सम्पूर्ण कर्मकांड में पवित्रीकरण अर्थात शुद्धिकरण की सर्वप्रथम आवश्यकता होती है। चाहे पूजा स्थल की बात हो, पूजा सामग्री की बात हो अथवा शारीरिक या मानसिक शुद्धि का विषय हो, प्रत्येक कर्म का आरम्भ पवित्रीकरण से ही होता है। इस आलेख में पवित्रीकरण की संपूर्ण विधि बताई गयी है जो अत्यंत उपयोगी विषय है। अंत में पवित्रीकरण से संबंधित अनेकों प्रश्नों के उत्तर भी दिये गये है जो बहुत ही महत्वपूर्ण हैं।
पवित्रीकरण अर्थात शुद्धिकरण की संपूर्ण विधि
यदि यजमान अथवा यजमानपत्नी अकेले कोई पूजा आदि कर्म कर रही हो तो ग्रंथि बंधन नहीं होता है अन्यथा पवित्रीकरण से पूर्व ग्रंथिबंधन ही होता है। पूजा स्थान पर बैठने से पहले ही यजमान और यजमान पत्नी दोनों का ग्रंथिबंधन करें :
ग्रंथिबंधन
यजमान और यजमानपत्नी स्नानादि करके नया/अहत/शुद्ध वस्त्र (एकबार पहनकर उतारा गया वस्त्र भी धोने के बाद ही शुद्ध होता है) धारण कर (यजमान पत्नी श्रृंगार आदि करके) बैठे। यजमान त्रिकच्छ धोती धारण करे और यज्ञोपवीत, उपवस्त्र भी धारण करे।
- गौतम – स्नाने दाने जपे होमे देवे पित्र्ये च कर्मणि । वध्नीयान्नासुरीं कक्षां शेषकाले यथारुचि ॥
- याज्ञवल्क्य – परिधानाद वहिः कक्षा निबद्धा चासुरी मता ॥
- विश्वामित्र – यज्ञोपवीते द्वे धार्ये श्रौते स्मार्ते च कर्मणि । तृतीयमुत्तरीयार्थे वस्त्राभावे तदिष्यते ॥
- वृद्धहारीत स्मृति – नाऽऽसनारूढपादस्तु आसन पर बैठते समय पहले पैर रखकर नहीं बैठना चाहिए।
पवित्रीकरण से भी पहले ग्रंथिबंधन करना चाहिए। ब्राह्मण या सधवा स्त्री ग्रंथिबंधन करें :
ॐ गणाधिपं नमस्कृत्य उमा लक्ष्मी सरस्वतीम्। दंपत्योर्रक्षणार्थाय पटग्रंथि करोम्यहम् ॥
श्रीदेव देव कुरुमंगलानि संतानवृद्धिकुरु संततञ्ञ।
धनायुवृद्धिकुरुइष्टदेव मदग्रथिबंधे शुभदाभवन्न्तु॥
पवित्रीधारण
ॐ पवित्रेस्थो वैष्णव्यो सवितुर्वः प्रसवऽउत्पुनाम्यच्छिद्रेण पवित्रेण सूर्यस्य रश्मिभिः । तस्य ते पवित्रपते पवित्रपूतस्य यत्कामः पुनेतच्छकेयम् ॥ इस मंत्र से पवित्रीधारण करे।
पवित्रीकरण मंत्र
ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थाङ्गतोऽपि वा। य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स: बाह्याऽभंतर: शुचि:॥ ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु ॥ हाथ में गंगाजल/जल लेकर इस मंत्र से शरीर और सभी वस्तुओं पर छिड़के ।
आसन पवित्रीकरण मंत्र
ॐ पृथ्वि त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुनाधृता। त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम्॥ इस मंत्र से आसन पर जल छिड़क कर आसनशुद्धि करें। अन्य विधि – दोनों हाथों को पृथ्वी पर रखकर इस मंत्र को पढ़ें और “ॐ लं पृथिव्यै नमः” इस मंत्र से भूमि की पञ्चोपचार पूजा करके आसन शुद्धि करें।
शिखाबंधन
ॐ ब्रह्मवाक्य सहस्रेण शिववाक्य च । विष्णोर्नामसहस्रेण शिखाग्रन्थिं करोम्यहम् ॥
ॐ चिद्रूपिणि महामाये दिव्यतेजः समन्विते । तिष्ठ देवि शिखाबद्धे तेजोवृद्धिं कुरुष्व मे ॥
(यदि पहले से शिखा बंधी हो तो केवल स्पर्श करे)। यदि शिखा न हो तो कुश का ग्रंथियुक्त शिखा दाहिने कान पर धारण करे :
कात्यायन – सदोपवीतिनाभाव्यं सदा वद्धशिखेन च। विशिखो व्युपवीतश्च यत्करोति न तत्कृतः॥
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