दुर्गा मानस पूजा अर्थ सहित

दुर्गा मानस पूजा अर्थ सहित

इस आलेख में मानस पूजा के बारे में जानकारी देते हुये दुर्गा मानस पूजा के मंत्र अर्थ सहित दिये गये हैं। साथ ही कुछ प्रश्नों के उत्तर भी दिये गये हैं। श्रीदुर्गा सप्तशती के सभी अंगों सहित तरह अध्यायों के अनुसरण पथ भी दिये गये हैं जिससे अनुगमन करते हुये सम्पूर्ण दुर्गा सप्तशती के इच्छित अध्याय आदि का अवलोकन करना सरल हो जाता है।

मानस पूजा क्या है?

भौतिक पूजा के अतिरिक्त, भावना करते हुये मानसिक रूप से पूजा करना मानस पूजा कहलाता है।

मानस पूजा से विशेष फल प्राप्त होता है। इसलिये भौतिक रूप से पूजा करें तो भी या किसी कारण से न कर पा रहे हों तो भी मानस पूजा अवश्य करें।

मानस पूजा के लिये दो आवश्यकता है :-

  1. पहली आवश्यकता ये है कि मानस पूजा मंत्रों को याद कर लें।
  2. दूसरी आवश्यकता ये है कि सभी मंत्रों का अर्थ भी समझ लें ।

इन दोनों के अभाव में मानस पूजा का स्तर नहीं प्राप्त किया जा सकता।

श्री दुर्गा मानसपूजा

अर्थ – हे माता त्रिपुरसुन्दरि ! तुम भक्तजनों की मनोकामना पूर्ण करने वाली कल्पलता हो। माँ यह पादुका आदरपूर्वक तुम्हारे श्रीचरणों में समर्पित है, इसे ग्रहण करो। यह उत्तम चन्दन और कुंकम से मिली हुई लाल जल की धारा से धोई गई है। भाँति-भाँति की बहुमूल्य मणियों तथा मूँगों से इसका निर्माण हुआ है और बहुत-सी देवांगनाओं ने अपने करकमलों द्वारा भक्तिपूर्वक इसे सब ओर से धो-पोंछकर स्वच्छ बना दिया है।

अर्थ – हे माँ ! देवताओं ने तुम्हारे बैठने के लिए यह दिव्य सिंहासन लाकर रख दिया है, इस पर विराजो। ये वह सिंहासन है, जिसकी देवराज इन्द्र आदि भी पूजा करते हैं। अपनी कान्ति से दमकते हुए राशि-राशि सुवर्ण से इसका निर्माण किया गया है। यह अपनी मनोहर प्रभा से सदा प्रकाशमान रहता है। यह चम्पा और केतकी की सुगन्ध से पूर्ण अत्यन्त निर्मल तेल और सुगन्धयुक्त उबटन है, जिसे दिव्य युवतियाँ आदरपूर्वक तुम्हारी सेवा में प्रस्तुत कर रही हैं, कृपया इसे स्वीकार करो।

अर्थ – देवि ! इसके पश्चात यह विशुद्ध आँवले का फल ग्रहण करो़। शिवप्रिये ! त्रिपुरसुन्दरि ! इस आँवले में प्राय: जितने भी सुगन्धित पदार्थ हैं, वे सभी डाले गये हैं, इससे यह परम सुगन्धित हो गया है। अत: इसको लगाकर बालों को कंघी से झाड़ लो और गंगाजी की पवित्र धारा में नहाओ। इसके बाद यह दिव्य गन्ध सेवा में प्रस्तुत है, यह तुम्हारे आनन्द की वृद्धि करने वाला हो।

जल यात्रा विधि
दुर्गा मानस पूजा अर्थ सहित

अर्थ – सम्पत्ति प्रदान करने वाली वरदायिनी त्रिपुरसुन्दरि ! यह सरस शुद्ध कस्तूरी ग्रहण करो। इसे स्वयं देवराज इन्द्र की पत्नी महारानी शची अपने करकमलों में लेकर सेवा में खड़ी हैं। इसमें चन्दन, कुंकुम तथा अगुरु आदि होने से और भी इसकी शोभा बढ़ गई है। इससे बहुत अधिक गन्ध निकलने के कारण यह बड़ी मनोहर प्रतीत होती है।

अर्थ – माँ श्रीसुन्दरि ! यह परम उत्तम निर्मल वस्त्र सेवा में समर्पित है, यह तुम्हारे हर्ष को बढ़ावे। माता ! इसे गन्धर्व, देवता तथा किन्नरों की प्रेयसी सुन्दरियाँ अपने फैलाए हुए करकमलों में धारण किये खड़ी हैं। यह केसर में रँगा हुआ पीताम्बर है। इससे परम प्रकाशमान सूर्यमण्डल की शोभामयी दिव्य कान्ति निकल रही है, जिसके कारण यह बहुत ही सुशोभित हो रहा है।

अर्थ – तुम्हारे दोनों कानों में सोने के बने हुए कुण्डल झिलमिलाते रहें, करकमल की एक अंगुली में अँगूठी शोभा पावे, कटिभाग में नितम्बों पर करधनी सुहाए, दोनों चरणों में मंजीर मुखरित होता रहे, वक्ष:स्थल में हार सुशोभित हो और दोनों कलाइयों में कंकन खनकते रहें। तुम्हारे मस्तक पर रखा हुआ दिव्य मुकुट प्रतिदिन आनन्द प्रदान करे। ये सब आभूषण प्रशंसा योग्य हैं।

अर्थ – धन देने वाली शिवप्रिये पार्वती ! तुम गले में बहुत ही चमकीली सुन्दर हंसली पहन लो, ललाट के मध्य भाग में सौन्दर्य की मुद्रा (चिह्न) धारण करने वाले सिन्दूर की बिंदी लगाओ तथा अत्यन्त सुन्दर पद्मपत्र की शोभा को तिरस्कृत करने वाले नेत्रों में यह काजल भी लगा लो, यह काजल दिव्य औषधियों से तैयार किया गया है।

अर्थ – पापों का नाश करने वाली संपत्तिदायिनी त्रिपुरसुन्दरि ! अपने मुख की शोभा निहारने के लिए यह दर्पण ग्रहण करो। इसे साक्षात रति रानी ने अपने करकमलों से लाकर सेवा में उपस्थित हैं। इस दर्पण के चारों ओर मूँगे जड़े हैं। प्रचण्ड वेग से घूमने वाले मन्दराचल की मथानी से जब क्षीरसागर मथा गया, उस समय यह दर्पण उसी से प्रकट हुआ था। यह चन्द्रमा की किरणों के समान उज्जवल है।

अर्थ – भगवान शंकर की धर्मपत्नी पार्वतीदेवी ! देवांगनाओं के मस्तक पर रखे हुए बहुमूल्य रत्नमय कलशों द्वारा शीघ्रतापूर्वक दिया जाने वाला यह निर्मल जल ग्रहण करो। इसे चम्पा और गुलाल आदि सुगन्धित द्रव्यों से सुवासित किया गया है तथा यह कस्तूरी रस, चन्दन, अगरु और सुधा की धारा से आप्लावित है।

अर्थ – मैं कह्लार, उत्पल, नागकेसर, कमल, मालती, मल्लिका, कुमुद, केतकी और लाल कनेर आदि फूलों से, सुगन्धित पुष्पमालाओं से तथा नाना प्रकार के रसों की धारा से लाल कमल के भीतर निवास करने वाली श्रीचण्डिका देवी आपकी पूजा करता हूँ।

अर्थ – श्रीचण्डिका देवि ! देववधुओं के द्वारा तैयार किया हुआ यह दिव्य धूप तुम्हारी प्रसन्नता बढ़ाने वाला है। यह धूप रत्नमय पात्र में, जो सुगन्ध का निवास स्थान है, रखा हुआ है, यह तुम्हें संतोष प्रदान करे। इसमें जटामांसी, गुग्गुल, चन्दन, अगरु-चूर्ण, कपूर, शिलाजीत, मधु, कुंकुम तथा घी मिलाकर उत्तम रीति से बनाया गया है।

अर्थ – देवि ! त्रिपुरसुन्दरि ! तुम्हारी प्रसन्नता के लिए यहाँ यह दीप प्रकाशित हो रहा है। यह घी से जलता है, इसकी दीयट (दीपक का आधार) में सुन्दर रत्न का डंडा लगा है, इसे देवांगनाओं ने बनाया है। यह दीपक सुवर्ण के पात्र में जलाया गया है। इसमें कपूर के साथ बत्ती रखी है। यह भारी से भारी अन्धकार का भी नाश करने वाला है।

दैवज्ञ
श्री दुर्गा मानसपूजा

अर्थ – श्रीचण्डिका देवि ! देववधुओं ने तुम्हारी प्रसन्नता के लिए यह दिव्य नैवेद्य तैयार किया है, इसमें अगहनी के चावल का स्वच्छ भात है, जो बहुत ही रुचिकर और चमेली की सुगन्ध से वासित है। साथ ही हींग, मिर्च और जीरा आदि सुगन्धित द्रव्यों से छौंक-बघारकर बनाए हुए नाना प्रकार के व्यंजन भी हैं, इसमें भाँति-भाँति के पकवान, खीर, मधु, दही और घी का भी मेल है।

अर्थ – माँ ! सुन्दर रत्नमय पात्र में सजाकर रखा हुआ यह दिव्य ताम्बूल अपने मुख में ग्रहण करो। लवंग की कली चुभोकर इसके बीड़े लगाए गए हैं, अत: बहुत सुन्दर जान पड़ते हैं, इसमें बहुत से पान के पत्तों का उपयोग किया गया है। इन सब बीड़ों में कोमल जावित्री, कपूर और सुपारी पड़ी हैं। यह ताम्बूल सुधा के माधुर्य से परिपूर्ण है।

अर्थ – महात्रिपुरसुन्दरि माता पार्वती ! तुम्हारे सामने यह विशाल एवं दिव्य छत्र प्रकट हुआ है, इसे ग्रहण करो। यह शरत्काल के चन्द्रमा की चटकीली चाँदनी के समान सुन्दर है, इसमें लगे हुए सुन्दर मोतियों की झालर ऎसी जान पड़ती है मानो देवनदी गंगा का स्रोत ऊपर से नीचे गिर रहा हो। यह छत्र सुवर्णमय दण्ड के कारण बहुत ही शोभा पा रहा है।

अर्थ – माँ ! सुन्दर स्त्रियों के हाथों से निरन्तर डुलाया जाने वाला यह श्वेत चँवर, जो चन्द्रमा और कुन्द के समान उज्जवल तथा पसीने के कष्ट को दूर करने वाला है, तुम्हारे हर्ष को बढ़ावे। इसके सिवा महर्षि अगस्त्य, वसिष्ठ, नारद, शुक, व्यास आदि तथा वाल्मीकि मुनि अपने-अपने चित्त में जो वेदमन्त्रों के उच्चारण का विचार करते हैं, उनकी वह मन:संकल्पित वेदध्वनि तुम्हारे आनन्द की वृद्धि करें।

प्रातः कृत्य
दुर्गा मानस पूजा

अर्थ – स्वर्ग के आँगन में वेणु, मृदंग, शंख तथा भेरी की मधुर ध्वनि के साथ जो संगीत होता है तथा जिसमें अनेक प्रकार के कोलाहल का शब्द व्याप्त रहता है, वह विद्याधरी द्वारा प्रदर्शित नृत्य-कला तुम्हारे सुख की वृद्धि करे।

अर्थ – देवि ! तुम्हारे भक्ति रस से भावित इस पद्यमय स्तोत्र में यदि कहीं से कुछ भक्ति का लेश मिले तो उसी से प्रसन्न हो जाओ। माँ ! तुम्हारी भक्ति के लिए चित्त में जो आकुलता होती है, वही एकमात्र जीवन का फल है, वह कोटि-कोटि जन्म धारण करने पर भी इस संसार में तुम्हारी कृपा के बिना सुलभ नहीं होती।

अर्थ – इन उपचार कल्पित सोलह पद्यों से जो परा देवता भगवती त्रिपुरसुन्दरी का स्तवन करता है, वह उन उपचारों के समर्पण का फल प्राप्त करता है।

॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः सुशांतिर्भवतु सर्वारिष्ट शान्तिर्भवतु

आगे सम्पूर्ण दुर्गा सप्तशती के अनुगमन कड़ी दिये गये हैं जहां से अनुसरण पूर्वक कोई भी अध्याय पढ़ सकते है :

कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।

F & Q :

प्रश्न : मानस पूजा कैसे की जाती है?
उत्तर : मानस पूजा उत्तम प्रकार है। अपने इष्ट का मन में ध्यान करके उनके मानस पूजा स्तोत्र का पाठ करते हुये मन में ही पूजा के विभिन्न दिव्य उपचारों (आसन, पाद्य, अर्घ्य आदि) की कल्पना करके अर्पित की जाती है। मानस पूजा में किसी वस्तु की नहीं केवल भाव की आवश्यकता होती है।

प्रश्न : मानस पूजा क्या होती है?
उत्तर : बिना किसी भौतिक वस्तु के मन में केवल दिव्य वस्तुओं की कल्पना करते हुये इष्ट देवता को समर्पित करना मानस पूजा है।

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