यहां मिथिला में प्रसिद्ध दस महाविद्या स्तोत्र संस्कृत में दिया गया है। साथ एक अन्य दस महाविद्या स्तोत्र भी अर्थ सहित दिया गया है। दश महाविद्या स्तोत्र बहुत सारे हैं जिनमें से भक्त अपने लिये कोई एक चयन करता है। दशमहाविद्याओं के अनेकानेक स्तुति हैं। इस आलेख में तीन प्रकार के दशमहाविद्या स्तोत्र दिये गये हैं।
दस महाविद्या स्तोत्र संस्कृत में
दस महाविद्यायें वास्तव में आदिशक्ति का ही अवतार है और इन महाविद्याओं की शक्तियां ही सम्पूर्ण संसार को चलाती है। इन सब महाविद्याओं का प्रयोग ज्ञान और शक्ति को अर्जन के लिए किया जाता है। इन दस महाविद्या काली, तारा, त्रिपुरसुंदरी, षोडशी, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्तिका, त्रिपुर भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातङ्गी माता आदि के नाम से जानी जाती है। शास्त्रों में दस महाविद्या का वर्णन किया गया है।
दश महाविद्या स्तोत्र
आदिशक्ति त्वमसि काली मुण्डमालाधारिणी ।
त्वमसि तारा मुण्डहारा विकट संकटहारिणी॥
त्रिपुरसुन्दरि आदिका त्वं षोडशी परमेश्वरी ।
सकलमङ्गल मूर्तिरसि जगदम्बिकेभुवनेश्वरी॥
त्वमसि माता खड्गहस्ता छिन्नमस्ता भगवती ।
त्वमसि त्रिपुरभैरवी मातस्त्वमसि धूमावती ॥
मातरसि बगलामुखी त्वं दुष्टबुद्धिविनासिनी।
त्वमसि मातङ्गी त्वमसि कमलात्मिकाम्बुजवासिनी ॥
दश महाविद्यास्वरूपा त्वमसि भुवि बहुसिद्धिदा ।
मूर्तिभेदा देवभेदो वस्तुतो न हि भेदिता ॥
भेदभावं बुद्धितो मम दूरमपरय सत्त्वरं।
प्रेमदेहि पदाम्बुजे त्वेन परं याचे वरम् ॥
दश महाविद्या स्तोत्र – 2
दुर्ल्लभं मारिणींमार्ग दुर्ल्लभं तारिणींपदम्।
मन्त्रार्थ मंत्रचैतन्यं दुर्ल्लभं शवसाधनम्॥
श्मशानसाधनं योनिसाधनं ब्रह्मसाधनम्।
क्रियासाधनमं भक्तिसाधनं मुक्तिसाधनम्॥
तव प्रसादाद्देवेशि सर्व्वाः सिध्यन्ति सिद्धयः॥
शिव ने कहा – तारिणी की उपासना मार्ग अत्यन्त दुर्लभ है। उनके पद की प्राप्ति भी अति कठिन है। इनके मंत्रार्थ ज्ञान, मंत्र चैतन्य, शव साधन, श्मशान साधन, योनि साधन, ब्रह्म साधन, क्रिया साधन, भक्ति साधन और मुक्ति साधन, यह सब भी दुर्लभ हैं। किन्तु हे देवेशि! तुम जिसके ऊपर प्रसन्न होती हो, उनको सब विषय में सिद्धि प्राप्त होती है।
नमस्ते चण्डिके चण्डि चण्डमुण्डविनाशिनी।
नमस्ते कालिके कालमहाभयविनाशिनी॥
हे चण्डिके! तुम प्रचण्ड स्वरूपिणी हो। तुमने ही चण्ड-मुण्ड का विनाश किया है। तुम्हीं काल का नाश करने वाली हो। तुमको नमस्कार है।
शिवे रक्ष जगद्धात्रि प्रसीद हरवल्लभे।
प्रणमामि जगद्धात्रीं जगत्पालनकारिणीम्॥
जगत्क्षोभकरीं विद्यां जगत्सृष्टिविधायिनीम्।
करालां विकटां घोरां मुण्डमालाविभूषिताम्॥
हरार्च्चितां हराराध्यां नमामि हरवल्लभाम्।
गौरीं गुरुप्रियां गौरवर्णालंकार भूषिताम्॥
हरिप्रियां महामायां नमामि ब्रह्मपूजिताम्॥
हे शिवे जगद्धात्रि हरवल्लभे! मेरी संसार से रक्षा करो। तुम्हीं जगत की माता हो और तुम्हीं अनन्त जगत की रक्षा करती हो। तुम्हीं जगत का संहार करने वाली हो और तुम्हीं जगत को उत्पन्न करने वाली हो। तुम्हारी मूर्ति महाभयंकर है। तुम मुण्डमाला से अलंकृत हो। तुम हर से सेवित हो। हर से पूजित हो और तुम ही हरिप्रिया हो। तुम्हारा वर्ण गौर है। तुम्हीं गुरुप्रिया हो और श्वेत आभूषणों से अलंकृत रहती हो। तुम्हीं विष्णु प्रिया हो। तुम ही महामाया हो। सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी तुम्हारी पूजा करते हैं। तुमको नमस्कार है।
सिद्धां सिद्धेश्वरीं सिद्धविद्याधरगणैर्युताम्।
मंत्रसिद्धिप्रदां योनिसिद्धिदां लिंगशोभिताम्॥
प्रणमामि महामायां दुर्गा दुर्गतिनाशिनीम्॥
तुम्हीं सिद्ध और सिद्धेश्वरी हो। तुम्हीं सिद्ध एवं विद्याधरों से युक्त हो। तुम मंत्र सिद्धि दायिनी हो। तुम योनि सिद्धि देने वाली हो। तुम ही लिंगशोभिता महामाया हो। दुर्गा और दुर्गति नाशिनी हो। तुमको बारम्बार नमस्कार है।
उग्रामुग्रमयीमुग्रतारामुग्रगणैर्युताम्।
नीलां नीलघनाश्यामां नमामि नीलसुंदरीम्॥
तुम्हीं उग्रमूर्ति हो, उग्रगणों से युक्त हो, उग्रतारा हो, नीलमूर्ति हो, नीले मेघ के समान श्यामवर्णा हो और नील सुन्दरी हो। तुमको नमस्कार है।
श्यामांगी श्यामघटितांश्यामवर्णविभूषिताम्।
प्रणमामि जगद्धात्रीं गौरीं सर्व्वार्थसाधिनीम्॥
तुम्हीं श्याम अंग वाली हो एवं तुम श्याम वर्ण से सुशोभित जगद्धात्री हो, सब कार्य का साधन करने वाली हो, तुम्हीं गौरी हो। तुमको नमस्कार है।
विश्वेश्वरीं महाघोरां विकटां घोरनादिनीम्।
आद्यमाद्यगुरोराद्यमाद्यनाथप्रपूजिताम्॥
श्रीदुर्गां धनदामन्नपूर्णां पद्मा सुरेश्वरीम्।
प्रणमामि जगद्धात्रीं चन्द्रशेखरवल्लभाम्॥
तुम्हीं विश्वेश्वरी हो, महाभीमाकार हो, विकट मूर्ति हो। तुम्हारा शब्द उच्चारण महाभयंकर है। तुम्हीं सबकी आद्या हो, आदि गुरु महेश्वर की भी आदि माता हो। आद्यनाथ महादेव सदा तुम्हारी पूजा करते रहते हैं।
तुम्हीं धन देने वाली अन्नपूर्णा और पद्मस्वरूपीणी हो। तुम्हीं देवताओं की ईश्वरी हो, जगत की माता हो, हरवल्लभा हो। तुमको नमस्कार है।
त्रिपुरासुंदरी बालमबलागणभूषिताम्।
शिवदूतीं शिवाराध्यां शिवध्येयां सनातनीम्॥
सुंदरीं तारिणीं सर्व्वशिवागणविभूषिताम्।
नारायणी विष्णुपूज्यां ब्रह्माविष्णुहरप्रियाम्॥
हे देवी! तुम्हीं त्रिपुरसुंदरी हो। बाला हो। अबला गणों से मंडित हो। तुम शिव दूती हो, शिव आराध्या हो, शिव से ध्यान की हुई, सनातनी हो, सुन्दरी तारिणी हो, शिवा गणों से अलंकृत हो, नारायणी हो, विष्णु से पूजनीय हो। तुम ही केवल ब्रह्मा, विष्णु तथा हर की प्रिया हो।
सर्वसिद्धिप्रदां नित्यामनित्यगुणवर्जिताम्।
सगुणां निर्गुणां ध्येयामर्च्चितां सर्व्वसिद्धिदाम्॥
दिव्यां सिद्धि प्रदां विद्यां महाविद्यां महेश्वरीम्।
महेशभक्तां माहेशीं महाकालप्रपूजिताम्॥
प्रणमामि जगद्धात्रीं शुम्भासुरविमर्दिनीम्॥
तुम्हीं सब सिद्धियों की दायिनी हो, तुम नित्या हो, तुम अनित्य गुणों से रहित हो। तुम सगुणा हो, ध्यान के योग्य हो, पूजिता हो, सर्व सिद्धियां देने वाली हो, दिव्या हो, सिद्धिदाता हो, विद्या हो, महाविद्या हो, महेश्वरी हो, महेश की परम भक्ति वाली माहेशी हो, महाकाल से पूजित जगद्धात्री हो और शुम्भासुर की नाशिनी हो। तुमको नमस्कार है।
रक्तप्रियां रक्तवर्णां रक्तबीजविमर्दिनीम्।
भैरवीं भुवनां देवी लोलजीह्वां सुरेश्वरीम्॥
चतुर्भुजां दशभुजामष्टादशभुजां शुभाम्।
त्रिपुरेशी विश्वनाथप्रियां विश्वेश्वरीं शिवाम्॥
अट्टहासामट्टहासप्रियां धूम्रविनाशीनीम्।
कमलां छिन्नभालांच मातंगीं सुरसंदरीम्॥
षोडशीं विजयां भीमां धूम्रांच बगलामुखीम्।
सर्व्वसिद्धिप्रदां सर्व्वविद्यामंत्रविशोधिनीम्॥
प्रणमामि जगत्तारां सारांच मंत्रसिद्धये॥
तुम्हीं रक्त से प्रेम करने वाली रक्तवर्णा हो। रक्त बीज का विनाश करने वाली, भैरवी, भुवना देवी, चलायमान जीभ वाली, सुरेश्वरी हो। तुम चतुर्भजा हो, कभी दश भुजा हो, कभी अठ्ठारह भुजा हो, त्रिपुरेशी हो, विश्वनाथ की प्रिया हो, ब्रह्मांड की ईश्वरी हो, कल्याणमयी हो, अट्टहास से युक्त हो, ऊँचे हास्य से प्रिति करने वाली हो, धूम्रासुर की नाशिनी हो, कमला हो, छिन्नमस्ता हो, मातंगी हो, त्रिपुर सुन्दरी हो, षोडशी हो, विजया हो, भीमा हो, धूम्रा हो, बगलामुखी हो, सर्व सिद्धिदायिनी हो, सर्वविद्या और सब मंत्रों की विशुद्धि करने वाली हो। तुम सारभूता और जगत्तारिणी हो। मैं मंत्र सिद्धि के लिए तुमको नमस्कार करता हूं।
इत्येवंच वरारोहे स्तोत्रं सिद्धिकरं परम्।
पठित्वा मोक्षमाप्नोति सत्यं वै गिरिनन्दिनी॥
हे वरारोहे! यह स्तव परम सिद्धि देने वाला है। इसका पाठ करने से सत्य ही मोक्ष प्राप्त होता है।
कुजवारे चतुर्द्दश्याममायां जीववासरे।
शुक्रे निशिगते स्तोत्रं पठित्वा मोक्षमाप्नुयात्।
त्रिपक्षे मंत्रसिद्धिः स्यात्स्तोत्रपाठाद्धि शंकरि॥
मंगलवार की चतुर्दशी तिथि में, बृहस्पतिवार की अमावस्या तिथि में और शुक्रवार निशा काल में यह स्तुति पढ़ने से मोक्ष प्राप्त होता है। हे शंकरि! तीन पक्ष तक इस स्तव के पढ़ने से मंत्र सिद्धि होती है। इसमें सन्देह नहीं करना चाहिए।
चतुर्द्दश्यां निशाभागे शनिभौमदिने तथा।
निशामुखे पठेत्स्तोत्रं मंत्रसिद्धिमवाप्नुयात्॥
चौदश की रात में तथा शनि और मंगलवार की संध्या के समय इस स्तव का पाठ करने से मंत्र सिद्धि होती है।
केवलं स्तोत्रपाठाद्धि मंत्रसिद्धिरनुत्तमा।
जागर्तिं सततं चण्डी स्तोत्रपाठाद्भुजंगिनी॥
जो पुरुष केवल इस स्तोत्र को पढ़ता है, वह अनुत्तमा सिद्धि को प्राप्त करता है। इस स्तव के फल से चण्डिका कुल-कुण्डलिनी नाड़ी का जागरण होता है।
दश महाविद्या स्तोत्र – 3
नमस्ते चण्डिके चण्डि चण्डमुण्डविनाशिनि ।
नमस्ते कालिके काल महाभय विनाशिनी ॥१॥
शिवे रक्ष जगद्धात्रि प्रसीद हरिवल्लभे ।
प्रणमामि जगद्धात्रीं जगत्पालनकारिणीम् ॥२॥
जगत्क्षोभकरीं विद्यां जगत्सृष्टि विधायिनीम् ।
करालां विकटा घोरां मुण्डमाला विभूषिताम् ॥३॥
हरार्चितां हराराध्यां नमामि हरवल्लभाम् ।
गौरीं गुरुप्रियां गौर वर्णालंकारभूषिताम् ॥४॥
हरिप्रियां महामायां नमामि ब्रह्मपूजिताम् ।
सिद्धां सिद्धेश्वरीं सिद्ध विद्याधरगणैर्युताम् ॥५॥
मन्त्रसिद्धिप्रदां योनिसिद्धिदां लिंगशोभिताम् ।
प्रणमामि महामायां, दुर्गा दुर्गतिनाशिनीम् ॥६॥
उग्रामुग्रमयीमुग्र तारामुग्र गणैर्युताम् ।
नीलां नीलघनश्यामां, नमामि नीलसुन्दरीम् ॥७॥
श्यामांगीं श्यामघटिकां, श्यामवर्ण-विभूषिताम् ।
प्रणामामि जगद्धात्रीं, गौरीं सर्वार्थसाधिनीम् ॥८॥
विश्वेश्वरीं महाघोरां, विकटां घोर-नादिनीम् ।
आद्यामाद्यगुरोराद्यामाद्यानाथ प्रपूजिताम् ॥९॥
श्रीदुर्गां धनदामन्नपूर्णां पद्मां सुरेश्वरीम् ।
प्रणमामि जगद्धात्रीं, चन्द्रशेखरवल्लभाम् ॥१०॥
त्रिपुरसुन्दरीं बाला मबलागणभूषिताम् ।
शिवदूतीं शिवाराध्यां, शिवध्येयां सनातनीम् ॥११॥
सुन्दरीं तारिणीं सर्व शिवागण विभूषिताम् ।
नारायणीं विष्णुपूज्यां, ब्रह्म विष्णु हरप्रियाम् ॥१२॥
सर्वसिद्धिप्रदां नित्या मनित्यगणवर्जिताम् ।
सगुणां निर्गुणां ध्येयामर्चितां सर्वसिद्धिदाम् ॥१३॥
विद्यां सिद्धिप्रदां विद्यां, महाविद्या महेश्वरीम् ।
महेशभक्तां माहेशीं महाकाल प्रपूजिताम् ॥१४॥
प्रणमामि जगद्धात्रीं शुम्भासुर विमर्दिनीम् ।
रक्तप्रियां रक्तवर्णां, रक्तबीज विमर्दिनीम् ॥१५॥
भैरवीं भुवनादेवीं, लोलजिह्वां सुरेश्वरीम् ।
चतुर्भुजां दशभुजा मष्टादशभुजां शुभाम् ॥१६॥
त्रिपुरेशीं विश्वनाथप्रियां विश्वेश्वरीं शिवाम् ।
अट्टहासामट्टहास प्रियां धूम्रविनाशिनीम् ॥१७॥
कमलां छिन्नमस्तां च मातंगीं सुरसुन्दरीम् ।
षोडशीं विजयां भीमां धूम्रां च बगलामुखीम् ॥१८॥
सर्वसिद्धिप्रदां सर्वविद्या मन्त्र विशोधिनीम् ।
प्रणमामि जगत्तारां, सारं मन्त्रार्थ सिद्धये ॥१९॥
॥ फलश्रुति ॥
इत्येवं व वरारोहे स्तोत्रं सिद्धिकरं प्रियम् ।
पठित्वा मोक्षमाप्नोति सत्यं वै गिरिनन्दिनि ॥२०॥
कुजवारे चतुर्दश्या ममायां जीववासरे ।
शुक्रे निशिगते स्तोत्रं, पठित्वा मोक्षमाप्नुयात् ॥२१॥
त्रिपक्षे मन्त्रसिद्धिः स्यात्, स्तोत्र-पाठाद्धि शंकरी ।
चतुर्दश्यां निशाभागे, शनिभौमदिने तथा ॥२२॥
निशामुखे पठेत् स्तोत्रं, मन्त्रसिद्धिमवाप्नुयात् ।
केवलं स्तोत्रपाठाद्धि, मन्त्रसिद्धिरनुत्तमा ।
जागर्ति सततं चण्डी स्तोत्रपाठाद्भुजंगिनी ॥२३॥
॥ इति श्रीमुण्डमालातन्त्रे एकादशपटले महाविद्यास्तोत्रम् ॥
॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ सुशांतिर्भवतु ॥ सर्वारिष्ट शान्तिर्भवतु ॥
आगे सम्पूर्ण दुर्गा सप्तशती के अनुगमन कड़ी दिये गये हैं जहां से अनुसरण पूर्वक कोई भी अध्याय पढ़ सकते है :
कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।