वर्षों से चल रहे ज्ञानवापी प्रकरण का सर्वे रिपोर्ट न्यायालय के आदेश से 25 जनवरी 2024 को सार्वजनिक की जा चुकी है। सर्वे रिपोर्ट सार्वजनिक होने के बाद कई महत्वपूर्ण बातें सामने आयी है। सनातनियों का दृढ विश्वास की ज्ञानवापी ही भगवान विश्वनाथ का वास्तविक मंदिर है यह और पुष्ट हो गया है।
यद्यपि अभी मंदिर होने का आदेश आने में समय लगेगा लेकिन सनातनी उसे मंदिर मान चुके हैं लेकिन फिर भी मुस्लिम पक्ष विवाद को आगे बढ़ाने की बात करता है। स्वेच्छा से ज्ञानवापी सनातनियों को सौंपने के लिये तैयार नहीं है। जिससे कुछ विशेष निष्कर्ष भी निकलते हैं और हम उन निष्कर्षों को समझने का प्रयास करेंगे।
ज्ञानवापी सर्वे में क्या मिला
ASI की रिपोर्ट में ये स्पष्ट किया गया है कि वर्तमान ढांचा किसी विशाल मंदिर के ऊपर बनाया गया है। सर्वे में जो चीजें मिली वो इस प्रकार है :
- हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां
- दीवारों पर त्रिशूल, कलश, कमल और स्वास्तिक के चिह्न
- सजावटी ईंटें
- दैवीय युगल
- चौखट के अवशेष
- जनार्दन, रुद्र, और उमेश्वर जैसे तीन नाम
- एक मंडप का नाम – महामुक्तिमंडप
- पुराने निर्माण अर्थात मंदिर का खंभा
- हिन्दू मंदिर का अवशेष।
- सर्वे में 32 ऐसी जगहों का उद्धरण दिया गया जहां हिंदू मंदिर होने की बात कही गई है।
इतने प्रमाण मिलने के बाद जबकि रिपोर्ट में स्पष्ट कहा गया है कि वह ढांचा मंदिर के ऊपर ही बनाया गया है फिर तो कुछ और कहना शेष ही नहीं बचता।
मुस्लिम पक्ष का नया झूठ
इतने साक्ष्य मिलने के बाद फिर से मुस्लिम पक्ष का नया झूठ समाचारों के माध्यम से ज्ञात होता है कि जो मूर्तियां हैं वो किरायेदारों के हैं। साक्ष्य में तो मूल निर्माण ही मंदिर का है वो तो किसी किरायेदार का नहीं हो सकता न !
इतने साक्ष्य उपलब्ध होने पर भी नया झूठ गढ़ना, नये प्रकार के अवरोध का प्रयास करना सनातन के सम्मान को ठेस पहुँचाने वाला है।
ज्ञानवापी सर्वे का निष्कर्ष क्या है ?
अब ये कहना की मूर्तियां किरायेदारों की हैं; असत्य और सत्य जो भी है न्यायालय निर्णय करेगी, किन्तु उपरोक्त आधारों पर कुछ महत्वपूर्ण निष्कर्ष निकलता है :
- सनातनियों का मुख्य दावा तीन मंदिरों को लेकर था – अयोध्या का राम मंदिर जिसका निवारण हो चुका है, काशी का ज्ञानवापी मंदिर और मथुरा का कृष्ण मंदिर।
- सनातन पक्ष का ये भी वक्तव्य था कि यदि मुस्लिम पक्ष इन तीन जगहों का पक्षों को बिना विवाद के समर्पित कर दे तो बाकि के हजारों मंदिरों के लिये हिन्दू पक्ष दावा नहीं करेगा। किन्तु मुस्लिम पक्ष को ये स्वीकार नहीं है जो कि एक गंभीर बात है।
- अब हिन्दू पक्ष के मन में ये भाव भी आने लगा है कि यदि विवाद लड़के ही दावा सिद्ध होगा तो मात्र ३ मंदिर ही क्यों तब बाकि के हजारों मंदिर पर भी दावा क्यों नहीं करेंगे। ३ मुख्य मंदिर वाली बात तो समझौते के लिये था कि अन्य हजारों मंदिरों पर दावा नहीं करेंगे।
- ये भविष्य के लिये चिंताजनक विषय है कि यदि हजारों मंदिर पर हिन्दू दावा करता है तो गृहयुद्ध की स्थिति उत्पन्न हो सकती है और इसकी गंभीरता मुस्लिम पक्ष को समझने की आवश्यकता है।
- यदि हिन्दू पक्ष तैयार हो तो मुस्लिम पक्ष को अभी भी इस समझौते का प्रयास करना चाहिये; हिन्दू पक्ष ने जिस ३ मुख्य मंदिरों की बात की थी।
- राजनीति, सरकार, नेताओं, धर्मगुरुओं, विभिन्न संस्थाओं को इस विषय में विचार करने की आवश्यकता है।
- देश किसी गृहयुद्ध के संकट में न फंसे इसके लिये धर्मगुरुओं, राजनीति, सरकार, नेताओं, न्यायतंत्र, विभिन्न संस्थाओं को इस विषय में विचार करने की आवश्यकता है।
- यदि दोनों पक्षों में इस तरह का समझौता नहीं होता है तो यह हिन्दू पक्ष को अन्य हजारों मंदिरों के लिये भी दावा करने के लिये उकसाने जैसा है।
- देश में किसी प्रकार से गृहयुद्ध की स्थिति उत्पन्न न हो इसीलिये शांतिप्रिय हिन्दू पक्ष द्वारा ३ मंदिरों पर समझौते का प्रस्ताव दिया गया था। जिसका तात्पर्य मुस्लिम पक्ष नहीं समझ पा रहा है।
- अभी भी मुस्लिम पक्ष को विचार करना चाहिये और अनुनय-विनय जिस प्रकार भी हिन्दू पक्ष इस समझौते के लिये तैयार हो समझौते का प्रयास करना चाहिये और देश को गृहयुद्ध की ओर नहीं विश्वगुरु बनने की दिशा में आगे बढ़ाने का प्रयास करना चाहिये।
विवाद का कारण :
- ये स्थापित तथ्य है कि आक्रांताओं ने आक्रमण करके हजारों मंदिरों को तोड़कर अवशेष पर एक ढांचे का निर्माण किया जिसे वर्तमान में मुस्लिम पक्ष द्वारा मस्जिद कहा जाता है।
- मुस्लिम पक्ष को एक वास्तविक सच्चाई स्वीकार करनी चाहिये कि वो आक्रांताओं के वंशज नहीं हैं उनके पूर्वज हिन्दू ही थे जिनका बलात् कन्वर्जन कराया गया था।
- जिन मंदिरों को आक्रांताओं ने तोड़ा था ईमानदारी से उसे मंदिर स्वीकार करके हिन्दू पक्ष को सौंप देना चाहिये, क्योंकि मंदिर पर हिन्दू पक्ष का ही अधिकार हो सकता है।
- कुछ तत्व इस विषय में ईमान को तिलाञ्जलि देकर राजनीति या निजी स्वार्थ के कारण विवाद चाहते हैं और यदि आम मुसलमान इस विषय में ईमान लाना भी चाहे हो रोकते हैं।
- देशहित के लिये उन तत्वों को जो राजनीति या निजी स्वार्थ के लिये विवाद बढ़ाना चाहते हैं उन तत्वों के विरुद्ध सत्ता और न्यायतंत्र को कठोर निर्णय लेने की आवश्यकता है।
- यदि उन उपद्रवी तत्वों पर नियंत्रण सत्ता और न्यायतंत्र संयुक्त रूप से नियंत्रण कर ले तो आम मुसलमानों को सत्य समझाया जा सकता है, ईमान लाने के लिये प्रेरित किया जा सकता है।
- यदि उन उपद्रवी तत्वों को नियंत्रित न किया जाय तो वो आम मुसलमान को जिनके पूर्वज हिन्दू ही थे भ्रमित करके उपद्रव का प्रयास करेंगे ही करेंगे।
- यदि प्रत्येक जगह जब देखने भर से मंदिर सिद्ध होता हो फिर भी विवाद का समझौते से निस्तारण नहीं किया जाता है तो हिन्दुओं की जागृति आक्रोश में परिवर्तित होने लगेगी जो किसी दृष्टिकोण से सही नहीं होगा।
उपरोक्त विषय को RSS भलीभांति समझ रही है और शांति स्थापित रहे इसलिये RSS प्रमुख के वक्तव्य भी आते हैं जैसे राम लला की प्राण प्रतिष्ठा के अवसर मोहन भागवत का ये वक्तव्य कि जोश की बातों में थोड़ी सी होश की बात करने का काम मुझे ही दिया जाता है। RSS प्रमुख अपने वक्तव्यों में जिस स्व की बात करते हैं मेरी विचार से वह संस्कृति ही है। राम लला की प्राण प्रतिष्ठा पर दिये गये वक्तव्य का अंश विडिओ में देखा जा सकता है।
RSS ये चाहती है कि हिन्दू केवल जागृत रहे आक्रोशित न हो और यह सम्पूर्ण लेख भी इसी तथ्य को स्पष्ट करने के लिये है।
कट्टर हिन्दू : जिस प्रकार कसाब के हाथों में मौली बांधकर भगवा आतंकवाद सिद्ध करने का पूर्व में प्रयास किया जा चुका है उसी प्रकार हिन्दुओं को उन्मादी, कट्टर आदि सिद्ध करने के लिये कुछ नये कट्टर चेहरे भी प्रक्षेपित किये जा रहे हैं जिसके सन्दर्भ में ये भी कहा गया है कि तेल छिड़का हुआ है, उनसे भी सावधान रहने की आवश्यकता है।
सांस्कृतिक पुनरुत्थान और हिन्दुओं की जागृति
अपने राष्ट्र, संस्कृति, धर्म को लेकर जाग्रत होना सुरक्षा, संवर्द्धन, उन्नति के लिये सकारात्मक और लाभकारी होता है और इससे किसी को वंचित भी नहीं किया जा सकता। जिस प्रकार व्यक्ति, देश के लिये स्वतंत्रता आवश्यक है उसी प्रकार धर्म और संस्कृति के लिये भी स्वतंत्रता आवश्यक है।
इस प्रकार की घटना भूतकाल में बार-बार घटित भी हुई है। बार-बार विदेशियों का आक्रमण हुआ, संस्कृति का क्षरण हुआ और पुनः स्थापित भी हुआ। लेकिन भूतकाल की सभी घटनाओं का इतिहास रक्तरञ्जित भी है। वर्तमान में जब सब स्वयं को प्रबुद्ध घोषित कर रहे हैं, २१वीं सदी में जी रहे हैं तो सभी प्रबुद्धों का दायित्व है कि वर्तमान सांस्कृतिक स्वतंत्रता के लिये रक्त न बहे।
संस्कृति का क्षरण-स्थापन-पुनरुत्थान ये एक स्वाभाविक क्रिया है और इसे रोका नहीं जा सकता। क्षरण के बाद यदि संस्कृति का लोप न हुआ हो तो उसका पुनर्स्थापन और पुनरुत्थान निश्चित होगा और पुनरोत्थान के बाद पुनः क्षरण भी निश्चित होगा ये क्रम निरंतर चलता ही रहता है। इसका सर्वोत्तम उदाहरण ये हो सकता है कि व्यक्ति अपने जीवन में कई बार बीमार और स्वस्थ, फिर बीमार, फिर स्वस्थ होता है।
कालक्रम से जाग्रत हिन्दू पक्ष में त्वराप्रवृत्ति भी उत्पन्न होगी, मुस्लिमपक्ष सत्य जानते हुये भी मानना नहीं चाहता, येन-केन-प्रकारेण कालक्षेप की नीति का अनुसरण करता है। दोनों पक्षों के इस विषय में दोनों का विरोध आक्रोश को उत्पन्न न करे प्रबुद्धों को ये दायित्व निर्वहन करने की आवश्यकता है।
दुराग्रही मीडिया और राजनीति करने वालों से ये अपेक्षा नहीं की जा सकती।
प्रबुद्ध वर्ग भी यदि खुले मन से इस तथ्य को स्वीकार नहीं करता कि आक्रांताओं ने मंदिर तोड़े थे यही सत्य है, संस्कृति स्वयं को स्वतंत्र करने के लिये संघर्ष कर रही है और संस्कृति को स्वतंत्र होने से पुनरुत्थान करने से रोका नहीं जा सकता तो उसे प्रबुद्ध नहीं माना जाना चाहिये।
जो कोई भी ऐसा मानता हो कि सांस्कृतिक पुनरुत्थान को रोका जा सकता है वो भ्रम में है और शांति बनाये रखने में उसकी भूमिका नहीं हो सकती वह अशांति उत्पन्न करने में योगदान दे सकता है।
नदी की धारा को कुछ काल के लिये रोका तो जा सकता है लेकिन रुकी हुयी धारा वाली नदी कालरूप भी धारण कर लेती है।
संतुलन की बात करना : समुदायों के विवाद में एक विषय संतुलन करना भी होता है वहां तक उचित ही है। लेकिन बात जब सत्य और असत्य की हो तो उसमें कैसा संतुलन हो सकता है। थोड़ा सत्य मान लो थोड़ा असत्य मान लो तो उसे न्याय कैसे कहा जा सकता है। न्याय में संतुलन अधिक महत्वपूर्ण होता है या सत्य और साक्ष्य ?
विषय का अत्यधिक विस्तार करना भी उचित नहीं होगा। उपरोक्त विवरण का मूल निष्कर्ष कुछ इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है :
निष्कर्ष : भारत में मंदिर-मस्जिद, आक्रांताओं, कन्वर्जन और कन्वर्जन के कारण, हिन्दुओं की आस्था इत्यादि विषयों पर राष्ट्रस्तरीय व्यापक संवाद की आवश्यकता है। इस प्रकार के संवाद से उन उपद्रवी तत्वों जो सत्य को स्वीकार नहीं करना चाहते और उनका समर्थन करने वाली मीडिया आदि को भी कोई स्थान नहीं दिया जाना चाहिये। यदि ये उपद्रवी तत्व और इनकी समर्थक मीडिया इस विषय पर डिबेट भी करती है तो वो देश को गृहयुद्ध की दिशा में ढकेलने का प्रयास कर रही है।
देश ने उन्नति के जिस पथ पर चलना आरंभ किया है उसमें कोई व्यवधान भी न आये और विवादों का निराकरण भी शांतिप्रिय तरीकों से हो जाये इस विषय में विचार मात्र की ही नहीं ठोस निर्णय लेने की भ आवश्यकता है। जागृति रहे लेकिन आक्रोश में परिवर्तित न होने पाये इसे सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
Gyanvapi ASI Survey Order by Onkar
॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ सुशांतिर्भवतु ॥ सर्वारिष्ट शान्तिर्भवतु ॥
कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।
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