मंदिर मस्जिद विवाद में एक नये कानून की आवश्यकता है

भारत 1947 में स्वतंत्र हुआ था किन्तु अयोध्या राम मंदिर में राम लला की पूजा 2024 में आरम्भ हुई । यहां एक नये प्रश्न पर विचार करने की आवश्यकता है कि स्वतंत्र भारत में 75 वर्षों तक राम लला को प्रतीक्षा क्यों कराई गई ? जबकि इस्लाम के नाम पर आबादी से अधिक भूमि भी मुसलमानों ने सभ्य शब्द में बांटकर लिया ऐसा कहा जाता है, लेकिन वास्तव में छीन लिया कहना चाहिये। उसके बाद अब वर्तमान भारत में मंदिर मस्जिद के हजारों विवाद विवादों का समाधान हो सके इसके लिये एक नये कानून की आवश्यकता है।

आलेख का उद्देश्य : इस आलेख का उद्देश्य विश्व में हिन्दुओं के प्रति अन्याय को उजागर करना है। विश्व को ये समझाना है कि हिन्दुओं के लिये मात्र एक देश तो होना ही चाहिये, ये हिन्दू को भीख में नहीं चाहिये ये हिन्दुओं का अधिकार है।

ध्यातव्य : यह आलेख भारत और हिन्दुओं के लिये विशेष महत्वपूर्ण है। ऐसा भी हो सकता है कि यदि अगली बार आप आलेख ढूंढने आयें या किसी को लिंक साझा करें तब तक यह आलेख वैश्विक हिन्दू विरोधी प्रपञ्च का शिकार हो जाये और न मिले। इसके लिये यह आलेख PDF बनाकर भी दिया गया है, PDF को डाउनलोड अवश्य कर लें।

मंदिर मस्जिद विवाद में एक नये कानून की आवश्यकता क्यों है ?

  • वर्तमान भारत में इस्लाम और मस्जिद का हुड़दंग कैसे किया जा सकता है?
  • इस्लाम के नाम पर पाकिस्तान बना, वर्तमान भारत में जो इस्लाम के नाम पर हुड़दंग करने वाले हैं वो पाकिस्तान क्यों नहीं गये या उनको भारत में रहने का अधिकार था क्या?
  • जो मुसलमान भारत में रह गये उनको इस्लाम के नाम पर हुड़दंग करने का अधिकार है क्या?

इस तरह के तो और भी बहुत सारे प्रश्न हैं जिनपर विचार नहीं किया जा रहा है? लेकिन हम अभी उतनी गहराई में न जाकर मंदिर-मस्जिद विवाद के विषय पर ही चर्चा करेंगे और क्या वर्तमान भारत में किसी नये कानून की आवश्यकता है; इसे समझने का प्रयास करेंगे।

अग्निवास चक्र
विभाजन के बाद का भारत हिन्दुओं का क्यों नहीं है ?

इस्लाम के नाम पर भारत का विभाजन होने के बाद भारत में मुसलमान क्यों रहे ?

इस्लाम के नाम पर देश का विभाजन होने के बाद भी यदि मुसलमानों को भारत में रहने का अधिकार दिया गया तो इसके 2 कारण हो सकते हैं:-

  • वो राष्ट्रभक्त मुसलमान जिनको भारत और भारतीय संस्कृति से प्रेम है वो भारत छोड़कर जाने के लिये विवश न हों।
  • वो मुसलमान जो शान्तिप्रिय हैं और इस्लामिक कट्टरवाद के समर्थक नहीं हैं वो शान्ति पूर्वक भारत में रहें ।

विशेष कारण : कुछ लोगों द्वारा एक अन्य कारण भी बताया जाता है जो उपरोक्त दोनों कारणों को गलत सिद्ध करता है। एक नारा कई बार सुना गया है “हंस के लिया है पाकिस्तान, लड़ के लेंगे हिन्दुस्तान” – यदि देश विभाजन के बाद भारत में रह गये मुसलमानों का वास्तविक उद्देश्य या कारण यही नारा है तब तो बात गंभीर है। यदि बात लड़ के हिन्दुस्तान लेने की होती है तो इसका मतलब ये होता है कि आप हिन्दुस्तान को अपना नहीं मानते, हिन्दुस्तान को अपना तब मानेंगे जब पाकिस्तान की तरह इस्लामिक राष्ट्र बनाकर भिखाड़ी और आतंकी मुल्क बना देंगे।

यदि देश विभाजन के बाद भारत में रहने वाले मुसलमानों का वास्तविक उद्देश्य लड़ के हिन्दुस्तान लेना ही है तो बात बहुत गंभीर है और इसके प्रति पूर्ण सजग रहना आवश्यक है।

देश विभाजन के बाद भी भारत में मुसलमानों के रहने का; ऊपर बताये गये कारणों में से सही कारण क्या सिद्ध होता है ?

  • सभी मंदिरों (जिसे गुम्बद लगाकर मस्जिद बना दिया गया) पर विवाद करना, दशकों तक पूजा को बाधित रखना उपरोक्त नारे को ही पुष्ट करता है।
  • जहां-तहां यहां तक कि बीच सड़क पर भी मजार बना देना उपरोक्त नारे को ही सही सिद्ध करता है।
  • नाम बदलकर हिन्दू बच्चियों को लवजिहाद का शिकार बनाने की बहुत सारी घटनायें देखी गयी है जो उपरोक्त नारे को ही सही सिद्ध करता है।
  • आये दिन सभी प्रकार के शोभायात्रा, कांवरयात्रा आदि में पत्थरबाजी करना उपरोक्त नारे को सही सिद्ध करता है।
  • इस्लाम के नाम पर मतदान करना उपरोक्त नारे को ही सही सिद्ध करता है।
  • फल, जूते-चप्पल, चश्मा आदि कुछ व्यवसायों पर एकाधिकार कर लेना उपरोक्त नारे को ही सही सिद्ध करता है।
  • बड़े-बड़े पद, सेना, डाक्टर, इंजीनियर आदि बनने के बाद भी पाकिस्तान प्रेमी होना, ISISI से संपर्क निकलना, देशहित वाले सभी कानूनों का विरोध करना उपरोक्त नारे को ही सही सिद्ध करता है।
  • अपने अनुकूल और हिन्दुओं के विरुद्ध शासन तंत्र, न्याय तंत्र के लिये लॉबिंग करना उपरोक्त नारे को ही सही सिद्ध करता है।
  • वक्फबोर्ड के नाम पर हिन्दुओं की केवल व्यक्तिगत भूमि ही नहीं, गांव-के-गांव को हथियाने का प्रयास करना, मंदिर ही नहीं रेलवे स्टेशन-थाने-न्यायालय-संसद आदि तक की भूमि को भी हथियाने का प्रयास करना उपरोक्त नारे को ही सही सिद्ध करता है।
  • सुदर्शन समाचार चैनल द्वारा IAS जिहाद नामक एक कुत्सित प्रयास की पोल खोली गयी थी, ये भी उपरोक्त नारे को ही सही सिद्ध करता है।
  • वन्दे मातरं, राष्ट्रगान आदि का सम्मान न करना या स्वीकार न करना भी उपरोक्त नारे को ही सही सिद्ध करता है।
  • जहां मुसलमानों की संख्या अधिक है वहां के सरकारी स्कूलों में भी शुक्रवार को १२ बजे मध्याह्न अवकाश कराना भी उपरोक्त नारे को ही सही सिद्ध करता है।
  • सात दशकों तक जम्मू-कश्मीर में जो कुचक्र रचा गया, उपरोक्त नारे को ही सही सिद्ध करता है।
  • जहां मुसलमानों की जनसंख्या अधिक हो उसे अपना इलाका बताना, शासन-प्रशासन द्वारा भी उसे संवेदनशील इलाका मानना उपरोक्त नारे को ही सही सिद्ध करता है।
  • अब तो पुनः भारत-विभाजन की योजना भी खुल गयी है, ये भी उपरोक्त नारे को ही सही सिद्ध करता है।

कहां तक लिखें, कितना लिखें अंत ही नहीं दिखता है। उपरोक्त नारे को सही सिद्ध करने वाले व्यवहार/चरित्र अंतहीन लगता है। चर्चित रही फिल्म “द कश्मीर फाइल्स” ने तो इसे प्रमाणित कर दिया है।

वास्तव में क्या होना चाहिये ?

एक बार हमें यह भी गंभीरता से सोचने की आवश्यकता है :

  • जब इस्लाम के नाम पर एक बड़ा भू-भाग हड़प लिया गया तो क्या बचा भाग हिन्दुओं का नहीं है ?
  • विश्व में मुसलमानों-ईसाइयों के बहुत सारे देश बन गये हैं, क्या हिन्दुओं के लिये एक भी देश नहीं होना चाहिये ?
  • विश्व में यदि हिन्दुओं का मात्र एक ही देश होना भी आवश्यक है तो वो कौन सा देश होगा ?
  • या पूरी दुनियां केवल मुसलमानों और इसाईओं के लिये ही है, हिन्दुओं और अन्य के लिये नहीं ?
  • जैसे पांडवों की ओर से भगवान श्रीकृष्ण ने मात्र पांच गांव मांगे थे, क्या आज का हिन्दू अपने लिये केवल १ देश (भारत) नहीं मांग रहा है ?
  • क्या मांगने पर कौरवों ने पांडवों को ५ गांव दे दिया था ?
  • क्या ये विश्व मांगने से हिन्दुओं को एक देश दे सकता है ?

बिना युद्ध (युद्ध का स्वरूप चाहे हो भी हो) किये हिन्दुओं को उसके लिये दुनियां एक देश भी नहीं छोड़ सकती। हिन्दुओं की स्थिति आज पांडवों जैसी ही है। हिन्दुओं में एक वर्ग शांतिमार्गी के नाम पर मिटने वाला भी है लेकिन विकल्प क्या है ? विकल्प तो दो ही हैं :

  1. या तो हिन्दू अपना अस्तित्व त्याग दे।
  2. या फिर धर्मयुद्ध (स्वरूप चाहे जो भी हो) करके अपना अस्तित्व बचाये और मात्र एक देश भारत को अपना सिद्ध करे।

ये सच है कि इस्लाम के नाम पर देश का बड़ा भू-भाग हड़पने के बाद भी कुछ मुसलमान भारत में ही रह गये।

लेकिन इसका अर्थ ये कहीं से नहीं हो सकता कि किसी भी प्राचीन मंदिर (जिसे आक्रान्ताओं ने तोड़कर गुम्बद चढ़ा दिया) पर उनका अधिकार भी होगा, जो देशप्रेमी मुसलमान बनकर पाकिस्तान नहीं गये। जितने भी प्राचीन मंदिर जो गुम्बद से ढंक दिये गये उसपर पहले दिन से ही हिन्दुओं का अधिकार होना चाहिये था, लेकिन जिसके कारण नहीं हुआ वो अपराधी है। उत्तर प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री योगी जी ने भी कहा ये काम तो स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद ही हो जाना चाहिये था।

इसी क्रम में जबकि 3 मुख्य मंदिर अयोध्या, काशी और मथुरा की चर्चा हुई तो मुसलमानों को चाहिये था कि तत्काल हिन्दुओं को सौंप देते । दशकों परेशान करके उन्होंने क्या संदेश दिया या दे रहे हैं? संदेश तो सभी समझते हैं लेकिन दूसरा पहलू ये है कि हिन्दुओं की नजर में निन्दनीय और घृणित क्यों न हो?

जो मुसलमान भारत प्रेम के कारण भारत में रहे उन्होंने अभी तक अपना ईमान को दफन क्यों कर रखा है। जब साक्ष्य और प्रमाण मंदिर के पक्ष में निकल आता है तब भी किस ईमान के कारण उसे मस्जिद कहते हैं और उसको मंदिर मस्जिद विवाद सिद्ध करते हैं। पहले दिन ईमान लाकर जिस मस्जिद के दस्तावेज उनके पास नहीं है वो हिन्दुओं को सौंप देते।

यदि स्वतः संज्ञान से सौंपने का ईमान न जग पाया हो हिन्दू द्वारा दावा करने पर तो जगना चाहिये न ! हिन्दू को दशकों तक न्यायालय में न्याय की भीख मांगना परे फिर पाकिस्तान बनाया क्यों गया था और बना तो सारे मुसलमान पाकिस्तान गये क्यों नहीं, और यदि स्वयं नहीं गये तो अपना ईमान क्यों भेज दिया?

जल यात्रा विधान
दुनियां में हिन्दुओं का एक भी देश क्यों नहीं है

जिस राम लला के देश में रहते हैं उस राम लला को दशकों तक न्यायालय में वादी बना दिया, लाक्षागृह पर 53 वर्ष वाद लड़े, काशी में खुली आंखों से दिख रहे मंदिर को भी मस्जिद कहते हैं, मथुरा के दस्तावेज साफ-साफ हिन्दू अधिकार होने की बात करता है मगर उस ईमान को दाद देना होगा जो उसे मस्जिद कहकर वर्षों हिन्दू पक्ष को प्रतीक्षा कराना चाहता है।

बड़े-बड़े नेता और मौलाना अजीबोगरीब तकरीर करते हैं लेकिन ईमान वापस नहीं लाते। ईमान वापस लाने को समझने के लिये एक उदाहरण की आवश्यकता है : “आपके दुकान पर कोई अपना मोबाइल भूल गया तो ईमान कहता है कि उसके घर पर पहुंचा दें, या सूचित कर दें कि आकर ले ले । लेकिन यदि वह आदमी आपसे पूछने आये तब मना कर देना क्या ईमान कहलाता है? अपना खोया मोबाइल जो आपने रख लिया लेने उसको न्यायालय जाना पड़े इसका मतलब यही होता है कि आप बेईमान हैं, यही सिद्ध होता है कि आपके पास ईमान नहीं है।”

हिन्दुओं को साक्ष्य और प्रमाण रहते हुये भी अपने इष्ट के मंदिर में दशकों से पूजा नहीं करने दिया गया है ये राजनीति, न्याय व्यवस्था के ऊपर तो प्रश्नचिह्न खड़ा करता ही है साथ ही साथ यह भी सिद्ध करता है कि जो मुसलमान अपने साथ ईमान को जोड़ता है वो ईमान भारत में नहीं है पाकिस्तान चला गया है।

भविष्य में जब वर्तमान का इतिहास पढ़ा जायेगा तो उसमें “भारतीय मुसलमान का ईमान” भी एक अध्याय अवश्य ही होगा। साथ में न्यायपालिका और राजनीति की भूमिका भी जो आज है वही लिखा हुआ रहेगा।

अयोध्या राम मंदिर निर्माण और राम लला की प्राण प्रतिष्ठा से क्या सीख मिली ?

ईमान की मिशाल तो तब देखी गयी जब कुछ विशेष चर्चित इस्लामिक चरमपंथियों ने ये कहा कि “आज तो आपने राम मंदिर बना लिया किन्तु हम बाबरी मस्जिद के शहीदी को याद रखेंगे और अपने बच्चों को भी बतायेंगे। कल को राम मंदिर तोड़कर फिर से मस्जिद बनायेंगे।” ये तो स्पष्ट रूप से हिन्दुओं को उकसाना है कि हिन्दू आपसे द्वेष करे, घृणा की दृष्टि से देखे।

ज्ञानवापी सर्वे का निष्कर्ष क्या है ?

मंदिर मस्जिद विवाद में एक नये कानून की आवश्यकता है

ये अध्याय अंतहीन प्रतीत होता है इसलिये अब मुख्य बिंदु पर विचार करने की आवश्यकता है। मुख्य बिंदु ये है कि वर्त्तमान युग का धर्मयुद्ध जिसकी चर्चा ऊपर की गयी है उसका स्वरूप हथियारों का युद्ध न होकर वैचारिक और कानूनी ही हो सकता है। देश को कुछ कानून इस दिशा में भी आगे बढ़ने के लिये बनाना चाहिये।

  • एक ऐसा कानून बनाना चाहिये जिससे भारत में रह रहे गैर-हिन्दुओं का भारतीय होना सिद्ध हो क्योंकि बहुत सारे घुसपैठिये भी आ गये हैं।
  • वर्तमान में भारतीय गैर-हिन्दुओं के पास जितनी भू-सम्पत्ति है उसका स्वामित्त्व सिद्ध होना चाहिये, क्योंकि बहुत सारे भूखंडों पर जमीन-जिहाद के माध्यम से हड़प-नीति द्वारा अधिकार किया गया है।
  • एक-एक मस्जिद-मदरसे-झुग्गी-चर्च-स्कूल-मिशनरी आदि पर; जो गैर हिन्दुओं के कब्जे में है, उनके स्वामित्त्व का सिद्ध होना आवश्यक है। जिस किसी भी पर भी स्वामित्त्व सिद्ध नहीं होता वो हिन्दुओं का है या देश का है। सभी अवैध कब्जे को मुक्त कराने वाले कानून की आवश्यकता है।

न्याय क्या कहता है ?

न्याय कहता है कि जब ७ दशकों से हिन्दू वक्फबोर्ड से लड़ रहा है तो अब ७ दशक हिन्दुओं को भी मिलना चाहिये। वक्फबोर्ड को समाप्त करके उसके विपरीत हिन्दुओं के लिये भी न्यायबोर्ड या न्यासबोर्ड आदि किसी नाम से उतने ही अधिकारों और संरक्षण के साथ बनाया जाना चाहिये। जिस तरह स्वतंत्र भारत में भी हिन्दुओं को ७ दशकों से किसी मंदिर-भूखंड आदि पर अपना अधिकार सिद्ध करने के लिये न्यायिक लड़ाई लड़ना पर रहा है उसी तरह आगे ७ दशकों तक गैर-हिन्दुओं को भी किसी मस्जिद-मदरसे-चर्च-मिशनरी आदि पर अपना स्वामित्त्व सिद्ध करना चाहिये।

ये न्याय की मांग है, सरकारों और न्यायपालिका को इस दिशा में आगे बढ़ने की आवश्यकता है।

न्याय क्या कहता है ?
न्याय क्या कहता है ?

देश को इसी प्रकार का एक बोर्ड और कानून बनाने की आवश्यकता है। और मात्र बोर्ड या कानून बनाने की ही आवश्यकता नहीं उसके संरक्षण एवं विरोध करने वाले उपद्रवी तत्वों का दमन करने की भी आवश्यकता होगी।

इस दिशा में साम, दाम, दण्ड, भेद का प्रयोग करते विश्व को ये समझाना भी आवश्यक कि एक देश हिन्दुओं का भी होना चाहिये। विश्व के मन में यदि ये भ्रम हो कि हिन्दू भीख में चाहता है तो उसे ये समझाना चाहिये कि ये भीख में नहीं चाहिये अधिकार है। आज तक भीख तो हिन्दुओं ने दिया है, भीख लेने की आवश्यकता नहीं है। भीख देने का ताजा उदहारण पाकिस्तान है।

अंत में एक प्रश्न फिर है जो पूरी दुनियां से पूछने की आवश्यकता है : क्या हिन्दुओं को एक देश में भी शांति से रहने का भी अधिकार नहीं है, दुनियां में हिन्दुओं का एक भी देश क्यों नहीं है ?

यह प्रश्न छोटे मंचों से लेकर बड़े-बड़े मंचों तक उठाना चाहिये।

एक यक्षप्रश्न ये भी है कि “क्या दुनियां हिन्दुओं को भी न्याय मिले इसमें साथ देगी ?” दूसरा यक्षप्रश्न ये है कि “जिस हिन्दुओं की भूमि पर आज बहुत सारे गैर हिन्दुओं का अधिकार है क्या वो उन्होंने ईमान से प्राप्त किया था ?”

पुनरावृत्ति पूर्वक ध्यातव्य : यह आलेख भारत और हिन्दुओं के लिये विशेष महत्वपूर्ण है। ऐसा भी हो सकता है कि यदि अगली बार आप आलेख ढूंढने आयें या किसी को लिंक साझा करें तब तक यह आलेख वैश्विक हिन्दू विरोधी प्रपञ्च का शिकार हो जाये और न मिले। इसके लिये यह आलेख PDF बनाकर भी दिया गया है, PDF file को डाउनलोड अवश्य कर लें।

निष्कर्ष : हिन्दुओं ने गैर हिन्दुओं को या तो भीख में बड़े-बड़े भू-भाग दिया था या गैर हिन्दुओं द्वारा हड़प लिया गया। हिन्दुओं ने दिया है इसलिये हिन्दू किसी से भीख नहीं मांग सकता हिन्दू का अधिकार स्वतः सिद्ध है। लेकिन इस अधिकार को स्थापित करना चुनौती है और देश को हिन्दुओं का अधिकार स्थापित करने के लिये प्रयास करना चाहिये।

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