भवान्यष्टकम् संस्कृत – न तातो न माता

भवान्यष्टकम् संस्कृत – न तातो न माता

भवान्यष्टकम् आदि शंकराचार्य द्वारा रचित भगवती की स्तुति है। भगवती को प्रसन्न करने के लिये पूजा अनुष्ठानों में भवान्यष्टक बड़े भक्ति भाव से गाते देखा जाता है। इस स्तुति में भक्त स्वयं को सभी प्रकार से दीन-हीन होने की घोषणा करता है और माता को शरणागतवत्सला कहा जाता है। माता को दीन-हीन जनों की शरण्य कहकर कहकर स्वयं के लिये कृपा करने की प्रार्थना की जाती है।

भवान्यष्टकम् संस्कृत – न तातो न माता

भवान्यष्टकम् संस्कृत में माता भगवती की स्तुति है। न तातो न माता आदि कहकर माता भगवती को ये बताया जाता है कि इस संसार में मेरा कोई नहीं है एक मात्र आप ही गति हैं और यदि आपने भी तिरस्कार कर दिया तो फिर क्या होगा इसलिये आप हमें शरण दो। मेरे जैसे निकृष्ट प्राणियों के लिये एक मात्र आप ही शरण देनेवाली हो।

अर्थ : हे भवानी ! न पिता, न माता, न बंधु, न दाता, न पुत्र, न पुत्री, न सेवक, न स्वामी, न पत्नी, न विद्या, न वृत्ति या मन की प्रवृत्ति शाश्वत रूप से मेरा है, अतः तुम ही मेरी गति हो, तुम्हीं गति हो, तुम्हीं मेरी एकमात्र गति हो !

अर्थ : हे भवानी ! जन्म और मृत्यु रूपी अपार समुद्र में फंसा हुआ हूं और इस महादु:खों का अंत नहीं दिखने से भयभीत हूं, कामनाओं में, लोभ में डूबा हुआ हूं, अहंकार में लिप्त हूं, संसार रूपी पाशमें बंधा हुआ हूं, ऐसी स्थिति में तुम ही सदा मेरी गति हो, तुम्हीं गति हो, तुम्हीं मेरी एकमात्र गति हो !

अर्थ : हे भवानी ! न दान, न ध्यान, न तंत्र, न स्तोत्र, न मंत्र, न पूजा–अर्चना, न न्यास और न ही योग जानता हूं, तुम ही मेरी गति हो, तुम्हीं गति हो, तुम्हीं मेरी एकमात्र गति हो !

अर्थ : हे भवानी ! न पुण्य जानता हूं, न तीर्थ, न मुक्ति, न अहंकार का लय, न भक्ति, न ही व्रत, तुम ही मेरी गति हो, तुम्ही गति हो, तुम्ही मेरी एकमात्र गति हो !

अर्थ : हे भवानी ! मैं कुकर्मी हूं, कुसंगी हूं, कुबुद्धि से ग्रस्त हूं, कुलाचार से हीन हूँ, कदाचारी (दुराचारी) हूँ, कुदृष्टि से युक्त हूं मेरी वाणी अन्यों को क्लेश देती है अर्थात दुर्वचनी हूँ, हे मां, तुम ही मेरी गति हो, तुम्ही गति हो, तुम्हीं मेरी एकमात्र गति हो !

अर्थ : हे मां, मैं ब्रह्मा, विष्णु, महेश, इंद्रा सूर्य और चन्द्रमा आदि को नहीं जानता हूं, मैं तुम्हारी शरण में हूं और सबके लिये तुम्हीं शरण होती हो, तुम ही मेरी गति हो, तुम्हीं गति हो, तुम्हीं मेरी एकमात्र गति हो !

अर्थ : हे मां, विवाद में, विषाद में, प्रमाद में, प्रवास में, जल में, अग्नि में, पर्वत में, शत्रुओं के मध्य में, अरण्य (वन) में जहां भी होता हूँ, मैं तुम्हारी शरण में हूं और सबके लिये तुम्हीं शरण होती हो, तुम ही मेरी गति हो, तुम्हीं गति हो, तुम्हीं मेरी एकमात्र गति हो !

अर्थ : हे मां मेरी स्थिति तो सदा से अनाथ, दरिद्र, वृद्धावस्था और रोग से युक्त (पीड़ित), महाक्षीण (शक्तिहीन), दीन, अज्ञानी, विपत्ति ग्रस्त होकर नष्ट होने वाली ही रही है, तुम्हीं गति हो, तुम्हीं गति हो, तुम्हीं मेरी एकमात्र गति हो !

F & Q :

प्रश्न : भवानी कौन हैं ?
उत्तर : भव भगवान शङ्कर का नाम है और भवानी भगवान शङ्कर की पत्नी अर्थात पार्वती का नाम है।

प्रश्न : भवान्यष्टक में कितने श्लोक हैं ?
उत्तर : भवान्यष्टक में कुल आठ श्लोक हैं। जितने भी अष्टक स्तोत्र होते हैं सभी में ८ श्लोक ही होते हैं।

प्रश्न : भवान्यष्टक किसने लिखा ?
उत्तर : भवान्यष्टक आदि शंकराचार्य के द्वारा लिखा गया है।

॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः सुशांतिर्भवतु सर्वारिष्ट शान्तिर्भवतु

आगे सम्पूर्ण दुर्गा सप्तशती के अनुगमन कड़ी दिये गये हैं जहां से अनुसरण पूर्वक कोई भी अध्याय पढ़ सकते है :

कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।

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