क्या आपको कभी हरिहर अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र की आवश्यकता हुई है। हरिहर यज्ञ में तो विशेष रूप से इसकी आवश्यकता होगी ही। स्कन्दपुराण में धर्मराज के द्वारा हरिहर के अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र का वर्णन मिलता है। यहां स्कन्दपुराणोक्त हरिहराष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् (hariharashtottara shatanama stotram) संस्कृत में दिया गया है।
हरिहराष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् – hariharashtottara shatanama stotram
धर्मराज उवाच
गोविन्द माधव मुकुन्द हरे मुरारे
शम्भो शिवेश शशिशेखर शूलपाणे ।
दामोदराच्युत जनार्दन वासुदेव
त्याज्या भटा य इति सन्ततमामनन्ति ॥१॥
गङ्गाधरान्धकरिपो हर नीलकण्ठ
वैकुण्ठ कैटभरिपो कमठाब्जपाणे ।
भूतेश खण्डपरशो मृड चण्डिकेश
त्याज्या भटा य इति सन्ततमामनन्ति ॥२॥
विष्णो नृसिंह मधुसूदन चक्रपाणे
गौरीपते गिरिश शङ्कर चन्द्रचूड ।
नारायाणासुरनिबर्हण शार्ङ्गपाणे
त्याज्या भटा य इति सन्ततमामनन्ति ॥३॥
मृत्युञ्जयोग्र विषमेक्षण कामशत्रो
श्रीकान्त पीतवसनाम्बुदनील शौरे ।
ईशान कृत्तिवसन त्रिदशैकनाथ
त्याज्या भटा य इति सन्ततमामनन्ति ॥४॥
लक्ष्मीपते मधुरिपो पुरुषोत्तमाद्य
श्रीकण्ठ दिग्वसन शान्त पिनाकपाणे ।
आनन्दकन्द धरणीधर पद्मनाभ
त्याज्या भटा य इति सन्ततमामनन्ति ॥५॥
सर्वेश्वर त्रिपुरसूदन देवदेव
ब्रह्मण्यदेव गरुडध्वज शङ्खपाणे ।
त्र्यक्षोरगाभरण बालमृगाङ्कमौले
त्याज्या भटा य इति सन्ततमामनन्ति ॥६॥
श्रीराम राघव रमेश्वर रावणारे
भूतेश मन्मथरिपो प्रमथाधिनाथ ।
चाणूरमर्दन हृषीकपते मुरारे
त्याज्या भटा य इति सन्ततमामनन्ति ॥७॥
शूलिन् गिरीश रजनीश कलावतंस
कंसप्रणाशन सनातन केशिनाश ।
भर्ग त्रिनेत्र भव भूतपते पुरारे
त्याज्या भटा य इति सन्ततमामनन्ति ॥८॥
गोपीपते यदुपते वसुदेवसूनो
कर्पूरगौर वृषभध्वज भालनेत्र ।
गोवर्धनोद्धरण धर्मधुरीण गोप
त्याज्या भटा य इति सन्ततमामनन्ति ॥९॥
स्थाणो त्रिलोचन पिनाकधर स्मरारे
कृष्णानिरुद्ध कमलाकर कल्मषारे ।
विश्वेश्वर त्रिपथगार्द्रजटाकलाप
त्याज्या भटा य इति सन्ततमामनन्ति ॥१०॥
अष्टोत्तराधिकशतेन सुचारुनाम्नां
सन्दर्भितां ललितरत्नकदम्बकेन ।
सन्नायकां दृढगुणां निजकण्ठगतां यः
कुर्यादिमां स्रजमहो स यमं न पश्येत् ॥११॥
गणावूचतुः
इत्थं द्विजेन्द्र निजभृत्यगणान्सदैव
संशिक्षयेदवनिगान्स हि धर्मराजः ।
अन्येऽपि ये हरिहराङ्कधरा धरायां
ते दूरतः पुनरहो परिवर्जनीयाः ॥१२॥
अगस्त्य उवाच
यो धर्मराजरचितां ललितप्रबन्धां
नामावलिं सकलकल्मषबीजहन्त्रीम् ।
धीरोऽत्र कौस्तुभभृतः शशिभूषणस्य
नित्यं जपेत्स्तनरसं न पिबेत्स मातुः ॥१३॥
इति शृण्वन् कथां रम्यां शिवशर्मा प्रियेऽनघाम् ।
प्रहर्षवक्त्रः पुरतो ददर्श सरसीं पुरीम् ॥१४॥
॥ इति श्रीस्कन्दपुराणे काशीखण्डे धर्मराजप्रोक्तं हरिहराष्टोत्तरशतनामस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
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