तीन पुत्री के पश्चात् यदि पुत्र का जन्म हो अथवा तीन पुत्र के पश्चात् पुत्री का जन्म हो तो उसे त्रिक कहा जाता है जिसे बोलचाल में तेतर या तेतरी भी कहा जाता है। ऐसा जन्म होना (तेतर दोष) शास्त्रों में अनिष्टकारक बताया गया है और अनिष्ट निवारण के लिये त्रिक प्रसव की शांति (trik shanti puja) करनी पड़ती है जिसे त्रिक प्रसव शांति कहते हैं। यहां इस विषय की प्रामाणिक चर्चा की गयी है।
त्रिक/त्रीतर (तेतर दोष) शांति विधि – trik shanti puja
यदि हम त्रिक शांति विधि की बात करें तो इसकी विधि बृहज्ज्योतिषसार आदि ग्रंथों में मिलती है जिसमें “गर्ग” उद्धृत करते हुये वर्णित है। “गर्ग” उद्धृत करने का तात्पर्य गर्ग वचन है अथवा गर्ग संहिता से लिया गया है। हमने गर्ग संहिता से पुष्टि नहीं किया है अतः हम इसका मूल गर्ग संहिता नहीं कह सकते है। हमने बृहज्ज्योतिषसार में पाया है जहां “गर्ग” उल्लिखित करते हुये “त्रीतर (तेतर दोष) शांति विधि” बताई गयी है जो इस प्रकार है :
सुतत्रये सुता चेत् स्यात्तत्त्रये वा सुतो यदि ।
मातापित्रोः कुलस्यापि तदाऽनिष्टं महद्भवेत् ॥
ज्येष्ठनाशो धनेर्हानिर्दुःखं वा सुमहद्भवेत् ।
तत्र शान्तिं प्रकुर्वीत वित्तशाठ्यं विवर्जितः ॥
जातस्यैकादशाहे वा द्वादशाहे शुभे दिने ।
आचार्यमृत्विजो वृत्त्वा ग्रहयज्ञपुरःसरम् ॥
ब्रह्मविष्णुमहेशेन्द्रप्रतिमाः स्वर्णतः कृताः ।
पूजयेद्धान्यराशिस्थकलशोपरि शक्त्तितः ॥
पञ्चमे कलशे रुद्रं पूजयेद्रुद्रसंख्यया ।
रुद्रसूक्तानि चत्वारि शान्तिसूक्तानि सर्वशः ॥
आचार्यो जुहुयात्तत्र समिदाज्यं तिलांश्चरुम् ।
अष्टोत्तरसहस्रं वा शतं वा त्रिशतं तु वा ॥
देवताभ्यश्चतुर्वक्त्रादिभ्यो ग्रहपुरःसरम्।
ब्रह्मादिमन्त्रैरिन्द्रस्य यत इन्द्रभयामहे ॥
ततः स्वेष्टकृतं हुत्वा बलिं पूर्णाहुतिं ततः ।
अभिषेकं कुटुम्बस्य शान्तिपाठं तु कारयेत् ॥
ब्राह्मणान् भोजयेच्छक्तक्त्या दीनाऽनाथांश्च तर्पयेत् ।
कृत्वैवं विधिना शान्तिं सर्वारिष्टाद्विमुच्यते ॥
कांस्यपात्रं शर्कराज्यपालैः षोडशमानतः ।
ब्राह्मणेभ्यः प्रदातव्यं शुभं भवति नाऽन्यथा ॥
अब हम उक्त प्रमाण के अनुसार त्रिक शांति विधि को संक्षेप में समझने का प्रयास करेंगे। इस विषय के सन्दर्भ में एक वीडियो पूर्व ही प्रसारित किया जा चुका है जो यहां प्रस्तुत भी है और उसका भी अवलोकन कर सकते हैं। कुछ तथ्यों की चर्चा वीडियो में भिन्न हो सकती है तो उस विषय में यह आलेख ही ग्राह्य होगा। वीडियो वाली चर्चा करते समय यहां जो प्रमाण प्राप्त हो रहा है यह आधार नहीं था अपितु वहां पर अन्यत्र वर्णित संक्षिप्त विधि ही आधार था इस कारण कुछ भिन्नता प्रतीत हो सकती है।
त्रीतर (तेतर दोष) शांति विधि के लिये महत्वपूर्ण जानकारी
- त्रीतर संतान वह नहीं जो तीसरे क्रम पर हो अपितु चतुर्थ क्रम वाली संतान कहलाती है, जिसका मुख्य नियम यह है कि यदि चतुर्थ संतान पुत्र हो और पूर्व की तीनों संताने पुत्री हो और पूर्व की तीनों संतानें पुत्र हो और चतुर्थ संतान पुत्री हो। उक्त स्थिति में वह चतुर्थ संतान त्रीतर (तेतर/तेतरी) कहलाती है।
- त्रीतर शान्ति 5 अथवा 2 अथवा 1 ऋत्विज ब्राह्मण द्वारा किया जा सकता है। ब्राह्मणों की संख्या कार्य के अनुसार और भी अधिक हो सकता है।
- त्रीतर शान्ति ग्यारहवें अथवा बारहवें दिन जो शुभवार हो को करें।
- त्रीतर शान्ति में सामान्य विधि से आचार्यादि का वरण करने के उपरांत नवग्रह मख करने की बात कही गयी है अतः इसकी विधि को समझने के लिये “नवग्रह शांति विधि” का अवलोकन करना लाभकारी होगा। नवग्रह शांति विधि के अनुसार ही पूजा-हवन आदि की व्यवस्था की जायेगी।
- नवग्रह वेदी (न्यूनतम हस्तमात्र) हवनकुण्ड/वेदी के पूर्व दिशा में बनाये।
- 5 कलश नवग्रह वेदी के ईशानकोण में स्थापित करना चाहिये।
- चारों कलशों पर जो समर्थ हो वह ब्रह्मा, विष्णु, महेश और इन्द्र की स्वर्ण प्रतिमा बनाकर स्थापित करे और जो असमर्थ हो वह आचार्य के निर्देश से विकल्प ग्रहण करे अथवा कलश पर ही आवाहन करके पूजन करे।
- मध्य कलश पर पुनः रुद्र का आवाहन करे और “रुद्रं पूजयेद्रुद्रसंख्यया” से यही स्पष्ट होता है कि एकादश रुद्र का आवाहन-पूजन करे।
- रुद्रसूक्त (चारों) सूक्तों का जप (पाठ) एवं शांतिसूक्त का पाठ करें।
- तदनंतर आचार्यादि हवन करें, चारों देवताओं के आहुति की संख्या १००८ अथवा १०८ अथवा ३०८ रखें।
- हवन के पश्चात् शांति मंत्रों से कुटुम्बादि सहित यजमान का अभिषेक करें ।
- तत्पश्चात ब्राह्मणों को भोजन कराये और दीन-अनाथों को भी भोजनादि से तृप्त करे।
- ब्राह्मणों को कांस्य पात्र में शर्करा और आज्य भरकर दान करे अर्थात दो कांस्य पात्र में दोनों वस्तुयें दान करे और मात्रा सोलह पल बताई गयी है।
- मुख्य तथ्यों के अतिरिक्त शेष अन्यान्य विधि-नियम आदि अन्यान्य शांति विधि के अनुसार ग्रहण करे।
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