स्तोत्रों के अनेकों प्रकार होते हैं यथा कवच स्तोत्र, अष्टक स्तोत्र, अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र, सहस्रनाम स्तोत्र आदि। इसी प्रकार से एक विशेष महत्वपूर्ण स्तोत्र होता है पञ्जर स्तोत्र जिसका तात्पर्य होता है पूर्ण सुरक्षा प्रदान करने वाला। पंजर का तात्पर्य पिंजरा ही बताया जाता है, पिंजरा सुरक्षित तो करता ही है साथ ही साथ जिसका पिंजरा हो उसका सान्निध्य भी प्राप्त होता है और इस कारण पंजर स्तोत्र बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। यहां दुर्गा पञ्जर स्तोत्र (durga panjar stotram) संस्कृत में दिया गया है।
यहां पढ़ें दुर्गा पञ्जर स्तोत्र संस्कृत में – durga panjar stotram
माता दुर्गा का पंजर स्तोत्र मार्कण्डेय पुराण में वर्णित है। यहां विनियोग और ध्यान सहित संस्कृत में दुर्गा पंजर स्तोत्र है।
विनियोग : ॐ अस्य श्रीदुर्गा पञ्जरस्तोत्रस्य सूर्य ऋषिः, त्रिष्टुप्छन्दः, छाया देवता, श्रीदुर्गा पञ्जरस्तोत्र पाठे विनियोगः ॥
॥ ध्यानम् ॥
ॐ हेम प्रख्यामिन्दु खण्डात्तमौलिं शङ्खाभीष्टा भीति हस्तां त्रिनेत्राम् ।
हेमाब्जस्थां पीन वस्त्रां प्रसन्नां देवीं दुर्गां दिव्यरूपां नमामि ।
अपराध शतं कृत्वा जगदम्बेति चोच्चरेत् ।
यां गतिं समवाप्नोति नतां ब्रह्मादयः सुराः ।
सापराधोऽस्मि शरणं प्राप्तस्त्वां जगदम्बिके ॥१॥
मार्कण्डेय उवाच
दुर्गे दुर्गप्रदेशेषु दुर्वाररिपुमर्दिनी ।
मर्दयित्री रिपुश्रीणां रक्षां कुरु नमोऽस्तुते ॥१॥
पथि देवालये दुर्गे अरण्ये पर्वते जले ।
सर्वत्रोऽपगते दुर्गे दुर्गे रक्ष नमोऽस्तुते ॥२॥
दुःस्वप्ने दर्शने घोरे घोरे निष्पन्न बन्धने ।
महोत्पाते च नरके दुर्गेरक्ष नमोऽस्तुते ॥३॥
व्याघ्रोरग वराहानि निर्हादिजन सङ्कटे ।
ब्रह्मा विष्णु स्तुते दुर्गे दुर्गे रक्ष नमोऽस्तुते ॥४॥
खेचरा मातरः सर्वं भूचराश्चा तिरोहिताः ।
ये त्वां समाश्रिता स्तांस्त्वं दुर्गे रक्ष नमोऽस्तुते ॥५॥
कंसासुर पुरे घोरे कृष्ण रक्षणकारिणी ।
रक्ष रक्ष सदा दुर्गे दुर्गे रक्ष नमोऽस्तुते ॥६॥
अनिरुद्धस्य रुद्धस्य दुर्गे बाणपुरे पुरा ।
वरदे त्वं महाघोरे दुर्गे रक्ष नमोऽस्तुते ॥७॥
देव द्वारे नदी तीरे राजद्वारे च सङ्कटे ।
पर्वता रोहणे दुर्गे दुर्गे रक्ष नमोऽस्तुते ॥८॥
दुर्गा पञ्जर मेतत्तु दुर्गा सार समाहितम् ।
पठनस्तारयेद् दुर्गा नात्र कार्या विचारण ॥९॥
रुद्रबाला महादेवी क्षमा च परमेश्वरी ।
अनन्ता विजया नित्या मातस्त्वमपराजिता ॥१०॥
॥ इति श्री मार्कण्डेयपुराणे देवीमहात्म्ये रुद्रयामले देव्याः पञ्जरस्तोत्रम् ॥
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