यहां दो दुर्गा अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र दिया गया है जिनमें से एक “दुर्गा शिवा महालक्ष्मी” है और दूसरा जो दुर्गा सप्तशती में भी देखा जाता है “सती साध्वी भवप्रीता” जो श्रीविश्वसारतन्त्र से लिया गया है। इसके साथ ही अष्टोत्तर शतनामावली भी दिया गया है। यहां दुर्गा अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र (durga ashtottar shatnam stotram) संस्कृत में दिया गया है।
यहां पढ़ें दुर्गा अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र संस्कृत में – durga ashtottar shatnam stotram
ॐ दुर्गा शिवा महालक्ष्मीर्महागौरी च चण्डिका ।
सर्वज्ञा सर्वलोकेशा सर्वकर्मफलप्रदा ॥१॥
सर्वतीर्थमया पुण्या देवयोनिरयोनिजा ।
भूमिजा निर्गुणा चैवाधारशक्तिरनीश्वरा ॥२॥
निर्गुणा निरहङ्कारा सर्वगर्वविमर्दिनी ।
सर्वलोकप्रिया वाणी सर्वविद्याधिदेवता ॥३॥
पार्वती देवमाता च वनीशा विन्ध्यवासिनी ।
तेजोवती महामाता कोटिसूर्यसमप्रभा ॥४॥
देवता वह्निरूपा च सदौजा वर्णरूपिणी ।
गुणाश्रया गुणमयी गुणत्रयविवर्जिता ॥५॥
कर्मज्ञानप्रदा कान्ता सर्वसंहारकारिणी ।
धर्मज्ञाना धर्मनिष्ठा सर्वकर्मविवर्जिता ॥६॥
कामाक्षा कामसंहन्त्री कामक्रोधविवर्जिता ।
शाङ्करी शाम्भवी शान्ता चन्द्रसूर्याग्निलोचना ॥७॥
सुजया जयभूमिष्ठा जाह्नवी जनपूजिता ।
शास्त्रा शास्त्रमया नित्या शुभा चन्द्रार्धमस्तका ॥८॥
भारती भ्रामरी कल्पा कराली कृष्णपिङ्गला ।
ब्राह्मी नारायणी रौद्रा चन्द्रामृतपरिश्रुता ॥९॥
ज्येष्ठेन्दिरा महामाया जगत्सृष्ट्यादिकारिणी ।
ब्रह्माण्डकोटिसंस्थाना कामिनी कमलालया ॥१०॥
कात्यायनी कलातीता कालसंहारकारिणी ।
योगिनिष्ठा योगिगम्या योगिध्येया तपस्विनी ॥११॥
ज्ञानरूपा निराकारा भक्ताभीष्टफलप्रदा ।
भूतात्मिका भूतमाता भूतेशा भूतधारिणी ॥१२॥
स्वधानारीमध्यगता षडाधारादिवर्तिनी ।
मोह्हिता शुभदा शुभ्रा सूक्ष्मा मात्रा निरालसा ॥१३॥
निम्नगा नीलसङ्काशा नित्यानन्दा हरा परा ।
सर्वज्ञानप्रदाऽनन्ता सत्या दुर्लभरूपिणी ।
सरस्वती सर्वगता सर्वाभीष्टप्रदायिनी ॥१४॥
॥ इति दुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
श्री दुर्गाष्टोत्तर शत नामावलि
- ॐ दुर्गायै नमः ॥
- ॐ शिवायै नमः ॥
- ॐ महालक्ष्म्यै नमः ॥
- ॐ महागौर्यै नमः ॥
- ॐ चण्डिकायै नमः ॥
- ॐ सर्वज्ञायै नमः ॥
- ॐ सर्वालोकेशायै नमः ॥
- ॐ सर्वकर्मफलप्रदायै नमः ॥
- ॐ सर्वतीर्थमयायै नमः ॥
- ॐ पुण्यायै नमः ॥
- ॐ देवयोनये नमः ॥
- ॐ अयोनिजायै नमः ॥
- ॐ भूमिजायै नमः ॥
- ॐ निर्गुणायै नमः ॥
- ॐ आधारशक्त्यै नमः ॥
- ॐ अनीश्वरायै नमः ॥
- ॐ निर्गुणायै नमः ॥
- ॐ निरहङ्कारायै नमः ॥
- ॐ सर्वगर्वविमर्दिन्यै नमः ॥
- ॐ सर्वलोकप्रियायै नमः ॥
- ॐ वाण्यै नमः ॥
- ॐ सर्वविध्याधिदेवतायै नमः ॥
- ॐ पार्वत्यै नमः ॥
- ॐ देवमात्रे नमः ॥
- ॐ वनीशायै नमः ॥
- ॐ विन्ध्यवासिन्यै नमः ॥
- ॐ तेजोवत्यै नमः ॥
- ॐ महामात्रे नमः ॥
- ॐ कोटिसूर्यसमप्रभायै नमः ॥
- ॐ देवतायै नमः ॥
- ॐ वह्निरूपायै नमः ॥
- ॐ सदौजसे नमः ॥
- ॐ वर्णरूपिण्यै नमः ॥
- ॐ गुणाश्रयायै नमः ॥
- ॐ गुणमय्यै नमः ॥
- ॐ गुणत्रयविवर्जितायै नमः ॥
- ॐ कर्मज्ञानप्रदायै नमः ॥
- ॐ कान्तायै नमः ॥
- ॐ सर्वसंहारकारिण्यै नमः ॥
- ॐ धर्मज्ञानायै नमः ॥
- ॐ धर्मनिष्ठायै नमः ॥
- ॐ सर्वकर्मविवर्जितायै नमः ॥
- ॐ कामाक्षायै नमः ॥
- ॐ कामसंहन्त्र्यै नमः ॥
- ॐ कामक्रोधविवर्जितायै नमः ॥
- ॐ शाङ्कर्यै नमः ॥
- ॐ शाम्भव्यै नमः ॥
- ॐ शान्तायै नमः ॥
- ॐ चन्द्रसुर्याग्निलोचनायै नमः ॥
- ॐ सुजयायै नमः ॥
- ॐ जयभूमिष्ठायै नमः ॥
- ॐ जाह्नव्यै नमः ॥
- ॐ जनपूजितायै नमः ॥
- ॐ शास्त्रायै नमः ॥
- ॐ शास्त्रमयायै नमः ॥
- ॐ नित्यायै नमः ॥
- ॐ शुभायै नमः ॥
- ॐ चन्द्रार्धमस्तकायै नमः ॥
- ॐ भारत्यै नमः ॥
- ॐ भ्रामर्यै नमः ॥
- ॐ कल्पायै नमः ॥
- ॐ कराल्यै नमः ॥
- ॐ कृष्णपिङ्गलायै नमः ॥
- ॐ ब्राह्म्यै नमः ॥
- ॐ नारायण्यै नमः ॥
- ॐ रौद्रायै नमः ॥
- ॐ चन्द्रामृतपरिश्रुतायै नमः ॥
- ॐ ज्येष्ठायै नमः ॥
- ॐ इन्दिरायै नमः ॥
- ॐ महामायायै नमः ॥
- ॐ जगत्सृष्ट्यादिकारिण्यै नमः ॥
- ॐ ब्रह्माण्डकोटिसंस्थानायै नमः ॥
- ॐ कामिन्यै नमः ॥
- ॐ कमलालयायै नमः ॥
- ॐ कात्यायन्यै नमः ॥
- ॐ कलातीतायै नमः ॥
- ॐ कालसंहारकारिण्यै नमः ॥
- ॐ योगिनिष्ठायै नमः ॥
- ॐ योगिगम्यायै नमः ॥
- ॐ योगिध्येयायै नमः ॥
- ॐ तपस्विन्यै नमः ॥
- ॐ ज्ञानरूपायै नमः ॥
- ॐ निराकारायै नमः ॥
- ॐ भक्ताभीष्टफलप्रदायै नमः ॥
- ॐ भूतात्मिकायै नमः ॥
- ॐ भूतमात्रे नमः ॥
- ॐ भूतेशायै नमः ॥
- ॐ भूतधारिण्यै नमः ॥
- ॐ स्वधानारीमध्यगतायै नमः ॥
- ॐ षडाधाराधिवर्तिन्यै नमः ॥
- ॐ मोहदायै नमः ॥
- ॐ अंशुभवायै नमः ॥
- ॐ शुभ्रायै नमः ॥
- ॐ सूक्ष्मायै नमः ॥
- ॐ मात्रायै नमः ॥
- ॐ निरालसायै नमः ॥
- ॐ निम्नगायै नमः ॥
- ॐ नीलसङ्काशायै नमः ॥
- ॐ नित्यानन्दायै नमः ॥
- ॐ हरायै नमः ॥
- ॐ परायै नमः ।
- ॐ सर्वज्ञानप्रदायै नमः ॥
- ॐ अनन्तायै नमः ॥
- ॐ सत्यायै नमः ॥
- ॐ दुर्लभरूपिण्यै नमः ॥
- ॐ सरस्वत्यै नमः ॥
- ॐ सर्वगतायै नमः ॥
- ॐ सर्वाभीष्टप्रदायिन्यै नमः ॥
॥ इति श्रीदुर्गाष्टोत्तरशतनामावलिः सम्पूर्णम् ॥
श्रीविश्वसारतन्त्रोक्त दुर्गाष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र
ईश्वर उवाच
शतनाम प्रवक्ष्यामि शृणुष्व कमलानने ।
यस्य प्रसादमात्रेण दुर्गा प्रीता भवेत् सती ॥१॥
ॐ सती साध्वी भवप्रीता भवानी भवमोचनी ।
आर्या दुर्गा जया चाद्या त्रिनेत्रा शूलधारिणी ॥२॥
पिनाकधारिणी चित्रा चण्डघण्टा महातपाः ।
मनो बुद्धिरहङ्कारा चित्तरूपा चिता चितिः ॥३॥
सर्वमन्त्रमयी सत्ता सत्यानन्दस्वरूपिणी ।
अनन्ता भाविनी भाव्या भव्याभव्या सदागतिः ॥४॥
शाम्भवी देवमाता च चिन्ता रत्नप्रिया सदा ।
सर्वविद्या दक्षकन्या दक्षयज्ञविनाशिनी ॥५॥
अपर्णानेकवर्णा च पाटला पाटलावती ।
पट्टाम्बर परीधाना कलमञ्जीररञ्जिनी ॥६॥
अमेयविक्रमा क्रुरा सुन्दरी सुरसुन्दरी ।
वनदुर्गा च मातङ्गी मतङ्गमुनिपूजिता ॥७॥
ब्राह्मी माहेश्वरी चैन्द्री कौमारी वैष्णवी तथा ।
चामुण्डा चैव वाराही लक्ष्मीश्च पुरुषाकृतिः ॥८॥
विमलोत्कर्षिणी ज्ञाना क्रिया नित्या च बुद्धिदा ।
बहुला बहुलप्रेमा सर्ववाहन वाहना ॥९॥
निशुम्भशुम्भहननी महिषासुरमर्दिनी ।
मधुकैटभहन्त्री च चण्डमुण्डविनाशिनी ॥१०॥
सर्वासुरविनाशा च सर्वदानवघातिनी ।
सर्वशास्त्रमयी सत्या सर्वास्त्रधारिणी तथा ॥११॥
अनेकशस्त्रहस्ता च अनेकास्त्रस्य धारिणी ।
कुमारी चैककन्या च कैशोरी युवती यतिः ॥१२॥
अप्रौढा चैव प्रौढा च वृद्धमाता बलप्रदा ।
महोदरी मुक्तकेशी घोररूपा महाबला ॥१३॥
अग्निज्वाला रौद्रमुखी कालरात्रिस्तपस्विनी ।
नारायणी भद्रकाली विष्णुमाया जलोदरी ॥१४॥
शिवदूती कराली च अनन्ता परमेश्वरी ।
कात्यायनी च सावित्री प्रत्यक्षा ब्रह्मवादिनी ॥१५॥
य इदं प्रपठेन्नित्यं दुर्गानामशताष्टकम् ।
नासाध्यं विद्यते देवि त्रिषु लोकेषु पार्वति ॥१६॥
धनं धान्यं सुतं जायां हयं हस्तिनमेव च ।
चतुर्वर्गं तथा चान्ते लभेन्मुक्तिं च शाश्वतीम् ॥१७॥
कुमारीं पूजयित्वा तु ध्यात्वा देवीं सुरेश्वरीम् ।
पूजयेत् परया भक्त्या पठेन्नामशताष्टकम् ॥१८॥
तस्य सिद्धिर्भवेद् देवि सर्वैः सुरवरैरपि ।
राजानो दासतां यान्ति राज्यश्रियमवाप्नुयात् ॥१९॥
गोरोचनालक्तककुङ्कुमेव
सिन्धूरकर्पूरमधुत्रयेण ।
विलिख्य यन्त्रं विधिना विधिज्ञो
भवेत् सदा धारयते पुरारिः ॥२०॥
भौमावास्यानिशामग्रे चन्द्रे शतभिषां गते ।
विलिख्य प्रपठेत् स्तोत्रं स भवेत् सम्पदां पदम् ॥२१॥
॥ इति श्रीविश्वसारतन्त्रे दुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।