दुर्गा सप्तशती अध्याय 2 संस्कृत

दुर्गा सप्तशती अध्याय 2 संस्कृत

॥ विनियोगः ॥

॥ ध्यानम् ॥

दुर्गा सप्तशती के द्वितीय अध्याय का सारांश

  • प्राचीनकाल में महिषासुर नाम का एक दैत्य हुआ था जो बहुत शक्तिशाली था। उसने सभी देवताओं को हरा दिया और सबको पदच्युत करके सबके पद पर अधिकार कर लिया।
  • पराजित होकर दुःखी देवता त्रिदेव की शरण में जाकर अपने दुःखों का वर्णन किया।
  • देवताओं का दुःख सुनकर भगवान विष्णु और शङ्कर अत्यंत कुपित हुये और उनके मुख से एक दिव्य तेज प्रकट हुआ।
  • उसी तेज में भगवान शङ्कर का तेज भी मिल गया, फिर ब्रह्मादि अन्य सभी देवताओं का तेज भी उसमें मिल गया।
  • समस्त देवताओं का तेजपुंज मिलने से एक देवी प्रकट हुई और सभी देवताओं ने उनको अस्त्र-शस्त्रादि भी प्रदान किया।
सिद्ध सरस्वती स्तोत्र
दुर्गा सप्तशती अध्याय 2
  • फिर सिंह वाहिनी जगदम्बा ने भयङ्कर गर्जना की जिससे दैत्यों में भय और देवताओं में हर्ष उत्पन्न हुआ।
  • देवता, ऋषि-मुनियों ने जगदम्बा की स्तुति की और महिषासुर विशाल सेना के साथ युद्ध करने आ गया।
  • देवी ने महिषासुर के सेनापति चिक्षुर के साथ अन्य सभी सेना और सेनापतियों का संहार करने लगी जिसमें प्रमुख नाम थे – उदग्र, महाहनु, असिलोमा, वाष्कल, विडाल आदि।
  • युद्ध में देवी के सिंह ने भी बहुत पराक्रम प्रदर्शन किया।
दुर्गा सप्तशती पाठ

॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः सुशांतिर्भवतु सर्वारिष्ट शान्तिर्भवतु

आगे सम्पूर्ण दुर्गा सप्तशती के अनुगमन कड़ी दिये गये हैं जहां से अनुसरण पूर्वक कोई भी अध्याय पढ़ सकते है :

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