मूल शांति पूजन सामग्री - Mool Shanti Puja Samagri

मूल शांति पूजन सामग्री – Mool Shanti Puja Samagri

मूल शांति पूजन सामग्री – Mool Shanti Puja Samagri : मूल में जन्म सर्वाधिक दोषद है। मूल शांति विधि पूर्व आलेख में प्रकाशित की जा चुकी है और मूल शांति हेतु जिन सामग्रियों की आवश्यकता होती है उसकी जानकारी नीचे दी गयी है।

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धन्वंतरि पूजन विधि - Dhanvantari Puja Vidhi

धन्वंतरि पूजन विधि – Dhanvantari Puja Vidhi (13)

धन्वंतरि पूजन विधि – Dhanvantari Puja Vidhi : सबसे बड़ा धन कहें अथवा पहला सुख कहें आरोग्य को ही कहा गया है। यदि उत्तम स्वास्थ्य हो तभी कोई कर्म किया जा सकता है चाहे वह उद्यम हो अथवा धर्म। इसलिये आरोग्य के देवता धन्वन्तरि की पूजा विशेष श्रद्धा-भक्ति से करनी चाहिये। धन्वंतरि भगवान विष्णु के 24 अवतारों में से ही एक अवतार हैं।

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मूल शांति पूजन विधि - mool shanti puja vidhi

मूल शांति पूजन विधि – mool shanti puja vidhi

मूल शांति पूजन विधि – mool shanti puja vidhi : मूल सत्ताईस नक्षत्रों में से एक नक्षत्र का नाम है और सम्पूर्ण मूल को ही दोषद कहा गया है। गण्डान्त नक्षत्रों में से सर्वाधिक दोषद होने के कारण मूल में जन्म होने पर दोष की विधि पूर्वक शांति की जाती है जिसे मूल शांति कहा जाता है। किन्तु मूल शांति का तात्पर्य मात्र मूल नक्षत्र की शांति नहीं होती है, क्योंकि अन्य दोषद नक्षत्रों में जन्म होने पर भी एक ही विधि से शांति होती है मात्र नक्षत्र जप-पूजा-हवन-मंत्र में परिवर्तन होता है।

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कार्तिक मास की विशेषता और मास के नियम - Kartik Mas

कार्तिक मास की विशेषता और मास के नियम – Kartik Mas

कार्तिक मास माहात्म्य और मास के नियम – Kartik Mahatmya : इस महीने लोग प्रातः स्नान, पूजा और जप करते हैं। इसका माहात्म्य पद्मपुराण में मिलता है। अनेकों विशेष व्रत-पर्व जैसे दीपावली, छठ, अक्षयनवमी भी इसी महीने में होते हैं। कार्तिक का समय सूर्य के नीच होने से जुड़ा है, जो हमारी ऊर्जा, जीवन, आत्मबल आदि को प्रभावित करता है। मथुरा में कार्तिक मास करने का विशेष महत्व है, जहां भगवान विष्णु की विशेष कृपाप्राप्त होती है।

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एकादशी उद्यापन की दान विधि और मंत्र

एकादशी उद्यापन की दान विधि – Dan ki vidhi aur mantra

एकादशी उद्यापन की दान विधि – एकादशी व्रत की भी पूर्णता हेतु उद्यापन करने की एक विस्तृत विधि है और पूर्व आलेख में एकादशी उद्यापन की शास्त्र-सम्मत विधि दी गयी है एवं उसे सरल रूप से समझाया भी गया है। उद्यापन में पूजा-कथा-हवन आदि के साथ मुख्य विषय दान होता है। इस आलेख में एकादशी उद्यापन में दान करने की विधि और मंत्र दिया गया है।

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एकादशी उद्यापन विधि - एकादशी व्रत उद्यापन करने की संपूर्ण विधि और मंत्र

एकादशी उद्यापन विधि – Ekadashi Udyapan Vidhi

यद्यपि पद्धतियों में नवग्रह-दिक्पाल आदि का पूजन करके प्रधानपूजन देखने को मिलता है तथापि कर्मकांड अनुक्रमणिका के अनुसार प्रथम प्रधानवेदी पूजन व प्रधान पूजा करने के एकादशी उद्यापन विधि – Ekadashi Udyapan Vidhi : पश्चात् नवग्रह मंडल पूजन की सिद्धि होती है। यदि क्रम का विशेष निर्वहन करना हो तो प्रथम अग्निस्थापन करके तब प्रधानपूजन व नवग्रह मंडल पूजन करे।

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हरिवासर 2024

हरिवासर 2024

हरिवासर योग क्या है : हरिवासर के विषय में कल्पद्रुम का जो प्रमाण है उससे ज्ञात होता है कि द्वादशी का प्रथम चरण हरिवासर होता है। यहां प्रथम चरण कहने का तात्पर्य प्रथम चतुर्थांश है। यह हरिवासर सभी द्वादशी में होता है और यदि एकादशी रात्र्यंत तक हो तो भी अगले दिन का पारण द्वादशी के प्रथम चतुर्थांश व्यतीत होने के पश्चात् ही करना चाहिये। और यह नियम सभी एकादशी व्रत के संबंध में है।

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नमक चमक रुद्राभिषेक – आगमोक्त

नमक चमक रुद्राभिषेक – आगमोक्त (अनुपनीत-प्रयोग) namak chamak mantra

नमक चमक रुद्राभिषेक – आगमोक्त (अनुपनीत-प्रयोग) namak chamak mantra : अनुपनीतों के लिये आगमोक्त “नमक चमक रुद्राभिषेक” की विधि है। इस आलेख में आगमोक्त नमक चमक स्तोत्र दिया गया है जो विशेष लाभकारी है।

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दीपावली कब है 2024 में, एक महत्वपूर्ण विश्लेषण

दीपावली का त्यौहार – Deepawali 2024

दीपावली का त्यौहार – Deepawali 2024 : दीपावली का दिन एक ऐसा त्यौहार है जिसमें कई पुजायें सम्मिलित होती है और आगे-पीछे के कई व्रत-त्यौहार भी इससे संबंधित होते हैं, जैसे : पितृ विसर्जन, कोजागरा, धनतेरस, यमचतुर्दशी, श्यामा पूजा, लघुदीपावली, देवदीपावली आदि।

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कोजागरा व्रत : कोजागरा कब है - kojagara kab hai 2024

कोजागरा व्रत : कोजागरा कब है – Kojagara kab hai 2024

कोजागरा व्रत : कोजागरा कब है – kojagara kab hai 2024 : माता लक्ष्मी वर्ष में दो बार भ्रमण करती है और कहां वास करना चाहिये घरों का चयन करती है। एक बार दो दीपावली की रात्रि में भ्रमण करती है यह सभी जानते हैं किन्तु उससे पहले भी शरद पूर्णिमा की रात्रि को भ्रमण करती है और कौन जाग रहा है “कोजागर्ति” यह देखती है। “कोजागर्ति” के कारण ही इसका एक नाम कोजागरा भी है।

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