भगवान शिव ने चन्द्रमा को अपने शिर पर धारण कर रखा है और इसलिये भगवान शिव का ही एक नाम चन्द्रशेखर है। चंद्रशेखर की उपासना हेतु अनेकानेक स्तोत्र हैं जिनमें से एक अष्टक स्तोत्र भी है जिसे चंद्रशेखर अष्टक स्तोत्र नाम से जाना जाता है जिसकी ध्रुव पंक्ति है “चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर पाहि माम्” जो कि बहुत ही प्रसिद्ध है। यहां चंद्रशेखर अष्टक स्तोत्र (chandrashekhar ashtakam) संस्कृत में दिया गया है।
पढ़ें चंद्रशेखर अष्टक स्तोत्र संस्कृत में – chandrashekhar ashtakam
चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर पाहि माम् ।
चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर रक्ष माम् ॥
रत्नसानुशरासनं रजताद्रिशृङ्गनिकेतनं
शिञ्जिनीकृतपन्नगेश्वरमच्युतानलसायकम् ।
क्षिप्रदग्धपुरत्रयं त्रिदशालयैरभिवन्दितं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥१॥
पञ्चपादपपुष्पगन्धिपदाम्बुजद्वयशोभितं
भाललोचनजातपावकदग्धमन्मथविग्रहम् ।
भस्मदिग्धकलेवरं भवनाशनं भवमव्ययं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥२॥
मत्तवारणमुख्यचर्मकृतोत्तरीयमनोहरं
पङ्कजासनपद्मलोचनपूजिताङ्घ्रिसरोरुहम् ।
देवसिन्धुतरङ्गशीकरसिक्तशीतजटाधरं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥३॥
कुण्डलीकृतकुण्डलीश्वरकुण्डलं वृषवाहनं
नारदादिमुनीश्वरस्तुतवैभवं भुवनेश्वरम् ।
अन्धकान्तकमाश्रितामरपादपं शमनान्तकं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥४॥
यक्षराजसखं भगाक्षहरं भुजङ्गविभूषणं
शैलराजसुतापरिष्कृतचारुवामकलेवरम् ।
क्ष्वेडनीलगलं परश्वधधारिणं मृगधारिणं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥५॥
भेषजं भवरोगिणामखिलापदामपहारिणं
दक्षयज्ञविनाशनं त्रिगुणात्मकं त्रिविलोचनम् ।
भुक्तिमुक्तिफलप्रदं सकलाघसङ्घनिबर्हणं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥६॥
भक्तवत्सलमर्चितं निधिमक्षयं हरिदम्बरं
सर्वभूतपतिं परात्परमप्रमेयमनामयम् ।
सोमवारिदभूहुताशनसोमपानिलखाकृतिं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥७॥
विश्वसृष्टिविधायिनं पुनरेव पालनतत्परं
संहरन्तमथ प्रपञ्चमशेषलोकनिवासिनम् ।
क्रीडयन्तमहर्निशं गणनाथयूथसमाकुलं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥८॥
॥ फलश्रुतिः ॥
मृत्युभीतमृकण्डसूनुकृतस्तवं शिवसन्निधौ
यत्र कुत्र च यः पठेन्न हि तस्य मृत्युभयं भवेत् ।
दीर्घमायुररोगितामखिलार्थसम्पदमादरात्
चन्द्रशेखर एव तस्य ददाति मुक्तिमयत्नतः ॥
॥ इति श्रीशिवरहस्यान्तर्गते शिवाख्ये मार्कण्डेयकृतं श्रीचन्द्रशेखराष्टकं सम्पूर्णम् ॥
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