मनुष्य के जीवन में समस्यायें-विपदायें सदैव बनी ही रहती है। किन्तु सबसे बड़ी विपदा मृत्युलोक के चक्कर में पड़ा रहना है। सभी प्रकार की आपदाओं का निवारण करने के लिये भगवती दुर्गा का एक विशेष स्तोत्र है जिसे दुर्गा आपदुद्धारक स्तोत्र कहा जाता है। इस आलेख में दुर्गा आपदुद्धारक स्तोत्र हिन्दी अर्थ सहित दिया गया है। साथ ही स्त्रोत के बारे में जानकारी भी दी गयी है और पाठ का अभ्यास करने हेतु विडियो भी दिया गया है।
दुर्गा आपदुद्धारक स्तोत्र हिन्दी अर्थ सहित – durga apaduddharaka stotram
- दुर्गा आपदुद्धार स्तोत्र सिद्धीश्वरीतंत्र में उमामहेश्वर संवाद के रूप में वर्णित है।
- इसके पाठ से सभी प्रकार के आपदाओं का निवारण होता है।
- प्राणीमात्र के लिये सबसे बड़ी आपदा जन्म-मृत्यु का बंधन है।
- इसके साथ ही सांसारिक जीवन में भी कई प्रकार के आपत् देखे जाते हैं।
- दुर्गा आपदुद्धार स्तोत्र का पाठ करना सांसारिक आपत् का भी निवारक है।
- दुर्गा आपदुद्धार स्तोत्र का प्रतिदिन पाठ करना विशेष लाभकारी होता है।
विभिन्न वेबसाइटों पर दुर्गा आपदुद्धार स्तोत्र में अंतर पाया जाता है।
दुर्गा आपदुद्धारक स्तोत्र
नमस्ते शरण्ये शिवे सानुकम्पे
नमस्ते जगदव्यापिके विश्वरूपे।
नमस्ते जगद्वन्द्यपादारविन्दे
नमस्ते जगत्तारिणी त्राहि दुर्गे ॥१॥
अर्थ – शरणागत की रक्षा करनेवाली तथा भक्तों पर अनुग्रह करनेवाली हे शिवे! आपको नमस्कार है। जगत् क व्याप्त करनेवाली हे विश्वरूपे ! आपको नमस्कार है। हे जगत के द्वारा वन्दित चरणकमलोंवाली! आपको नमस्कार जगत् का उद्धार करनेवाली हे दुर्गे! आपको नमस्कार है; आप मेरी रक्षा कीजिये ।
नमस्ते जगचिन्त्यमानस्वरुपे
नमस्ते महायोगिनी ज्ञानरूपे।
नमस्ते नमस्ते सदानंदरूपे
नमस्ते जगतारिणी त्राहि दुर्गे ॥२॥
अर्थ – हे जगत् के द्वारा चिन्त्यमान स्वरूपवाली! आपको नमस्कार है। हे महायोगिनि! आपको नमस्कार है। हे ज्ञानरूपे! आपको नमस्कार है। हे सदानन्दरूपे! आपको नमस्कार है। जगत् का उद्धार करनेवाली हे दुर्गे! आपक नमस्कार है; आप मेरी रक्षा कीजिये ।
अनाथस्य दीनस्य तृष्णातुरस्य
भयार्तस्य भीतस्य बद्धस्य जन्तोः।
त्वमेका गतिर्देवी निस्तारकर्त्री
नमस्ते जगत्तरिणी त्राहि दुर्गे ॥३॥
अर्थ – हे देवि! एकमात्र आप ही अनाथ, दीन, तृष्णासे व्यथित, भय से पीड़ित, डरे हुए तथा बन्धन में पड़े जीवको आश्रय देनेवाली तथा एकमात्र आप ही उसका उद्धार करनेवाली हैं। जगत्का उद्धार करनेवाली हे दुर्गे! आपको नमस्कार है; आप मेरी रक्षा कीजिए।
अरण्ये, रणे, दारुणे, शत्रुमध्ये-
ऽनले, सागरे, प्रांतरे, राजगेहे।
त्वमेका गतिर्देवी निस्तारनौका
नमस्ते जगत्तरिणी त्राहि दुर्गे ॥४॥
अर्थ – हे देवि! वन में, भीषण संग्राम शत्रु के बीच में, अग्नि में, समुद्र में, निर्जन विषम स्थान में और शासन के समक्ष एकमात्र आप ही रक्षा करनेवाली हैं तथा संसारसागरसे पार जानेके लिये नौका के समान है। जगत् का उद्धार करनेवाली हे दुर्गे! आपको नमस्कार है। आप मेरी रक्षा कीजिए ।
अपारे महादुस्तरेऽत्यन्तघोरे
विपत्सागरे मज्जतां देहभाजाम्।
त्वमेका गतिर्देवी निस्तारहेतु-
र्नमस्ते जगतारिणी त्राहि दुर्गे ॥५॥
अर्थ – हे देवि! अपार, महादुस्तर तथा अत्यन्त भयावह विपत्ति सागर में डूबते हुए प्राणियों की एकमात्र आप ही शरणस्थली हैं और उनकी उद्धार की हेतु हैं। जगत का उद्धार करनेवाली हे दुर्गे! आपका नमस्कार है: आप मेरी रक्षा कीजिए।
नमश्चण्डिके चण्डदुर्दण्डलीला
समुत्खण्डिताखण्डिताशेषशत्रो।
त्वमेका गतिर्देवि निस्तारबीजं
नमस्ते जगतारिणी त्राहि दुर्गे ॥६॥
अर्थ – अपनी प्रचण्ड तथा दुर्दण्ड लीला से सभी दुर्दम्य शत्रुओं को समूल नष्ट कर देने वाली हे चण्डिके! आपको नमस्कार है। हे देवि! आप ही एकमात्र आश्रय हैं तथा भवसागरसे पारगमन की बीजस्वरूपा हैं। जगत् का उद्धार करनेवाली हे दुर्गे! आपको नमस्कार है; आप मेरी रक्षा कीजिये ।
त्वमेवाघभावाधृता सत्यवादी-
र्न जाताजिताक्रोधनात् क्रोधनिष्ठा।
इडा पिङ्गला त्वं सुषुम्ना च नाडी
नमस्ते जगत्तरिणी त्राहि दुर्गे ॥७॥
अर्थ – आप ही पापियों के दुर्भावग्रस्त मन की मलिनता हटाकर सत्यनिष्ठा में तथा क्रोध पर विजय दिलाकर अक्रोध में प्रतिष्ठित होती हैं। आप ही योगियोंकी इडा, पिंगला और सुषुम्णा नाडियों में प्रवाहित होती हैं। जगत् का उद्धार करनेवाली हे दुर्गे! आपको नमस्कार है; आप मेरी रक्षा कीजिये ।
नमो देवी दुर्गे शिवे भीमनादे
सरस्वत्यरुन्धत्यमोघस्वरूपे ।
विभूतिः शची कालरात्रिः सती त्वं
नमस्ते जगत्तारिणी त्राहि दुर्गे॥८॥
अर्थ – हे देवि! हे दुर्गे! हे शिवे! हे भीमनादे! हे सरस्वति! हे अरुन्धति! है अमोघस्वरूपे! आप ही विभूति, शची, कालरात्रि तथा सती हैं। जगत् का उद्धार करनेवाली हे दुर्गे! आपको नमस्कार है: आप मेरी रक्षा करें।
शरणमसि सुराणां सिद्धविद्याधराणां
मुनिमनुजपशूनां दस्युभिस्त्रासिताना।
नृपतिगृहगतानां व्याधिभिः पीडितानां
त्वमसि शरणमेका देवी दुर्गे प्रसीद॥९॥
अर्थ – हे देवि ! आप ही देवताओं, सिद्धों, विद्याधरों, मुनियों, मनुष्यों, पशुओं तथा दस्युओं से पीड़ितों के लिये शरण हो। राजाओं के बंदीगृह में रखे गये लोगों तथा व्याधियों से पीड़ित जनों की भी एकमात्र शरण आप ही हो। हे दुर्गे आप मुझ पर प्रसन्न हों।
इदं स्तोत्रं मया प्रोक्तमापदुद्धारहेतुकम्।
त्रिसंध्यमेकसन्ध्यं वा पठनाद्घोरसंकटात् ॥१०॥
मुच्यते नात्र सन्देहो भुवि स्वर्गे रसातले।
सर्वं वा श्लोकमेकं वा यः पठेद्भक्तिमान्सदा ॥११॥
स सर्वं दुष्कृतं त्यक्त्वा प्राप्नोति परमं पदम्।
पठनादस्य देवेषि किं न सिद्ध्यति भूतले।
स्तवराजमिदं देवि संक्षेपातकथितं मया ॥१२॥
अर्थ – विपदाओं से उद्धार का हेतुस्वरूप यह स्तोत्र मैंने कहा। पृथ्वीलोक, स्वर्गलोक अथवा पाताललोक मे कहीं भी तीनों सन्ध्याकालों अथवा एक सन्ध्याकाल में इस स्तोत्र का पाठ करनेसे प्राणी घोर संकटसे छूट जाता है: इसमें कोई सन्देह नहीं है। जो मनुष्य भक्ति परायण होकर सम्पूर्ण स्तोत्र अथवा इसके एक श्लोक को ही पढ़ता है, वह समस्त पापोंसे छूटकर परम पद प्राप्त करता है। हे देवेशि! इसके पाठ से पृथ्वी तल पर कौन-सा मनोरथ सिद्ध नहीं हो जाता? अर्थात् सभी कार्य सिद्ध हो जाते हैं। हे देवि! मैंने संक्षेप में यह स्तवराज आपसे क दिय ।
॥ इति श्रीसिद्धेश्वरीतन्त्र उमामहेश्वरसंवादे श्रीदर्गापदद्धारस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ सुशांतिर्भवतु ॥ सर्वारिष्ट शान्तिर्भवतु ॥
आगे सम्पूर्ण दुर्गा सप्तशती के अनुगमन कड़ी दिये गये हैं जहां से अनुसरण पूर्वक कोई भी अध्याय पढ़ सकते है :
कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।