6. जया एकादशी व्रत कथा
माघ मास के शुक्ल पक्ष में हो एकादशी होती है उसका नाम जया एकादशी है। कथा के अनुसार पुष्पवती गंधर्वी और माल्यवान गन्धर्व एक बार इन्द्र की सभा में नृत्य करते हुए काममोहित हो गए तो इंद्र ने उन्हें पिशाच बनने का श्राप दे दिया जिसके कारण दोनों हिमालय पर्वत पर पिशाच बनकर कष्ट भोगने लगे। कष्टमय जीवन व्यतीत करते हुये एक समय माघ शुक्ल एकादशी प्राप्त हुयी। अत्यधिक ठंढ के कारण दोनों दुःखी थे और उस दिन किसी तरह की हिंसा न करते हुए भोजन भी नहीं किया। रात काटना भी मुश्किल था अतः परस्पर आलिंगन करते हुये रात काटी किन्तु मैथुन नहीं किया।
अगले दिन प्रातः काल जया एकादशी की कृपा से दोनों शापमुक्त होकर पुनः स्वर्ग लोक चले गये और जब इंद्र ने शापमुक्ति का कारण पूछा तो उसने जया एकादशी और भगवान वासुदेव की कृपा बताया। तब इन्द्र ने भी भगवान विष्णु के भक्त और एकादशी करने वाले को वंदनीय घोषित किया।
- जया एकादशी माघ मास के शुक्ल पक्ष में होती है।
- इसके अधिदेवता भगवान वासुदेव हैं। इस एकादशी को करने से ब्रह्महत्यादि बड़े पापों का भी नाश हो जाता है।
- यह पिशाचत्व और प्रेतत्व का निवारण करने वाली है।
- इसकी कथा पढ़ने-सुनने से अग्निष्टोम यज्ञ का पुण्य प्राप्त होता है।
7. विजया एकादशी व्रत कथा
फाल्गुन मास के कृष्णपक्ष की एकादशी का नाम विजया एकादशी है। कथा के अनुसार जब सीताहरण के बाद सेना के साथ लंका विजय करने के लिए भगवान श्रीराम समुद्रतट पर पहुंचे तो अथाह समुद्र को देखकर विचलित हो गये। भाई लक्ष्मण के बताने पर निकट में स्थित वकदाल्भ्य मुनि के आश्रम पर गए तो उन्होंने विजया एकादशी व्रत करने का उपदेश दिया।
भगवान श्रीराम ने मुनि की बताई विधि के अनुसार विजया एकादशी का व्रत किया और व्रत के प्रभाव से लंका विजय करके पुनः सीता और लक्ष्मण सही अयोध्या नगरी में वापस आये। वास्तव में भगवान श्रीराम ने भी एकादशी की महिमा को स्थापित करने के लिये व्रत किया। एकादशी भगवान विष्णु की ही शक्ति है और भगवान श्रीराम भी विष्णु अवतार ही हैं।
- विजया एकादशी फाल्गुन मास के कृष्णपक्ष में होती है।
- इसके अधिदेवता नारायण हैं।
- विजया एकादशी विजय प्रदायक है।
- इस कथा को पढ़ने-सुनने से वाजपेय यज्ञ का पुण्य प्राप्त होता है।