद्दीयमान) द्रव्यमूल्यकं रजतं चन्द्रदैवतं …….. गोत्राय …….. शर्मणे ब्राह्मणाय दक्षिणां अहं ददे ॥ (दातुमहमुत्सृज्ये)
ग्रहणकर्ता ब्राह्मण ‘ॐ स्वस्ति’ कह कर दक्षिणा ले लेवें । पिण्डादि सभी वस्तु जल में प्रवाहित कर दें । इसी तरह प्रतिदिन एक-एक पिण्ड-दान करना चाहिए । अत्रावन एवं प्रत्यवन मंत्रों में परिवर्तन नहीं होगा । पिण्डदान और दक्षिणा के मंत्रों में अंग एवं दिन वाचक दो परिवर्तन होगा । तिलतोयांजलि और तिलतोयपात्र के मंत्रों में विशेष अंतर होगा यह ध्यान रखें । इस प्रकार कुल 55 तिलतोयांजलि और तिलतोयपात्र देना चाहिए ।
द्वितीयादि पिण्डदान के मंत्र निर्देश पूर्वक संक्षिप्त रूप से दिये जा रहे हैं :-
द्वितीय-पिण्ड-दान
प्रथम दिन के तरह ही दूसरे दिन भी अत्रावन-पिण्डदान व प्रत्यवन प्रदान कर दो तिलतोयांजलि देकर दो तिलतोयपात्र प्रदान करे :
- अत्रावन : ॐ अद्य ……… गोत्र पितः ……… प्रेत (…… गोत्रे मातः ……. प्रेते) अत्रावने निक्ष्व ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम् ॥
- पिण्ड : ॐ अद्य ……… गोत्र पितः …….. प्रेत कर्णाक्षिनासापूरकः एष द्वितीयः पिण्डस्ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम् ॥
- प्रत्यवन : ॐ अद्य …….. गोत्र पितः …….. प्रेत अत्र प्रत्यवने निक्ष्व ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम् ॥
- दो तिलतोयांजलि : ॐ अद्य …….. गोत्र पितः ………. प्रेत एतौ द्वौ तिल तोयांजली ते मया दीयेते तवोपतिष्ठेताम् ॥
- तिलतोयपात्र : ॐ अद्य …….. गोत्र पितः ……… प्रेत एते द्वे तिलतोयपात्रे ते मया दीयेते तवोपतिष्ठेताम् ॥
- दक्षिणा :- ॐ अद्य ..….. गोत्रस्य पितुः …….. प्रेतस्य (गोत्राया मातुः प्रेतायाः) कृतैतत् कर्णाक्षिनासापूरक द्वितीय पिण्डदान प्रतिष्ठार्थम् एतावत् (यद्दीयमान) द्रव्यमूल्यकं रजतं चन्द्रदैवतं ……… गोत्राय …….. शर्मणे ब्राह्मणायदक्षिणां अहं ददे ॥ (दातुमहमुत्सृज्ये)
तृतीय-पिण्ड-दान
- अत्रावन : ॐ अद्य ……… गोत्र पितः ……… प्रेत (…… गोत्रे मातः ……. प्रेते) अत्रावने निक्ष्व ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम् ॥
- पिण्ड : ॐ अद्य ……… गोत्र पितः …….. प्रेत गलांसभुजवक्षःपूरकः एष तृतीयः पिण्डस्ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम् ॥
- प्रत्यवन : ॐ अद्य …….. गोत्र पितः …….. प्रेत अत्र प्रत्यवने निक्ष्व ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम् ॥
- दो तिलतोयांजलि : ॐ अद्य …….. गोत्र पितः ………. प्रेत एते त्रयः तिल-तोयांजलयः ते मया दीयन्ते तवोपतिष्ठन्ताम् ॥
- तिलतोयपात्र : ॐ अद्य …….. गोत्र पितः ……… प्रेत एतानि त्रीणि-तिलतोय-पात्राणि ते मया दीयन्ते तवोपतिष्ठन्ताम् ॥
- दक्षिणा :- ॐ अद्य ..….. गोत्रस्य पितुः …….. प्रेतस्य (गोत्राया मातुः प्रेतायाः) कृतैतत् गलांसभुजवक्षः पूरक तृतीय पिण्डदान प्रतिष्ठार्थम् एतावत् (यद्दीयमान) द्रव्यमूल्यकं रजतं चन्द्रदैवतं ………… गोत्राय ……… शर्मणे ब्राह्मणायदक्षिणां अहं ददे ॥ (दातुमहमुत्सृज्ये)
चतुर्थ-पिण्ड-दान
- अत्रावन : ॐ अद्य ……… गोत्र पितः ……… प्रेत (…… गोत्रे मातः ……. प्रेते) अत्रावने निक्ष्व ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम् ॥
- पिण्ड : ॐ अद्य ……… गोत्र पितः …….. प्रेत नाभिलिंगगुद-पूरक एष चतुर्थः पिण्डस्ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम् ॥
- प्रत्यवन : ॐ अद्य …….. गोत्र पितः …….. प्रेत अत्र प्रत्यवने निक्ष्व ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम् ॥
- दो तिलतोयांजलि : ॐ अद्य …….. गोत्र पितः ………. प्रेत एते चत्वारः तिल–तोयांजलयः ते मया दीयन्ते तवोपतिष्ठन्ताम् ॥
- तिलतोयपात्र : ॐ अद्य …….. गोत्र पितः ……… प्रेत एतानि चत्वारि-तिलतोय-पात्राणि ते मया दीयन्ते तवोपतिष्ठन्ताम् ॥
- दक्षिणा :- ॐ अद्य ..….. गोत्रस्य पितुः …….. प्रेतस्य (गोत्राया मातुः प्रेतायाः) कृतैतत् नाभिलिंगगुदपूरक पूरक चतुर्थ पिण्डदान प्रतिष्ठार्थम् एतावत् (यद्दीयमान) द्रव्यमूल्यकं रजतं चन्द्रदैवतं ……….. गोत्राय ………..शर्मणे ब्राह्मणायदक्षिणां अहं ददे ॥ (दातुमहमुत्सृज्ये)
पंचम-पिण्ड-दान
- अत्रावन : ॐ अद्य ……… गोत्र पितः ……… प्रेत (…… गोत्रे मातः ……. प्रेते) अत्रावने निक्ष्व ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम् ॥
- पिण्ड : ॐ अद्य ……… गोत्र पितः …….. प्रेत जानुजंघापाद-पूरक एष पंचमः पिण्डस्ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम् ॥
- प्रत्यवन : ॐ अद्य …….. गोत्र पितः …….. प्रेत अत्र प्रत्यवने निक्ष्व ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम् ॥
- दो तिलतोयांजलि : ॐ अद्य …….. गोत्र पितः ………. प्रेत एते पंच तिल-तोयांजलयः ते मया दीयन्ते तवोपतिष्ठन्ताम् ॥
- तिलतोयपात्र : ॐ अद्य …….. गोत्र पितः ……… प्रेत एतानि पंच-तिलतोय-पात्राणि ते मया दीयन्ते तवोपतिष्ठन्ताम् ॥
- दक्षिणा :- ॐ अद्य ..….. गोत्रस्य पितुः …….. प्रेतस्य (गोत्राया मातुः प्रेतायाः) कृतैतत् जानुजंघापादपूरक पंचम पिण्डदान प्रतिष्ठार्थम् एतावत् (यद्दीयमान) द्रव्यमूल्यकं रजतं चन्द्रदैवतं ………. गोत्राय ………. शर्मणे ब्राह्मणायदक्षिणां अहं ददे ॥ (दातुमहमुत्सृज्ये)
षष्ठ-पिण्ड-दान
- अत्रावन : ॐ अद्य ……… गोत्र पितः ……… प्रेत (…… गोत्रे मातः ……. प्रेते) अत्रावने निक्ष्व ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम् ॥
- पिण्ड : ॐ अद्य ……… गोत्र पितः …….. प्रेत सर्वमर्म पूरक एष षष्ठः पिण्डस्ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम् ॥
- प्रत्यवन : ॐ अद्य …….. गोत्र पितः …….. प्रेत अत्र प्रत्यवने निक्ष्व ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम् ॥
- दो तिलतोयांजलि : ॐ अद्य …….. गोत्र पितः ………. प्रेत एते षट् तिल-तोयांजलयः ते मया दीयन्ते तवोपतिष्ठन्ताम् ॥
- तिलतोयपात्र : ॐ अद्य …….. गोत्र पितः ……… प्रेत एतानि षट्-तिलतोय-पात्राणि ते मया दीयन्ते तवोपतिष्ठन्ताम् ॥
- दक्षिणा :- ॐ अद्य ..….. गोत्रस्य पितुः …….. प्रेतस्य (गोत्राया मातुः प्रेतायाः) कृतैतत् सर्वमर्मपूरक षष्ठ पिण्डदान प्रतिष्ठार्थम् एतावत् (यद्दीयमान) द्रव्यमूल्यकं रजतं चन्द्रदैवतं ………. गोत्राय …….. शर्मणे ब्राह्मणायदक्षिणां अहं ददे ॥ (दातुमहमुत्सृज्ये)
सप्तम-पिण्ड-दान
- अत्रावन : ॐ अद्य ……… गोत्र पितः ……… प्रेत (…… गोत्रे मातः ……. प्रेते) अत्रावने निक्ष्व ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम् ॥
- पिण्ड : ॐ अद्य ……… गोत्र पितः …….. प्रेत सर्वनाड़ी पूरक एष सप्तमः पिण्डस्ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम् ॥
- प्रत्यवन : ॐ अद्य …….. गोत्र पितः …….. प्रेत अत्र प्रत्यवने निक्ष्व ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम् ॥
- दो तिलतोयांजलि : ॐ अद्य …….. गोत्र पितः ………. प्रेत एते सप्त तिल–तोयांजलयः ते मया दीयन्ते तवोपतिष्ठन्ताम् ॥
- तिलतोयपात्र : ॐ अद्य …….. गोत्र पितः ……… प्रेत एतानि सप्त-तिलतोय-पात्राणि ते मया दीयन्ते तवोपतिष्ठन्ताम् ॥
- दक्षिणा :- ॐ अद्य ..….. गोत्रस्य पितुः …….. प्रेतस्य (गोत्राया मातुः प्रेतायाः) कृतैतत् सर्वनाड़ीपूरक सप्तम पिण्डदान प्रतिष्ठार्थम् एतावत् (यद्दीयमान) द्रव्यमूल्यकं रजतं चन्द्रदैवतं ………… गोत्राय ………. शर्मणे ब्राह्मणायदक्षिणां अहं ददे ॥ (दातुमहमुत्सृज्ये)
अष्टम-पिण्ड-दान
- अत्रावन : ॐ अद्य ……… गोत्र पितः ……… प्रेत (…… गोत्रे मातः ……. प्रेते) अत्रावने निक्ष्व ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम् ॥
- पिण्ड : ॐ अद्य ……… गोत्र पितः …….. प्रेत नख-दन्त-लोमादि पूरक एष अष्टमः पिण्डस्ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम् ॥
- प्रत्यवन : ॐ अद्य …….. गोत्र पितः …….. प्रेत अत्र प्रत्यवने निक्ष्व ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम् ॥
- दो तिलतोयांजलि : ॐ अद्य …….. गोत्र पितः ………. प्रेत एते अष्ट तिल-तोयांजलयः ते मया दीयन्ते तवोपतिष्ठन्ताम् ॥
- तिलतोयपात्र : ॐ अद्य …….. गोत्र पितः ……… प्रेत एतानि अष्ट-तिलतोय-पात्राणि ते मया दीयन्ते तवोपतिष्ठन्ताम् ॥
- दक्षिणा :- ॐ अद्य ..….. गोत्रस्य पितुः …….. प्रेतस्य (गोत्राया मातुः प्रेतायाः) कृतैतत् नखदन्तलोमादिपूरक अष्टम पिण्डदान प्रतिष्ठार्थम् एतावत् (यद्दीयमान) द्रव्यमूल्यकं रजतं चन्द्रदैवतं ………. गोत्राय ………. शर्मणे ब्राह्मणायदक्षिणां अहं ददे ॥ (दातुमहमुत्सृज्ये)
नवम-पिण्ड-दान
- अत्रावन : ॐ अद्य ……… गोत्र पितः ……… प्रेत (…… गोत्रे मातः ……. प्रेते) अत्रावने निक्ष्व ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम् ॥
- पिण्ड : ॐ अद्य ……… गोत्र पितः …….. प्रेत वीर्य पूरक एष नवमः पिण्डस्ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम् ॥
- प्रत्यवन : ॐ अद्य …….. गोत्र पितः …….. प्रेत अत्र प्रत्यवने निक्ष्व ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम् ॥
- दो तिलतोयांजलि : ॐ अद्य …….. गोत्र पितः ………. प्रेत एते नव तिल-तोयांजलयः ते मया दीयन्ते तवोपतिष्ठन्ताम् ॥
- तिलतोयपात्र : ॐ अद्य …….. गोत्र पितः ……… प्रेत एतानि नव-तिलतोय-पात्राणि ते मया दीयन्ते तवोपतिष्ठन्ताम् ॥
- दक्षिणा :- ॐ अद्य ..….. गोत्रस्य पितुः …….. प्रेतस्य (गोत्राया मातुः प्रेतायाः) कृतैतत् वीर्यपूरक नवम पिण्डदान प्रतिष्ठार्थम् एतावत् (यद्दीयमान) द्रव्यमूल्यकं रजतं चन्द्रदैवतं ………. गोत्राय ……….. शर्मणे ब्राह्मणायदक्षिणां अहं ददे ॥ (दातुमहमुत्सृज्ये)
दशम-पिण्ड-दान
- अत्रावन : ॐ अद्य ……… गोत्र पितः ……… प्रेत (…… गोत्रे मातः ……. प्रेते) अत्रावने निक्ष्व ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम् ॥
- पिण्ड : ॐ अद्य ……… गोत्र पितः …….. प्रेत पूर्णत्व-तृप्तता-क्षुद्विपर्यय-पूरक एष दशमः पिण्डस्ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम् ॥
- प्रत्यवन : ॐ अद्य …….. गोत्र पितः …….. प्रेत अत्र प्रत्यवने निक्ष्व ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम् ॥
- दो तिलतोयांजलि : ॐ अद्य …….. गोत्र पितः ………. प्रेत एते दश तिल तोयांजलयः ते मया दीयन्ते तवोपतिष्ठन्ताम् ॥
- तिलतोयपात्र : ॐ अद्य …….. गोत्र पितः ……… प्रेत एतानि दश-तिलतोय-पात्राणि ते मया दीयन्ते तवोपतिष्ठन्ताम् ॥
- दक्षिणा :- ॐ अद्य ..….. गोत्रस्य पितुः …….. प्रेतस्य (गोत्राया मातुः प्रेतायाः) कृतैतत् पूर्णत्वतृप्तताक्षुद्विपर्यय पूरक दशम पिण्डदान प्रतिष्ठार्थम् एतावत् (यद्दीयमान) द्रव्यमूल्यकं रजतं चन्द्रदैवतं ………. गोत्राय ……….. शर्मणे ब्राह्मणायदक्षिणां अहं ददे ॥ (दातुमहमुत्सृज्ये)
दशगात्र पिण्डदान में अशौच वृद्धि होने पर नौ पिण्ड दान करके; दशवां पिण्ड क्षौर दिन देने का शास्त्रीय विधान है । त्रिरात्राशौच में क्रमशः 3, 4 और 3 पिण्ड देते हुए तीन दिन में ही 10 पिण्ड देना चाहिए। सद्यः शौच में दशो पिण्ड स्नान के बाद ही दे देना चाहिए । क्षत्रियादि वर्णों को नौ पिण्ड प्रतिदिन देकर दशवां पिण्ड क्षौर कर्म के दिन देना चाहिए ।
तैल खल्ली :- ॐ अद्य ……. गोत्र ……… प्रेत इमे तैलखल्ली ते मया दीयेते तवोपतिष्ठेताम् ॥
दशगात्र और मृत्यु तिथि : दशगात्र और मृत्यु तिथि में भी एक विशेष नियम होता है : साग्निक का दशगात्र और मृत्यु तिथि दाह संस्कार से होता और निरग्निक का दशगात्र और मृत्यु तिथि की गणना मृत्यु दिवस से होती है।
सौरि-सूर्य-कुज वार क्षौर दोष शान्ति मंत्र :- ॐ केशवमानर्त्तपुरं पाटलीपुत्रपुरीमहीक्षत्राम् । दितिमदितिं स्मरतां क्षौरकर्मसु भवति कल्याणम् ॥
अन्त्येष्टि संस्कार pfd सहित। दाह संस्कार विधि मंत्र ।
दशगात्र विधि pdf
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कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।
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