एकादशी व्रत भगवान विष्णु के प्रति समर्पित है अथवा एकादशी के अधिपति भगवान श्रीविष्णु हैं। एकादशी विविध कामनाओं की भी पूर्ति करने वाली होती है तथा इससे स्वर्ग एवं मोक्ष की सिद्धि भी होती है।
एकादशी का माहात्म्य विभिन्न पुराणों और ग्रंथों में विस्तार से वर्णित है। कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की दोनों एकादशी को मिलाकर 12 महीने कुल 24 एकादशी होती है। इसमें अधिकमास की अन्य दो एकादशी जुड़ने से एकादशी की कुल संख्या 26 होती है।

26 एकादशी के नाम
उत्पन्ना मोक्षदा चापि सफला पुत्रदा तथा । षट्तिलाख्या जयाख्या च विजयामलकीति च ।।
पापमोचनिकाख्या च कामदा च वरूथिनी । मोहिनी चापराख्या च निर्जला योगिनी तथा ।।
विष्णुर्देवस्य शयनी पवित्रा पुत्रदा त्वजा। परिवर्तिनीन्दिराख्या तथा पापांकुशा रमा ।
देवोत्थानीति च प्रोक्ताश्चतुर्विंशतिनामभिः । द्वे चाप्यधिकमासस्य पद्मिनी परमेति च ।।
- उत्पन्ना
- मोक्षदा
- सफला
- पुत्रदा
- षट्तिला
- जया
- विजया
- आमलकि
- पापमोचनि
- कामदा
- वरूथिनी
- मोहिनी
- अपरा
- निर्जला
- योगिनी
- देवशयनी
- पवित्रा
- पुत्रदा
- अजा
- परिवर्तिनि
- इंदिरा
- पापांकुशा
- रमा
- देवोत्थान
अधिकमास में जो २ एकादशी होती है उसका नाम है – 25: पद्मिनी और 26: परमा ।
एकादशी व्रत किस महीने से शुरू करना चाहिए
प्रत्येक महीने होने वाले किसी भी व्रत का आरम्भ करने के लिये मार्गशीर्ष (अगहन) मास को उत्तम माना गया है। अन्य सभी व्रतों के लिये शुक्ल पक्ष में आरम्भ करने का वचन शास्त्रों में मिलता है। किन्तु एकादशी की मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष में उत्पन्न हुई थी इस कारण इसका नाम उत्पन्ना भी है। इसलिये एकादशी का आरम्भ कृष्ण पक्ष की उत्पन्ना एकादशी से करने के लिये विधि बतायी गयी है।
वैसे यदि अन्य एकादशी में भी प्रबल इच्छा हो जाये, भक्ति-भाव की वृद्धि हो जाये तो उत्पन्ना एकादशी की प्रतीक्षा करने की आवश्यकता नहीं होती अन्य मास में भी आरम्भ किया जा सकता है।