वास्तु स्थापन
तत्पश्चात ईशानकोण वाला कलश लेकर (वास्तुकलश नहीं), पूजन सामग्री, खात करने के लिये कुदाल आदि लेकर घर के आकाश पद में जाये। ईशानकोण से आठवां और अग्निकोण से दूसरा पद आकाश पद होता है। आकाश पद जाकर कलश रखकर संकल्प करे : ॐ अद्य पूर्वोक्तगुणविशिष्टायां तिथौ वास्तुपूजनगृह-प्रवेशाद्यङ्गभूत वास्तु-स्थापनादि कर्माऽहं करिष्ये ॥
- पृथ्वी ध्यान : ॐ वाराहस्थापितां देवीं सर्वलोकधरां महीम्। ध्यायामिप्रमदारूपां दिव्याभरणभूषितां॥
- पृथ्वी आवाहन : ॐ स्योना पृथ्वी नो भवानृक्षरा निवेशनी। यच्छा नः शर्म्म सप्रथाः ॥
- पृथ्वी पूजन मंत्र : ॐ भूर्भुवः स्वः पृथिव्यै नमः ॥
- फिर वास्तु पूजन करे।
फिर रक्षोघ्न सूक्त पाठ करते हुये घर को तीन बार पीले धागे से वेष्टित करे। आम्र पल्लव गूँथा हुआ मूँज की डोरी भी वेष्टित कर दे।
रक्षोघ्नसूक्त : ॐ कृ॒णु॒ष्व पाजः॒ प्रसि॑तिं॒ न पृ॒थ्वीं या॒हि राजे॒वाम॑वाँ इभे॑न । तृ॒ष्वीमनु॒ प्रसि॑तिं द्रूणा॒नोऽस्ता॑सि॒ विध्य॑ र॒क्षस॒स्तपि॑ष्ठैः ॥ तव भ्र॒मास॑ आशु॒या प॑त॒न्त्यनु॑ स्पृश धृष॒ता शोशु॑चानः । तपूं॑ᳪष्यग्ने जु॒ह्वा॑ पतं॒गानसं॑दितो॒ वि सृ॑ज॒ विष्व॑गु॒ल्काः ॥ प्रति॒ स्पशो॒ वि सृ॑ज॒ तूर्णि॑तमो॒ भवा॑ पा॒युर्वि॒शो अ॒स्या अद॑ब्धः । यो नो॑ दू॒रे अ॒घशं॑सो॒ यो अन्त्यग्ने॒ माकि॑ष्टे॒ व्यथि॒रा द॑धर्षीत् ॥ उद॑ग्ने तिष्ठ॒ प्रत्या त॑नुष्व॒ न्यमित्राँ ओषतात्तिग्महेते । यो नो॒ अरा॑ति ᳪ समिधान च॒क्रे नी॒चा तं ध॑क्ष्यत॒सं न शुष्क॑म् ॥ ऊ॒र्ध्वो भ॑व॒ प्रति॑ वि॒ध्याध्य॒स्मदा॒विष्कृ॑णुष्व॒ दैव्या॑न्यग्ने । अव॑ स्थि॒रा त॑नुहि यातु॒जूनां॑ जा॒मिमजा॑मिं॒ प्र मृ॑णीहि॒ शत्रू॑न् ॥
फिर पवमान सूक्त पाठ करके कलश जल (ईशानकोण वाला कलश) में दुग्ध, दही, घी, मधु, दूर्वा, कुश, जौ आदि मिलाकर सूत्र पर चारों ओर (अग्निकोण या ईशानकोण से आरम्भ करके) अविच्छिन्न जलधारा दे।
पवमानसूक्त : ॐ पुनन्तु मा पितरः सोम्यासः पुनन्तु मा पितामहाः पुनन्तु प्रपितामहाः पवित्रेण शतायुषा ॥ पुनन्तु मा पितामहाः पुनन्तु प्रपितामहाः पवित्रेण शतायुषा विश्वमायुर्व्यश्नवै ॥ अग्न आयूᳪषि पवस ᳪ आसुवोर्जमिषं च नः। आरे वाधस्व दुच्छनाम् ॥ पुनन्तु मादेवजनाः पुनन्तु मनसा धियः। पुनन्तु विश्वा भूतानि जातवेदः पुनीहि मा ॥ पवित्रेण पुनीहि मा शुक्रेण देव दीद्यत्। अग्ने क्रत्वा क्रतूँ रनु ॥ यत्ते पवित्रमर्चिष्यग्ने विततमन्तरा। ब्रह्म तेन पुनातु मा ॥ पवमानः सो अद्य नः पवित्रेण व्विचर्षणिः । यः पोता स पुनातु मा ॥ उभाभ्यां देव सवितः पवित्रेण सनेव च। मां पुनीहि विश्वतः ॥ वैश्वदेवी पुनती देव्यागाद्यस्यामिमा वह्व्यस्तन्वो नन्दो व्वीतपृष्ठाः ॥ तया मदन्तः सधमादेषु वय ᳪ स्याम पतयो रयीणाम् ॥
दुग्धमिश्रित जलधारा देकर सप्तधान्य, पीली सरसों भी छिड़के (सूत्र को ही आधार करके छिड़के )।
तत्पश्चात पुनः अग्निकोण में आकर आकाशपद में जानुमात्र (जंघा भर) गड्ढा करे। गोबर, तीर्थजल आदि से लीप कर चंदन-चौरठ आदि से चौक बना दे। फिर उसमें यथासंभव पंचरत्न, स्वर्ण, चांदी, पारा, उजाला फूल, सप्तधान्य (पहले से ७ मृदभांड/कोठी में किया हुआ), धान का लावा, दही आदि द्रव्य अर्पित करे। फिर जानू के बल बैठकर (घुटने टेककर) ईशानकोण वाले कलश का जल गड्ढे में दे : ॐ तत्त्वा यामि ब्रह्मणा वन्दमानस्तदा शास्ते यजमानो हविर्भिः । अहेडमानो वरुणेह बोध्युरुश ᳪ समा न आयुः प्र मोषीः॥
फिर शैवाल, सप्तमृत्तिका, सप्तधान्य, फूल आदि प्रक्षेप करके फिर मङ्गल ध्वनि, मगंल पाठ आदि करते हुये वास्तुकलश (वास्तुप्रतिमा सहित) लाये, गन्धादि से पुनः पूजा करके कलश में भी उपरोक्त द्रव्यादि देकर सर्पाकार वास्तु को अधोमुखी करके कलश में देकर ऊपर से पुनः ढकनी आदि से ढंककर प्रार्थना करे :
- ॐ पूजितोऽसि मया वास्तो हेमाद्यैरर्चनैः शुभैः । प्रसीद पाहि विश्वेश देहि मे गृहजं सुखं ॥
- ॐ नमस्ते वास्तु पुरुषाय भूशय्या भिरत प्रभो । मद्गृहं धन धान्यादि समृद्धं कुरु सर्वदा ॥
- ॐ यथामेरुगिरेः शृंगंदेवानामालयः सदा । तथा ब्रह्मादि देवानां ममगृहेस्थिरोभव ॥
- ॐ वास्तोष्पते प्रतिजानीह्यस्मान्स्वा वेशोऽनमीवो भवा नः। यत्त्वेमहे प्रतितन्नो जुषस्व शन्नो भव द्विपदे शं चतुष्पदे ॥
कलश को गर्त में स्थापित करके बायें भाग में दीप जलाये। पुनः पञ्चोपचार पूजन करके प्रार्थना करे : ॐ स्थिरो भव वीड्वङ्ग आशुर्भव वाज्यर्वन् पृथुर्भव सुखदस्त्वमग्नेः पुरीषवाहनः ॥ मिट्टी से गर्त को भरकर लीप दे। स्वास्तिक बनाकर दधिमाष बलि अर्पित करे।
श्री स्थापन (कर्मठगुरु में वर्णित विशेष विधि, अन्य पद्धतियों से इसकी पुष्टि नहीं होती) : तत्पश्चात कोषागार जाकर (अथवा आकाशपद वाले गर्त में ही ढंकने से पूर्व) गर्त के दक्षिण कोण में श्री का आवाहन पूजन करे : ॐ श्रियै नमः ॥ एक पात्र में सप्तधान्य, पीली सरसों, चांदी, दूर्वा, अक्षत, पुष्प, चन्दन लेकर स्वस्तिवाचन करे। अगले मंत्र से गर्त मध्य में स्थापित करे : ॐ स्थिरो भव वीड्वङ्ग आशुर्भव वाज्यर्वन् पृथुर्भव सुखदस्त्वमग्नेः पुरीषवाहनः ॥ गड्ढे को मिट्टी से भर कर चौका करे, स्वास्तिक बना दे।
अन्य पूजा
दक्षिण द्वार – ॐ धात्रे नमः ॥ वाम द्वार – ॐ विधात्रे नमः ॥
ॐ गणेशाय नमः ॥ ॐ श्रियै नमः ॥ ॐ पट्टशालायै नमः ॥ ॐ मण्डपदेवताभ्यो नमः ॥ ॐ कण्डनीभ्यो नमः ॥ ॐ पेषिण्यै नमः ॥
चूल्हे के दक्षिण भाग पर – ॐ धर्माय नमः॥ पुनः चूल्हे के वाम भाग पर – ॐ धर्माय नमः ॥ ॐ स्वरस्वरपरिवर्तनीयाय नमः – धान्यादि भाण्ड पर ॥ ॐ जलामृताय वरुणाय नमः – जलभाण्ड (जलपात्र-नल) ॥ ॐ महाविघ्नराजाय नमः – प्रधान घर के आधार में ॥ ॐ महाशुभांगाय नमः – जाता, सिल्ला (मिक्सी) ॥ ॐ रुद्रकोटिगिरिकायै नमः – ऊखल ॥ ॐ बलभद्रप्रियाय प्रहरणाय नमः – मुशल ॥ ॐ मृत्यवे देवीचोदिते नमः – संमार्जनी (झाड़ू) ॥ ॐ कामार्थकुसुमायुधाय नमः – शय्या (सिरहाने में) ॥ ॐ स्कन्दाय गृहाधिपतये नमः – चतुष्पदशाला (पशुगृह) ॥ ॐ देवताभ्यो नमः – जहां गोबर आदि रखा जाता हो ॥
यद्यपि वास्तु शांति में पूर्णाहुति के निषेध का एक प्रमाण है, किन्तु अधिकांश वास्तु पद्धतियों में पूर्णाहुति दिया गया है, कुछ ही ऐसे पद्धति होंगे जिसमें पूर्णाहुति न दी गयी हो। हवन पद्धति के अनुसार पूर्णाहुति, वसोर्धारा, आदि करके फिर आरती, विसर्जन, दक्षिणा आदि करके घर में ब्राह्मण भोजन कराये।
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