श्राद्ध कर्म विधि के कुछ आलेख यहां दिये गये हैं जिससे अनुगमन करना आसान हो :
लौह-लवण-कार्पास दान :
- लौह-लवण-कार्पास पर तीन बार इस मंत्र से पुष्पाक्षत छिड़के : ॐ सोपकरण लौह-लवण-कार्पासेभ्यो नमः ॥३॥
- उत्तराग्र त्रिकुशा (दर्भबटु) की पुष्पाक्षत से तीन बार पूजा करे : ॐ ब्राह्मणाय नमः ॥३॥
- लौह-लवण-कार्पास को कुशोदक से सिक्त करे ।
- पुनः तिल, जल लेकर इस मंत्र से त्रिकुशा व तिल-जल; उत्तराग्र त्रिकुशा (दर्भबटु) पर दे – ॐ अद्य ……… गोत्रस्य पितुः ……… प्रेतस्य (…… गोत्रायाः मातुः ………. प्रेतायाः) स्वर्गकाम एतानि लौह-लवण-कार्पासानि यम-वरुण-बृहस्पति दैवतानि यथानाम गोत्राय ब्राह्मणाय दक्षिणां अहं ददे ॥
- पुनः त्रिकुश, तिल, जल, दक्षिणा लेकर दक्षिणा करे : ॐ अद्य कृतैतत् लौह-लवण-कार्पास दान प्रतिष्ठार्थं एतावत् द्रव्यमूल्यकं हिरण्यं अग्नि दैवतं यथानाम गोत्राय ब्राह्मणाय दक्षिणां अहं ददे ॥ उत्तराग्र त्रिकुशा (दर्भबटु) पर दे।
कुर्सी-टेबल (छड़ी-समाचारपत्र-धूप-चश्मा आदि सहित) दान :
- कुर्सी-टेबल पर तीन बार इस मंत्र से पुष्पाक्षत छिड़के : ॐ सोपकरण सपीठिका आसन्दिकायै नमः ॥३॥
- उत्तराग्र त्रिकुशा (दर्भबटु) की पुष्पाक्षत से तीन बार पूजा करे : ॐ ब्राह्मणाय नमः ॥३॥
- कुर्सी-टेबल को कुशोदक से सिक्त करे ।
- पुनः तिल, जल लेकर इस मंत्र से त्रिकुशा व तिल-जल; उत्तराग्र त्रिकुशा (दर्भबटु) पर दे – ॐ अद्य ……… गोत्रस्य पितुः ……… प्रेतस्य (…… गोत्रायाः मातुः ………. प्रेतायाः) स्वर्गकाम सोपकरण सपीठिका आसन्दिकां उत्तानाङ्गिरो दैवतां यथानाम गोत्राय ब्राह्मणाय दक्षिणां अहं ददे ॥
- पुनः त्रिकुश, तिल, जल, दक्षिणा लेकर दक्षिणा करे : ॐ अद्य कृतैतत् सोपकरण सपीठिका आसन्दिका दान प्रतिष्ठार्थं एतावत् द्रव्यमूल्यकं हिरण्यं अग्नि दैवतं यथानाम गोत्राय ब्राह्मणाय दक्षिणां अहं ददे ॥ उत्तराग्र त्रिकुशा (दर्भबटु) पर दे।
सप्तधान्य दान :
- सप्तधान्य पर तीन बार इस मंत्र से पुष्पाक्षत छिड़के : ॐ सदक्षिणाक सप्तधान्येभ्यो नमः ॥३॥
- उत्तराग्र त्रिकुशा (दर्भबटु) की पुष्पाक्षत से तीन बार पूजा करे : ॐ ब्राह्मणाय नमः ॥३॥
- सप्तधान्य को कुशोदक से सिक्त करे ।
- पुनः तिल, जल लेकर इस मंत्र से त्रिकुशा व तिल-जल; उत्तराग्र त्रिकुशा (दर्भबटु) पर दे – ॐ अद्य ……… गोत्रस्य पितुः ……… प्रेतस्य (…… गोत्रायाः मातुः ………. प्रेतायाः) स्वर्गकाम एतानि सदक्षिणाकानि सप्तधान्यानि प्रजापति दैवतानि यथानाम गोत्राय ब्राह्मणाय दक्षिणां अहं ददे ॥
वर्षभोज दान :
- वर्षभोज पर तीन बार इस मंत्र से पुष्पाक्षत छिड़के : ॐ सदक्षिणाक वर्षभोजान्नेभ्यो नमः ॥३॥
- उत्तराग्र त्रिकुशा (दर्भबटु) की पुष्पाक्षत से तीन बार पूजा करे : ॐ ब्राह्मणाय नमः ॥३॥
- वर्षभोज को कुशोदक से सिक्त करे ।
- पुनः तिल, जल लेकर इस मंत्र से त्रिकुशा व तिल-जल; उत्तराग्र त्रिकुशा (दर्भबटु) पर दे – ॐ अद्य ……… गोत्रस्य पितुः ……… प्रेतस्य (…… गोत्रायाः मातुः ………. प्रेतायाः) स्वर्गकाम एतानि सदक्षिणाकानि वर्षभोजान्नानि प्रजापति दैवतानि यथानाम गोत्राय ब्राह्मणाय दक्षिणां अहं ददे ॥
आशा है यह आलेख आपको उपयोगी लगा होगा। किसी प्रकार की त्रुटि अथवा सुझाव अथवा किसी अन्य वस्तु दान विधि जोड़ने के लिए अवश्य अवगत करें।
कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।